तक्षशिला
तक्षशिला प्राचीन भारत में गांधार देश की राजधानी और शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ का विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में शामिल है। यह हिन्दू एवं बौद्ध दोनों के लिये महत्वपूर्ण केन्द्र था। चाणक्य यहाँ पर आचार्य थे। 405 ई. में फाह्यान यहाँ आया था। तक्षशिला वर्तमान समय में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी ज़िले की एक तहसील है। तक्षशिला विश्वविद्यालय विभिन्न विषयों जैसे कि दर्शन, चिकित्सा, कानून, राजनीति, अर्थशास्त्र, ज्योतिष और खगोल विज्ञान में शिक्षा प्रदान करता था।
तक्षशिला कई प्रसिद्ध विद्वानों और शिक्षकों का घर था, जिनमें शामिल हैं:
- कौटिल्य: जिन्हें “चाणक्य” के नाम से भी जाना जाता है, वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और शिक्षक थे। उन्होंने “अर्थशास्त्र” नामक एक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखा, जो आज भी राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
- वासुबंधु: वे एक प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक और विद्वान थे। उन्होंने “अभिधर्मकोष” नामक एक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखा, जो बौद्ध दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
- कालिदास: वे एक प्रसिद्ध संस्कृत कवि और नाटककार थे। उन्होंने “अभिज्ञानशाकुंतलम” और “विक्रमोर्वशीयम्” जैसे प्रसिद्ध नाटक लिखे।
तक्षशिला का ऐतिहासिक महत्व
1. शिक्षा और विद्या का केंद्र
- विश्वविद्यालय: तक्षशिला विश्व के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक था, जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी ईस्वी तक प्रमुख शिक्षा केंद्र बना रहा।
- विभिन्न विषय: यहाँ पर वेद, वेदांग, चिकित्सा, राजनीति, युद्धकला, शल्य चिकित्सा, ज्योतिष, और गणित जैसे विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
- प्रसिद्ध शिक्षक और छात्र: तक्षशिला के प्रसिद्ध शिक्षक और छात्रों में पाणिनि, चाणक्य (कौटिल्य), जीवक, और चरक शामिल थे। पाणिनि ने यहाँ संस्कृत व्याकरण की ‘अष्टाध्यायी’ की रचना की थी।
2. चिकित्सा विज्ञान
- आयुर्वेद: तक्षशिला आयुर्वेद और चिकित्सा शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य जीवक ने यहाँ अपनी चिकित्सा शिक्षा प्राप्त की थी।
- शल्य चिकित्सा: तक्षशिला में शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का भी व्यापक अध्ययन होता था। चरक और सुश्रुत जैसे महान चिकित्सकों ने यहाँ अध्ययन और शिक्षण किया।
3. साहित्य और भाषाशास्त्र
- संस्कृत व्याकरण: तक्षशिला के पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण की ‘अष्टाध्यायी’ की रचना की, जो संस्कृत भाषा के व्याकरण का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
- साहित्यिक अध्ययन: तक्षशिला में साहित्य, काव्य, और नाटक का अध्ययन और लेखन होता था, जिससे भारतीय साहित्य का विकास हुआ।
4. राजनीति और अर्थशास्त्र
- राजनीति और कूटनीति: चाणक्य (कौटिल्य) ने तक्षशिला में राजनीति और कूटनीति की शिक्षा प्राप्त की और फिर चंद्रगुप्त मौर्य को शिक्षित किया। उन्होंने ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की, जो प्राचीन भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
- राजनीतिक शिक्षा: तक्षशिला में राजनीतिक शिक्षा का भी प्रमुख स्थान था, जहाँ छात्रों को राज्य प्रबंधन और कूटनीति की विधियाँ सिखाई जाती थीं।
तक्षशिला की सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता
सांस्कृतिक महत्ता
1. शैक्षणिक और बौद्धिक केंद्र
- विश्वविद्यालय और शिक्षा: तक्षशिला प्राचीन काल के सबसे महत्वपूर्ण शैक्षणिक केंद्रों में से एक था। यहाँ पर वेद, वेदांग, साहित्य, चिकित्सा, राजनीति, ज्योतिष, और शल्य चिकित्सा जैसे विविध विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
- प्रसिद्ध विद्वान: पाणिनि, चाणक्य, और जीवक जैसे महान विद्वान तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण की ‘अष्टाध्यायी’ की रचना की, जो संस्कृत भाषा के व्याकरण का प्रमुख ग्रंथ है।
- शोध और अनुसंधान: तक्षशिला में छात्रों और विद्वानों द्वारा अनुसंधान और शोध को प्रोत्साहित किया जाता था, जिससे विभिन्न विषयों में नई खोजें और सिद्धांत प्रस्तुत किए जाते थे।
2. साहित्य और कला
- संस्कृत साहित्य: तक्षशिला ने संस्कृत साहित्य और व्याकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यहाँ के विद्वानों ने संस्कृत भाषा को समृद्ध किया और कई महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों की रचना की।
- कला और वास्तुकला: तक्षशिला में कला और वास्तुकला का भी विकास हुआ। यहाँ के निर्माण कार्यों में बौद्ध स्तूप, मठ, और अन्य धार्मिक स्थलों का निर्माण हुआ, जो अद्वितीय वास्तुकला का उदाहरण हैं।
धार्मिक महत्ता
1. बौद्ध धर्म
- बौद्ध शिक्षा का केंद्र: तक्षशिला बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। यहाँ बौद्ध धर्म के अध्ययन और प्रचार-प्रसार के लिए कई विहार और मठ बने थे।
- महायान और हीनयान: तक्षशिला में महायान और हीनयान दोनों ही शाखाओं का अध्ययन होता था। यहाँ के विहारों में बौद्ध भिक्षु और विद्वान रहते थे और धर्म की शिक्षा दी जाती थी।
- बौद्ध साहित्य: तक्षशिला में बौद्ध साहित्य का समृद्ध संग्रह था। यहाँ पर त्रिपिटक जैसे महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन और शिक्षण होता था।
2. हिंदू धर्म
- हिंदू मंदिर: तक्षशिला में हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए भी कई मंदिर और धार्मिक स्थल थे। यहाँ पर वैदिक शिक्षा का भी अध्ययन होता था।
- धार्मिक सहिष्णुता: तक्षशिला में विभिन्न धर्मों के अनुयायी शांति और सहयोग के साथ रहते थे। यहाँ हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्म के अनुयायी अपने-अपने धर्म का पालन करते थे।
3. जैन धर्म
- जैन धर्म का प्रचार: तक्षशिला में जैन धर्म का भी प्रचार-प्रसार हुआ। यहाँ पर जैन आचार्य और भिक्षु धर्म की शिक्षा देते थे और अपने धर्म का पालन करते थे।
- जैन ग्रंथ: तक्षशिला में जैन ग्रंथों का भी अध्ययन होता था। यहाँ पर जैन धर्म के अनुयायियों ने कई महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों की रचना की।
तक्षशिला का पतन: कारण और घटनाएँ
1. राजनीतिक अस्थिरता
- मौर्य साम्राज्य का पतन: मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारत में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई। मौर्यों की केंद्रीय सत्ता कमजोर हो गई और इसके साथ ही तक्षशिला पर भी इसका प्रभाव पड़ा।
- शक और कुषाण शासक: तक्षशिला पर शक और कुषाण शासकों ने भी कब्जा किया, लेकिन उनकी पकड़ कमजोर थी। यह क्षेत्र विभिन्न शासकों के बीच संघर्ष का केंद्र बन गया।
2. हूण आक्रमण
- हूणों का आक्रमण: 5वीं शताब्दी ईस्वी में हूणों ने भारत पर आक्रमण किया। उनके नेता मिहिरकुल ने तक्षशिला को नष्ट कर दिया। हूणों का आक्रमण अत्यंत विनाशकारी था और तक्षशिला के पतन का मुख्य कारण बना।
- विनाश और लूटपाट: हूणों ने तक्षशिला में लूटपाट और विनाश किया, जिससे यहाँ की शैक्षिक और सांस्कृतिक संरचनाएँ नष्ट हो गईं। तक्षशिला का विश्वविद्यालय, विहार, और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों को भारी क्षति पहुँची।
3. आर्थिक अवनति
- व्यापार मार्गों का परिवर्तन: तक्षशिला प्राचीन काल में एक प्रमुख व्यापारिक मार्ग पर स्थित था, लेकिन समय के साथ व्यापार मार्गों में परिवर्तन हुआ, जिससे इसकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई।
- आर्थिक संसाधनों की कमी: लगातार आक्रमणों और लूटपाट के कारण तक्षशिला की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। यहाँ के विद्वान और शिल्पकार भी अन्यत्र जाने लगे, जिससे यहाँ की आर्थिक गतिविधियाँ समाप्त हो गईं।
4. आंतरिक संघर्ष
- स्थानीय विद्रोह: तक्षशिला में स्थानीय विद्रोह और संघर्ष भी इसके पतन के कारण बने। विभिन्न शासकों के बीच सत्ता संघर्ष और विद्रोहों ने तक्षशिला की स्थिरता को हिला दिया।
- शैक्षिक पतन: आंतरिक संघर्षों और अस्थिरता के कारण तक्षशिला का शैक्षिक महत्व भी घटने लगा। यहाँ के विद्वानों और छात्रों का पलायन होने लगा, जिससे यहाँ की शिक्षा प्रणाली कमजोर हो गई।
तक्षशिला के पतन का प्रभाव
- शैक्षणिक हानि: तक्षशिला का पतन भारतीय उपमहाद्वीप की शैक्षिक धरोहर के लिए एक बड़ा नुकसान था। यहाँ की ज्ञान और शिक्षा की परंपरा समाप्त हो गई।
- संस्कृतिक हानि: तक्षशिला के पतन से भारतीय संस्कृति और कला को भी गहरा धक्का लगा। यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर और कला के नमूने नष्ट हो गए।
- धार्मिक केंद्रों का नाश: तक्षशिला में स्थित बौद्ध, हिंदू, और जैन धार्मिक केंद्रों का भी विनाश हुआ। यहाँ के विहार, मंदिर, और अन्य धार्मिक स्थलों को भारी क्षति पहुँची।
नालंदा विश्वविद्यालय
परिचय:
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था।
यह 5वीं शताब्दी ईस्वी से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक गुरुकुल परंपरा के आधार पर संचालित था।
नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म और दर्शन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, लेकिन यहां अन्य विषयों जैसे कि चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित और भाषा विज्ञान भी पढ़ाए जाते थे।
यह विश्वविद्यालय दुनिया भर से छात्रों को आकर्षित करता था, जिनमें चीन, तिब्बत और श्रीलंका के छात्र भी शामिल थे।
इतिहास:
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी।
यह विश्वविद्यालय नालंदा नामक एक छोटे से गाँव में स्थित था जो आज बिहार राज्य में राजगीर के पास स्थित है।
नालंदा विश्वविद्यालय अपने सुनहरे दौर में 10,000 से अधिक छात्रों और 2,000 से अधिक शिक्षकों का घर था।
यह विश्वविद्यालय कई प्रसिद्ध विद्वानों और शिक्षकों का निवास स्थान था, जिनमें शामिल हैं:
- नागार्जुन: वे एक प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक और विद्वान थे। उन्होंने महायान बौद्ध दर्शन के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- धर्मपाल: वे एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु और शिक्षक थे। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का निर्माण किया, जो प्राचीन भारत में सबसे बड़ा पुस्तकालय था।
- शांतिदेव: वे एक प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्होंने महायान बौद्ध दर्शन पर कई प्रसिद्ध ग्रंथ लिखे।
शिक्षा:
नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा था। छात्रों को प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती थी और उन्हें कई वर्षों तक कठोर अध्ययन करना पड़ता था।
विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों में शिक्षा प्रदान की जाती थी, जिनमें शामिल हैं:
- दर्शन: बौद्ध दर्शन, हिंदू दर्शन, जैन दर्शन, और न्याय दर्शन
- धर्म: बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, जैन धर्म
- चिकित्सा: आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा
- खगोल विज्ञान: ज्योतिष, खगोल विज्ञान
- गणित: अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति
- भाषा विज्ञान: संस्कृत, पाली, प्राकृत
पुस्तकालय:
नालंदा विश्वविद्यालय में एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें हजारों हस्तलिखित ग्रंथ थे। यह पुस्तकालय प्राचीन भारत में सबसे बड़ा पुस्तकालय था और यह दुनिया भर के विद्वानों को आकर्षित करता था।
नालंदा विश्वविद्यालय का पतन
बख्तियार खिलजी का आक्रमण
- आक्रमण: 12वीं शताब्दी के अंत में, तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण किया और इसे नष्ट कर दिया।
- विनाश: खिलजी ने विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों को जलवा दिया, जिसमें हजारों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ नष्ट हो गए। यह आक्रमण नालंदा विश्वविद्यालय के पतन का प्रमुख कारण बना।
अन्य कारण
- राजनीतिक अस्थिरता: तत्कालीन भारतीय राजनीति में अस्थिरता और आक्रमणों के कारण नालंदा विश्वविद्यालय की सुरक्षा और संरक्षा प्रभावित हुई।
- धार्मिक असहिष्णुता: धार्मिक असहिष्णुता और बौद्ध धर्म के प्रति विरोध ने भी नालंदा के पतन में भूमिका निभाई।
महत्व:
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। इसने भारतीय शिक्षा और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना और विकास भारतीय इतिहास और संस्कृति की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
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