1942 का भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक था। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करना था। इस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया और इसमें लाखों भारतीयों ने भाग लिया।
पृष्ठभूमि
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना किसी पूर्व परामर्श के युद्ध में शामिल कर लिया। भारतीय नेताओं और जनता में इस निर्णय के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था। ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश और स्वतंत्रता की मांग तेजी से बढ़ रही थी। द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भागीदारी के बावजूद, ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को स्वतंत्रता देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए थे। 1942 में, क्रिप्स मिशन, जो भारत को स्वशासन का प्रस्ताव देने के लिए आया था, असफल रहा। इस निराशा से हताश, गांधीजी ने “करो या मरो” के नारे के साथ भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने का फैसला किया।
भारत छोड़ो आंदोलन का आरंभ
भारत छोड़ो आंदोलन का आरंभ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ था। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1942 में शुरू हुआ और इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन को समाप्त करना और भारत को स्वतंत्रता दिलाना था। यहाँ इस आंदोलन के आरंभ की प्रमुख घटनाओं का विवरण दिया गया है:
पृष्ठभूमि
- द्वितीय विश्व युद्ध:
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना किसी पूर्व परामर्श के युद्ध में शामिल कर लिया था। इस निर्णय के खिलाफ भारतीय नेताओं और जनता में असंतोष बढ़ रहा था।
- अंग्रेजों की वादा-खिलाफी:
- ब्रिटिश सरकार ने कई बार भारतीयों से स्वतंत्रता के संबंध में वादे किए, लेकिन वे सभी वादे झूठे साबित हुए। इसके परिणामस्वरूप, भारतीयों में निराशा और गुस्सा बढ़ता गया।
- अगस्त प्रस्ताव:
- 1940 में ब्रिटिश सरकार ने ‘अगस्त प्रस्ताव’ पेश किया, जिसमें भारतीय नेताओं को कुछ राजनीतिक अधिकार देने का वादा किया गया था। लेकिन भारतीय नेताओं ने इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि यह स्वतंत्रता के उद्देश्य को पूरा नहीं करता था।
आंदोलन की शुरुआत
- अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक:
- 7-8 अगस्त 1942 को मुंबई (तब बॉम्बे) के गोवालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में महात्मा गांधी ने ‘करो या मरो’ (Do or Die) का नारा दिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया।
- भारत छोड़ो प्रस्ताव:
- 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति ने ‘भारत छोड़ो प्रस्ताव’ पारित किया। इस प्रस्ताव में ब्रिटिश सरकार से तत्काल भारत छोड़ने की मांग की गई। महात्मा गांधी ने अपने भाषण में भारतीय जनता को अपने अधिकारों के लिए अहिंसात्मक तरीके से लड़ने का आह्वान किया।
- नेताओं की गिरफ्तारी:
- 9 अगस्त 1942 की सुबह, ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और अन्य कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इन गिरफ्तारियों का उद्देश्य आंदोलन को दबाना था, लेकिन इसका विपरीत प्रभाव पड़ा और आंदोलन और भी जोर पकड़ गया।
आंदोलन की घटनाएँ
- जनता का स्वतःस्फूर्त विद्रोह:
- नेताओं की गिरफ्तारी के बाद भी आंदोलन रुकने के बजाय और भी जोर पकड़ गया। भारतीय जनता ने स्वतःस्फूर्त ढंग से विरोध प्रदर्शन, हड़तालें, धरने, और रेल रोको अभियान आयोजित किए।
- छात्रों और युवाओं की भागीदारी:
- इस आंदोलन में छात्रों, युवाओं, और महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई बंद हो गई और छात्रों ने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
- किसानों और मजदूरों का समर्थन:
- ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और मजदूरों ने भी आंदोलन में हिस्सा लिया। कई जगहों पर सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया गया और सरकारी अधिकारियों का बहिष्कार किया गया।
- हिंसात्मक घटनाएँ:
- कई जगहों पर आंदोलन हिंसात्मक रूप ले लिया। चौरी चौरा की घटना जैसी हिंसात्मक घटनाओं के कारण आंदोलन पर कड़ी कार्रवाई की गई। पुलिस और सेना ने बल प्रयोग किया, जिससे हजारों लोग मारे गए, घायल हुए, या जेल में बंद कर दिए गए।
आंदोलन के प्रमुख स्थान
- बिहार:
- बिहार में आंदोलन का व्यापक असर देखा गया। यहाँ के छात्रों और किसानों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और कई जगहों पर हिंसक झड़पें हुईं।
- महाराष्ट्र:
- महाराष्ट्र में भी आंदोलन ने जोर पकड़ा। मुंबई में हुए बड़े प्रदर्शनों के अलावा पुणे, नागपुर और शोलापुर में भी व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए।
- उत्तर प्रदेश:
- उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आंदोलनकारी सक्रिय रहे। यहाँ कई स्थानों पर रेल और टेलीग्राफ लाइनों को नुकसान पहुँचाया गया।
- बंगाल:
- बंगाल में भी आंदोलन की लहर थी। कोलकाता में बड़े प्रदर्शन हुए और ग्रामीण इलाकों में भी विद्रोह हुआ।
आंदोलन का प्रभाव
- राष्ट्रीय एकता:
- भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीयों को एकजुट किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक जन आंदोलन खड़ा किया। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था जिसने लोगों में स्वतंत्रता की भावना को प्रबल किया।
- अंतरराष्ट्रीय दबाव:
- इस आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया और ब्रिटिश सरकार पर भारत को स्वतंत्रता देने का दबाव बढ़ा।
- आंदोलन की सीख:
- आंदोलन ने भारतीय जनता को यह सिखाया कि संगठित और अहिंसात्मक संघर्ष के माध्यम से बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
सरकारी दमन:
- ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए क्रूर बल का इस्तेमाल किया।
- हजारों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया, कई लोग पुलिस गोलीबारी में मारे गए, और कई को जेलों में अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया।
- गांधीजी और अन्य प्रमुख नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया।
परिणाम:
- यद्यपि भारत छोड़ो आंदोलन तुरंत ब्रिटिश शासन को समाप्त करने में विफल रहा, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी और ब्रिटिश सरकार को कमजोर कर दिया।
- इस आंदोलन ने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया और उन्हें स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए एकजुट किया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिली, जिसमें भारत छोड़ो आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
निष्कर्ष
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक चरण था। इस आंदोलन ने भारतीय जनता को स्वतंत्रता की लड़ाई में एकजुट किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत संदेश भेजा। यह आंदोलन स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ और इसके पांच वर्ष बाद, 1947 में, भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
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