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मध्य प्रदेश के प्रमुख त्यौहार

मध्य प्रदेश के प्रमुख त्यौहार

प्राचीन काल से ही मध्य प्रदेश की संस्कृति एवं सभ्यता के विकास में पर्व या त्योहारों का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। माना जाता है कि मध्य प्रदेश में प्रतिवर्ष कई प्रकार के सामाजिक एवं धार्मिक त्योहारों का आयोजन किया जाता है।
मध्य प्रदेश में विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाये जाते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:-

1. भगोरिया हाट महोत्सव (Bhagoria Haat Festival)

भगोरिया हाट महोत्सव मार्च के माह में भील जनजाति के द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव माना जाता है।

2. खजुराहो उत्सव (Khajuraho Festival)

खजुराहो मध्य प्रदेश के सबसे लोकप्रिय उत्सवों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि यह उत्सव लगभग सात दिनों तक चलता है जिसमें भरतनाट्यम, कत्थक, कुचिपुड़ी, मणिपुरी, कथकली, आदि जैसी कई कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। खजुराहो महोत्सव का आयोजन मुख्य रूप से चित्रगुप्त एवं विश्वनाथ मंदिर के सम्मुख खुले मैदान में किया जाता है। इस मैदान में विभिन्न कलाकार अपने कलाओं के माध्यम से दर्शकों को अपनी संस्कृति एवं सभ्यता का परिचय देते हैं। इस उत्सव के दौरान विश्वनाथ मंदिर को सजाया जाता है जो पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र होता है। भारतीय प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस दिन विश्वनाथ मंदिर के रचनाकारों को श्रद्धांजलि भी अर्पित की जाती है।

3.अखिल भारतीय कालिदास समारोह (All India Kalidas Festival)

अखिल भारतीय कालिदास समारोह का आयोजन मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के उज्जैन नामक क्षेत्र में किया जाता है। यह समारोह भारत के महान कवि कालिदास के सम्मान में आयोजित किया जाता है जिसमें देश के बड़े-बड़े साहित्यकार भाग लेते हैं। यह आयोजन जनवरी के माह में आयोजित किया जाता है जो लगभग सात दिनों तक चलता है। अखिल भारतीय कालिदास समारोह में भारत के साथ-साथ विश्व भर के प्रसिद्ध लेखक एवं कवि कहानी पढ़ने, कविता पाठ करने एवं सांस्कृतिक प्रदर्शन करने हेतु एकत्रित होते हैं। इसके अलावा इस दिन कई प्रकार के सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं सामाजिक नाटकों का भी मंच तैयार किया जाता है जहां स्थानीय लोगों के अलावा देश-विदेश के लोकप्रिय लेखक एवं कवि भाग लेते हैं।

अखिल भारतीय कालिदास उत्सव का आयोजन स्थल : उज्जैन
उत्सव आयोजन का समय : जनवरी
कालिदास उत्सव मानाने की अवधि : 7 दिन
समाँरोह का विशेष आकर्षण : कविता पाठ और कहानी पढ़ना

4. मालवा उत्सव (Malwa Festival)

मालवा उत्सव मध्य प्रदेश की सबसे बड़े और सबसे भव्य उत्सवो में से एक है। जिसमे नृत्य और संगीत प्रदर्शन, त्योहार का सबसे अभिन्न हिस्सा हैं। कला, संगीत, नृत्य, नाटक और संस्कृति के इस शानदार उत्सव का हिस्सा बनने के लिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों से कलाकार आते हैं। यह भी कह सकते हैं की यह त्योहार संस्कृति और नृत्य का भंडार है। त्यौहार में, विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के समृद्ध समामेलन को एक शानदार भव्य रूप में देखा जा सकता है। मालवा उत्सव में सांस्कृतिक प्रदर्शन के अलावा उच्च-कलाकृतियों की शिल्पकारी में कुशल कारीगर की हस्तकला की वस्तुओं को भी प्रदर्शित करते हैं। इस त्यौहार में न केवल मालवा बल्कि अन्य क्षेत्रों से भी व्यंजनों में लाया जाता है जहा लोग मालवा उत्सव में सांस्कृतिक मनोरंजन से लेकर शानदार खरीदारी और स्वादिस्ट पकवानों का आनंद उठा सकते हैं।

मालवा उत्सव का आयोजन समय : मई
मालवा उत्सव आयोजन का स्थान : इंदौर और उज्जैन
मालवा उत्सव मनाने की अवधि : उज्जैन में 2 दिन और इंदौर में 5 दिन
विशेष आकर्षण : नृत्य और संगीत समारोह

5. नागाजी का मेला Nagaji Fair

नागजी का मेला मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र का लोकप्रीय मेला है जिसका आयोजन महान संत नागजी के सम्मान में किया जाता है। जो लगभग 400 साल पहले मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान के माने जाते है। इस मेले में पहले के दिनों में बंदरों का व्यापार होता है। लेकिन अब यहाँ त्योहार के जश्न में सिर्फ घरेलू पशुओं का व्यापार किया जाता है। व्यापार के अलावा नागाजी मेले में कई सांस्कृतिक और पारंपरिक कार्यक्रम और आदिवासी समूह द्वारा संगीत की आकर्षक और मनोरंजक प्रस्तुति भी देखी जाती हैं।

नागजी का मेला का आयोजन कब किया जाता है : नवंबर या दिसंबर
नागजी का मेला का आयोजन स्थल : मुरैना
मेले की अवधि : 1 महिना या उससे अधिक
मेले का विशेष आकर्षण : आदिवासी नृत्य प्रदर्शन

6.चेतियागिरी विहार महोत्सव (Chetiyagiri Vihara Festival)

चेतियागिरी विहार महोत्सव- मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के सांची में स्थित चेतियागिरी विहार में हर साल नवंबर में मनाया जाता है।

7. तानसेन संगीत समारोह (Tansen Music Festival)

तानसेन संगीत समारोह को मध्य प्रदेश में एक उत्सव की तरह मनाया जाता है जिसका आयोजन भारत के प्रसिद्ध संगीतकार उस्ताद तानसेन को श्रद्धांजलि देने के लिए किया जाता है। कहा जाता है कि तानसेन अकबर के दरबार के प्रमुख संगीतकार थे जिन्हें अकबर ने अपने नौ रत्नों में भी शामिल किया था। इस समारोह में देशभर के प्रसिद्ध संगीतकार भाग लेते हैं जहां संगीत के साथ-साथ नृत्य का भी प्रदर्शन किया जाता है। तानसेन संगीत समारोह का आयोजन दिसंबर के माह में ग्वालियर के बेहट गांव किया जाता है जिसकी अवधि लगभग चार दिनों की होती है।

8.पचमढ़ी उत्सव (Pachmarhi Festival)

यह एक शिल्प मेला है, जो प्रतिवर्ष दिसंबर में आयोजित किया जाता है। मेले का उद्देश्य स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों द्वारा बनाई गई हस्तशिल्प वस्तुओं को प्रदर्शित करना है। इसके अलावा, उत्सव के दौरान सांस्कृतिक संध्याओं का भी आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम को मनोरंजक बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार एकत्रित होते हैं। अधिकांश कार्यक्रम देश की विविध लोक कलाओं का प्रदर्शन करते हैं। इसके अलावा, पापड़, मसाले, अचार, बांस शिल्प, साड़ी, पोशाक सामग्री, ऊनी कपड़े, कालीन इत्यादि जैसे विभिन्न उत्पादों को बेचने के लिए कई प्रकार के स्टॉल लगाए जाते हैं। आगंतुक स्थानीय व्यंजनों के साथ अपने स्वाद का आनंद भी ले सकते हैं। कुल मिलाकर, पचमढ़ी उत्सव का उद्देश्य भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना है।

उत्सव कहाँ मनाया जाता है: पचमढ़ी, मध्य प्रदेश
अवधि: छह दिन
विषय: भारतीय लोक कला और संस्कृति

9.ध्रुपद समारोह (Dhrupad Ceremony)

ध्रुपद समारोह का आयोजन प्रतिवर्ष मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में किया जाता है। इस समारोह में भारत के साथ-साथ विश्व भर के मशहूर गायक भाग लेते हैं। ध्रुपद समारोह में मुख्य रूप से ध्रुपद शैली को केंद्र बनाकर गीत गाए जाते हैं। यह एक प्रकार का भक्ति संगीत होता है जिसमें मुख्य रुप से ध्रुपद घराने से संबंधित व्यक्ति भाग लेते हैं। इसके अलावा ध्रुपद समारोह में विभिन्न प्रकार के गायकी के द्वारा दर्शकों को आकर्षित भी किया जाता है जिसमें मध्य प्रदेश की सभ्यता एवं संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता है।

10. लोकरंग समारोह (Lokrang Festival)

लोकरंग समारोह – लोकरंग एक सांस्कृतिक उत्सव है जिसमें सभी नर्तक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं

11. भाई दूज (Bhai Dooj)

भाई दूज वह पर्व है जिसे दिवाली के बाद मनाया जाता है। यह उत्सव मध्य प्रदेश के साथ-साथ भारत के अन्य प्रदेशों में भी मनाया जाता है। इस दिन सभी बहनें अपने भाइयों को हल्दी, चावल एवं कुमकुम से तिलक करते हैं। माना जाता है कि इस दिन सभी भाई अपने बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। पुरानी अवधारणाओं के अनुसार, जब यमराज अपनी बहन यमुना (नदी) के घर गए थे तब उनकी बहन ने इसी दिन अपने भाई से टीका करने के उपलक्ष्य में एक वचन की मांग की थी जिसमें उन्होंने यह मांगा था कि आज के दिन जो भी भाई अपनी बहन से टीका कराएगा तो इस के उपलक्ष्य में उसके उम्र का एक दिन बढ़ जाएगा। इसीलिए भारत में प्रतिवर्ष सभी बहनें इस पर्व को मनाती हैं।

12. गणगौर (Gangaur)

शिव और पार्वती की पूजा वाला यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में इसे गौर कहते हैं और कार्तिक में मनाते हैं । यह महिलाओं का पर्व है। मालवा में इसे दो बार मनाया जाता है। चैत (मार्च-अप्रैल) तथा भादो माह में स्त्रियां शिव-पार्वती की प्रतिमाएं बनाती हैं तथा पूजा करती हैं, पूजा के दौरान महिलाएं नृत्य करती हैं। बताशे बांटती हैं और प्रतिमाओं को जलाशय या नदी में विसर्जित करती हैं। विभिन्न भागों में इस पर्व से संबंधित अनेक कहानियाँ हैं।

13 . संजा व मामुलिया (Sanja and Mamuliya)

संजा व मामुलिया – संजा अश्विन माह में 16 दिन तक चलने वाला कुआंरी लड़कियों का उत्सव है।

14 .नीरजा (Neerja)

नौ दिन तक चलने वाला महिलाओं का यह उत्सव दशहरे के पूर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर स्त्रियाँ माँ दुर्गा की पूजा करती हैं। “मालवा” के कुछ क्षेत्रों में गरबा भी मनाया जाता है

15. घड़ल्या त्यौहार (Ghadalya festival)

नीरजा के नौ दिनों में लड़कियाँ घड़ल्या भी मानती हैं। समूह में लड़कियाँ, एक लड़की के सिर पर छिद्र युक्त घड़ा रखती है जिसमें दीपक जल रहा होता है। फिर दरवाज़े ,दरवाज़े जाती है और अनाज या पैसा एकत्र करती है। अविवाहित युवक भी इस तरह का एक उत्सव “छला” के रूप में मनाते हैं।

16.दशहरा (Dussehra)

दशहरा – यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है और पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

17. काकसार (Kaksar)

ककसार नृत्य: यह छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की मुड़िया और अबुझमाड़िया जनजातियों द्वारा किया जाने वाला एक लोकनृत्य है। यह नृत्य फसल और वर्षा के देवता “ककसाड़” की पूजा के बाद किया जाता है। नृत्य के दौरान संगीत और घुँघरू की आवाज़ वातावरण को रोमांचक बना देती है। माना जाता है कि इस नृत्य के माध्यम से युवक-युवतियों को अपने जीवनसाथी खोजने का अवसर मिलता है।

अबूझमाड़िया आदिवासियों का प्रमुख पर्व: ककसार अबूझमाड़िया आदिवासियों का एक महत्वपूर्ण त्योहार भी है। फसल उगने तक इनके लिए एकांत में मिलना वर्जित होता है। ककसार इस नियम को तोड़ने का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान लड़के-लड़कियां अलग-अलग घरों में नाचते-गाते रात बिताते हैं। माना जाता है कि कई अविवाहित जोड़ों को इसी पर्व के दौरान अपना जीवनसाथी मिल जाता है।

18. होली (Holi)

होली – होली एक प्रमुख भारतीय त्योहार है जिसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है।

19. गंगा दशमी (Ganga Dashami)

गंगा दशमी, जिसे गंगा दशहरा या गंगावतरण के नाम से भी जाना जाता है हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण की तिथि के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं।

गंगा दशमी के दिन भक्तगण गंगा नदी में स्नान करते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। गंगा स्नान को पवित्र और मोक्षदायक माना जाता है। इस दिन गंगा जल का उपयोग पूजा में विशेष रूप से किया जाता है। गंगा दशमी पर गंगा आरती का आयोजन भी होता है जिसमें लोग दीप जलाकर गंगा जी की आरती करते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से गंगा दशमी का महत्व अत्यंत अधिक है, क्योंकि गंगा को पवित्र और पापों को हरने वाली नदी माना जाता है। इस दिन गंगा नदी के तट पर विशेष मेले और भंडारों का आयोजन होता है, जिसमें लोग बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं।

20. हरेली (Hareli)

हरेली, जिसे हरेली अमावस्या भी कहा जाता है, छत्तीसगढ़ राज्य में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारतीय पंचांग के अनुसार सावन महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। हरेली का अर्थ ‘हरियाली’ से है, जो खेती और प्रकृति की हरियाली का प्रतीक है।

इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य कृषि और ग्रामीण जीवन को सम्मान देना है। किसान अपने खेती के उपकरणों को साफ करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। वे अपने बैलों और अन्य पशुओं को भी सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इसके साथ ही गांव में विभिन्न खेल और प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

हरेली का त्योहार खेती-बाड़ी और प्रकृति से जुड़े कई रीति-रिवाजों और परंपराओं का प्रतीक है, जिसमें लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और खुशी मनाते हैं। यह त्योहार ग्रामीण समुदायों के बीच एकता और सहयोग की भावना को भी प्रकट करता है।

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