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बिहार में महाजनपद काल (600-300 ईसा पूर्व) – Mahajanapada period in Bihar (600-300 BC)

महाजनपद काल (600-300 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालखंड था, जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से भरा था। इस काल में, भारत में 16 शक्तिशाली जनपदों का उदय हुआ, जिनमें से मगध बिहार में स्थित था।

16 महाजनपद

1.अंग

2.मगध

3.काशी

4.कोसल

5.वज्जि

6.मल्ल

7.चेदि

8.वत्स

9.कुरु

10.पांचाल

11.मत्स्य

12.सुरसेन

13.अस्माक

14.अवंती

15.गांधार

16.कंबोज

बिहार में प्रमुख महाजनपद:

  • मगध: यह बिहार में स्थित सबसे शक्तिशाली जनपद था, जिसकी राजधानी पहले राजगीर और बाद में पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) थी। मगध सम्राटों, जैसे कि बिंबसार, अजातशत्रु और सम्राट अशोक ने पूरे भारत पर शासन किया।
  • अंग: यह मगध के उत्तर में स्थित एक गणराज्य था, जिसकी राजधानी चंपापुरी थी। अंग गणराज्य अपनी समृद्ध संस्कृति और व्यापार के लिए जाना जाता था।
  • वज्जी: यह मगध के उत्तर-पूर्व में स्थित एक गणराज्य था, जिसकी राजधानी वैशाली थी। वज्जी गणराज्य अपनी गणतंत्रीय परंपराओं और विचारधाराओं के लिए जाना जाता था।

महाजनपद काल की प्रमुख विशेषताएं:

  • राजनीतिक परिवर्तन: इस काल में, राजतंत्रों और गणराज्यों का उदय हुआ। मगध जैसी शक्तिशाली साम्राज्यों ने पूरे भारत पर विजय प्राप्त की।
  • सामाजिक परिवर्तन: इस काल में, वर्ण व्यवस्था और जाति प्रथा मजबूत हुई। चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) का पदानुक्रम स्थापित हुआ।
  • आर्थिक परिवर्तन: इस काल में, कृषि और व्यापार का विकास हुआ। मुद्रा का उपयोग व्यापक रूप से होने लगा।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन: इस काल में, बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उदय हुआ। वेद, उपनिषद और रामायण जैसे ग्रंथों की रचना हुई।

मगध साम्राज्य (हर्यंक व मौर्य वंश)

मगध साम्राज्य, जो बिहार में स्थित था, प्राचीन भारत के इतिहास में सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक था। इस साम्राज्य का उदय 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ और यह 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक चला।

मगध साम्राज्य के तीन प्रमुख वंश थे:

1. हर्यक वंश (लगभग 544-413 ईसा पूर्व)

  • बिंबसार: हर्यक वंश के पहले सम्राट थे। उन्होंने मगध को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित किया।
  • अजातशत्रु: बिंबसार के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का विस्तार किया और वैशाली सहित कई गणराज्यों पर विजय प्राप्त की।
  • दर्शक: अजातशत्रु के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का शासन संभाला और कई वर्षों तक शांतिपूर्वक शासन किया।
  • अनुध: दर्शक के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का शासन संभाला और कई वर्षों तक शासन किया।
  • शिशुनक: अनुध के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का शासन संभाला और कई वर्षों तक शासन किया।

2. शिशुनक वंश (लगभग 413-345 ईसा पूर्व)

  • महापद्म: शिशुनक वंश के पहले सम्राट थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का विस्तार किया और पूरे उत्तर भारत पर विजय प्राप्त की।
  • नंद: महापद्म के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का शासन संभाला और कई वर्षों तक शासन किया।

3. मौर्य वंश (लगभग 322-185 ईसा पूर्व)

  • चंद्रगुप्त मौर्य: मौर्य वंश के संस्थापक थे। उन्होंने मगध साम्राज्य को एकजुट किया और पूरे भारत पर विजय प्राप्त की।
  • सम्राट अशोक: चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का विस्तार किया और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और पूरे भारत में स्तंभ और शिलालेख स्थापित किए।
  • दशरथ: सम्राट अशोक के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का शासन संभाला और कई वर्षों तक शासन किया।
  • सम्प्रति: दशरथ के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का शासन संभाला और कई वर्षों तक शासन किया।
  • बृहद्रथ: सम्प्रति के पुत्र थे। उन्होंने मगध साम्राज्य का शासन संभाला और कई वर्षों तक शासन किया।

मगध साम्राज्य के प्रमुख योगदान:

  • राजनीतिक एकता: मगध साम्राज्य ने पहली बार पूरे भारत को एक राजनीतिक इकाई के रूप में एकजुट किया।
  • कला और स्थापत्य: मगध साम्राज्य कला और स्थापत्य के क्षेत्र में अग्रणी था। स्तंभ, शिलालेख और मूर्तियां इस काल की कलात्मक प्रतिभा का प्रमाण हैं।
  • धर्म और दर्शन: मगध साम्राज्य बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उदय का केंद्र था। इन धर्मों ने न केवल भारत को बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया।
  • व्यापार और वाणिज्य: मगध साम्राज्य व्यापार और वाणिज्य का केंद्र था। सड़कों और जलमार्गों का निर्माण व्यापार को बढ़ावा देने में मददगार रहा।
  • साहित्य और शिक्षा: मगध साम्राज्य साहित्य और शिक्षा का केंद्र था। इस काल में कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना हुई।

लिच्छवी साम्राज्य

लिच्छवी साम्राज्य, जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 2री शताब्दी ईसा पूर्व तक चला, प्राचीन भारत के प्रमुख गणराज्यों में से एक था। यह साम्राज्य वर्तमान बिहार, नेपाल और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था।

बिहार में लिच्छवी साम्राज्य का उदय और विकास:

  • उदय: 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, लिच्छवी वंश ने वैशाली को अपनी राजधानी बनाकर बिहार में शासन स्थापित किया।
  • विकास: लिच्छवी गणराज्य ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति और प्रभाव का विस्तार किया। इसने व्यापार और वाणिज्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कला, शिक्षा और धर्म में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

लिच्छवी साम्राज्य की विशेषताएं:

  • गणतांत्रिक शासन: लिच्छवी गणराज्य एक गणतंत्र था, जहाँ शासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता था।
  • व्यापारिक समृद्धि: लिच्छवी गणराज्य व्यापार और वाणिज्य का केंद्र था। सोना, चांदी, तांबा और लोहा जैसे धातुओं का खनन और व्यापार गणराज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था।
  • सांस्कृतिक वैभव: लिच्छवी गणराज्य कला, शिक्षा और धर्म का केंद्र था। गणराज्य में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का विकास हुआ और कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों का निर्माण हुआ।
  • शक्तिशाली सेना: लिच्छवी गणराज्य की सेना शक्तिशाली थी और इसने कई युद्धों में विजय प्राप्त की।

लिच्छवी साम्राज्य के प्रमुख शासक:

  • मृगांक: लिच्छवी वंश के प्रथम शासक, जिन्होंने गणराज्य की स्थापना की।
  • चक्रवर्ती धर्मपाल: लिच्छवी वंश के प्रसिद्ध शासक, जिन्होंने गणराज्य का विस्तार किया और अपनी शक्ति को मजबूत किया।
  • शिवदेव: लिच्छवी वंश के अंतिम शासक, जिन्हें मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने हरा दिया था।

लिच्छवी साम्राज्य का बिहार पर प्रभाव:

  • राजनीतिक: लिच्छवी गणराज्य ने बिहार में गणतंत्रीय शासन की परंपरा स्थापित की।
  • सामाजिक: लिच्छवी गणराज्य में व्यापारियों और शिल्पकारों का एक समृद्ध वर्ग था, जिसने बिहार के समाज को प्रभावित किया।
  • आर्थिक: लिच्छवी गणराज्य व्यापार और वाणिज्य का केंद्र था, जिससे बिहार की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।
  • सांस्कृतिक: लिच्छवी गणराज्य कला, शिक्षा और धर्म का केंद्र था, जिसने बिहार की संस्कृति को समृद्ध किया।

महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल:

  • वैशाली: लिच्छवी गणराज्य की राजधानी, जहाँ अनेक बौद्ध और जैन धार्मिक स्थल स्थित हैं। यहाँ अनेक स्तंभ, शिलालेख और मूर्तियां लिच्छवी काल की कला और भव्यता को दर्शाती हैं।
  • पावापुरी: जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्मस्थान और निर्वाण स्थल।
  • नालंदा: प्राचीन भारत का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय, जो ज्ञान और शिक्षा का केंद्र था। यहाँ अनेक देशों से छात्र अध्ययन करने आते थे।
  • राजगीर: प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी, जहाँ अनेक बौद्ध और जैन धार्मिक स्थल स्थित हैं।

वज्जि महाजनपद

वज्जि महाजनपद, जो 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व से 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक चला, प्राचीन भारत के प्रमुख गणराज्यों में से एक था। यह महाजनपद वर्तमान बिहार के तिरहुत और मुंगेर क्षेत्रों में फैला हुआ था।

वज्जि महाजनपद की विशेषताएं:

  • गणतांत्रिक शासन: वज्जि महाजनपद एक गणतंत्र था, जहाँ शासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता था।
  • संघीय ढांचा: वज्जि महाजनपद में 8 गणों का एक संघ था, जिनमें वैशाली, लिच्छवी, विदेह, गण्डक, वज्जी, मल्ल, औशिज्ज और काशी शामिल थे।
  • बलशाली सेना: वज्जि महाजनपद की सेना शक्तिशाली थी और इसने कई युद्धों में विजय प्राप्त की।
  • व्यापारिक समृद्धि: वज्जि महाजनपद व्यापार और वाणिज्य का केंद्र था।
  • धार्मिक महत्व: वज्जि महाजनपद बौद्ध धर्म और जैन धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र था।

वज्जि महाजनपद के प्रमुख शासक:

  • लिच्छवी: वज्जि महाजनपद में लिच्छवी वंश का शासन था।
  • अजातशत्रु: मगध सम्राट अजातशत्रु ने वज्जि महाजनपद पर आक्रमण किया और इसे कमजोर कर दिया।

वज्जि महाजनपद का बिहार पर प्रभाव:

  • राजनीतिक: वज्जि महाजनपद ने बिहार में गणतंत्रीय शासन की परंपरा स्थापित की।
  • सामाजिक: वज्जि महाजनपद में विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोग रहते थे।
  • आर्थिक: वज्जि महाजनपद व्यापार और वाणिज्य का केंद्र था, जिससे बिहार की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।
  • सांस्कृतिक: वज्जि महाजनपद बौद्ध धर्म और जैन धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ अनेक बौद्ध और जैन धार्मिक स्थल स्थापित किए गए थे।

महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल:

  • वैशाली: वज्जि महाजनपद की राजधानी, जहाँ अनेक बौद्ध धार्मिक स्थल स्थित हैं। यहाँ प्रसिद्ध विश्वशांति स्तूप और अनेक स्तंभ और मूर्तियां वज्जि काल की कला और शिल्पकला को दर्शाती हैं।
  • नालंदा: प्राचीन भारत का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय, जो ज्ञान और शिक्षा का केंद्र था।
  • राजगीर: प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी, जहाँ अनेक बौद्ध और जैन धार्मिक स्थल स्थित हैं।

महत्वपूर्ण स्थल

1.नालंदा:

नालंदा, प्राचीन भारत में स्थित एक विश्वविद्यालय, जो ज्ञान और शिक्षा का अद्वितीय केंद्र था। यह बिहार राज्य के राजगीर जिले में स्थित था और 5वीं शताब्दी ईस्वी से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक सक्रिय रहा।

नालंदा विश्वविद्यालय की विशेषताएं:

  • ज्ञान और शिक्षा का केंद्र: नालंदा विश्वविद्यालय केवल शिक्षा का केंद्र ही नहीं था, बल्कि ज्ञान और विचारों का भी केंद्र था।
  • विभिन्न विषयों का अध्ययन: यहाँ धर्म, दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित, भाषा, साहित्य और कला सहित विभिन्न विषयों का अध्ययन होता था।
  • विश्व स्तरीय शिक्षा: नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा का स्तर अत्यंत उच्च था। यहाँ दुनिया भर से छात्र अध्ययन करने आते थे।
  • प्रसिद्ध शिक्षक और विद्वान: नालंदा विश्वविद्यालय में कई प्रसिद्ध शिक्षक और विद्वान थे, जिनमें आचार्य नागार्जुन, आचार्य धर्मपाल, आचार्य शीलभद्र और आचार्य बुद्धपालित शामिल थे।
  • बौद्ध धर्म का केंद्र: नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ बौद्ध धर्म के अध्ययन और अनुसंधान पर विशेष ध्यान दिया जाता था।

नालंदा विश्वविद्यालय का महत्व:

  • शिक्षा और ज्ञान का प्रसार: नालंदा विश्वविद्यालय ने शिक्षा और ज्ञान का प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • भारतीय संस्कृति का विकास: नालंदा विश्वविद्यालय ने भारतीय संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • विश्वविद्यालयों की स्थापना: नालंदा विश्वविद्यालय ने विश्व भर में विश्वविद्यालयों की स्थापना को प्रेरित किया।
  • अंतरराष्ट्रीय संबंध: नालंदा विश्वविद्यालय ने विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नालंदा विश्वविद्यालय का पतन:

12वीं शताब्दी में, नालंदा विश्वविद्यालय पर तुर्कों द्वारा आक्रमण किया गया और इसे नष्ट कर दिया गया। इसके पतन के कई कारण थे, जिनमें राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक कमजोरी और धार्मिक कट्टरपंथ शामिल हैं।

2.राजगीर

राजगीर, बिहार राज्य के राजगीर जिले में स्थित एक प्राचीन शहर है। यह शहर अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत, धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है।

राजगीर का इतिहास:

  • प्राचीन काल: राजगीर प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण शहर रहा है। यह मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था और कई शक्तिशाली राजाओं ने यहाँ शासन किया।
  • बौद्ध और जैन धर्म का केंद्र: राजगीर बौद्ध और जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। भगवान बुद्ध ने यहाँ कई वर्षों तक निवास किया और यहाँ उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, का भी यहाँ जन्म हुआ था।
  • मध्यकाल: मध्यकाल में, राजगीर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।
  • आधुनिक काल: आज, राजगीर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ कई ऐतिहासिक स्मारक, धार्मिक स्थल और प्राकृतिक आकर्षण हैं।

राजगीर के प्रमुख दर्शनीय स्थल:

  • विश्व शांति स्तूप: यह एक विशाल बौद्ध स्तूप है जिसे जापान द्वारा 1950 के दशक में बनाया गया था।
  • नवरत्न गड्ढा: यह एक प्राचीन तालाब है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें नौ रत्न हैं।
  • जरासंध का अखाड़ा: यह एक विशाल प्राचीन अखाड़ा है जहाँ राजा जरासंध कुश्ती करते थे।
  • बर्नावा मंदिर: यह भगवान विष्णु को समर्पित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है।
  • महावीर मंदिर: यह महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर को समर्पित एक जैन मंदिर है।
  • रत्नगिरि पहाड़ी: यह एक पहाड़ी है जहाँ भगवान बुद्ध ने कई वर्षों तक निवास किया था।
  • सोन भंडार गुफा: यह एक प्राचीन गुफा है जहाँ सोने के सिक्कों का भंडार रखा जाता था।

राजगीर का महत्व:

  • ऐतिहासिक महत्व: राजगीर प्राचीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था और यहाँ कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थीं।
  • धार्मिक महत्व: राजगीर बौद्ध और जैन धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • पर्यटन स्थल: राजगीर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ कई ऐतिहासिक स्मारक, धार्मिक स्थल और प्राकृतिक आकर्षण हैं।

3.वैशाली

वैशाली, बिहार राज्य के वैशाली जिले में स्थित एक प्राचीन शहर है। यह शहर अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत, गणतांत्रिक शासन व्यवस्था और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।

वैशाली का इतिहास:

  • प्राचीन काल: वैशाली प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण शहर रहा है। यह लिच्छवी गणराज्य की राजधानी हुआ करता था, जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक चला था।
  • गणतांत्रिक शासन: लिच्छवी गणराज्य एक गणतंत्र था, जहाँ शासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता था।
  • धार्मिक महत्व: वैशाली बौद्ध और जैन धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। भगवान बुद्ध ने यहाँ कई वर्षों तक निवास किया और यहाँ उन्हें प्रथम शिष्य प्राप्त हुए। महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, का भी यहाँ जन्म हुआ था।
  • मध्यकाल: मध्यकाल में, वैशाली एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।
  • आधुनिक काल: आज, वैशाली एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ कई ऐतिहासिक स्मारक, धार्मिक स्थल और प्राकृतिक आकर्षण हैं।

वैशाली के प्रमुख दर्शनीय स्थल:

  • अभिषेक पुष्करणी: यह एक प्राचीन तालाब है जहाँ भगवान बुद्ध को स्नान कराया गया था।
  • विश्व शांति स्तूप: यह एक विशाल बौद्ध स्तूप है जिसे जापान द्वारा 1960 के दशक में बनाया गया था।
  • अशोक स्तंभ: यह सम्राट अशोक द्वारा निर्मित एक प्राचीन स्तंभ है।
  • वीर मंदिर: यह भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर को समर्पित एक जैन मंदिर है।
  • नगरवधू का मंदिर: यह प्राचीन नगरवधू आम्रपाली को समर्पित एक मंदिर है।
  • लालित विहार: यह एक प्राचीन बौद्ध मठ है।
  • चक्रवर्ती धर्मपाल का मकबरा: यह लिच्छवी वंश के प्रसिद्ध शासक चक्रवर्ती धर्मपाल का मकबरा है।

वैशाली का महत्व:

  • ऐतिहासिक महत्व: वैशाली प्राचीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह लिच्छवी गणराज्य की राजधानी हुआ करता था और यहाँ कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थीं।
  • धार्मिक महत्व: वैशाली बौद्ध और जैन धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • पर्यटन स्थल: वैशाली एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ कई ऐतिहासिक स्मारक, धार्मिक स्थल और प्राकृतिक आकर्षण हैं।

4.पाटलीपुत्र

पाटलीपुत्र, जिसे आज पटना के नाम से जाना जाता है, बिहार राज्य की राजधानी और प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में से एक है। यह शहर अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत, राजनीतिक महत्व और सांस्कृतिक वैभव के लिए जाना जाता है।

पाटलीपुत्र का इतिहास:

  • प्राचीन काल: पाटलीपुत्र की स्थापना 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में मगध साम्राज्य के सम्राट अजातशत्रु ने की थी।
  • मौर्य साम्राज्य: 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने पाटलीपुत्र को अपनी राजधानी बनाया। मौर्य साम्राज्य के शासनकाल में, पाटलीपुत्र एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य केंद्र बन गया।
  • शुंग और कुषाण साम्राज्य: मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद, पाटलीपुत्र शुंग और कुषाण साम्राज्यों की राजधानी रहा।
  • मध्यकाल: मध्यकाल में, पाटलीपुत्र एक महत्वपूर्ण शहर बना रहा और कई राजवंशों द्वारा शासित हुआ।
  • आधुनिक काल: 16वीं शताब्दी में, शेरशाह सूरी ने पाटलीपुत्र पर विजय प्राप्त की और इसे अपनी राजधानी बनाया। 17वीं शताब्दी में, मुगलों ने पाटलीपुत्र पर नियंत्रण कर लिया और इसे पटना नाम दिया।

पाटलीपुत्र का महत्व:

  • राजनीतिक महत्व: पाटलीपुत्र प्राचीन भारत के कई शक्तिशाली साम्राज्यों की राजधानी रहा है।
  • सांस्कृतिक वैभव: पाटलीपुत्र कला, शिक्षा और साहित्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
  • व्यापारिक केंद्र: पाटलीपुत्र एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य केंद्र रहा है।
  • धार्मिक महत्व: पाटलीपुत्र बौद्ध धर्म और जैन धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल रहा है।

पाटलीपुत्र के प्रमुख दर्शनीय स्थल:

  • पटना साहिब: यह सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • गोला गोकरनाथ: यह एक प्राचीन मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है।
  • कुम्हरार: यह मौर्य काल के अवशेषों वाला एक पुरातात्विक स्थल है।
  • अगमकुआं: यह एक प्राचीन तालाब है।
  • पटना संग्रहालय: यह प्राचीन भारत के इतिहास और संस्कृति से संबंधित कलाकृतियों का एक संग्रह है।

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