The Pulley
Summary in Marathi
जॉर्ज हर्बर्ट यांची “द पल्ली” ही कविता धार्मिक आहे आणि ती देव आणि माणसातील नात्याला चरखीच्या रूपकातून सादर करते. कवितेच्या सुरुवातीला, देव माणसाला निर्माण करतो आणि त्याला आपल्या आशीर्वादांच्या “काचेच्या प्याल्यातून” सामर्थ्य, सौंदर्य, बुद्धिमत्ता, सन्मान आणि सुख असे दान देण्याचा निर्णय घेतो. पण जेव्हा देवाला दिसते की “विश्रांती” (समाधान) हे दान शिल्लक आहे, तेव्हा तो ते जाणूनबुजून रोखतो. देवाला वाटते की जर माणसाला विश्रांती मिळाली, तर तो या दानांमध्ये इतका समाधानी होईल की तो देवाऐवजी या दानांची पूजा करेल आणि आपल्या सृष्टिकर्त्याला विसरेल. हे टाळण्यासाठी, देव माणसाला सर्व दाने देतो, पण त्याचबरोबर “असमाधानाची अस्वस्थता” देखील देतो, ज्यामुळे माणूस नेहमी असमाधानी आणि थकलेला राहतो. ही अस्वस्थता एका चरखीप्रमाणे काम करते, जी माणसाला थकवा आणि निराशेत देवाच्या जवळ खेचते. कविता यावर जोर देते की देवाने विश्रांती न देणे हा एक विचारपूर्वक निर्णय आहे, ज्यामुळे माणसाचे देवाशी नाते कायम राहते. ही कविता दैवी प्रेम, माणसाची अवलंबिता आणि आध्यात्मिक ओढ यांसारख्या विषयांना अधोरेखित करते.
Summary in English
“The Pulley” by George Herbert is a religious poem that explores the relationship between God and humanity, using the metaphor of a pulley to convey its message. The poem begins with God creating man and deciding to bestow upon him a “glass of blessings” containing gifts like strength, beauty, wisdom, honor, and pleasure. However, when God notices that the gift of “rest” (contentment) remains, He deliberately withholds it. God reasons that if man were given rest, he might become so content with these gifts that he would worship them instead of God, forgetting the Creator. To prevent this, God allows man to have all the gifts but with a sense of “repining restlessness,” ensuring that man remains dissatisfied and weary. This restlessness acts as a pulley, drawing man closer to God when he grows tired and seeks divine comfort. The poem emphasizes that God’s withholding of rest is a deliberate act to keep humanity connected to Him, highlighting themes of divine love, human dependence, and spiritual longing. Through vivid imagery and metaphysical conceits, Herbert conveys that human discontent is a mechanism to lead people back to God.
Summary in Hindi
जॉर्ज हर्बर्ट की कविता “द पल्ली” एक धार्मिक कविता है जो ईश्वर और मानवता के बीच के रिश्ते को एक चरखी (पल्ली) के रूपक के माध्यम से दर्शाती है। कविता की शुरुआत में, ईश्वर मानव को बनाता है और उसे अपनी आशीर्वादों की “कांच की कटोरी” से ताकत, सौंदर्य, बुद्धि, सम्मान और सुख जैसे उपहार देने का निर्णय लेता है। लेकिन जब ईश्वर देखता है कि “विश्राम” (संतुष्टि) का उपहार बाकी है, वह जानबूझकर इसे रोक लेता है। ईश्वर का मानना है कि अगर मानव को विश्राम मिल जाए, तो वह इन उपहारों से इतना संतुष्ट हो जाएगा कि वह ईश्वर की बजाय इन उपहारों की पूजा करने लगेगा और अपने सृष्टिकर्ता को भूल जाएगा। इसे रोकने के लिए, ईश्वर मानव को सभी उपहार देता है, लेकिन साथ में “असंतोषपूर्ण बेचैनी” भी देता है, ताकि मानव हमेशा असंतुष्ट और थका हुआ रहे। यह बेचैनी एक चरखी की तरह काम करती है, जो मानव को थकान और निराशा में ईश्वर के करीब खींचती है। कविता इस बात पर जोर देती है कि ईश्वर का विश्राम न देना एक सोचा-समझा कदम है, ताकि मानव का ईश्वर से रिश्ता बना रहे। यह कविता ईश्वरीय प्रेम, मानव की निर्भरता और आध्यात्मिक लालसा जैसे विषयों को उजागर करती है।
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