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अकबर – Akbar

जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर:-

  • जन्म 15 अक्टूबर 1542ई में (अमरकोट के राणा बीरसाल के महल में )
  • राज्याभिषेक – 14 फरवरी 1556 (कालानौर गुरदासपुर पंजाब)
  • माता- हमीदा बानो बेगम
  • अकबर का संरक्षक- मुनीम खां (गजनी में)
  • शिक्षक- अब्दुल लतीफ ईरानी
  • अकबर का पूरा नाम – जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर
  • अकबर का संरक्षक – बैरम खां
  • संतान- तीन पुत्र (सलीम, मुराद व दानियाल) व तीन पुत्रियां
  • सलीम का जन्म जोधाबाई के गर्भ से हुआ था।

अकबर का प्रारंभिक जीवन :-

  • अकबर के जन्म के समय हुमायूं शाह हुसैन के विरूद्ध थट्टा व भक्सर अभियान पर था। पुत्र जन्म का समाचार सुनते ही हूमायूं ने साथियों के साथ कस्तूरी बांट कर उत्सव मनाया था।
  • हुमायूं और शाह हुसैन के बीच संधि हुयी जिसके बाद हूमायूं ने सिंध छोड़ने का वचन दिया।
  • 1543 में हुमायूं ने सिंध छोड़कर काबुल की ओर प्रस्थान किया। लेकिन काबुल पर उस समय कामरान की तरफ से अस्करी शासन कर रहा था। कामरान ने हुमायूं को बंदी बनाने का आदेश दिया। हूमायूं को इसकी सूचना मिल गयी थी। वह अपने शिशु अकबर को जीजी अनगा व माहम अनगा नामक दो धायों के संरक्षण में छोड़कर हमीदा बानो बेगम के साथ ईरान की ओर प्रस्थान किया था।
  • अस्करी ने अकबर के साथ अच्छा व्यवहार किया व उसकी देखरेख अपनी पत्नी सुल्तान बेगम को सौंपी।
  • 1545 में हुमायूं ने कांधार पर आक्रमण किया। तब अस्करी ने अकबर को काबुल भेज दिया और जहां बाबर की बहन खाजनामा बेगम ने उसका पालन पोषण किया था।
  • 1546 में अकबर हूमायूं से मिला था।

प्रारंभिक शिक्षा :-

  • अकबर की शिक्षा के लिये हुमायूं ने दो शिक्षक पीर मोहम्मद तथा बैरम खां को नियुक्त किया था। लेकिन पढाई पर उसका मन नहीं लगा था।
  • अकबर को पहली बार नौ वर्ष की अवस्था में गजनी की सूबेदारी मिली थी।
  • इसी समय उसके चाचा हिंदाल की पुत्री रूकैया बेगम के साथ उसका विवाह हुआ था।
  • 1555 के सरहिंद युद्ध में भी अकबर ने हूमायूं का साथ दिया। उसकी प्रतिभा से हुमायूं प्रसन्न हुआ और उसे सरहिंद विजय का श्रेय दिया था।

अकबर का राज्याभिषेक :-

  • जब 1556 में हूमायूं की मृत्यु हुयी उस समय अकबर पंजाब में सिकंदर सूर के विरूद्ध युद्धरत था।
  • दिल्ली की गद्दी प्राप्त करने पर हुमायूं ने अकबर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और उसे पंजाब के सूबेदार का दायित्व सौंपा और बैरम खां को उसका संरक्षक नियुक्त किया गया था।
  • अकबर को अपने पिता की मृत्यु का सूचना गुरदासपुर के कालानौर नामक स्थान पर प्राप्त हुयी। इसी स्थान पर बैरम खां ने अकबर का राज्याभिषेक किया था।
  • उस समय उसकी आयु मात्र 13 वर्ष थी।
  • इस अवसर पर अकबर ने बैरम खां को खानखाना की उपाधि दी थी और अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया था।
  • अकबर बादशाह गाजी की उपाधि के साथ राजसिंहासन पर बैठा था।

आरंभिक कठिनाईयां:-

  • जिस समय अकबर गद्दी पर बैठा उस समय उसे सबसे अधिक खतरा अफगानों से था। सिकंदर सूर और आदिलशाह के नेतृत्व में अफगान पुनः दिल्ली की सत्ता प्राप्त करना चाहते थे।
  • सिकंदर सूर पंजाब से संपूर्ण उत्तर भारत की ओर अपनी शक्ति का विस्तार करना चाहता था जबकि आदिलशाह बिहार से दिल्ली तक अधिकार करना चाहता था। आदिलशाह का सेनापति हेमू विशाल सेना लेकर दिल्ली की ओर अग्रसर हुआ था।
  • हेमू को 24 युद्धों में से 22 युद्ध जीतने का श्रेय प्राप्त है।
  • आदिलशाह ने हेमू को विक्रमजीत की उपाधि प्रदान कर वजीर बनाया था।

अकबर के नवरत्न:-

    1. बीरबल
    2. अबुल फजल
    3. फैजी
    4. राजा टोडर मल
    5. राजा मान सिंह
    6. तानसेन
    7. अब्दुर-रहीम खान-ए-खाना
    8. फकीर अजीओ-दीन
    9. मुल्ला दो-पियाजा

पानीपत का द्वितीय युद्ध(Second Battle of Panipat):-

  • डा आर पी त्रिपाठी ने कहा था कि हेमू की पराजय एक दुर्घटना थी जबकि अकबर की विजय एक दैवीय संयोग था।
  • हेमू ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया था। इस प्रकार मध्यकालीन भारत में वह एकमात्र हिंदू शासक था जिसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया था।
  • दिल्ली पर हेमू के अधिकार के समय अकबर जालंधर में था और सेना लेकर दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
  • पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को अकबर और हेमू के बीच हुयी थी। हेमू की आंख में तीर लग गयी थी
  • जिससे वह युद्ध मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ और अकबर विजयी हुआ था।
  • बैरम खां ने हेमू को गिरफतार कर उसकी गर्दन काट दी थी।
  • अकबर की सेना का नेतृत्व पानीपत की लड़ाई में बैरम खां ने किया था और इस युद्ध को जीतने का श्रेय भी बैरम खां को दिया जाता है।
  • हेमू का मूल नाम हेमचंद था।
  • मध्यकालीन भारत का वह एकमात्र शासक था जिसने दिल्ली के सिंहासन पर अधिकार किया था।
  • दिल्ली पर अधिकार के बाद उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने वाला हेमू 14 वां व अंतिम शासक था।
  • सन् 1559ई में सिकंदर सूर की मृत्यु हो गयी जिससे सूर वंश का अंत हो गया था।
  • मक्का की तीर्थ यात्रा के दौरान पाटन नामक स्थान पर मुबारक खां नामक युवक ने बैरम खां की हत्या कर दी क्योंकि बैरम खां ने उसके पिता की मच्छीवाड़ा के युद्ध में हत्या कर दी थी। अब्दुर्रहीम खानखाना बैरम खां का पुत्र था।
  • हल्दीघाटी का युद्ध 1576 में महाराणा प्रताप व अकबर के बीच हुआ था। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मान सिंह व आसफ खां ने किया था।
  • अकबर का सेनापति मानसिंह था।
  • बदायूंनी ने हल्दीघाटी के युद्ध का आंखों देखा विवरण अपनी पुस्तक मुन्तखाब-उत-तवारीख में प्रस्तुत किया है।
  • गुजरात विजय के दौरान अकबर सर्वप्रथम पुर्तगालियों से मिला और यहीं उसने सर्वप्रथम समुद्र को देखा।
  • अकबर ने खानदेश (महाराष्ट्र) को 1591 ई में जीता जिसे दक्षिण भारत का प्रवेश द्वारा माना जाता था।
  • दक्षिण विजय के बाद अकबर ने सम्राट की उपाधि ग्रहण की।
  • अकबर की मृत्यु अतिसार रोग के कारण 1605 में हुयी थी।
  • अकबर को सिकन्दरा (आगरा) में दफनाया गया था।

अकबर की स्थापत्य कलाकृतियां :-

  • दिल्ली में हुमायूं का मकबरा
  • आकरा का लालकिला
  • फतेहपुर सीकरी का शीशमहल
  • दीवाने खास
  • पंचमहल
  • बुलंद दरवाजा
  • जोधाबाई का महल
  • इबादत खाना
  • इलाहाबाद का किला
  • लाहौर का किला

अकबर के कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्य :-

  • दासप्रथा का अंत – 1562 ई
  • अकबर को हरमदल से मुक्ति- 1562 ई
  • तीर्थयात्रा कर समाप्त- 1563 ई
  • जजिया कर समाप्त- 1564 ई
  • फतेहपुर सीकरी की स्थापना एवं राजधानी का आगरा से फतेहपुर सीकरी स्थानांतरण- 1571 ई
  • इबादतखाने की स्थापना – 1575 ई
  • मजहर की घोषणा- 1579 ई
  • दीन-ए-इलाही की स्थापना- 1582 ई
  • इलाही संवत की शुरूआत – 1585 ई
  • राजधानी लाहौर स्थानांतरित – 1585 ई

अकबर की नीतियाँ:-

  • अकबर के प्रशासन की विशेषता धार्मिक सहिष्णुता, सत्ता के केंद्रीकरण और प्रशासनिक तथा सैन्य सुधारों की नीतियों से थी।
  • तीसरे मुगल सम्राट अकबर को उनकी प्रगतिशील और समावेशी नीतियों के लिए जाना जाता है।
  • सबसे महत्वपूर्ण नीतियों में से एक उनकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति थी।
  • उन्होंने जजिया कर को समाप्त कर दिया, जो गैर-मुसलमानों पर लगाया जाता था, और अंतर-धार्मिक संवाद को प्रोत्साहित किया।
  • उन्होंने एक नया धर्म, दीन-ए-इलाही बनाने का भी प्रयास किया, जिसमें विभिन्न धर्मों के तत्वों को मिलाया गया, हालांकि इसे व्यापक रूप से नहीं अपनाया गया।
  • उनका दरबार विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों का मिश्रण था, जो उनके समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है।
  • सत्ता का केंद्रीकरण अकबर के प्रशासन की एक और प्रमुख नीति थी।
  • उन्होंने प्रशासन की एक केंद्रीकृत प्रणाली स्थापित की और अपने साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया, जिनमें से प्रत्येक पर एक गवर्नर का शासन था।
  • इस प्रणाली ने उन्हें अपने विशाल साम्राज्य पर नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति दी।
  • उन्होंने अपने सैन्य और नागरिक अधिकारियों के लिए रैंक की एक प्रणाली भी शुरू की, जिसे मनसबदारी प्रणाली के रूप में जाना जाता है। यह प्रणाली आनुवंशिकता के बजाय योग्यता पर आधारित थी, जिसने वफादारी और दक्षता सुनिश्चित करने में मदद की।
  • अकबर ने महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सैन्य सुधार भी लागू किए।
  • उन्होंने वजन और माप की एक मानक प्रणाली और ज़ब्त प्रणाली के रूप में जानी जाने वाली भूमि राजस्व प्रणाली शुरू की।
  • यह प्रणाली भूमि के सावधानीपूर्वक सर्वेक्षण और माप पर आधारित थी और इसने राज्य के लिए एक नियमित आय सुनिश्चित की।
  • सैन्य सुधारों के संदर्भ में, अकबर ने एक बड़ी स्थायी सेना बनाई और उन्नत हथियार पेश किए। उन्होंने बेहतर प्रशासन और रक्षा के लिए अपने पूरे साम्राज्य में किलों और सड़कों का एक नेटवर्क भी स्थापित किया।
  • इसके अलावा, अकबर ने व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया। उन्होंने आंतरिक सीमा शुल्क को समाप्त कर दिया और विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित किया।
  • उन्होंने व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए नई सड़कें और कारवां सराय भी बनवाए।
  • उनकी नीतियों ने एक समृद्ध और स्थिर साम्राज्य बनाने में मदद की।
  • निष्कर्ष रूप में, अकबर के प्रशासन की पहचान धार्मिक सहिष्णुता, सत्ता के केंद्रीकरण और प्रशासनिक और सैन्य सुधारों की नीतियों से थी।
  • उनकी नीतियाँ प्रगतिशील और समावेशी थीं और उन्होंने एक मजबूत और स्थिर मुगल साम्राज्य की नींव रखी।

दीन-ए-इलाही

  • दीन-ए-इलाही धर्म की शुरुआत अकबर ने 1582 में की थी।
  • लोगों को एक ईश्वर में विश्वास दिलाने के लिए, उन्होंने अपना धर्म शुरू किया।
  • इसे तौहीद-ए-इलाही भी कहा जाता है।
  • अकबर ने भारत के कई धर्मों को सहन किया, लेकिन अपने पहले के धर्म की मान्यताओं को आगे नहीं बढ़ाया।
  • फिर भी, उन्होंने लोगों को एक ही ईश्वर की सेवा करने वाले धर्म के माध्यम से करीब लाने के लिए दीन-ए-इलाही की शुरुआत की।

दीन-ए-इलाही के प्रभाव:-

  • दीन-ए-इलाही ने सूफीवाद, जैन धर्म, हिंदू धर्म, इस्लाम और पारसी धर्मों से ली गई मान्यताओं को संश्लेषित किया।
  • उन्होंने धर्मों के कुछ हिस्सों को लिया और उन्हें एक में मिला दिया।
  • सूफीवाद से, उन्होंने मानव की आत्मा को शुद्ध करने के लिए ईश्वर की तड़प ली; लोग ईश्वर के प्रेम में खो जाते हैं और चाहते हैं कि वह उनकी आत्माओं को शुद्ध और पापों से मुक्त करे।
  • शुद्ध करने के लिए पाप वासना, बदनामी, कामुकता और अभिमान थे, जबकि सूफीवाद से दीन-ए-इलाही के गुणों में धर्मपरायणता, विवेक, संयम का अभ्यास और दयालुता दिखाना शामिल था।
  • ब्रह्मचर्य रखना और सक्रिय रूप से इसका पालन करना कैथोलिक धर्म से लिया गया था।
  • जैन धर्म और हिंदू धर्म की तरह जानवरों का अर्थहीन वध निषिद्ध हो गया, और शाकाहार का भी अभ्यास किया गया।
  • अकबर द्वारा शुरू किए गए दीन-ए-इलाही धर्म में इस्लाम और सिख धर्म की तरह पदानुक्रम का कोई रूप नहीं था।
  • इस धर्म का कोई धर्मग्रंथ भी नहीं था, क्योंकि धर्म की नींव अकबर के पूजा स्थल में रखी गई थी, जहां वह समुदाय के धार्मिक सदस्यों के साथ आस्था से संबंधित प्रश्नों पर चर्चा करता था।

दीन-ए-इलाही के अनुयायी:

  • दीन -ए-इलाही धर्म के अनुयायी बहुत ज़्यादा नहीं थे और धर्म के अंत तक यह इसी तरह बना रहा।
  • अकबर ने अपने अनुयायियों को उनकी निष्ठा और भक्ति के अनुसार चुना; उसने उनके सामने दीन-ए-इलाही का पालन करने का विचार रखा।
  • दीन-ए-इलाही का पहला अनुयायी और अकबर के दरबार के अन्य सदस्यों के बीच उसका धर्म स्वीकार करने वाला पहला व्यक्ति बीरबल था।
  • हालाँकि अकबर के समय में इसके अनुयायी बीस से ज़्यादा नहीं थे, लेकिन धर्म एक पंथ जैसा व्यक्तित्व लेकर चलता रहा।

दीन-ए-इलाही धर्म के सिद्धांत:-

  1. ईश्वर की एकता.
  2. दीन-ए-इलाही धर्म के अनुयायी एक दूसरे को ‘अल्लाह-उ-अकबर’ या जल्ला जलालुहु कहकर सलाम करते हैं। इस सलाम का अनुवाद है ‘उसकी महिमा का गुणगान हो।’
  3. किसी भी प्रकार का मांस खाना प्रतिबंधित है।
  4. प्रत्येक सदस्य को अपने जन्मदिन के अवसर पर एक पार्टी आयोजित करनी थी।
  5. चूंकि मांस का सेवन वर्जित था, इसलिए अनुयायियों के लिए किसी भी तरह की हिंसा भी वर्जित थी। दीन-ए-इलाही के अनुयायियों को मछुआरों , शिकारियों और कसाईयों के साथ भोजन करने या उनसे मेलजोल रखने पर भी प्रतिबंध था।

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