सेन राजवंश , 11वीं और 12वीं शताब्दी में बंगाल में शासन करने वाला भारतीय राजवंश ।
उनके पूर्वज दक्षिण से आए थे और 11वीं शताब्दी की शुरुआत में दक्षिण-पश्चिमी बंगाल में सरदार के रूप में स्थापित हुए थे ।
राजवंश के संस्थापक हेमंतसेन मूल रूप से राजा के सहायक थे।
पाल वंश । 11वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और खुद को राजा के रूप में स्थापित किया।
उनके उत्तराधिकारी, विजयसेन (शासनकाल लगभग 1095-1158) ने पाल साम्राज्य के खंडहरों पर एक साम्राज्य का निर्माण किया, जिसने पूरे बंगाल और उत्तरी बिहार पर नियंत्रण हासिल कर लिया ।
प्रमुख शासक:
- हेमंत सेन: सेन वंश के संस्थापक, जिन्होंने 11वीं शताब्दी के मध्य में शासन किया।
- विजय सेन: हेमंत सेन के पुत्र, जिन्होंने 1096 से 1159 ईस्वी तक शासन किया। उन्होंने सेन वंश का विस्तार किया और बंगाल को एक शक्तिशाली राज्य बनाया।
- बल्लाल सेन: विजय सेन के पुत्र, जिन्होंने 1159 से 1179 ईस्वी तक शासन किया। उन्होंने बंगाल में कई महत्वपूर्ण मंदिरों और विहारों का निर्माण करवाया।
- लक्ष्मण सेन: बल्लाल सेन के पुत्र, जिन्होंने 1179 से 1206 ईस्वी तक शासन किया। वे एक महान विद्वान और कला प्रेमी थे। उन्होंने बंगाल में कला, साहित्य और संस्कृति को प्रोत्साहन दिया।
- विश्वरूप सेन: लक्ष्मण सेन के पुत्र, जिन्होंने 1206 से 1225 ईस्वी तक शासन किया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण युद्ध जीते और बंगाल की सीमाओं का विस्तार किया।
- केशव सेन: विश्वरूप सेन के पुत्र, जिन्होंने 1225 से 1230 ईस्वी तक शासन किया।
उपलब्धियां:
- राजनीतिक: सेन वंश के शासकों ने बंगाल पर शासन किया और इसे एक समृद्ध और शक्तिशाली राज्य बनाया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण युद्ध जीते और अपनी सीमाओं का विस्तार किया।
- सांस्कृतिक: सेन वंश के शासक कला, साहित्य और संस्कृति के प्रेमी थे। उन्होंने बंगाल में कई महत्वपूर्ण मंदिरों, विहारों और पुस्तकालयों का निर्माण करवाया। उन्होंने कई प्रतिभाशाली कवियों, लेखकों और कलाकारों को संरक्षण दिया।
- आर्थिक: सेन वंश के शासनकाल में बंगाल में व्यापार और वाणिज्य फला-फूला। उन्होंने कई सिक्कों की ढलाई करवाई और अर्थव्यवस्था को मजबूत किया।
पतन के प्रमुख कारण:
- बाहरी आक्रमण: 1205 ईस्वी में, बख्तियार खिलजी, दिल्ली सल्तनत के एक सेनापति, ने बंगाल पर आक्रमण किया और नालंदा विश्वविद्यालय सहित कई महत्वपूर्ण शहरों को नष्ट कर दिया। इस आक्रमण ने सेन वंश की सैन्य शक्ति को कमजोर कर दिया और उनके राज्य में अस्थिरता पैदा कर दी।
- आंतरिक संघर्ष: सेन वंश के शासकों के बीच उत्तराधिकार को लेकर कई संघर्ष हुए। इन संघर्षों ने राज्य को कमजोर कर दिया और सामंतों को अधिक शक्तिशाली बना दिया।
- दुर्भिक्ष और बाढ़: 13वीं शताब्दी में बंगाल में कई बार दुर्भिक्ष और बाढ़ आई। इन प्राकृतिक आपदाओं ने अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया और लोगों में असंतोष पैदा कर दिया।
- अन्य राजवंशों का उदय: 13वीं शताब्दी में, बंगाल में कई अन्य राजवंशों का उदय हुआ, जैसे कि देव वंश और इलियास शही वंश। इन राजवंशों ने सेन वंश से क्षेत्र और शक्ति छीन ली।
सेन वंश का पतन का प्रभाव
1. राजनीतिक परिवर्तन
- मुसलमान शासन: सेन वंश के पतन के बाद, बंगाल और आसपास के क्षेत्रों में मुसलमान साम्राज्यों का उदय हुआ। मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के बाद, बंगाल में विभिन्न तुर्क और अफगान शासकों का शासन स्थापित हुआ।
- स्थानीय सत्ता संरचनाएँ: सेन वंश के पतन के बाद, स्थानीय शक्ति संरचनाओं और छोटे राज्यों का उदय हुआ, जो बंगाल की राजनीतिक परिदृश्य को बदलने में सहायक रहे।
2. सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तन
- धार्मिक परिवर्तन: सेन वंश के पतन के बाद, क्षेत्र में इस्लाम धर्म का प्रसार बढ़ा। बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के अनुयायियों की संख्या में बदलाव हुआ।
- सांस्कृतिक प्रभाव: मुसलमान आक्रमणों और शासन के परिणामस्वरूप बंगाल की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में परिवर्तन हुआ। इसने क्षेत्रीय कला, साहित्य, और संस्कृति पर प्रभाव डाला।
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