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भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना – Establishment of British rule in India

  • भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना एक लंबी और जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें कई प्रमुख घटनाएं और चरण शामिल थे।
  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक अभियानों से शुरू होकर, यह प्रक्रिया अंततः भारत पर औपनिवेशिक शासन के रूप में स्थापित हुई।

यहां भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना के मुख्य चरणों का वर्णन किया गया है:

1. ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन और प्रारंभिक व्यापार (1600-1757):-

    • 1600 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और उसे भारत में व्यापार करने का चार्टर मिला।
    • कंपनी ने भारत के विभिन्न तटीय क्षेत्रों में अपने व्यापारिक केंद्र स्थापित किए, जैसे सूरत, मद्रास, बंबई (मुंबई), और कलकत्ता (कोलकाता)।
    • इस दौरान कंपनी का मुख्य उद्देश्य भारत से मसाले, कपास, रेशम और अन्य मूल्यवान वस्तुओं का व्यापार करना था।

2. प्लासी की लड़ाई और बंगाल पर नियंत्रण (1757):-

  • प्लासी की लड़ाई और बंगाल पर नियंत्रण (1757) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने न केवल बंगाल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को स्थापित किया, बल्कि पूरे भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की नींव भी रखी। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर नियंत्रण प्राप्त किया, जो बाद में पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश शासन की शुरुआत का कारण बना।

i. पृष्ठभूमि:- 18वीं शताब्दी के मध्य तक, बंगाल एक समृद्ध और संपन्न प्रांत था, जिसका नियंत्रण नवाब सिराजुद्दौला के हाथ में था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में अपने व्यापारिक केंद्र स्थापित कर लिए थे, और उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) को अपने मुख्यालय के रूप में विकसित किया था। बंगाल की समृद्धि और उसकी रणनीतिक स्थिति ने ब्रिटिशों को वहां की राजनीति में हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित किया।

ii. कंपनी और नवाब के बीच संघर्ष:- नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच तनाव तब बढ़ गया जब कंपनी ने अपने व्यापारिक केंद्रों को किलेबंद करना शुरू किया और बंगाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगी। नवाब ने इसे अपने अधिकारों का उल्लंघन माना और कलकत्ता पर हमला कर दिया, जिसे ‘काले पानी की घटना’ (Black Hole of Calcutta) के रूप में जाना जाता है। इस घटना में कुछ ब्रिटिश अधिकारियों की मौत हो गई, जिससे ब्रिटिशों में रोष फैल गया।

iii. लड़ाई की शुरुआत:- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में एक सैन्य अभियान की योजना बनाई, जिसका उद्देश्य नवाब सिराजुद्दौला को हटाना और बंगाल पर नियंत्रण स्थापित करना था। 23 जून 1757 को, प्लासी नामक स्थान पर सिराजुद्दौला की सेना और रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना के बीच निर्णायक लड़ाई लड़ी गई।

iv. विश्वासघात और ब्रिटिश जीत:- प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर ने ब्रिटिशों के साथ गुप्त संधि कर ली थी। मीर जाफर ने अपनी सेना को निष्क्रिय रखा और सिराजुद्दौला को धोखा दिया। इस विश्वासघात के कारण सिराजुद्दौला की सेना बिखर गई और ब्रिटिश सेना ने आसानी से विजय प्राप्त कर ली। सिराजुद्दौला भाग गए, लेकिन उन्हें बाद में पकड़कर मार दिया गया।

v. बंगाल पर नियंत्रण और मीर जाफर की नियुक्ति:- प्लासी की लड़ाई के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब नियुक्त किया। मीर जाफर को ब्रिटिशों का कठपुतली बना दिया गया और कंपनी ने बंगाल की समृद्धि और संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त किया। ब्रिटिशों ने बंगाल के राजस्व और संसाधनों का व्यापक रूप से दोहन किया, जिससे कंपनी की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई और उनकी सैन्य शक्ति में वृद्धि हुई।

vi. लड़ाई का महत्व और प्रभाव:- प्लासी की लड़ाई भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ थी। इस लड़ाई ने न केवल बंगाल पर ब्रिटिश नियंत्रण की स्थापना की, बल्कि पूरे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखी। इस विजय के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे भारत के अन्य हिस्सों में भी अपने प्रभुत्व को बढ़ाना शुरू किया।

vii. बंगाल की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:- प्लासी की लड़ाई के बाद, ब्रिटिशों ने बंगाल की अर्थव्यवस्था पर व्यापक नियंत्रण स्थापित किया। उन्होंने कृषि, व्यापार, और उद्योगों का भारी दोहन किया, जिससे बंगाल की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई। कंपनी के राजस्व संग्रह की दमनकारी नीतियों के कारण बंगाल में गरीबी और अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई।

viii. ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना:- प्लासी की लड़ाई की सफलता ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में अपने राजनीतिक और सैन्य प्रभाव को और अधिक विस्तार देने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद कंपनी ने भारत के अन्य हिस्सों में भी अपनी शक्ति का विस्तार किया और भारतीय राज्यों पर नियंत्रण स्थापित किया।

3. कंपनी का शासन और विस्तार (1757-1857):-

    • प्लासी की लड़ाई के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे पूरे भारत में अपना प्रभाव बढ़ाया।
    • कंपनी ने विभिन्न युद्धों और संधियों के माध्यम से मराठा साम्राज्य, मैसूर, अवध, और सिख साम्राज्य जैसे प्रमुख भारतीय राज्यों पर नियंत्रण स्थापित किया।
    • कंपनी ने अपने सैन्य और राजनीतिक प्रभाव के माध्यम से भारतीय राज्यों को अधीन कर लिया।

4. सत्ता का केंद्रीकरण और प्रशासनिक सुधार:-

    • कंपनी ने भारत में अपने शासन को मजबूत करने के लिए कई प्रशासनिक सुधार किए।
    • 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट और 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट कंपनी के प्रशासन को अधिक संगठित और केंद्रित बनाने के उद्देश्य से लाए गए थे।
    • कंपनी ने भारत में एक प्रशासनिक ढांचा तैयार किया, जिसमें गवर्नर-जनरल और अन्य प्रशासनिक अधिकारी शामिल थे।

5. 1857 का विद्रोह और ब्रिटिश ताज का नियंत्रण:-

    • 1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ एक व्यापक विद्रोह था।
    • हालांकि यह विद्रोह असफल रहा, लेकिन इसने ब्रिटिश शासन की कमजोरियों को उजागर किया।
    • 1858 में, ब्रिटिश ताज ने कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और भारत एक औपनिवेशिक राज्य बन गया।

6. ब्रिटिश राज का युग (1858-1947):-

  • ब्रिटिश राज का युग (1858-1947) भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और परिवर्तनशील दौर था, जिसमें भारत पर ब्रिटिश साम्राज्य का प्रत्यक्ष शासन स्थापित हुआ। 1857 के विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया गया, और भारत को सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया गया। इस युग में भारतीय समाज, राजनीति, और अर्थव्यवस्था में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जो स्वतंत्रता के संघर्ष और भारत के भविष्य के निर्माण में निर्णायक साबित हुए।

i. ब्रिटिश क्राउन का नियंत्रण (1858):- 1857 के विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारों को समाप्त कर दिया और भारत को सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया गया। 1858 में, ब्रिटिश संसद ने “गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट” पारित किया, जिसके तहत भारत में ब्रिटिश सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हुआ। एक वायसराय को भारत का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया गया, जो ब्रिटिश क्राउन का प्रतिनिधि था।

ii. प्रशासनिक और कानूनी सुधार:- ब्रिटिश राज के दौरान, भारतीय प्रशासनिक ढांचे में कई सुधार किए गए। ब्रिटिश अधिकारियों ने भारतीय समाज में कानून और व्यवस्था स्थापित करने के लिए नए कानून और नीतियां बनाई। “भारतीय दंड संहिता” (Indian Penal Code) और “सिविल प्रक्रिया संहिता” (Civil Procedure Code) जैसे कानून बनाए गए। इसके अलावा, न्यायपालिका को मजबूत किया गया और विभिन्न उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई।

iii. रेलवे और संचार का विकास:- ब्रिटिश राज के दौरान, भारत में बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से हुआ। रेलवे नेटवर्क का विस्तार किया गया, जिससे भारत के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने में मदद मिली। यह न केवल यातायात के लिए बल्कि व्यापार और वाणिज्य के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हुआ। इसके साथ ही, डाक और तार प्रणाली का विकास किया गया, जिससे संचार तंत्र मजबूत हुआ।

iv. अर्थव्यवस्था और कृषि का ब्रिटिश नियंत्रण:- ब्रिटिश राज के दौरान, भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश व्यापारियों और उद्योगपतियों का नियंत्रण बढ़ गया। कृषि क्षेत्र में भी ब्रिटिश नीतियों का व्यापक प्रभाव पड़ा। जमींदारी प्रथा और रैयतवाड़ी प्रणाली के तहत किसानों से भारी कर वसूला गया, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय कृषि उत्पादों का उपयोग ब्रिटेन के उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में किया, जिससे भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

v. शिक्षा और समाज सुधार:- ब्रिटिश राज के दौरान, आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई। अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाने लगी, और पश्चिमी शिक्षा के सिद्धांतों को अपनाया गया। लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति के तहत अंग्रेजी शिक्षा को प्राथमिकता दी गई। इसके अलावा, समाज सुधारकों जैसे राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, और ज्योतिबा फुले ने समाज सुधार आंदोलनों की शुरुआत की, जिसने भारतीय समाज में सुधार और जागरूकता को बढ़ावा दिया।

7. स्वतंत्रता संग्राम और ब्रिटिश शासन का अंत:-

    • स्वतंत्रता संग्राम और ब्रिटिश शासन का अंत भारतीय इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें भारतीय जनता ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए कई वर्षों तक संघर्ष किया। यह संघर्ष विभिन्न आंदोलनों, विद्रोहों, और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से चला, जिसने अंततः ब्रिटिश शासन के अंत और भारत की स्वतंत्रता की नींव रखी।

i. 1857 का विद्रोह: स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 1857 का विद्रोह, जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ भारतीय सैनिकों, किसानों, जमींदारों, और आम जनता का एक व्यापक विद्रोह था। यह विद्रोह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की दमनकारी नीतियों, भारतीय सैनिकों के साथ भेदभाव, और धार्मिक-सांस्कृतिक अपमान के कारण भड़का। हालाँकि यह विद्रोह असफल रहा, लेकिन इसने भारतीय जनता के दिलों में स्वतंत्रता की भावना को प्रज्वलित किया और भविष्य के आंदोलनों की नींव रखी।

ii. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन (1885):- 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना हुई, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता की आवाज़ बनने वाली प्रमुख राजनीतिक पार्टी बनी। प्रारंभ में, कांग्रेस ने संविधान सुधारों और ब्रिटिश सरकार से राजनीतिक अधिकारों की मांग की, लेकिन समय के साथ यह पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने लगी।

iii. महात्मा गांधी और अहिंसक आंदोलन:- महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ मिला। गांधीजी ने सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिनमें 1919 का असहयोग आंदोलन, 1930 का सविनय अवज्ञा आंदोलन, और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन शामिल थे। इन आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला दिया और भारतीय जनता को स्वतंत्रता संग्राम के लिए एकजुट किया।

iv. असहयोग आंदोलन (1920-1922):- असहयोग आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा 1920 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ असहयोग करना और भारतीय जनता को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित करना था। इस आंदोलन में लाखों लोगों ने भाग लिया और ब्रिटिश शासन को चुनौती दी। हालांकि यह आंदोलन 1922 में चौराचौरी की घटना के बाद समाप्त हो गया, लेकिन इसने स्वतंत्रता की मांग को व्यापक समर्थन दिलाया।

v. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934):- 1930 में महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के रूप में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने डांडी मार्च के माध्यम से ब्रिटिश नमक कानून का उल्लंघन किया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ व्यापक असंतोष को जन्म दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और भी सशक्त बनाया।

vi. भारत छोड़ो आंदोलन (1942):-द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, 1942 में महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार से तुरंत भारत छोड़ने की मांग की। इस आंदोलन ने देशभर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ एक जबरदस्त जनांदोलन को जन्म दिया। ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए कड़े कदम उठाए, लेकिन इससे स्वतंत्रता की मांग और भी तीव्र हो गई।

vii. द्वितीय विश्व युद्ध और ब्रिटिश कमजोरी:-द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो गई और वह भारत पर अपना नियंत्रण बनाए रखने में सक्षम नहीं रहा। युद्ध के बाद, ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि अब भारत पर शासन करना असंभव है और उसे स्वतंत्रता देने का निर्णय लिया गया।

viii. भारत की स्वतंत्रता और विभाजन (1947):- 15 अगस्त 1947 को भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की। हालांकि, यह स्वतंत्रता भारत के विभाजन के साथ आई, जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग राष्ट्र बने। विभाजन के समय भारी सांप्रदायिक हिंसा हुई और लाखों लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े।

ix. ब्रिटिश शासन का अंत:- 1947 में भारत की स्वतंत्रता के साथ ही ब्रिटिश शासन का अंत हो गया। ब्रिटिश साम्राज्य, जो लगभग दो शताब्दियों तक भारत पर शासन करता रहा, अंततः समाप्त हो गया और भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र बन गया।

x. स्वतंत्रता संग्राम की धरोहर:- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम न केवल ब्रिटिश शासन से मुक्ति का संघर्ष था, बल्कि यह भारतीय जनता की एकता, साहस, और स्वतंत्रता की आकांक्षा का प्रतीक भी था। इस संघर्ष ने भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरने का अवसर दिया और स्वतंत्रता के बाद के भारत को नए सिरे से राष्ट्र निर्माण की दिशा में आगे बढ़ाया।

भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना ने देश के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक ढांचे को गहराई से प्रभावित किया। इसका प्रभाव स्वतंत्रता के बाद के भारत में भी देखा जा सकता है, जहां औपनिवेशिक काल की नीतियों और संरचनाओं ने देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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