बिहार के पंचायती राज का इतिहास
बिहार में पंचायती राज का इतिहास 19वीं शताब्दी तक जाता है, जब ब्रिटिश सरकार ने ग्रामीण स्तर पर शासन में सुधार के लिए पहली बार स्थानीय निकायों की स्थापना की थी।
प्रमुख चरण:
- 1857: ग्राम पंचायतों की स्थापना बंगाल प्रेसीडेंसी में की गई, जिसमें बिहार भी शामिल था।
- 1957: बिहार पंचायती राज अधिनियम पारित किया गया, जिसने तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था (ग्राम पंचायत, प्रखंड समिति और जिला परिषद) की स्थापना की।
- 1993: 73वां संविधान संशोधन पारित किया गया, जिसने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया।
- 1994: बिहार पंचायती राज अधिनियम, 1994 पारित किया गया, जिसने पंचायती राज संस्थाओं की शक्तियों और कार्यों को और विस्तारित किया।
- 2006: बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006 पारित किया गया, जिसने महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण को मजबूत किया।
पंचायती राज व्यवस्था के प्रभाव:
- ग्रामीण विकास: पंचायती राज संस्थाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- सामाजिक न्याय: पंचायती राज संस्थाओं ने महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सशक्त बनाने में मदद की है।
- स्थानीय जवाबदेही: पंचायती राज संस्थाओं ने ग्रामीण लोगों को स्थानीय सरकार के प्रति जवाबदेह बनाया है।
चुनौतियां:
- भ्रष्टाचार: पंचायती राज संस्थाओं में भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती है।
- अप्रशिक्षित सदस्य: कई पंचायती राज सदस्य अप्रशिक्षित हैं और अपनी जिम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निभाने में सक्षम नहीं हैं।
- अर्ध-वित्तीय संसाधन: पंचायती राज संस्थाओं के पास अपने कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं।
आगे का रास्ता:
- पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सरकार को कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
- भ्रष्टाचार को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए मजबूत तंत्र की आवश्यकता है।
- पंचायती राज सदस्यों को प्रशिक्षण प्रदान करने और उनकी क्षमता का निर्माण करने की आवश्यकता है।
- पंचायती राज संस्थाओं को अधिक वित्तीय संसाधन प्रदान करने की आवश्यकता है।
ARUN KUMAR says
Is it true that in the early years, the Pramukh in Bihar was elected by the Mukhiyas?