Notes For All Chapters – हिन्दी Class 8
आत्मनिर्भरता
1. परिचय
रचनाकार: आचार्य रामचंद्र शुक्ल
विषय: आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और आत्मविश्वास का महत्व
मुख्य उद्देश्य: व्यक्ति को अपने निर्णय स्वयं लेने चाहिए और आत्मनिर्भर बनकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
2. आत्मनिर्भरता का महत्व
- आत्मनिर्भरता का अर्थ है स्वयं पर विश्वास रखना और किसी अन्य पर पूरी तरह निर्भर न रहना।
 - आत्मनिर्भर व्यक्ति ही अपने स्वाभिमान की रक्षा कर सकता है।
 - जो लोग हमेशा दूसरों पर निर्भर रहते हैं, वे अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकते।
 - व्यक्ति को अपनी सोच और निर्णय स्वयं लेने चाहिए, न कि दूसरों के मतों पर पूरी तरह निर्भर रहना चाहिए।
 
3. आत्मनिर्भर बनने के लिए आवश्यक गुण
(क) आत्मसम्मान और विनम्रता:
- व्यक्ति को अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिए।
 - छोटों के प्रति स्नेह और समान उम्र के लोगों के साथ मित्रता का व्यवहार करना चाहिए।
 - विनम्रता और आत्मसम्मान आत्मनिर्भर बनने के लिए आवश्यक हैं।
 
(ख) आत्मनिर्भरता और कर्तव्यपरायणता:
- व्यक्ति को अपने कार्यों की ज़िम्मेदारी स्वयं उठानी चाहिए।
 - दूसरों की सलाह अवश्य लें, लेकिन अंतिम निर्णय स्वयं लें।
 - किसी भी कार्य को करने से पहले सोच-समझकर निर्णय लेना चाहिए।
 
(ग) आत्मविश्वास और धैर्य:
- कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
 - अपने लक्ष्य को हमेशा ऊँचा रखना चाहिए, क्योंकि “जितना ऊँचा लक्ष्य होगा, उतनी ही बड़ी सफलता मिलेगी।”
 - हर स्थिति में संयम और धैर्य बनाए रखना चाहिए।
 
4. ऐतिहासिक उदाहरण (महान व्यक्तित्वों की आत्मनिर्भरता)
(क) राजा हरिश्चंद्र
- सत्य और न्याय के प्रति अटल रहे, कभी भी असत्य का सहारा नहीं लिया।
 - भयंकर संकटों के बावजूद उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी।
 - उनका वचन था:”चाँद, सूरज और यह सारा संसार नष्ट हो सकता है, लेकिन राजा हरिश्चंद्र सत्य को कभी नहीं छोड़ेंगे।”
 
(ख) महाराणा प्रताप
- जंगलों में कठिनाइयाँ झेलीं, लेकिन अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया।
 - अपने परिवार को भूख से तड़पते देखा, फिर भी झुके नहीं।
 - वे जानते थे कि “अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा जितनी स्वयं कर सकते हैं, उतनी कोई और नहीं कर सकता।”
 
(ग) छत्रपति शिवाजी महाराज
- मुगलों की विशाल सेना के विरुद्ध अपने पराक्रम और बुद्धिमानी से जीत हासिल की।
 - अपनी सेना को आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाया।
 - कभी भी डरकर हार नहीं मानी।
 
(घ) हनुमान जी
- अकेले माता सीता की खोज में निकले और सफल हुए।
 - अपने परिश्रम और आत्मविश्वास से राम के प्रति अटूट भक्ति का परिचय दिया।
 
(ङ) कोलंबस
- अमेरिका महाद्वीप की खोज आत्मनिर्भरता और साहस की भावना से ही कर पाया।
 - “अगर रास्ता नहीं मिलेगा, तो मैं खुद रास्ता बना लूँगा” – इस विचारधारा को अपनाया।
 
(च) एकलव्य
- बिना गुरु के ही शिक्षा ग्रहण कर महान धनुर्धर बना।
 - आत्मनिर्भरता के कारण सर्वश्रेष्ठ योद्धा बना।
 
5. आत्मनिर्भरता से होने वाले लाभ
| लाभ | विस्तार | 
|---|---|
| स्वाभिमान की रक्षा | आत्मनिर्भर व्यक्ति अपनी इज्जत खुद करता है और दूसरों से सम्मान पाता है। | 
| निर्णय लेने की क्षमता | व्यक्ति अपने निर्णय खुद लेता है और सही-गलत का विश्लेषण कर सकता है। | 
| संघर्ष से न डरना | आत्मनिर्भरता व्यक्ति को कठिनाइयों से जूझने का साहस देती है। | 
| समस्या समाधान की क्षमता | आत्मनिर्भर व्यक्ति हर समस्या का हल निकालने में सक्षम होता है। | 
| जीवन में सफलता | आत्मनिर्भर व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। | 
6. आत्मनिर्भर बनने के लिए आवश्यक बातें
- अपने निर्णय स्वयं लें, दूसरों पर निर्भर न रहें।
 - समस्याओं का सामना हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ करें।
 - अपने लक्ष्य को ऊँचा रखें और उसे प्राप्त करने के लिए पूरी मेहनत करें।
 - असफलताओं से सीखें और कभी हार न मानें।
 - स्वाभिमान के साथ जीवन व्यतीत करें, परंतु अहंकार न करें।
 
7. निष्कर्ष
- आत्मनिर्भरता व्यक्ति को सफलता की ओर ले जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण गुण है।
 - आत्मनिर्भर बनने से व्यक्ति आत्मसम्मान प्राप्त करता है और दूसरों का भी सम्मान करता है।
 - इतिहास में जितने भी महान लोग हुए हैं, वे सभी स्वावलंबी और आत्मनिर्भर थे।
 - आत्मनिर्भरता ही व्यक्ति को सशक्त बनाती है और उसे अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
 
8. महत्त्वपूर्ण उद्धरण
- “जो अपने पैरों पर खड़ा होना जानता है, वही सच्ची सफलता प्राप्त करता है।”
 - “अपना मार्ग स्वयं बनाओ, दूसरों के सहारे मत रहो।”
 - “जो आत्मनिर्भर होता है, वह कभी असफल नहीं होता।”
 - “स्वाभिमान के बिना जीवन अधूरा होता है।”
 

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