परिचय
नंद वंश प्राचीन भारत के मगध साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण शासक वंश था, जिसने 344 ई.पू. से 321 ई.पू. तक शासन किया। इस वंश की स्थापना महापद्म नंद ने की थी, जिन्होंने शिशुनाग वंश को समाप्त कर मगध की सत्ता पर कब्जा किया। नंद वंश अपनी सैन्य शक्ति, आर्थिक समृद्धि और विशाल साम्राज्य के लिए प्रसिद्ध था। इस वंश का अंत धनानंद के शासनकाल में हुआ, जब चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने मिलकर इसे समाप्त कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
नंद वंश की स्थापना
- महापद्म नंद (उग्रसेन): महापद्म नंद ने 344 ई.पू. में शिशुनाग वंश को पराजित कर नंद वंश की नींव रखी।
- उन्हें ‘एकराट’ या ‘एकछत्र’ की उपाधि से जाना गया, जो उनकी एकछत्र सत्ता को दर्शाता है।
- पुराणों में उन्हें ‘सर्व क्षत्रांतक’ (सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला) और ‘परशुराम का दूसरा अवतार’ कहा गया।
- महाबोधिवंश (सिंहल साहित्य) में उन्हें ‘उपय’ (भयानक सेना का स्वामी) के रूप में वर्णित किया गया।
- उन्होंने अपने मंत्री कल्पक की सहायता से कई क्षत्रिय राजवंशों का दमन किया।
- महापद्म नंद ने कलिंग, पांचाल, इक्ष्वाकु, काशी, अश्मक, मैथिल आदि राज्यों को जीतकर मगध साम्राज्य का अभूतपूर्व विस्तार किया।
- कलिंग विजय के दौरान उन्होंने वहां से भगवान महावीर की मूर्ति मगध लाई।
- उनके शासनकाल में मगध साम्राज्य अपने चरम विस्तार पर पहुंचा।
- प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनि उनके समकालीन थे।
नंद वंश के शासक
महापद्म नंद के बाद उनके आठ उत्तराधिकारियों ने मगध पर शासन किया। इनके नाम निम्नलिखित हैं:
- उग्रसेन (महापद्म नंद)
- पाण्डुक
- पाण्डुगति
- भूतपाल
- राष्ट्रपाल
- गोविषाणक
- दशसिद्धक
- कैवर्त
- धनानंद
- धनानंद:
- नंद वंश का अंतिम शासक।
- वे यूनानी शासक सिकंदर के समकालीन थे।
- उनके शासनकाल में (326 ई.पू.) सिकंदर ने भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों पर आक्रमण किया।
- मगध की सैन्य शक्ति इतनी प्रबल थी कि सिकंदर की सेना ने व्यास नदी पार करने से इनकार कर दिया।
- किंवदंतियों के अनुसार, धनानंद ने विद्वान चाणक्य का अपने दरबार में अपमान किया।
- इससे क्रुद्ध होकर चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर धनानंद की हत्या करवाई और नंद वंश का अंत किया।
मगध के उत्कर्ष के कारण
नंद वंश के दौरान मगध साम्राज्य ने अभूतपूर्व उत्कर्ष प्राप्त किया। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- भौगोलिक कारण:
- मगध की राजधानी पाटलिपुत्र गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर स्थित थी।
- यह स्थिति सामरिक दृष्टि से अत्यंत सुरक्षित थी और आक्रमणों से बचाव में सहायक थी।
- आर्थिक कारण:
- नदियों की उपस्थिति ने व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया।
- मगध का क्षेत्र अत्यंत उपजाऊ था, जिसने कृषि उत्पादन को समृद्ध किया और आर्थिक समृद्धि में योगदान दिया।
- राजनीतिक कारण:
- मगध में साहसी और महत्वाकांक्षी शासकों (जैसे बिम्बिसार, अजातशत्रु, महापद्म नंद) की उपस्थिति थी।
- इन शासकों ने साम्राज्य विस्तार और प्रशासनिक सुधारों पर विशेष ध्यान दिया।
- सैन्य कारण:
- मगध की सेना विशाल और सुसंगठित थी।
- सेना में हाथियों का व्यापक उपयोग किया जाता था, जो युद्ध में मगध को अन्य राज्यों पर श्रेष्ठता प्रदान करता था।
- सामाजिक कारण:
- मगध का समाज रूढ़ियों का विरोधी था, जिसने नवीन विचारों और सुधारों को प्रोत्साहन दिया।
नंद वंश का पतन
- धनानंद के शासनकाल में चाणक्य ने उनके अपमान के कारण चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर नंद वंश को उखाड़ फेंका।
- 321 ई.पू. में चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की, जिसने मगध को और अधिक गौरव प्रदान किया।
नंद वंश की विशेषताएं
- सैन्य शक्ति: नंद वंश की सेना इतनी शक्तिशाली थी कि सिकंदर जैसे आक्रांता भी मगध पर आक्रमण करने से हिचकिचाए।
- आर्थिक समृद्धि: नंद वंश के शासकों ने व्यापार और कृषि को बढ़ावा देकर मगध को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया।
- साम्राज्य विस्तार: महापद्म नंद के समय मगध साम्राज्य का विस्तार अपने चरम पर था।
- सांस्कृतिक योगदान: व्याकरणाचार्य पाणिनि जैसे विद्वानों का समकालीन होना नंद वंश के काल में सांस्कृतिक विकास को दर्शाता है।
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