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हिंदी Important Questions Chapter 11 हँसते हुए मेरा अकेलापन Class 12 Hindi Bihar Board बिहार बोर्ड

Important Questions For All Chapters – हिंदी Class 12

Short Questions (with Answers)


1. मलयज का जन्म कब और कहाँ हुआ?

  • मलयज का जन्म 1935 में महुई, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ।

2. मलयज का वास्तविक नाम क्या था?

  • मलयज का वास्तविक नाम भरतजी श्रीवास्तव था।

3. मलयज के माता-पिता का नाम क्या था?

  • उनके माता का नाम प्रभावती और पिता का नाम त्रिलोकी नाथ वर्मा था।

4. मलयज की शिक्षा कहाँ हुई?

  • उन्होंने एम.ए. (अंग्रेजी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की।

5. मलयज की कविताओं की पहली पुस्तक कौन-सी थी?

  • उनकी पहली कविता संग्रह थी “जख्म पर धूल” (1971)।

6. मलयज ने डायरी लेखन कब शुरू किया?

  • उन्होंने 15 जनवरी 1951 को डायरी लिखना शुरू किया।

7. मलयज की मृत्यु कब हुई?

  • मलयज का निधन 9 अप्रैल 1982 को हुआ।

8. मलयज किस बीमारी से पीड़ित थे?

  • मलयज क्षयरोग से पीड़ित थे।

9. मलयज की आलोचनात्मक पुस्तक का नाम बताइए।

  • उनकी पुस्तक “कविता से साक्षात्कार” 1979 में प्रकाशित हुई।

10. मलयज ने कितने वर्षों तक डायरी लिखी?

  • उन्होंने 32 वर्षों तक डायरी लिखी।

11. डायरी लेखन के लिए मलयज का दृष्टिकोण क्या था?

  • उन्होंने इसे संघर्ष और सृजन का माध्यम माना।

12. डायरी के लेखन में मलयज के विचार क्या थे?

  • वे इसे केवल दस्तावेज नहीं बल्कि सृजनात्मक स्रोत मानते थे।

13. डायरी के पृष्ठों को मलयज ने किससे तुलना की?

  • उन्होंने इसे जीवन की आग और संघर्ष की साक्षी माना।

14. मलयज की मुख्य काव्य विशेषता क्या थी?

  • उनकी कविता में रचना की सघनता और अनुभूति का सृजनात्मक तनाव था।

15. मलयज ने साहित्यिक आलोचना में क्या योगदान दिया?

  • उन्होंने सृजनात्मक आलोचना की नई भाषा और तकनीक दी।

16. ‘धरती का क्षण’ का अर्थ क्या है?

  • यह रचना की स्थिरता और जड़ता का प्रतीक है।

17. मलयज ने कला और साहित्य को किससे जोड़ा?

  • उन्होंने इसे समाज के परिवर्तन और विकास से जोड़ा।

18. मलयज की डायरी का मुख्य स्वर क्या है?

  • यह आत्मचिंतन और गहरी संवेदनशीलता को दर्शाता है।

19. मलयज ने साहित्य को क्या माना?

  • उन्होंने इसे शब्द व्यापार नहीं, बल्कि जीवन का दायित्व माना।

20. मलयज की रचनाओं में यथार्थ का क्या स्थान है?

  • उनकी रचनाओं में यथार्थ जीने और रचने की प्रक्रिया का समावेश है।

Medium Questions (with Answers)


1. मलयज ने डायरी लिखने को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा क्यों माना?

  • मलयज ने डायरी को अपनी भावनाओं और अनुभवों का दस्तावेज माना। उन्होंने इसे आत्मसंघर्ष और सृजनात्मक यात्रा का साक्षी बताया। डायरी उनके लिए केवल शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि जीवन का प्रतिबिंब थी।

2. ‘रचा हुआ यथार्थ’ और ‘भोगा हुआ यथार्थ’ में मलयज ने क्या अंतर बताया?

  • मलयज के अनुसार, रचा हुआ यथार्थ वह है, जिसे हम स्वयं बनाते हैं, जबकि भोगा हुआ यथार्थ वह है, जो हमें परिस्थितियों से मिलता है। रचनात्मक यथार्थ मानवीयता और समाज की सच्चाई का निर्माण करता है।

3. मलयज की रचना और आलोचना में किस प्रकार का संबंध है?

  • उनकी रचना और आलोचना एक ही प्रक्रिया के दो पहलू थे। उनकी कविता अनुभव की गहराई को दर्शाती है, जबकि आलोचना उस अनुभव का विश्लेषण करती है। दोनों में सृजनात्मकता और यथार्थ का अद्भुत तालमेल था।

4. मलयज ने डायरी को ‘दहकता हुआ जंगल’ क्यों कहा?

  • मलयज के अनुसार, डायरी लिखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसमें जीवन के संघर्ष झलकते हैं। इसे उन्होंने केवल सुरक्षित दस्तावेज नहीं, बल्कि सृजनात्मक संघर्ष का प्रमाण माना। यह उनके जीवन और साहित्य का जीवंत अंश है।

5. मलयज ने साहित्य को केवल ‘शब्द व्यापार’ क्यों नहीं माना?

  • उनके अनुसार, साहित्य लिखना केवल शब्दों का खेल नहीं है। यह जीवन, संघर्ष और दायित्व को समझने और व्यक्त करने का माध्यम है। साहित्यकार का काम समाज और मानवीय संवेदनाओं का प्रतिबिंब प्रस्तुत करना है।

6. मलयज की डायरी के अंश उनके व्यक्तित्व को कैसे दर्शाते हैं?

  • डायरी के अंश उनकी संवेदनशीलता, संघर्ष और रचनात्मकता का प्रमाण हैं। उन्होंने अपने अनुभवों को गहराई से महसूस कर लिखा। उनके शब्दों में आत्मचिंतन और समाज के प्रति गहरी जिम्मेदारी झलकती है।

7. मलयज ने आलोचना में नई भाषा और तकनीक का प्रयोग कैसे किया?

  • उन्होंने साहित्य में रचनात्मक आलोचना का नया दृष्टिकोण दिया। उनकी भाषा तीव्र संवेदनशीलता और बौद्धिकता से भरी थी। उनकी आलोचना में कविता का समतुल्य आनंद पाया जाता है।

8. मलयज के लेखन में यथार्थ की भूमिका क्या है?

  • उन्होंने यथार्थ को केवल अनुभव नहीं, बल्कि सृजनात्मक प्रक्रिया का हिस्सा माना। उनके लिए यथार्थ को जीना और रचना दोनों महत्त्वपूर्ण थे। उनकी रचनाएँ और आलोचनाएँ इसे दर्शाती हैं।

9. डायरी के माध्यम से मलयज ने अपनी जीवन दृष्टि को कैसे व्यक्त किया?

  • डायरी के माध्यम से उन्होंने अपने संघर्ष, चिंतन और भावनाओं को प्रकट किया। यह उनकी जीवन दृष्टि और साहित्यिक यात्रा का प्रतिबिंब है। उनके विचार गहन और प्रेरणादायक हैं।

10. मलयज की रचनाओं में समाज और साहित्य का संबंध कैसे झलकता है?

  • उनकी रचनाएँ समाज के बदलाव और साहित्य की भूमिका को साथ जोड़ती हैं। वे मानते थे कि साहित्य समाज को प्रभावित करता है। उनकी रचनाओं में यह दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखता है।

Long Questions (with Answers)


1. मलयज की डायरी लेखन शैली उनके व्यक्तित्व को कैसे दर्शाती है?

  • मलयज की डायरी लेखन शैली उनकी संवेदनशीलता और रचनात्मकता को प्रकट करती है। डायरी के माध्यम से उन्होंने अपने संघर्ष, आत्मचिंतन और भावनाओं को गहराई से व्यक्त किया। उन्होंने डायरी को केवल निजी दस्तावेज नहीं, बल्कि समाज और साहित्य के बीच एक पुल के रूप में देखा। उनकी लेखनी में व्यक्तिगत अनुभवों के साथ समाज के यथार्थ का मेल स्पष्ट रूप से झलकता है। यह शैली उनकी जिजीविषा और सृजनशीलता का प्रतीक है।

2. मलयज ने साहित्य में ‘सृजनात्मक आलोचना’ का आह्वान क्यों किया?

  • मलयज ने महसूस किया कि हिंदी साहित्य में आलोचना एक जड़ता और परजीविता की स्थिति में पहुँच चुकी थी। उन्होंने रचनात्मक आलोचना को साहित्य में नई ऊर्जा और दृष्टिकोण प्रदान करने का माध्यम माना। उनकी आलोचना में संवेदनशीलता, तीव्र बौद्धिकता और कविता के समान आनंद मिलता है। उन्होंने आलोचना को केवल विश्लेषण नहीं, बल्कि साहित्यिक सृजन के समकक्ष स्थान दिया। यह उनके साहित्यिक योगदान का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

3. ‘रचा हुआ यथार्थ’ और ‘भोगा हुआ यथार्थ’ के बीच मलयज ने क्या संबंध स्थापित किया?

  • मलयज ने ‘रचा हुआ यथार्थ’ को वह प्रक्रिया माना जिसमें लेखक अपने अनुभवों और कल्पनाओं को सृजन में बदलता है। ‘भोगा हुआ यथार्थ’ वह है जिसे व्यक्ति अपने जीवन में महसूस करता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और इनके बीच द्वंद्वात्मक रिश्ता है। उनका मानना था कि सृजनात्मकता का आधार यथार्थ को समझने और उसे फिर से रचने में है। यह साहित्य को जीवन और समाज से जोड़ता है।

4. मलयज ने ‘डायरी’ को अपने संघर्ष और सृजन का प्रतीक क्यों कहा?

  • मलयज ने डायरी को केवल व्यक्तिगत अनुभवों का लेखा-जोखा नहीं, बल्कि आत्मसंघर्ष और रचनात्मकता का माध्यम माना। उनके लिए डायरी जीवन के जटिल पहलुओं को समझने और व्यक्त करने का एक सशक्त साधन थी। यह उनके अंदर की आग और ठंडक के बीच का संतुलन दिखाती है। डायरी में शब्द और अर्थ के बीच के संबंध ने उनकी कविताओं और आलोचनाओं को समृद्ध किया। इसे उन्होंने अपनी सृजन प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा माना।

5. मलयज के अनुसार साहित्य समाज को किस प्रकार प्रभावित करता है?

  • मलयज का मानना था कि साहित्य समाज को केवल प्रतिबिंबित नहीं करता, बल्कि उसे परोक्ष रूप से प्रभावित करता है। उनके अनुसार, साहित्य और समाज के बीच गहरा द्वंद्वात्मक संबंध है। साहित्य के माध्यम से समाज के बदलावों को दिशा और गति मिलती है। उन्होंने इसे यथार्थ को रचने और समझने का माध्यम माना। उनकी रचनाएँ इस बात का उदाहरण हैं कि साहित्य सामाजिक सच्चाई का सृजनात्मक रूपांतरण कर सकता है।

6. मलयज ने भाषा और शैली को साहित्य में कैसे महत्त्वपूर्ण माना?

  • मलयज ने साहित्य में भाषा और शैली को सृजनात्मकता का आधार माना। उनके अनुसार, रचना की गहराई और गुणवत्ता भाषा की सघनता और अनुभूति पर निर्भर करती है। उनकी कविताओं और आलोचनाओं में भाषा का रचनात्मक तनाव और अंतर्निष्ठा स्पष्ट दिखती है। उन्होंने साहित्यिक लेखन को मात्र शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रक्रिया माना। भाषा के प्रति उनकी सजगता साहित्य में नवीन दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।

7. मलयज की डायरी से क्या शिक्षा मिलती है?

  • मलयज की डायरी आत्मसंघर्ष, सृजनात्मकता और समाज के प्रति दायित्व का गहन बोध कराती है। यह हमें सिखाती है कि साहित्यकार का जीवन केवल लेखन तक सीमित नहीं होता, बल्कि समाज और मानवता से जुड़ा होता है। उनकी डायरी हमें जीवन के जटिल पहलुओं को समझने और व्यक्त करने की प्रेरणा देती है। यह रचनात्मक लेखन की गहराई और ईमानदारी को महत्त्व देती है। उनके विचार लेखन और जीवन के बीच संतुलन बनाना सिखाते हैं।

8. मलयज की रचनाओं में अंतर्निहित मानवीय संवेदनाएँ कैसे झलकती हैं?

  • मलयज की रचनाओं में मानवीय संवेदनाएँ गहराई और ईमानदारी के साथ प्रकट होती हैं। उनकी कविताएँ और डायरी आत्मचिंतन और समाज के प्रति जिम्मेदारी को दर्शाती हैं। उनकी रचनाएँ पाठकों को मानवीय मूल्यों, संघर्ष और संवेदनशीलता को समझने की प्रेरणा देती हैं। उन्होंने लेखन के माध्यम से मानवीय अनुभवों को सजीव और प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया। यह संवेदनाएँ साहित्य को समाज और पाठकों से जोड़ने में सक्षम हैं।

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