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प्रशासनिक सम्बन्ध – Administrative Relations

भारतीय संघीय प्रणाली में, प्रशासनिक संबंध केंद्र सरकार (केंद्र) और राज्य सरकारों (राज्यों) के बीच शक्तियों, कार्यों और जिम्मेदारियों के वितरण और समन्वय को संदर्भित करते हैं। यह संबंध संविधान द्वारा निर्धारित ढांचे पर आधारित होता है, जिसमें तीन सूचियां शामिल हैं जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन करती हैं:

1.कार्यकारी शक्तियों का बंटवारा:- भारतीय लोकतंत्र में, कार्यकारी शक्तियों का बंटवारा संविधान द्वारा निर्धारित ढांचे पर आधारित होता है। यह शक्ति का विभाजन केंद्र सरकार (केंद्र) और राज्य सरकारों (राज्यों) के बीच किया जाता है।

(i)केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्तियां:

    • केंद्रीय सूची में शामिल विषयों पर: केंद्र सरकार इन विषयों पर नीतियां बनाने और कानून लागू करने के लिए कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करती है। उदाहरण: रक्षा, विदेश मामले, मुद्रा, वित्त, रेलवे, संचार आदि।
    • समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर: केंद्र सरकार और राज्य सरकारें दोनों इन विषयों पर कानून बना सकती हैं। हालांकि, यदि केंद्र और राज्य दोनों कानून बनाते हैं और उनमें विरोध होता है, तो केंद्र का कानून प्रभावी होगा। उदाहरण: शिक्षा, वन, अनुबंध, विवाह और तलाक आदि।
    • अवलिष्ट शक्तियां: जो शक्तियां संविधान की किसी भी सूची में स्पष्ट रूप से शामिल नहीं हैं, वे केंद्र सरकार के पास निहित हैं।

(ii)राज्य सरकारों की कार्यकारी शक्तियां:

    • राज्य सूची में शामिल विषयों पर: राज्य सरकारें इन विषयों पर नीतियां बनाने और कानून लागू करने के लिए कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करती हैं। उदाहरण: पुलिस, स्थानीय सरकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, व्यापार और वाणिज्य आदि।
    • समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर: राज्य सरकारें केंद्र सरकार के साथ मिलकर इन विषयों पर नीतियां बनाने और कानून लागू करने के लिए कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करती हैं।

(iii)कार्यकारी शक्तियों के बंटवारे के लाभ:

    • शक्ति का दुरुपयोग रोकता है: शक्तियों का विभाजन यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि किसी भी एक सरकार या व्यक्ति के पास बहुत अधिक शक्ति न हो, जिससे शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है।
    • जवाबदेही सुनिश्चित करता है: यह प्रत्येक सरकार को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह बनाता है, क्योंकि नागरिक यह जान सकते हैं कि कौन सी सरकार किस नीति या कार्रवाई के लिए जिम्मेदार है।
    • विविधता को बढ़ावा देता है: यह विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों की जरूरतों को पूरा करने के लिए नीति निर्माण में विविधता को बढ़ावा देता है।

(iv)कार्यकारी शक्तियों के बंटवारे की चुनौतियां:

    • समन्वय की कमी: केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय की कमी नीतिगत गतिरोध और शासन में देरी का कारण बन सकती है।
    • विवाद और टकराव: केंद्र और राज्यों के बीच अक्सर शक्तियों और संसाधनों के वितरण को लेकर विवाद और टकराव होते हैं।
    • कार्यान्वयन में कठिनाई: कुछ नीतियों को लागू करना मुश्किल हो सकता है, खासकर जब केंद्र और राज्यों के पास अलग-अलग प्राथमिकताएं या दृष्टिकोण हों।

2. राज्य एवं केंद्र के दायित्व:- भारतीय संविधान एक संघीय प्रणाली स्थापित करता है, जिसमें शक्तियां और दायित्व केंद्र सरकार (केंद्र) और राज्य सरकारों (राज्यों) के बीच वितरित किए जाते हैं।

केंद्र सरकार के दायित्व:

    • राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा: देश की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • विदेश नीति: अन्य देशों के साथ संबंध बनाए रखना और अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करना।
    • मुद्रा और वित्त: राष्ट्रीय मुद्रा (भारतीय रुपया) जारी करना और विनियमित करना, बैंकिंग प्रणाली की देखरेख करना, और वित्तीय नीति बनाना।
    • अर्थव्यवस्था: राष्ट्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और विनियमित करना, व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देना।
    • संचार: डाक और दूरसंचार सेवाओं का प्रबंधन करना।
    • रेलवे: राष्ट्रीय रेलवे नेटवर्क का संचालन और रखरखाव करना।
    • कानून और व्यवस्था: केंद्र शासित प्रदेशों में कानून और व्यवस्था बनाए रखना।
    • अंतरिक्ष अनुसंधान: अंतरिक्ष अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना।
    • परमाणु ऊर्जा: परमाणु ऊर्जा के विकास और उपयोग को विनियमित करना।

राज्य सरकारों के दायित्व:

    • कानून और व्यवस्था: राज्य में कानून और व्यवस्था बनाए रखना।
    • पुलिस: राज्य पुलिस बल का संचालन करना।
    • स्थानीय सरकार: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय सरकार का प्रबंधन करना।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य: राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंधन और संचालन करना।
    • शिक्षा: राज्य में शिक्षा प्रणाली का प्रबंधन और संचालन करना।
    • कृषि: कृषि विकास और किसानों के कल्याण को बढ़ावा देना।
    • सिंचाई: सिंचाई सुविधाओं का प्रबंधन और विकास करना।
    • बिजली: बिजली उत्पादन, वितरण और विनियमन।
    • आवास: राज्य में किफायती आवास उपलब्ध कराना।
    • सामाजिक कल्याण: गरीबों, वंचितों और पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए योजनाएं बनाना और लागू करना।

3.राज्यों को केंद्र के निर्देश:- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 256 से 263 केंद्र सरकार को राज्यों को निर्देश जारी करने का अधिकार देते हैं। यह शक्ति केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए सक्षम बनाती है कि राज्य अपने संवैधानिक दायित्वों का पालन करें और केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों और कानूनों को लागू करें।

केंद्र सरकार राज्यों को किन मामलों में निर्देश जारी कर सकती है:

    • कानून और व्यवस्था: यदि किसी राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है, तो केंद्र सरकार राज्य सरकार को कानून व्यवस्था बहाल करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दे सकती है।
    • राज्य सूची में शामिल विषय: यदि केंद्र सरकार यह मानती है कि कोई राज्य अपने संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है, तो वह उस विषय से संबंधित निर्देश जारी कर सकती है, भले ही वह राज्य सूची में शामिल हो।
    • समवर्ती सूची में शामिल विषय: केंद्र सरकार समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर नीतियां बना सकती है और राज्यों को उनका पालन करने का निर्देश दे सकती है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा: यदि राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है, तो केंद्र सरकार राज्यों को आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दे सकती है।

केंद्र सरकार राज्यों को निर्देश कैसे जारी करती है:

    • अनुच्छेद 256(1) के तहत: केंद्र सरकार सीधे राज्य सरकार को निर्देश जारी कर सकती है।
    • अनुच्छेद 256(2) के तहत: केंद्र सरकार किसी अधिकारी को किसी राज्य सरकार को निर्देश देने के लिए नियुक्त कर सकती है।
    • अनुच्छेद 257 के तहत: यदि कोई राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्देश का पालन करने में विफल रहती है, तो राष्ट्रपति उस राज्य में शासन लागू कर सकते हैं।

केंद्र सरकार के निर्देशों की समीक्षा:

    • न्यायिक समीक्षा: राज्य सरकारें केंद्र सरकार के निर्देशों को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे सकती हैं।
    • संसदीय समीक्षा: संसद केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए निर्देशों की समीक्षा कर सकती है और यदि आवश्यक हो तो उन्हें रद्द कर सकती है।

4.कार्यों का पारस्परिक प्रतिनिधित्व:- भारतीय संघीय प्रणाली में, कार्यों का पारस्परिक प्रतिनिधित्व (Mutual Representation of Functions) केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों और कार्यों के वितरण को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह एक ऐसा तंत्र है जिसके माध्यम से केंद्र और राज्य एक दूसरे के कार्यों में भाग लेते हैं और सहयोग करते हैं। इसका उद्देश्य शासन में प्रभावी समन्वय और तालमेल सुनिश्चित करना है।

कार्यों का पारस्परिक प्रतिनिधित्व के मुख्य रूप:

    1. प्रतिनिधि संस्थाएं:
      • राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC): यह केंद्र और राज्यों के बीच योजना और विकास के मामलों में तालमेल स्थापित करने के लिए एक शीर्ष स्तरीय संस्था है।
      • अंतर-राज्य परिषद (ICC): यह केंद्र और राज्यों के बीच विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श और सहयोग के लिए एक मंच प्रदान करता है।
    2. संयुक्त योजनाएं:
      • केंद्र प्रायोजित योजनाएं (CSS): केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित और राज्यों द्वारा लागू की जाने वाली योजनाएं।
      • केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं (CSS): केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित और लागू की जाने वाली योजनाएं।
    3. प्रतिनिधित्व:
      • केंद्र सरकार के अधिकारी: राज्यों में केंद्र सरकार की योजनाओं और नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करते हैं।
      • राज्य सरकार के अधिकारी: केंद्र सरकार के विभिन्न निकायों और समितियों में प्रतिनिधित्व करते हैं।
    4. सूचना साझाकरण:
      • ई-गवर्नेंस: केंद्र और राज्यों के बीच डेटा और सूचनाओं के आदान-प्रदान को सुगम बनाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग।
      • आधिकारिक बैठकें और कार्यशालाएं: अनुभवों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए नियमित बैठकें और कार्यशालाएं।

5.केंद्र व राज्य के बीच सहयोग:- संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय को सुरक्षित करने के लिए विभिन्न प्रावधान तय किए गए हैं। इसमें शामिल है:

संवैधानिक ढांचा:

    • अनुच्छेद 258: यह अनुच्छेद केंद्र और राज्यों को एक दूसरे के कार्यों में सहायता करने के लिए बाध्य करता है।
    • अनुच्छेद 280: यह अनुच्छेद राज्यों को केंद्र सरकार के साथ करों के वितरण पर बातचीत करने का अधिकार देता है।
    • अनुच्छेद 312: यह अनुच्छेद केंद्र सरकार को राज्यों में आपात स्थिति की घोषणा करने का अधिकार देता है, ताकि कानून और व्यवस्था बनाए रखी जा सके।

I. अनुच्छेद 261 यह बताता है कि “सार्वजनिक कानूनों, रिकॉर्ड और प्रत्येक राज्य तथा संघ की न्यायिक कार्यवाही के लिए पूर्ण विश्वास और पूरा श्रेय भारतीय भूभाग को दिया जाना चाहिए।”

II. अनुच्छेद 262 के अनुसार, ‘संसद, विधि द्वारा किसी भी अन्तार्रजीय नदी या नदी घाटी के पानी के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत पर निर्णय या फैसला सुना सकती है।”

III. अनुच्छेद 263 राज्यों के बीच विवादों पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रपति को जांच कराने के लिए एक अंतर-राज्य परिषद का गठन करने की शक्ति देता है। यह राष्ट्रपति को कुछ या सभी राज्यों या संघ अथवा एक से अधिक राज्यों के उन विषयों पर जांच या चर्चा कराने की भी अनुमति देता है जिन पर सभी का एक साझा हित होता है।

IV. अनुच्छेद 307 के अनुसार, संसद कानून के द्वारा व्यापार और वाणिज्य के अन्तार्रजीय स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए उचित समझे जाने वाले कानून द्वारा ऐसे प्राधिकारी नियुक्त कर सकता है।

संस्थागत तंत्र:

    • अंतर-राज्य परिषद (ICC): यह केंद्र और राज्यों के बीच विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श और सहयोग के लिए एक मंच प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC): यह केंद्र और राज्यों के बीच योजना और विकास के मामलों में तालमेल स्थापित करने के लिए एक शीर्ष स्तरीय संस्था है।
    • संयुक्त संसदीय समितियां: केंद्र और राज्य विधायिका के सदस्यों से बनी समितियां, जो विभिन्न मुद्दों पर विचार करती हैं और सिफारिशें करती हैं।

कार्यों का पारस्परिक प्रतिनिधित्व:

    • केंद्र प्रायोजित योजनाएं (सीएसएस): केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित और राज्यों द्वारा लागू की जाने वाली योजनाएं।
    • केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं (सीएसएस): केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित और लागू की जाने वाली योजनाएं।
    • केंद्र सरकार के अधिकारी: राज्यों में केंद्र सरकार की योजनाओं और नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करते हैं।
    • राज्य सरकार के अधिकारी: केंद्र सरकार के विभिन्न निकायों और समितियों में प्रतिनिधित्व करते हैं।

अन्य पहलू:

    • सूचना साझाकरण: ई-गवर्नेंस और डेटा साझाकरण पहलों के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर सूचना प्रवाह।
    • सहयोगात्मक संघवाद: विभिन्न मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के बीच बढ़ती सहयोगात्मक भावना।
    • विवाद समाधान: विवादों को सुलझाने के लिए न्यायिक और गैर-न्यायिक तंत्र।
    • कभी-कभी केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय की कमी हो सकती है, जिससे नीतिगत गतिरोध और कार्यान्वयन में देरी हो सकती है।
    • राजनीतिक मतभेद: राजनीतिक मतभेद केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को बाधित कर सकते हैं।
    • वित्तीय संसाधनों की कमी: राज्यों को केंद्र सरकार की योजनाओं को लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध नहीं हो सकते हैं।

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