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पर्यावरण Class 6,7,8 यूपी बोर्ड | Menu
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UP Board Class 6, 7, 8 Paryavaran Notes Chapter 5 जल संचयन एवं पुनर्भरण

पृथ्वी पर जल की उपलब्धता
पृथ्वी की सतह का लगभग 71% भाग जल से ढका है। पृथ्वी पर उपस्थित लगभग समस्त जल समुद्रों और महासागरों, नदियों, तालों, ध्रुवीय बर्फ, भौमजल और वायुमण्डल में पाया जाता है, परन्तु इसमें से अधिकांश जल मानव उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं है। उपयोग के लिए उपयुक्त जल .अलवण जल. है, जो .ताजा जल. भी कहलाता है। अलवण जल की मात्रा पृथ्वी पर उपलब्ध जल की कुल मात्रा का लगभग 0.006% है।

नगरीकरण और औद्योगिकीरण की तीव्र गति व बढ़ता प्रदूषण तथा जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। प्रतिवर्ष यह समस्या पहले के मुकाबले और बढ़ती जाती है, लेकिन हम हमेशा यही सोचते हैं बस जैसे तैसे गर्मी का सीजन निकाल जाये बारिश आते ही पानी की समस्या दूर हो जायेगी और यह सोचकर जल सरंक्षण के प्रति बेरुखी अपनाये रहते हैं।

संचयन एवं पुनर्भरण
पृथ्वी पर वर्षा का जल मीठे पानी का स्रोत है। धरती वर्षा के जल को रिस रिस कर नीचे गहराईयों मई कीच लेती है। जल का इस प्रकार अपने आप भूमि के अंदर जाना जल का प्राकृतिक पुनर्भरण कहलाता है। यह पुर्नभरण वर्षा जल, तालाबों, झीलों, बाँधो, खेतो की सिंचाई आदि होता रहता है।

हम घरों मे अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए जल के घड़ों बाल्टी, टंकी आदि मे संचित करके रखते है। इसी प्रकार तालाब, पोखर, बांध आदि बनाकर जल वर्षा के जल को हम रोककर रखते है तो उसे वर्षा जल संचयन कहते है।

वर्षा जल संचयन की आवश्यकता

1. भूजल भण्डारण मे वृद्धि तथा जल स्तर मे गिरावट पर नियंतरण के लिए।
2. जल की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए।
3. भूजल प्रदुषण को काम करने के लिए।
4. भूजल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए।
5. सूखाग्रस्त क्षत्रो मे जलापूर्ति मे सुधर करने के लिए।
6. पुराने कुँवा, तालाबों, झीलों, आदि को साफ़ करके पुनर्भरण संरचनाओ के रूप मे प्रयोग करने के लिए।
7. पानी का शांति बहाव काम करने के लिए।

1. संचयन एवं पुनर्भरण करने की विधियॉं

1. पुनर्भरण पिट (गड्ढा) द्वारा चाट से प्राप्त वर्षा जल का संचयन
2. शहरी क्षत्रो मे मकानों की छतसे वर्षा जल को गड्ढे मे इखट्टा कर प्रयोग मे लाया जा सकता है
3. पुनर्भरण पिट बहुत से आकर का होता है।
4. यह पिट 1 से 2 मीटर चोरातथा 2 से 3 मीटर गहरा बनाया जाता है।
5. पिट के सबसे नीचे तल मे (5 से 20 सेमी) पत्थर से टुकड़े, उसके ऊपर मध्य से (5 से 10 सेमी) बजरी तथा बजरी से 6. ऊपर मोटी रेत (1.5. से 2 मिमी) भरी जाती है।

2. खाई द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन

1. मकान की छत से प्राप्त होने वाले वर्ष अजल ला संचयन एवं पुनर्भरण के लिए खाई ०.५ से 1 मीटर चोरी, 1 से १.५ मीटर गहरी तथा 10 से 20 मीटर लम्बी हो सकती है।
2. वर्षा के पानी को इस खाई मे इक्खट्टा करने ले लिए छत के पानी को पाइप से द्वारा नीचे जमीन पर बने एक छोटे गड्ढे मे भरे।
3. यह पिट 1 से 2 मीटर चोरातथा 2 से 3 मीटर गहरा बनाया जाता है।
4. पिट के सबसे नीचे तल मे (5 से 20 सेमी) पत्थर से टुकड़े, उसके ऊपर मध्य से (5 से 10 सेमी) बजरी तथा बजरी से 5. ऊपर मोटी रेत (1.5. से 2 मिमी) भरी जाती है।

3. नलकूप द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल से संचयन की विधि –

1. इस विधि का प्रयोग नलकूपों के लिए किया जाता है।
2. यह नलकूप के नीच का जलाशय या तो सुख गे अहइ या उसमे पानी की कमी है।
3. भुकी के अंदर के ऐसे जलशयों को भरने के लिए यह विधि उपयुक्त है।
4. इसका प्रयोग दो रूपों मे किया जा सकता है-

(i) पहली विधि यह है की छत के पानी को नलकूप द्वारा नीचे जलाशय मे ले जाने के लिए वर्षा जल को एक टी आकर के पाइप मे फ़िल्टर लगाकर छत का पानी नलकूप मे डाला जाता है।

(ii) दूसरी विधि यह है की छत के पानी को पाइप द्वारा पहले बताए गए पत्थर के टुक्रो बजरी तथा मोटी बालू वाले गड्ढे से साफ़ करके पानी को नलकूप मे डाला जाता है।

4. कंदुक बांध के द्वारा वर्षा जल का संचयन

5. गैबियन बांध द्वारा वर्षा जल संचयन

6. पुनर्भरण कुँवा द्वारा जल संचयन

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