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हिन्‍दी Class 11 Bihar Board | Menu
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हिन्‍दी Important Questions Class 11 Poem 4 सहजोबाई के पद Hindi Digant Bihar Board बिहार बोर्ड

Important Questions For All Chapters – हिन्‍दी Class 11

छोटे महत्वपूर्ण प्रश्न


1. सहजोबाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: सहजोबाई का जन्म 1725 ई. में परीक्षितपुरा (दिल्ली के निकट) में हुआ था।

2. सहजोबाई के पिता का नाम क्या था?

उत्तर: सहजोबाई के पिता का नाम हरि प्रसाद भार्गव था।

3. सहजोबाई के दीक्षागुरु कौन थे?

उत्तर: सहजोबाई के दीक्षागुरु संत कवि चरनदास थे।

4. सहजोबाई का जीवन किसे समर्पित था?

उत्तर: सहजोबाई का जीवन गुरु और उनके माध्यम से ईश्वर की भक्ति को समर्पित था।

5. सहजोबाई ने किस प्रकार की भक्ति का अनुसरण किया?

उत्तर: सहजोबाई ने निर्गुण ज्ञानाश्रयी भक्ति का अनुसरण किया।

6. सहजोबाई के गुरु को किससे अधिक महत्व दिया गया है?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया है।

7. सहजोबाई की प्रमुख रचना कौन-सी है?

उत्तर: सहजोबाई की प्रमुख रचना ‘सहज प्रकाश’ है।

8. सहजोबाई का विवाह क्यों नहीं हुआ?

उत्तर: सहजोबाई ने आजीवन अविवाहिता रहकर अपना जीवन भक्ति में समर्पित किया।

9. सहजोबाई ने गुरु की महिमा को कैसे व्यक्त किया है?

उत्तर: सहजोबाई ने कहा कि गुरु ने उन्हें आत्मज्ञान दिया और सांसारिक बंधनों से मुक्त कराया।

10. सहजोबाई के आराध्य देव कौन थे?

उत्तर: सहजोबाई के आराध्य देव श्रीकृष्ण थे।

11. सहजोबाई ने गुरु को ईश्वर से अधिक क्यों माना?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु को ईश्वर से अधिक माना क्योंकि गुरु ने उन्हें आवागमन के चक्र से मुक्त किया।

12. ‘हरि ने पाँच चोर दिए साथा’ में पाँच चोर कौन-से हैं?

उत्तर: पाँच चोर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार हैं।

13. गुरु ने सहजोबाई को किस तरह मुक्त किया?

उत्तर: गुरु ने सहजोबाई को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर आत्मज्ञान प्रदान किया।

14. सहजोबाई ने कृष्ण का सौंदर्य कैसे वर्णित किया है?

उत्तर: सहजोबाई ने कृष्ण के मुकुट, कुंडल, और नूपुर की झंकार का सुंदर वर्णन किया है।

15. ‘राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ’ का क्या अर्थ है?

उत्तर: इसका अर्थ है कि सहजोबाई ईश्वर को त्याग सकती हैं, लेकिन गुरु को कभी नहीं भूलेंगी।

16. ‘हरि ने रोग भोग उरझायौ’ का क्या संकेत है?

उत्तर: इसका संकेत है कि ईश्वर ने सांसारिक कष्ट दिए, लेकिन गुरु ने उन्हें इनसे मुक्त किया।

17. सहजोबाई ने गुरु को दीपक क्यों कहा?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु को दीपक कहा क्योंकि गुरु ने आत्मज्ञान का प्रकाश दिया।

18. सहजोबाई ने कृष्ण को किस नाम से पुकारा है?

उत्तर: सहजोबाई ने कृष्ण को ‘नटबर नागर’ कहकर पुकारा है।

19. सहजोबाई के अनुसार सच्ची भक्ति क्या है?

उत्तर: सहजोबाई के अनुसार सच्ची भक्ति गुरु और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है।

20. ‘गुरु ने आतम रूप लखायौ’ का क्या तात्पर्य है?

उत्तर: इसका तात्पर्य है कि गुरु ने आत्मा और ब्रह्म की एकता का बोध कराया।


मध्यम महत्वपूर्ण प्रश्न


1. सहजोबाई ने गुरु की महिमा का क्या वर्णन किया है?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्त्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि गुरु ने उन्हें आत्मज्ञान दिया और संसार के भ्रम से मुक्त किया। गुरु के बिना वे कभी आत्मसाक्षात्कार नहीं कर पातीं।

2. सहजोबाई ने ‘हरि’ और ‘गुरु’ की भूमिकाओं को कैसे अलग किया?

उत्तर: सहजोबाई ने ‘हरि’ को जन्म देने वाला और ‘गुरु’ को मोक्ष देने वाला बताया। ‘हरि’ ने उन्हें संसार के कष्ट दिए, जबकि गुरु ने उन्हें आत्मज्ञान दिया। गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा माना।

3. ‘राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ’ का सहजोबाई के जीवन में क्या महत्व है?

उत्तर: यह पंक्ति सहजोबाई की गुरु भक्ति को दर्शाती है। वह गुरु के बिना भगवान को भी भूल जाने को तैयार थीं। गुरु ने उन्हें जीवन की सच्चाई और आत्मज्ञान से परिचित कराया।

4. सहजोबाई ने कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?

उत्तर: सहजोबाई ने कृष्ण के सौंदर्य को बहुत सुंदर रूप में व्यक्त किया। उन्होंने कृष्ण के मुकुट, कुंडल और नूपुर की झंकार को भव्यता से वर्णित किया। उनका सौंदर्य और लीला उनके लिए सर्वोच्च थे।

5. ‘हरि ने मोरू आप छिपायौ, गुरु दीपक दे ताहि दिखायौ’ का क्या अर्थ है?

उत्तर: इसका अर्थ है कि ईश्वर ने आत्मा का रूप छिपाया था, और गुरु ने उसे पहचानने के लिए प्रकाश दिया। गुरु ने उनके जीवन की राह को स्पष्ट किया। यह पंक्ति गुरु के प्रकाश का प्रतीक है।

6. सहजोबाई ने कृष्ण और गुरु की तुलना में किसे अधिक महत्वपूर्ण माना है?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु को कृष्ण से अधिक महत्वपूर्ण माना है। उनका मानना था कि गुरु ने उन्हें आत्मज्ञान दिया और संसार के मोह से मुक्त किया। उन्होंने गुरु को अपने जीवन का वास्तविक मार्गदर्शक माना।

7. ‘हरि ने पाँच चोर दिए साथा’ में पाँच चोर कौन-से हैं?

उत्तर: पाँच चोर वे दोष हैं, जो इंसान को भ्रमित करते हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। सहजोबाई ने गुरु को इन दोषों से छुटकारा दिलाने वाला बताया। गुरु ने इन सभी चोरों से मुक्त किया।

8. सहजोबाई के अनुसार गुरु का असली कार्य क्या है?

उत्तर: सहजोबाई के अनुसार गुरु का असली कार्य शिष्य को आत्मज्ञान और मोक्ष की राह दिखाना है। गुरु ने उन्हें संसार के भ्रम से मुक्त कर वास्तविक आत्मा का बोध कराया। गुरु ने उनके जीवन को सही दिशा दी।

9. सहजोबाई का काव्य किस प्रकार की भक्ति को दर्शाता है?

उत्तर: सहजोबाई का काव्य निर्गुण और सगुण भक्ति दोनों को एक साथ दर्शाता है। उनकी भक्ति में श्रीकृष्ण के सौंदर्य और गुरु के प्रति अटूट समर्पण का मिश्रण है। यह भक्ति ज्ञान और प्रेम का अद्भुत संगम है।

10. सहजोबाई की गुरु भक्ति को किस रूप में व्यक्त किया गया है?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु भक्ति को अपने काव्य में अत्यधिक भावनात्मक रूप में व्यक्त किया है। उन्होंने गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्त्वपूर्ण बताया। गुरु ने उन्हें जीवन का सही मार्ग दिखाया और मोक्ष की प्राप्ति कराई।


लंबे महत्वपूर्ण प्रश्न


1. सहजोबाई ने गुरु के महत्व को किस प्रकार व्यक्त किया है और उनके लिए गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर क्यों रखा?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु को भगवान से भी ऊपर स्थान दिया क्योंकि उन्होंने गुरु को मुक्ति का मार्ग दिखाने वाला और आत्मज्ञान का प्रदाता माना। उन्होंने कहा कि गुरु ही ईश्वर से भी महान है, क्योंकि गुरु के द्वारा ही व्यक्ति जीवन के भ्रम और अज्ञान से बाहर निकल सकता है। गुरु के बिना भक्ति अधूरी है। इस विचार से वह अपनी गुरु भक्ति को स्पष्ट रूप से व्यक्त करती हैं।

2. सहजोबाई ने कृष्ण के सौंदर्य को कैसे चित्रित किया और उनकी लीलाओं में क्या आकर्षण था?

उत्तर: सहजोबाई ने कृष्ण के सौंदर्य को नटबर नागर, मदन मनोहर और लीलाधर के रूप में चित्रित किया है। उनकी लीलाओं में आकर्षण था, क्योंकि उन्होंने कृष्ण के नृत्य, मुस्कान, रूप, और उनके नूपुर की झंकार का उल्लेख किया। यह चित्रण कृष्ण के साथ उनके गहरे प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। कृष्ण के रूप और लीला में उन्हें परम आनंद की अनुभूति होती थी।

3. सहजोबाई ने ‘राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ’ में किस प्रकार गुरु के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की है?

उत्तर: सहजोबाई ने ‘राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ’ में अपनी गुरु भक्ति को व्यक्त किया है, जिसमें वह कहती हैं कि वह श्रीराम को छोड़ सकती हैं, लेकिन गुरु को कभी नहीं भूल सकतीं। यह पंक्ति उनके गुरु के प्रति उनके अपार प्रेम और निष्ठा को दर्शाती है। उन्होंने गुरु को सर्वोपरि माना और यह विश्वास किया कि गुरु के बिना भक्ति का वास्तविक अर्थ नहीं है।

4. सहजोबाई ने ‘हरि’ और ‘गुरु’ के बीच क्या अंतर बताया है और इसका क्या महत्व है?

उत्तर: सहजोबाई ने ‘हरि’ को जन्म देने वाला और ‘गुरु’ को मुक्ति देने वाला बताया। ‘हरि’ ने उन्हें सांसारिक कष्ट दिए, जबकि गुरु ने इनसे मुक्ति दिलाई। गुरु ने उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति कराई, जो कि जीवन के वास्तविक उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करता है। इस अंतर के माध्यम से वह गुरु की भूमिका और महत्व को स्पष्ट करती हैं।

5. सहजोबाई ने कृष्ण के सौंदर्य का क्या विशेष वर्णन किया और वह भक्ति के संदर्भ में कैसे महत्वपूर्ण है?

उत्तर: सहजोबाई ने कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन उनके मुकुट, कुंडल, और नूपुर की झंकार से किया है। यह उनका कृष्ण के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक है, जो सगुण भक्ति का रूप है। कृष्ण के रूप और लीला में सहजोबाई को परम आनंद की अनुभूति होती है, जो उनके भक्ति के उच्चतम स्तर को दर्शाता है। यह उनके भक्ति के माध्यम से ईश्वर से गहरे संबंध का प्रतीक है।

6. ‘गुरु ने मोरू आप छिपायौ, गुरु दीपक दे ताहि दिखायो’ पंक्तियों का क्या अर्थ है?

उत्तर: इस पंक्ति का अर्थ है कि गुरु ने सहजोबाई के भीतर छिपे हुए आत्मा के रूप को उजागर किया और उन्हें सही मार्ग दिखाया। गुरु ने जैसे दीपक की तरह उनके जीवन की राह रोशन की, जिससे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। यह गुरु के दिव्य ज्ञान और उनके जीवन में प्रकाश लाने के प्रतीक के रूप में है।

7. सहजोबाई ने गुरु की महिमा को किस रूप में व्यक्त किया और इसका क्या महत्व है?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु को भगवान से भी ऊपर स्थान दिया और कहा कि गुरु ने उन्हें आत्मज्ञान और मुक्ति का रास्ता दिखाया। गुरु ने उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्त किया और सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। सहजोबाई ने गुरु को हर चीज से ऊपर माना और उनका समर्पण गुरु के प्रति था। यह गुरु की महिमा और महत्व को स्पष्ट करता है।

8. सहजोबाई ने अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता कैसे व्यक्त की और क्यों गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना?

उत्तर: सहजोबाई ने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि गुरु ने उन्हें जीवन के सत्य को दिखाया और भ्रम से बाहर निकाला। गुरु को भगवान से ऊपर माना क्योंकि गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं थी। गुरु ने उन्हें आत्मज्ञान का दीपक दिखाया और भक्ति के वास्तविक मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन किया। यह उनके गुरु के प्रति अपार प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है।

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