महात्मा गांधी का बिहार आगमन और 1917 का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह सत्याग्रह न केवल भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला महत्वपूर्ण आंदोलन था, बल्कि इसने गांधीजी को राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया।
पृष्ठभूमि
चम्पारण, बिहार का एक जिला, जहां के किसानों को ब्रिटिश नील उत्पादकों द्वारा बहुत उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा था। ब्रिटिश नील उत्पादकों ने किसानों को मजबूर किया कि वे अपनी भूमि के एक बड़े हिस्से पर नील की खेती करें, जिसे ‘तीनकठिया प्रणाली’ कहा जाता था। इसके अलावा, किसानों को अपनी उपज बहुत कम कीमत पर बेचनी पड़ती थी, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान होता था।
गांधीजी का आगमन
चम्पारण के किसानों की समस्याओं की जानकारी गांधीजी को पहली बार राजकुमार शुक्ल नामक एक किसान ने दी। राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी से मिलकर उन्हें चम्पारण आने के लिए आग्रह किया और किसानों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने का अनुरोध किया। गांधीजी ने अप्रैल 1917 में चम्पारण का दौरा करने का निर्णय लिया।
चम्पारण में गांधीजी की गतिविधियाँ
1.किसानों से मुलाकात: चम्पारण पहुंचकर, गांधीजी ने विभिन्न गांवों का दौरा किया और किसानों की समस्याओं को समझने के लिए उनसे मुलाकात की। उन्होंने किसानों के बयान दर्ज किए और उनकी स्थिति का जायजा लिया। गांधीजी ने किसानों की समस्याओं का अध्ययन किया और उनके अनुभवों को सुनकर उनकी पीड़ा को समझा।
2. कानूनी कार्यवाही: गांधीजी ने किसानों के समर्थन में कानूनी कार्रवाई करने का निर्णय लिया। उन्होंने वकीलों और स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर एक योजना बनाई। जब ब्रिटिश अधिकारियों ने गांधीजी को चम्पारण छोड़ने का आदेश दिया, तो उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें गिरफ्तार किया गया, लेकिन जनता के बढ़ते दबाव और समर्थन के कारण उन्हें रिहा करना पड़ा।
3. सत्याग्रह की शुरुआत: गांधीजी ने चम्पारण में सत्याग्रह की शुरुआत की, जिसमें किसानों ने अहिंसात्मक रूप से ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। गांधीजी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित इस आंदोलन का संचालन किया, जिसमें किसानों ने शांतिपूर्ण ढंग से अपनी मांगों को रखा।
सत्याग्रह की शुरुआत
चम्पारण पहुंचकर, गांधीजी ने किसानों की समस्याओं को समझने और उनके अनुभवों को सुनने का कार्य किया। उन्होंने विभिन्न गांवों का दौरा किया और किसानों की शिकायतें सुनीं।
- कानूनी कदम: गांधीजी ने कानूनी रूप से ब्रिटिश अधिकारियों का सामना करने का निर्णय लिया और इस बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया कि कैसे किसानों का उत्पीड़न हो रहा है। उन्होंने चम्पारण सत्याग्रह की रूपरेखा तैयार की, जिसमें किसानों को संगठित किया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया।
- आंदोलन का विस्तार: गांधीजी ने अपने सहयोगियों और अनुयायियों के साथ मिलकर आंदोलन को विस्तारित किया। सत्याग्रह में वकील, शिक्षक, और छात्र भी शामिल हो गए। गांधीजी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित इस आंदोलन का संचालन किया, जिसमें किसानों ने शांतिपूर्ण ढंग से विरोध किया।
- सरकार की प्रतिक्रिया: ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार किया, लेकिन किसानों के समर्थन और जनता के बढ़ते दबाव के कारण उन्हें रिहा करना पड़ा।
चंपारण सत्याग्रह, जो 1917 में हुआ था, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था और इसे गांधीजी के नेतृत्व में सत्याग्रह के सिद्धांतों की पहली बड़ी सफलता माना जाता है।
सफलता के कारक:
कई कारकों ने चंपारण सत्याग्रह की सफलता में योगदान दिया:
- गांधीजी का नेतृत्व: गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध और सत्याग्रह के सिद्धांतों ने किसानों को प्रेरित किया और उन्हें एकजुट किया।
- किसानों का दृढ़ संकल्प: चंपारण के किसानों ने अत्यधिक शोषण और अन्याय का सामना किया था। वे अपनी स्थिति को बदलने के लिए दृढ़ थे और गांधीजी के नेतृत्व में अहिंसक प्रतिरोध करने के लिए तैयार थे।
- जनता का समर्थन: किसानों के संघर्ष को पूरे भारत में लोगों का समर्थन मिला। इससे आंदोलन को गति मिली और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ा।
- ब्रिटिश सरकार की कमजोरियां: प्रथम विश्व युद्ध में अपनी व्यस्तता के कारण, ब्रिटिश सरकार भारत में लंबे समय तक चलने वाले विद्रोह का सामना करने की स्थिति में नहीं थी।
सफलता के परिणाम:
चंपारण सत्याग्रह की सफलता के कई महत्वपूर्ण परिणाम हुए:
- किसानों को राहत: ब्रिटिश सरकार ने नील की खेती के लिए किसानों को मजबूर करने की प्रथा को समाप्त कर दिया, अनुचित करों को कम कर दिया, और किसानों को उनकी जमीन पर अधिकार दिए।
- गांधीजी की बढ़ती लोकप्रियता: इस सफलता ने गांधीजी को पूरे भारत में एक लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित किया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया।
- सत्याग्रह का प्रसार: इस आंदोलन ने सत्याग्रह को एक प्रभावी राजनीतिक हथियार के रूप में स्थापित किया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इसका उपयोग जारी रहा।
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