भगवान महावीर:
- भगवान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व में ‘वज्जि साम्राज्य’ में कुंडग्राम के राजा सिद्धार्थ और लिच्छवी राजकुमारी त्रिशला के यहाँ हुआ था। वज्जि संघ आधुनिक बिहार में वैशाली क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
- भगवान महावीर ‘इक्ष्वाकु वंश’ (Ikshvaku dynasty) से संबंधित थे।
- ऐसे कई इतिहासकार हैं जो मानते हैं कि उनका जन्म अहल्या भूमि नामक स्थान पर हुआ था।
- बचपन में भगवान महावीर का नाम वर्धमान था यानी ‘जो बढ़ता है’।
- उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन को त्याग दिया और 42 वर्ष की आयु में उन्हें ‘कैवल्य’ यानी सर्वज्ञान की प्राप्ति हुई।
- महावीर ने अपने शिष्यों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (शुद्धता) तथा अपरिग्रह (अनासक्ति) का पालन करने की शिक्षा दी और उनकी शिक्षाओं को ‘जैन आगम’ (Jain Agamas) कहा गया।
- प्राकृत भाषा के प्रयोग के कारण प्रायः आम जनमानस भी महावीर और उनके अनुयायियों की शिक्षाओं एवं उपदेशों को समझने में समर्थ थे।
- महावीर को बिहार में आधुनिक रा जगीर के पास पावापुरी नामक स्थान पर 468 ईसा पूर्व में 72 वर्ष की आयु में निर्वाण (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त हुआ।
- महावीर जयंती वर्धमान महावीर (Vardhamana Mahavira) के जन्म का प्रतीक है। वर्धमान महावीर जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर थे जो 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (Parshvanatha) के उत्तराधिकारी थे।
जैन धर्म के तीन रत्नों या त्रिरत्न में शामिल हैं:
- सम्यक दर्शन (सही विश्वास)।
- सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान)।
- सम्यक चरित्र (सही आचरण)।
भगवान महावीर की शिक्षाएं:-
अहिंसा (अहिंसा परमो धर्म)
- भगवान महावीर ने अहिंसा को सर्वोपरि धर्म माना। उनके अनुसार, सभी जीवों के प्रति दया और प्रेम का व्यवहार करना चाहिए और किसी भी प्रकार की हिंसा से बचना चाहिए।
सत्य
- सत्य की पालना भगवान महावीर की प्रमुख शिक्षाओं में से एक है। उन्होंने सत्य बोलने और सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया।
अस्तेय
- अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना। महावीर ने लोगों को ईमानदार और सत्यनिष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा दी।
ब्रह्मचर्य
- ब्रह्मचर्य का पालन संयमित और नैतिक जीवन जीने के लिए आवश्यक है। महावीर ने इसका पालन करने का उपदेश दिया।
अपरिग्रह
- अपरिग्रह का मतलब है संपत्ति और सांसारिक वस्तुओं का त्याग। उन्होंने भौतिक वस्तुओं और संपत्ति के प्रति आसक्ति को त्यागने का संदेश दिया।
भगवान महावीर का योगदान:-
जैन धर्म का पुनरुद्धार
- भगवान महावीर ने जैन धर्म को पुनर्जीवित किया और उसे एक संगठित और व्यवस्थित धर्म के रूप में स्थापित किया। उनकी शिक्षाओं ने समाज में नैतिकता, अहिंसा और आध्यात्मिकता को बढ़ावा दिया।
धर्म और समाज सुधार
- महावीर ने सामाजिक बुराइयों और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाई और समाज सुधार के लिए कार्य किया। उन्होंने समानता, स्वतंत्रता और आत्म-नियंत्रण की शिक्षा दी।
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