बिहार में ब्रिटिश राज का समय विभिन्न आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक परिवर्तनों का दौर था। ब्रिटिश शासन के दौरान बिहार ने कई महत्वपूर्ण आंदोलनों, विद्रोहों, और सुधारों का सामना किया।
यहाँ बिहार में ब्रिटिश राज के प्रमुख पहलुओं और उनके प्रभावों का विस्तृत विवरण है:
प्रारंभिक काल (1757-1857)
1. प्लासी और बक्सर की लड़ाई
- प्लासी की लड़ाई (1757): प्लासी की लड़ाई के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, बिहार, और उड़ीसा पर नियंत्रण स्थापित किया।
- बक्सर की लड़ाई (1764): बक्सर की लड़ाई में ब्रिटिश विजय ने बिहार में कंपनी का शासन मजबूत किया।
2. कंपनी का शासन
- कंपनी का प्रशासन: ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार में राजस्व संग्रहण और प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित किया। ज़मींदारी प्रथा के तहत ज़मींदारों को कर संग्रहण का अधिकार दिया गया।
1857 का विद्रोह और इसके बाद
1. 1857 का विद्रोह
- बिहार में विद्रोह: 1857 का विद्रोह बिहार में भी हुआ। जगदीशपुर के कुंवर सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया और इस विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी वीरता और रणनीतिक कौशल के कारण वे एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी बने।
2. विद्रोह के बाद का प्रशासन
- ब्रिटिश क्राउन का शासन: 1857 के विद्रोह के बाद, 1858 में ब्रिटिश क्राउन ने ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया और भारत को सीधे ब्रिटिश सरकार के अधीन कर दिया। बिहार में भी ब्रिटिश प्रशासन ने कड़ी पकड़ बनाए रखी।
- प्रशासनिक सुधार: बिहार में प्रशासनिक सुधार लागू किए गए, जिसमें न्यायिक प्रणाली का सुधार, पुलिस व्यवस्था की स्थापना, और स्थानीय प्रशासन का पुनर्गठन शामिल था।
आर्थिक प्रभाव
1. भूमि राजस्व प्रणाली
ज़मींदारी प्रथा
- परिचय: ब्रिटिश शासन के दौरान, ज़मींदारी प्रथा लागू की गई, जिसमें ज़मींदारों को कर संग्रहण का अधिकार दिया गया।
- प्रभाव: इस प्रथा ने किसानों पर भारी कर का बोझ डाला। ज़मींदारों द्वारा अधिक कर वसूली और अत्याचार के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई और उनका जीवन स्तर गिरा।
रैयतवारी और महालवारी प्रथा
- परिचय: रैयतवारी प्रथा में किसान सीधे सरकार को कर देते थे, जबकि महालवारी प्रथा में गांव या महल के स्तर पर कर का निर्धारण होता था।
- प्रभाव: इन प्रणालियों में भी कर संग्रहण की कठोरता के कारण किसानों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ और कृषि उत्पादकता प्रभावित हुई।
2. कृषि और कृषि उत्पाद
नील की खेती
- परिचय: बिहार में ब्रिटिश राज के दौरान नील की खेती का प्रसार हुआ। किसानों को मजबूर किया गया कि वे खाद्यान्न फसलों की बजाय नील की खेती करें।
- प्रभाव: नील की खेती ने किसानों की खाद्यान्न उत्पादन क्षमता को कम किया, जिससे खाद्य संकट उत्पन्न हुआ। चंपारण सत्याग्रह इसी समस्या के समाधान के लिए किया गया था।
अन्य फसलें
- परिचय: ब्रिटिश नीतियों के तहत नकदी फसलों का उत्पादन बढ़ा, जैसे जूट और अफीम।
- प्रभाव: किसानों को इन फसलों की खेती के लिए मजबूर किया गया, जिससे खाद्यान्न फसलों की कमी हुई और किसानों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई।
3. उद्योग और हस्तशिल्प
पारंपरिक उद्योगों का पतन
- परिचय: ब्रिटिश नीतियों के कारण पारंपरिक हस्तशिल्प और उद्योगों का पतन हुआ। ब्रिटिश मशीन निर्मित वस्त्रों और उत्पादों का आयात बढ़ा, जिससे स्थानीय उद्योग बंद हो गए।
- प्रभाव: पारंपरिक कारीगर और शिल्पकार बेरोजगार हो गए, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई।
रेलवे और परिवहन
- परिचय: ब्रिटिश शासन के दौरान बिहार में रेलवे और सड़कों का विस्तार हुआ।
- प्रभाव: रेलवे ने ब्रिटिश प्रशासन और व्यापार के लिए सुविधाजनक बनाया, लेकिन यह बिहार के स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों के लिए नुकसानदायक था, क्योंकि उनके उत्पादों को ब्रिटिश मशीन निर्मित उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी।
4. व्यापार और वाणिज्य
ब्रिटिश व्यापार नीतियाँ
- परिचय: ब्रिटिश शासन के दौरान भारत को कच्चे माल के स्रोत और तैयार माल के बाजार के रूप में देखा गया।
- प्रभाव: बिहार से कच्चा माल, जैसे कि जूट, नील, और अफीम, ब्रिटेन भेजा गया, जबकि ब्रिटेन से तैयार माल भारत में बेचा गया। इस व्यापारिक असंतुलन ने बिहार की अर्थव्यवस्था को कमजोर किया।
कर और राजस्व नीतियाँ
- परिचय: ब्रिटिश शासन के दौरान कर और राजस्व नीतियों में सख्ती बढ़ी।
- प्रभाव: अत्यधिक कर संग्रहण के कारण किसानों और व्यापारियों की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। भूमि कर, नमक कर, और अन्य करों ने लोगों की आर्थिक स्थिति को और खराब कर दिया।
5. आर्थिक शोषण और गरीबी
शोषणकारी नीतियाँ
- परिचय: ब्रिटिश राज की नीतियाँ मुख्यतः शोषणकारी थीं, जो भारतीय जनता के हितों की अनदेखी करती थीं।
- प्रभाव: इन नीतियों के कारण बिहार में गरीबी और आर्थिक असमानता बढ़ी। किसानों और मजदूरों की आर्थिक स्थिति में गिरावट आई और वे कर्ज में डूबते गए।
जनसंख्या और श्रम
- परिचय: ब्रिटिश राज के दौरान जनसंख्या वृद्धि और श्रम की मांग में बदलाव आया।
- प्रभाव: आर्थिक असमानता के कारण बिहार के लोग पलायन करने लगे। कई लोग बेहतर जीवन की तलाश में अन्य राज्यों और देशों में गए।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
सामाजिक प्रभाव
1. सामाजिक सुधार
- सती प्रथा और विधवा पुनर्विवाह: ब्रिटिश राज के दौरान, सती प्रथा के उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए कई सुधार किए गए। ये सुधार भारतीय समाज के उन हिस्सों में लागू हुए, जहां ब्रिटिश प्रशासन का प्रभाव था। हालांकि, बिहार में इन सुधारों का प्रभाव धीरे-धीरे पड़ा।
- बाल विवाह: बाल विवाह के खिलाफ कानून लागू किए गए, जैसे कि शहरी क्षेत्रों में बाल विवाह को नियंत्रित करने के प्रयास किए गए।
2. जाति व्यवस्था और सामाजिक संरचना
- जातिवादी व्यवस्था: ब्रिटिश राज ने जातिवादी व्यवस्था को संरक्षित और मान्यता दी। प्रशासनिक और कानूनी दृष्टिकोण से जाति आधारित सामाजिक संरचना को बनाए रखा गया।
- सामाजिक विभाजन: ब्रिटिश शासन ने सामाजिक विभाजन को कुछ हद तक बढ़ावा दिया, क्योंकि विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच विभाजन गहरा हुआ।
3. महिला शिक्षा और सशक्तिकरण
- महिला शिक्षा: ब्रिटिश शासन के दौरान महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए। हालांकि, महिला शिक्षा की स्थिति में सुधार हुआ, लेकिन यह मुख्यतः शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित था।
- सामाजिक सशक्तिकरण: महिला सशक्तिकरण के प्रयासों में गति आई, लेकिन पारंपरिक सामाजिक मान्यताओं और प्रथाओं के कारण व्यापक परिवर्तन नहीं हो सका।
सांस्कृतिक प्रभाव
1. शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन
- अंग्रेजी शिक्षा: ब्रिटिश राज के दौरान अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई। बिहार में भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और कॉलेज खोले गए, जैसे कि पटना कॉलेज (1863) और पटना विश्वविद्यालय (1917)।
- पश्चिमी शिक्षा: पश्चिमी शिक्षा और विज्ञान के विषयों का पाठ्यक्रम भारतीय शिक्षा प्रणाली में शामिल किया गया, जिससे सांस्कृतिक और बौद्धिक दृष्टिकोण में बदलाव आया।
2. सांस्कृतिक परिवर्तन
- सांस्कृतिक मिश्रण: ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय और पश्चिमी संस्कृतियों का मिश्रण हुआ। इस काल में भारतीय साहित्य, कला, और संगीत पर पश्चिमी प्रभाव पड़ा।
- नई विचारधारा: ब्रिटिश प्रभाव के तहत नई विचारधाराएँ और दृष्टिकोण भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में प्रवेश किए। यह परिवर्तन विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में देखा गया।
3. सामाजिक आंदोलन और विचारधारा
- ब्राह्मो समाज और आर्य समाज: ब्रिटिश राज के दौरान, सामाजिक सुधार आंदोलनों जैसे ब्राह्मो समाज और आर्य समाज ने बिहार में भी प्रभाव डाला। इन आंदोलनों ने सामाजिक सुधार और आधुनिकता के विचारों को बढ़ावा दिया।
- गांधीजी का प्रभाव: महात्मा गांधी के सामाजिक और सांस्कृतिक विचार बिहार में गहरे प्रभावशाली थे। गांधीजी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों ने स्थानीय सांस्कृतिक और सामाजिक सोच को प्रभावित किया।
धार्मिक प्रभाव
1. मिशनरी गतिविधियाँ
- धार्मिक मिशनरी: ब्रिटिश राज के दौरान, ईसाई मिशनरी गतिविधियाँ बढ़ीं और बिहार में कई मिशनरी स्कूल और अस्पताल खोले गए। इन मिशनरियों ने सामाजिक सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दिया, लेकिन उनका धार्मिक प्रभाव भी देखा गया।
- धार्मिक प्रसार: मिशनरी गतिविधियों के कारण कुछ हद तक धार्मिक मतभेद और सामाजिक तनाव भी उत्पन्न हुआ।
2. धार्मिक सुधार
- धार्मिक सुधार आंदोलनों: धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भी इस काल में प्रभाव डाला। विभिन्न धार्मिक नेताओं ने समाज के सुधार और आधुनिकीकरण की दिशा में काम किया।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में बिहार की भूमिका
1. कांग्रेस का गठन और स्वतंत्रता आंदोलन
- कांग्रेस का गठन (1885): भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद, बिहार के नेता भी इसमें शामिल हुए और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।
- चंपारण सत्याग्रह (1917): महात्मा गांधी ने चंपारण में नील किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए सत्याग्रह शुरू किया। यह गांधीजी का पहला सत्याग्रह था और इसकी सफलता ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी।
- असहयोग आंदोलन (1920-1922): इस आंदोलन में बिहार के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक, और अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे नेता इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942): इस आंदोलन में भी बिहार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने इसमें सक्रिय भाग लिया।
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