16वीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में मुगलों का बिहार में आगमन हुआ।
1527 में, बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
इसके बाद, बाबर ने अपनी सेना को पूर्व की ओर बढ़ाया और 1529 में गौर (आधुनिक बंगाल) पर विजय प्राप्त की।
1539 में, बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं को शेरशाह सूरी ने चौसा की लड़ाई में हरा दिया, जिसके परिणामस्वरूप मुगलों का बिहार और बंगाल पर से नियंत्रण समाप्त हो गया।
हुमायूं ने 1555 में पानीपत की दूसरी लड़ाई में शेरशाह सूरी के बेटे सेकेंडरी को हराकर दिल्ली पर वापस कब्जा कर लिया।
1556 में हुमायूं की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र अकबर ने मुगल सिंहासन संभाला। अकबर ने 1574 में पटना पर विजय प्राप्त करके बिहार में मुगल शासन की स्थापना की।
अकबर ने बिहार में कई प्रशासनिक सुधार किए, जिनमें शामिल हैं:
- जमींदारी प्रणाली की स्थापना, जिसके तहत किसानों को जमीन के बदले कर का भुगतान करना होता था।
- दक्खिनी सिक्का नामक एक नई मुद्रा की शुरुआत।
- जगदीशपुर (आधुनिक भोजपुर) में एक नया शहर स्थापित करना।
अकबर के उत्तराधिकारी जहांगीर और शाहजहाँ ने भी बिहार पर शासन किया।
औरंगजेब के शासनकाल (1658-1707) के दौरान, मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।
17वीं शताब्दी के अंत तक, बिहार में मुगल शासन कमजोर हो गया था।
18वीं शताब्दी में, बिहार बंगाल के नवाबों के नियंत्रण में आ गया।
निष्कर्ष:
मुगलों का बिहार पर शासन लगभग 150 वर्षों तक चला। इस अवधि के दौरान, बिहार में कई महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन हुए।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मुगल शासन का बिहार के सभी लोगों पर समान प्रभाव नहीं पड़ा।
कुछ लोगों को मुगल शासन से लाभ हुआ, जबकि अन्य को इससे नुकसान हुआ।
बिहार में मुगल शासन के कुछ महत्वपूर्ण प्रभावों में शामिल हैं:
- इस्लाम का प्रसार: मुगल शासन के दौरान, बिहार में इस्लाम धीरे-धीरे फैलने लगा।
- कृषि में सुधार: मुगलों ने कृषि में कई सुधार किए, जिसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।
- व्यापार और वाणिज्य में वृद्धि: मुगल शासनकाल में बिहार में व्यापार और वाणिज्य में वृद्धि हुई।
- कला और संस्कृति का विकास: मुगल शासनकाल में बिहार में कला और संस्कृति का विकास हुआ।
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