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सामाजिक और आर्थिक जीवन – Social and Economic life

गुप्त कालीन सामाजिक व्यवस्था:

    • गुप्त काल में पहले से चली आ रही वर्ण व्यवस्था ही थी ,सभी वर्ण के कार्यों का विभाजन था,जातियाँ इतनी नही थीं जैसे आज है परंतु आर्थिक व्यवस्था के उस समय बदलने से सामाजिक व्यवस्था में भी कुछ परिवर्तन देखने को मिलता है , जैसे अभी तक ब्राम्हण सिर्फ,यज्ञ,अध्यापन,भिक्षा लेना,भिक्षा देना,कार्य कर सकते थे,परंतु अब स्मृतिकारों ने उन्हें संकटकाल में कोई दूसरा व्यवसाय अपनाने की भी अनुमति दे दी थी।
    • बृहस्पति नामक स्मृतिकार ने कहा है कि संकटकाल में में ब्राम्हण शूद्र द्वारा भी अन्न या भोजन ग्रहण कर सकता था।
    • यानि इस समय तक ब्राम्हण की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई थी,यज्ञ का विधान कम हुआ था।
    • गुप्त काल में भूमिदान की प्रथा फिर से शुरू हुई, जिससे उनको दान में भूमि मिली,इस समय कुछ ब्राम्हण ने अपने पेशे शिक्षण,यज्ञ के अलावा दूसरे पेशे को भी अपना लिया था, वकाटक और कदम्ब वंश जैसे राजवंश जो ब्राम्हण कुल से थे और शक्तिशाली राजवंश थे।
    • गुप्त सम्भवता गैर क्षत्रिय थे इसलिए गुप्त शासकों को स्वयं को सामाजिक ढाँचे में ऊपर उठने के लिए,ब्राम्हणवादी व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कदम उठाए गए।
    • इस व्यवस्था में कुछ बदलाव भी हुए अब यज्ञ की जगह भक्ति को गुप्त राजाओं ने प्राथमिकता दी,अवतारवाद की संकल्पना के साथ मन्दिरों में पहली बार मूर्तिपूजा के साथ देवताओं के उपासना का सिद्धांत प्रचलन में आया अब आर्य देवताओं के साथ गैर आर्य देवताओं के पूजा जैसे सर्प पूजा,मातृ देवी की पूजा की भी शुरुआत हुई।
    • क्षत्रियों का मुख्य कार्य युद्ध कार्य में,सैनिक वृत्ति से जीवनयापन था ,परंतु इस समय सामंतीय व्यवस्था के कारण सीधे राजा के अधीन संगठित सैन्य बल नही था,इसके कारण क्षत्रियों ने भी ब्राम्हणों और वैश्यों के व्यवसाय अपना लिया था,कुछ वैश्य की तरह कृषि कार्य भी करते थे,
    • गुप्तोत्तर काल में क्षत्रिय वर्ग में भी दो भाग थे एक सैनिक वृत्ति अपनाने वाला और एक साधारण क्षत्रिय जो व्यापार या कृषि कार्य में संलग्न दिखता है।गुप्तकाल के राजा स्कन्दगुप्त के समय का इन्दौर से मिले ताम्रपत्र से ये जानकारी मिलती है कि कभी कभी क्षत्रिय वैश्य का भी काम अपना लेते थे ।
    • सामंतीय व्यवस्था उत्पन्न हो जाने के कारण व्यापार व्यवसाय में ह्रास हुआ,जिससे कुछ वैश्य ने अपने मुख्य पेशा कृषि और व्यवसाय को त्यागकर क्षत्रियों और शूद्रों का पेशा अपना लिया था। इस प्रकार वैश्यों की सामाजिक स्थिति में तुलनात्मक रूप से गिरावट आरंभ हो गई।
    • गुप्त काल में शूद्रों की स्थिति थोड़ी अच्छी हुई थी,शूद्र भी कृषि कार्य करने लगे थे,कुछ वर्ण संकर विवाह करने से नई जातियाँ उत्पन्न हुई,जैसे ब्राम्हण पुरुष और वैश्य स्त्री के विवाह से उत्पन्न जाति अम्बष्ठ थी,इसी तरह अन्य अन्तरवर्ण विवाह से संकर जातियाँ बनी,गुप्तोत्तर काल में आप देखेंगे की सैकड़ों वर्णसंकर जातियों का उद्भव हो चुका था,इसी तरह भूमि अनुदान की शुरुआत होने से उनके लेखा जोखा संभालने वाले वर्ग ने ख़ुद की नई जाति कायस्थ बना ली।
    • इस काल में शूद्र वर्ण से भी इतर अस्पृश्य जातियाँ बन गई ,जैसे फाहियान नामक विदेशी यात्री ने चांडाल नामक एक जाति का वर्णन किया है जो अस्पृश्य थी और ये बस्तियों से बहार निकृष्ट कार्य जैसे शव सबंधी,मृत व्यक्तियों के विसर्जन जैसे कार्य करती थी,सम्भवता ये शूद्र पुरुष और ब्राम्हण स्त्री के संपर्क से उत्पन्न जाति थी।

दास प्रथा:- इस काल में दास प्रथा थी नारद स्मृति में 15 प्रकार के दास बताये गए हैं ,अभी तक दासों को सिर्फ घर के कार्यों में ही रखा जाता था ,परंतु अब जब से भूमि अनुदान शुरु हो गए थे दास की स्थिति भी ख़राब हो गई थी और वर्ण व्यवस्था कमजोर पड़ने से भी दास की स्थिति में कमी आई थी।

स्त्रियों की दशा:-

    • गुप्त काल में स्त्रियों की दशा में स्त्रियों की दशा में गिरावट आई थी,स्त्रियां ज्यादातर चाहरदिवारी में ही कैद थी,उन्हें जन्म से मृत्यु तक पुरुष वर्ग के संरक्षण में रहना पड़ता था
    • कुछ उच्च वर्ग की स्त्रियों को कलाकार,शिक्षक,प्रशासन में भाग लेते हुए पाते है जैसे अभिज्ञानशाकुन्तलम् में अनसूया को इतिहास का ज्ञाता बताया गया है,
    • मालतीमाधव में मालती को चित्रकला में प्रवीण बताया गया है,
    • प्रभावती गुप्ता ने 20 वर्ष तक वकाटक राज्य में अपने पुत्र की संरक्षिका के रूप में कार्य किया, ध्रुव स्वामिनी जैसी योग्य महिलाएं थीं इस काल मे थीं,
    • इसके अतिरिक्त इस काल मे स्मृतिकार याज्ञवल्क्य भी थे उन्होंने महिलाओं को संम्पति में अधिकार भी प्रदान किये हैं ,फिर भी महिलाओं की सामाजिक दशा में गिरावट आई क्योंकि देवदासी प्रथा,पर्दा प्रथा और सती प्रथा के प्रारंभिक साक्ष्य गुप्त काल मे मिले हैं।
    • इस काल में बाल विवाह और बहु विवाह भी प्रचलन में आ रही थी ,एरण अभिलेख 510 ईस्वी के लेख से गोपराज सेनापति के सती होने के पहले प्रमाणिक जानकारी मिलती है।

गणिकाएं और वेश्याएं :-

    • इस समय गणिकाओं और देवदासी का भी एक वर्ग मिलता है कामसूत्र और मुद्राराक्षस में गणिकाओं वेश्याओं का वर्णन है ,उज्जैनी के महा काल मन्दिर में भी देवदासियों का वर्णन मिलता है ।

स्त्री का संपत्ति संबधी अधिकार :-

    • इस काल में स्त्रियों को सम्पति में अधिकार का वर्णन है ,याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति और बृहस्पति स्मृतियों में पुत्री और पत्नी को सम्पत्ति में उत्तराधिकारी माना गया है।

विदेशी जाति आत्मसाती करण-

    • गुप्तकाल में एक नई विशेषता हिन्दू धर्म में आत्मसात की प्रवृति भी दिखती है इस काल के लड़ाकू जातियाँ बाहरी आक्रमण कारियों को क्षत्रिय जाति में मिलाया गया,इसी तरह कुछ जंगली जातियों को भी शूद्र वर्ग में सम्मिलित किया गया दिखाई देता है।
    • इस काल में उच्च वर्ग का जीवन तो भोग विलास का था ,परंतु जनसाधारण उच्च नैतिक आदर्श ,आत्मत्याग ,आडम्बर विहीन जीवन व्यतीत करता था।

गुप्तयुग में आर्थिक व्यवस्था:-

    • गुप्त काल में आर्थिक व्यवस्था कृषि पर आधारित थी ,कृषि कार्य में किसान,विभिन्न अनाज दलहन,तिलहन,फल ,सब्जियों की खेती, कपास की खेती,मसाले की खेती करते थे।
    • अमरकोश में भूमि के पैदावार और विशेषता के हिसाब से 12 प्रकार की भूमि बताई गई है।
    • राजा के पास समस्त जमीन का लेखा जोखा होता था,किसान राज्य सरकार की अनुमति से ही बेचीं खरीदी जा सकती थी,भूमि अनुदान बढ़ने से किसानो के पास टुकड़ों में जमीन आ गई थी ज़्यादातर छोटे किसान ही थे, सिंचाई के लिए किसान ज़्यादातर वर्षा का इंतजार करते थे कृत्रिम सिंचाई के कम ही उपाय किये गए थे।
    • कृषक कृषि कार्यों के साथ पशुपालन से भी धन अर्जित करते थे। जंगल में राजा का अधिकार था,जंगल से विभिन्न औसधियों ,जड़ी बूटियों,शहद,हाँथी दांत,कीमती पशु चर्म राजा को प्राप्त होता था।

गुप्तकाल में विभिन्न व्यवसाय:-

    • गुप्त काल में मिट्टी के बर्तन का व्यवसाय जिसमे मृणमूर्तियां बनतीं थी,
    • पत्थर की मूर्ति निर्माण का व्यवसाय भी विकसित था,बुनने सिलने का व्यवसाय विकसित था,इसी तरह लकड़ी का व्यवसाय,इत्र का व्यवसाय, मालियों के फूल बनाने का व्यवसाय,वस्त्र धुलने का व्यवसाय,वस्त्र रंगने वाले रंगसाज के व्यवसाय विकसित थे,
    • सोना चाँदी, तांबा बर्तन का उद्योग विकसित था,हम उस काल के धातु निष्कर्षण का उत्कृष्ट नमूना गुप्तकालीन लौह स्तम्भ में देखतें है जो इतने वर्ष के बाद भी दिल्ली में मेहरौली के लौह स्तम्भ के रूप में देख सकतें हैं, ये सभी व्यवसाय अपना व्यापार चलाने के लिए श्रेणी में बंटे थे
    • हर व्यवसाय की श्रेणी,निगम था जो अपने संगठन के लिए नियम बनाते थे ये श्रेणी धर्म कहलाता था उस व्यवसाय से जुड़े सभी सदस्यों को उन नियमों का पालन करते थे,
    • ये श्रेणी अपनी मुहर और मुद्रा भी चलाते थे,कई श्रेणियों के मन्दिर में धन दान करने के विवरण विभिन्न ताम्रपत्रों और अभिलेखों से मिलता है जैसे मन्दसौर ताम्रपत्र अभिलेख से रेशम बुनकरों की एक श्रेणी द्वारा भव्य सूर्य मन्दिर बनवाने का उल्लेख मिलता है ।
    • इस काल में व्यापार का ह्रास देखने को मिलता है,विभिन्न पत्तन से विदेशी व्यापार जो कुषाण के समय भरपूर होता था अब कमजोर पड़ चुका था,यद्यपि चीन और श्रीलंका से और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों,से व्यापार,ताम्रलिप्त नामक बन्दरगाह से होता था।
    • गुप्तकाल में व्यापार वाणिज्य में ह्रास हुआ था जिससे देश इस समय किसानों,शिल्पकारों की स्थिति में गिरावट आई थी
    • इस काल में अनेक व्यापारिक नगरों का ह्रास हुआ फाहियान ने अनेक नगर जैसे पाटलिपुत्र,मथुरा,तक्षशिला को उजड़ी हुई अवस्था में पाया,फाहियान ने इस समय के लेनदेन का माध्यम कौड़ियों को बताया है,इस काल में भूमिदान देने की व्यवस्था के कारण ,सामंतवाद के कारण कृषि उत्पादन में ह्रास हुआ,कृषि में बंधुआ मजदूर बढ़े।

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