मिट्टी शिल्प कला मध्य प्रदेश के साथ-साथ भारत के अन्य राज्यों में भी व्यापक रूप से की जाती है। इसके अंतर्गत कच्ची मिट्टी की सहायता से अनेक प्रकार के उत्पाद जैसे बर्तन, खिलौने, मूर्तियां, सजावट की वस्तुएं आदि का निर्माण किया जाता है। माना जाता है कि मिट्टी शिल्प कला का आरंभ आदिकाल से हुआ था। मिट्टी शिल्प कलाओं का निर्माण मध्य प्रदेश के झाबुआ, मंडला एवं बैतूल जैसे क्षेत्रों में सर्वाधिक मात्रा में किया जाता है।
मिट्टी शिल्प के प्रकार
- टेराकोटा: यह सबसे सामान्य और पारंपरिक रूप है। इसमें बिना चमकदार सतह के, प्राकृतिक मिट्टी से बने शिल्प होते हैं। इन्हें सामान्यतः फूलदान, मूर्तियाँ, और सजावटी वस्तुओं के रूप में देखा जा सकता है।
- सिरेमिक: यह मिट्टी को उच्च तापमान पर बेक कर बनाई जाती है। इसमें गिलास (glaze) की परत चढ़ाकर चमकदार और रंगीन बनाया जाता है। इसका उपयोग बर्तन, टाइलें, और सजावटी वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है।
- पॉर्सलीन: यह उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी होती है जिसे बहुत उच्च तापमान पर बेक किया जाता है। यह बहुत ही चिकनी और चमकदार होती है। इसका उपयोग अक्सर डाइनिंग सेट और डेकोरेटिव आर्ट्स में होता है।
मिट्टी शिल्प के निर्माण की प्रक्रिया
- मिट्टी का चयन: सबसे पहले उचित प्रकार की मिट्टी का चयन किया जाता है। मिट्टी को शुद्ध और सुगठित किया जाता है ताकि उसमें से सभी अशुद्धियाँ और कण निकाल दिए जाएं।
- डिजाइन और मॉडलिंग: चुनी हुई मिट्टी को गूंथकर विभिन्न आकार और डिजाइन में ढाला जाता है। इसे हाथों से या चाक (potter’s wheel) का उपयोग करके किया जा सकता है।
- सुखाना: तैयार वस्तुओं को धीमी गति से सुखाया जाता है ताकि उनमें कोई दरार न आए।
- बेकिंग: सुखी हुई वस्तुओं को भट्टी (kiln) में उच्च तापमान पर बेक किया जाता है ताकि वे कठोर और मजबूत हो जाएं।
- गिलासिंग (Glazing): बेक की हुई वस्तुओं पर रंगीन या पारदर्शी गिलास की परत चढ़ाई जाती है और फिर से भट्टी में बेक किया जाता है ताकि उन्हें चमकदार और आकर्षक बनाया जा सके।
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