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हिंदी Important Questions Poem 4 छप्पय Class 12 Hindi Bihar Board बिहार बोर्ड

Important Questions For All Chapters – हिंदी Class 12

Short Questions (with Answers)


1. नाभादास ने कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?

उत्तर : कबीर को पक्षपात रहित, सत्य भाषी और वर्णाश्रम विरोधी बताया गया है।

2. ‘मुख देखी नाहीं भनी’ का क्या अर्थ है?

उत्तर : बिना किसी का पक्ष लिए, सत्य को निर्भीकता से कहना।

3. कबीर ने भक्ति के अभाव में धर्म को क्या माना है?

उत्तर : उन्होंने भक्ति रहित धर्म को अधर्म माना है।

4. ‘भगति विमुख जे धर्म’ का क्या अर्थ है?

उत्तर : भक्ति से दूर धर्म अधर्म के समान है।

5. ‘कबीर कानि राखी नहीं’ का क्या तात्पर्य है?

उत्तर : कबीर ने समाज के नियमों और वर्णाश्रम को स्वीकार नहीं किया।

6. ‘पक्षपात नहीं वचन सबहि के हित की भाषी’ से कबीर के किस गुण का परिचय मिलता है?

उत्तर : यह उनकी निष्पक्षता और सत्य के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

7. सूरदास के काव्य की किस विशेषता को नाभादास ने सराहा है?

उत्तर : उनकी वाणी में प्रेम, भाव और अर्थ की अद्भुत समृद्धि।

8. ‘उक्ति चौज अनुप्रास वर्ण अस्थिति अतिभारी’ का क्या अर्थ है?

उत्तर : सूरदास की कविताओं में अनुप्रास, वर्णों का प्रभाव और चमत्कारी अभिव्यक्ति।

9. ‘सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै’ का क्या तात्पर्य है?

उत्तर : सूरदास की कविता इतनी प्रभावशाली है कि हर कवि सिर झुकाने को बाध्य होता है।

10. ‘प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी’ का अर्थ क्या है?

उत्तर : सूरदास ने अपनी कविताओं में हरि लीला को हृदय में प्रत्यक्ष दिखाया है।

11. सूरदास ने अपने काव्य में किन गुणों को व्यक्त किया है?

उत्तर : जन्म, कर्म, गुण, और रूप।

12. ‘वचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी’ का क्या भाव है?

उत्तर : सूरदास की वाणी प्रेममय है, और उनके तुक आश्चर्यजनक हैं।

13. ‘विमल बुद्धि हो तासुकी’ का क्या अर्थ है?

उत्तर : वह व्यक्ति विवेकशील है जो इन गुणों को समझ सके।

14. नाभादास ने सूरदास के काव्य को किस रूप में चित्रित किया है?

उत्तर : हरि लीला के माध्यम से हृदय को मोहित करने वाला।

15. ‘शिरचालन’ का क्या अर्थ है?

उत्तर : सिर झुकाकर सम्मान देना।

16. ‘भाषा की बात’ में ‘रसना’ का पर्यायवाची शब्द क्या है?

उत्तर : जिह्वा।

17. ‘कबीर’ और ‘सूरदास’ दोनों में कौन-सा गुण सामान्य है?

उत्तर : दोनों की भक्ति में गहनता और समर्पण।

18. ‘आरूढ़ दशा’ का कबीर पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर : उन्होंने समाज के बनाए नियमों को अस्वीकार कर भक्ति का प्रचार किया।

19. ‘पक्षपात नहिं बचन’ किस विशेषता को दर्शाता है?

उत्तर : निष्पक्षता और सत्य के प्रति समर्पण।

20. ‘दिवि दृष्टि’ का क्या तात्पर्य है?

उत्तर : दिव्य दृष्टि या ईश्वरीय प्रेरणा।


Medium Questions (with Answers)


1. नाभादास ने कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?

उत्तर : नाभादास ने कबीर को पक्षपाती नहीं, सत्य बोलने वाला और धर्म के भ्रामक रूपों का विरोधी बताया है। कबीर ने केवल भक्ति को सर्वोत्तम माना और बाहरी कर्मकांडों को निरर्थक बताया। उन्होंने समाज में फैले जातिवाद और धार्मिक भेदभाव का विरोध किया। नाभादास ने कबीर की इन विशेषताओं को अपनी रचनाओं में उजागर किया है।

2. ‘मुख देखी नाहीं भनी’ का कबीर के जीवन में क्या महत्व है?

उत्तर : यह पंक्ति कबीर के निष्पक्ष और सत्यवादी स्वभाव को दर्शाती है। वे न किसी का पक्ष लेते थे न ही दिखावे के लिए कुछ कहते थे। कबीर का जीवन सत्य और भक्ति के प्रति अडिग समर्पण का प्रतीक था। यह वाक्य उनके निर्भीक विचारों और ईमानदारी को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है।

3. सूरदास के काव्य की विशेषता क्या है?

उत्तर : सूरदास के काव्य में भगवान श्री कृष्ण की लीला और उनकी भक्ति का सुंदर चित्रण है। उनके काव्य में अनुप्रास, तुक और भावनाओं का अद्भुत मेल है, जिससे उनकी रचनाएँ अत्यधिक प्रभावी होती हैं। सूरदास की कविताओं में भावनात्मक गहराई और दिव्य प्रेम की गूंज है। उनके काव्य में हरि के प्रति प्रेम और समर्पण प्रमुख है।

4. नाभादास ने कबीर के व्यक्तित्व और काव्य की कौन-कौन सी विशेषताएँ गिनाई हैं?

उत्तर : नाभादास ने कबीर को निष्पक्ष, सत्यवादी और धर्म के बाहरी आडंबरों के विरोधी बताया है। कबीर ने भक्ति के बिना धर्म को अधर्म के समान माना और सभी धार्मिक पाखंडों की निंदा की। उनके काव्य में निर्भीकता और समाज के सुधार की झलक मिलती है। यह उनकी भक्ति के गहरे स्वरूप और क्रांतिकारी सोच को उजागर करता है।

5. ‘मुख देखी नाहीं भनी’ का कबीर के जीवन में क्या अर्थ है?

उत्तर : यह पंक्ति बताती है कि कबीर सत्य के लिए किसी का पक्ष नहीं लेते थे। वे निडर होकर वही कहते थे, जो सही था। उनके विचार समाज के जाति, धर्म, और पाखंड से ऊपर थे। इस गुण के कारण वे क्रांतिकारी संत और सत्य के प्रचारक माने गए।

6. सूरदास के काव्य में भाव और सौंदर्य का समन्वय कैसे होता है?

उत्तर : सूरदास के काव्य में हरि लीला और प्रेम का गहन चित्रण है। उनकी कविताएँ भाव और सौंदर्य की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध हैं। अनुप्रास और चमत्कारी तुकबंदी ने उनकी रचनाओं को और भी प्रभावशाली बनाया है। उनकी कविताएँ मन को मोहित करती हैं और भक्ति भावना को गहराई प्रदान करती हैं।

7. ‘सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै’ का क्या भाव है?

उत्तर : यह वाक्य सूरदास की कविता के प्रति अन्य कवियों की श्रद्धा और सम्मान को दर्शाता है। उनकी कविताएँ इतनी सुंदर और प्रभावशाली हैं कि उन्हें पढ़कर हर कवि उनका सिर झुकाकर सम्मान करता है। सूरदास का काव्य हरि लीला और प्रेम के चित्रण के कारण विशिष्ट है। यह उनकी काव्यगत प्रतिभा का प्रमाण है।

8. ‘भगति विमुख जे धर्म’ का क्या अर्थ है, और इसे कबीर के विचारों से कैसे जोड़ा जा सकता है?

उत्तर : इस पंक्ति का अर्थ है कि भक्ति के बिना धर्म केवल अधर्म बन जाता है। कबीर मानते थे कि धर्म में केवल बाहरी कर्मकांडों से सच्चा धर्म नहीं होता। उन्होंने आडंबर और पाखंड को त्यागकर भक्ति पर जोर दिया। उनके विचारों में सच्चा धर्म केवल भक्ति के मार्ग से संभव है।

9. ‘कबीर कानि राखी नहीं’ का क्या तात्पर्य है?

उत्तर : यह पंक्ति बताती है कि कबीर ने समाज के किसी भी वर्ग या नियम का आँख बंद करके अनुसरण नहीं किया। वे समाज के पाखंड और जातिवाद के घोर विरोधी थे। कबीर ने हर प्रकार के धार्मिक और सामाजिक भेदभाव को चुनौती दी। उन्होंने केवल भक्ति और सत्य को महत्व दिया।

10. ‘वचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी’ का सूरदास के काव्य में क्या महत्व है?

उत्तर : सूरदास की वाणी प्रेममय है और उनकी कविताएँ अद्भुत तुकबंदी से भरी हैं। उनकी रचनाएँ सरल होते हुए भी गहन अर्थ प्रकट करती हैं। उनकी तुकबंदी और भावों का समन्वय काव्य में गहरी छाप छोड़ता है। यह सूरदास के काव्य को विशिष्ट बनाता है।

11. ‘दिवि दृष्टि’ और ‘हरि लीला भासी’ से सूरदास के काव्य की क्या विशेषता प्रकट होती है?

उत्तर : सूरदास ने अपनी कविताओं में दिव्य दृष्टि से हरि लीला का गहन चित्रण किया है। उनकी कविताएँ भगवान के जन्म, कर्म और गुणों को सजीव रूप में प्रस्तुत करती हैं। यह चित्रण पाठक के मन में हरि लीला का प्रत्यक्ष अनुभव कराता है। उनकी काव्य दृष्टि भक्ति और प्रेम से ओतप्रोत है।

12. ‘पक्षपात नहिं वचन’ से कबीर के किस गुण की झलक मिलती है?

उत्तर : यह पंक्ति कबीर की निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा को दर्शाती है। वे किसी के पक्ष में झुककर बात नहीं करते थे। उनके लिए सत्य ही सबसे महत्वपूर्ण था। यह गुण उन्हें एक सच्चे और निर्भीक संत के रूप में स्थापित करता है।


Long Questions (with Answers)


1. नाभादास ने अपनी काव्य रचनाओं में कबीर की भक्ति के दृष्टिकोण को कैसे प्रस्तुत किया है?

उत्तर : नाभादास ने कबीर की भक्ति को एक सशक्त और निष्पक्ष दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया। कबीर ने बाहरी आडंबरों को नकारते हुए केवल सत्य और प्रेम का पालन किया। नाभादास ने कबीर के विचारों में भक्ति की निराकार शक्ति को उभारा। कबीर की भक्ति हर जाति और धर्म से परे थी, और नाभादास ने इसे सार्वभौमिक रूप में प्रस्तुत किया।

2. ‘मुख देखी नाहीं भनी’ का कबीर के जीवन और विचारों में क्या महत्व है?

उत्तर : यह वाक्य कबीर की निष्पक्षता और सत्यवादिता को दर्शाता है। कबीर ने समाज में फैले भेदभाव और आडंबर का विरोध किया और केवल सत्य को कहा। इस वाक्य के माध्यम से कबीर ने अपने भक्ति मार्ग को स्पष्ट किया। यह उनके जीवन का आधार था, जिसमें किसी प्रकार के पक्षपात या दिखावे का स्थान नहीं था।

3. सूरदास के काव्य में प्रेम और भक्ति के तत्वों का विशेष रूप से वर्णन करें।

उत्तर : सूरदास के काव्य में प्रेम और भक्ति का अद्भुत समन्वय है, जिसमें कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया गया है। उन्होंने कृष्ण के प्रति निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण को अपने काव्य में व्यक्त किया। सूरदास की कविताएँ भावनाओं और भक्ति से परिपूर्ण हैं। उनके काव्य में कृष्ण के जीवन को प्रेम और भक्ति के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।

4. ‘भगति विमुख जे धर्म’ का कबीर के विचारों के संदर्भ में क्या महत्व है?

उत्तर : कबीर के अनुसार, धर्म का असली सार भक्ति में है, बिना भक्ति के धर्म अधर्म जैसा है। वे मानते थे कि कर्मकांडों और पाखंडों के द्वारा धर्म का पालन नहीं किया जा सकता। कबीर ने अपने काव्य में भक्ति को सर्वोपरि माना। उनका यह विचार समाज में व्याप्त धार्मिक आडंबरों के खिलाफ था और भक्ति के वास्तविक रूप को उजागर करता था।

5. नाभादास के ‘भक्तमाल’ में भक्तों के चरित्रों का चयन किस आधार पर किया गया है?

उत्तर : नाभादास ने ‘भक्तमाल’ में भक्तों का चयन उनकी भक्ति के आधार पर किया है, न कि उनकी जाति या धर्म के आधार पर। उन्होंने केवल वैष्णव भक्ति को महत्व दिया और भक्ति के प्रति किसी भेदभाव को नकारा। ‘भक्तमाल’ में वर्णित भक्तों का जीवन निष्कलंक भक्ति का उदाहरण है। नाभादास ने इसे सार्वभौमिक रूप में प्रस्तुत किया।

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