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क्षेत्रीय विकास और योजना (Regional Development and Planning)

भारत में क्षेत्रीय विकास के विभिन्न पहलुओं पर आधारित योजनाओं का इतिहास और संरचना काफी व्यापक और जटिल है।

आइए इनमें से प्रत्येक बिंदु को विस्तार से समझें:

1. भारत में क्षेत्रीय आयोजन का अनुभव (Regional Planning Experience in India)

  • अनुभव: भारत में क्षेत्रीय आयोजन के तहत प्रत्येक क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक, और भौगोलिक आवश्यकताओं के अनुसार योजनाएँ बनाई गई हैं। इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों की असमानताओं को दूर कर समग्र विकास को बढ़ावा देना है।
  • महत्त्व: क्षेत्रीय आयोजन के माध्यम से संसाधनों का समुचित वितरण, क्षेत्र विशेष की जरूरतों के अनुसार विकास, और स्थानीय निवासियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है।

2. पंचवर्षीय योजनाएँ (Five-Year Plans)

  • परिचय: भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत 1951 में हुई थी। इसका उद्देश्य था भारत के विकास को एक संगठित और नियोजित ढंग से आगे बढ़ाना।
  • प्रमुख योजनाएँ: पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि पर बल दिया गया, जबकि दूसरी पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक विकास को प्राथमिकता दी गई। 12वीं पंचवर्षीय योजना तक विभिन्न क्षेत्रीय, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को हल करने का प्रयास किया गया।

3. समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (Integrated Rural Development Programme – IRDP)

  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य ग्रामीण गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का सृजन करना है। इस कार्यक्रम के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में आय में वृद्धि और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को सहायता प्रदान की गई।
  • प्रभाव: इस योजना ने ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में सुधार, जल संरक्षण, और कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सहायता की।

4. पंचायती राज एवं विकेंद्रीकृत आयोजन (Panchayati Raj and Decentralized Planning)

  • महत्त्व: पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से विकेंद्रीकृत योजना और स्थानीय स्तर पर विकास की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंपी गई। इसके तहत स्थानीय समस्याओं का समाधान और विकास के कार्य गाँव स्तर पर किए जाते हैं।
  • कार्यक्रम: संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के बाद ग्राम स्तर पर पंचायतें और शहरी निकायों को अधिक सशक्त किया गया, जिससे विकेंद्रीकृत विकास को बल मिला।

5. कमान क्षेत्र विकास (Command Area Development)

  • उद्देश्य: कमान क्षेत्र विकास का उद्देश्य सिंचाई जल का अधिकतम उपयोग और जल का समान वितरण सुनिश्चित करना है। इसका मुख्य लक्ष्य है कि सिंचाई परियोजनाओं से प्राप्त जल का उपयोग ठीक से हो और कृषि उत्पादकता में सुधार हो।
  • प्रभाव: इस योजना के अंतर्गत सिंचाई के बुनियादी ढाँचे का विकास, फसल प्रबंधन, और किसानों के लिए कृषि सहायक सेवाओं का प्रावधान किया गया।

6. जल विभाजक प्रबंधन (Watershed Management)

  • उद्देश्य: जल विभाजक प्रबंधन का उद्देश्य पानी की उपलब्धता और जल संरक्षण को बढ़ावा देना है। यह भूमि सुधार, जल संचयन, और मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए आवश्यक है।
  • प्रभाव: जल विभाजक प्रबंधन ने सूखे क्षेत्रों में कृषि को सहारा दिया है और ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्तर सुधारने में योगदान दिया है।

7. पिछड़ा क्षेत्र, मरुस्थल, अनावृष्टि प्रधान, पहाड़ी, और जनजातीय क्षेत्र विकास के लिए योजनाएँ (Schemes for Development of Backward, Desert, Drought-prone, Hilly, and Tribal Areas)

  • पिछड़ा क्षेत्र विकास: पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए विशेष आर्थिक पैकेज और औद्योगिक विकास की योजनाएँ चलाई जाती हैं।
  • मरुस्थल विकास: राजस्थान जैसे मरुस्थलीय क्षेत्रों में जल संरक्षण, वृक्षारोपण, और भूमि सुधार कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
  • अनावृष्टि क्षेत्र विकास: सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल संरक्षण, फसल विविधता और जल प्रबंधन पर जोर दिया गया है।
  • पहाड़ी क्षेत्र विकास: पहाड़ी क्षेत्रों में अधोसंरचना विकास, सड़कों का निर्माण, और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया जाता है।
  • जनजातीय क्षेत्र विकास: जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष शिक्षा, स्वास्थ्य, और कृषि योजनाएँ चलाई जाती हैं ताकि उनकी जीवन स्थिति में सुधार हो सके।

8. बहु-स्तरीय योजना (Multi-level Planning)

  • परिभाषा: बहु-स्तरीय योजना के तहत विकास कार्यों को राष्ट्रीय, राज्य, जिला, ब्लॉक, और ग्राम स्तर पर योजना बनाकर लागू किया जाता है।
  • महत्त्व: इससे योजना में स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न स्तरों पर विकास की दिशा में समन्वय किया जाता है, जिससे समग्र और समावेशी विकास संभव हो पाता है।

9. क्षेत्रीय योजना (Regional Planning) एवं द्वीप क्षेत्र का विकास (Island Development)

  • क्षेत्रीय योजना: इसका उद्देश्य क्षेत्र विशेष के प्राकृतिक संसाधनों, आर्थिक और सामाजिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना है।
  • द्वीप क्षेत्र विकास: द्वीप क्षेत्रों में पर्यटन, मछली पालन, और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए योजनाएँ चलाई जाती हैं। लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीपों के विकास के लिए योजनाएँ बनाई गई हैं, जिसमें पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदायों के जीवन स्तर में सुधार पर ध्यान दिया गया है।

इन योजनाओं और कार्यक्रमों का उद्देश्य भारत में विभिन्न क्षेत्रों की असमानताओं को दूर करना और सतत् विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना है।

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