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सहकारी समितियों का संवैधानिक प्रावधान – Constitutional Provision of Cooperative Societies

अनुच्छेद 19 के अनुसार सहकारी समितियों का गठन करना एक मूल अधिकार है और नीति निर्देशक तत्वों का अनुच्छेद 43(ब) सहकारी समितियों के बढावा देने की व्यवस्था करता है और कहता है कि राज्य सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन,स्वायत्त कार्यप्रणाली , लोकतान्त्रिक नियंत्रण और व्यावसायिक प्रबंधन को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा|

बोर्ड के सदस्यों एवं इसके पदाधिकारियों की संख्या एवं शर्तें: राज्य विधानमंडल द्वारा तय किए गई संख्या के अनुसार बोर्ड के निदेशक होंगे। लेकिन किसी सहकारी समिति के निदेशकों की अधिकतम संख्या 21 से ज्यादा नहीं होगी।

    • जिस सहकारी समिति में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लोग और महिला सदस्य होंगे वैसे प्रत्येक सहकारी समिति के बोर्ड में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए एक सीट और महिलाओं के लिए दो सीटों के आरक्षण का प्राबधान राज्य विधानमंडल करेगा।
    • बोर्ड के सदस्यों एवं पदाधिकारियों का कार्यकाल निर्वाचन की तिथि से 5 साल के लिए होगा ।
    • राज्य विधानमंडल बोर्ड के सदस्य के रूप में बैंकिंग, प्रबंधन, वित्त या किसी भी अन्य संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्ति के सहयोजन (co-ordination) का नियम बना सकता है। लेकिन ऐसे सह-योजित सदस्यों की संख्या 2 से अधिक नहीं होगी (21 निदेशकों के अतिरिक्त)। साथ ही सह-योजित सदस्यों को सहकारी समिति के किसी चुनाव में बोट देने या बोर्ड के पदाधिकारी के रूप में निवार्चित होने का अधिकार नहीं होगा।
    • सहकारी समिति के क्रियाशील निदेशक बोर्ड के भी सदस्य होंगे और ऐसे सदस्यों की गिनती निदेशकों की कुल संख्या (जो 21 हे) में नहीं होगी।

बोर्ड के सदस्यों का चुनाव:

    • यह सुनिश्चित करने के लिए कि बहिर्गामी बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के तुरंत बाद नव-निर्वाचित सदस्य पदभार ग्रहण कर लें, बोर्ड का चुनाव कार्यावधि पूरा होने के पहले कराया जाएगा।
    • मतदाता सूची बनाने के काम की देखभाल, निर्देशन एवं नियंत्रण तथा सहकारी समिति का चुनाव कराने का अधिकार विधानमंडल द्वारा तय किए गए निकाय को होगा।

बोर्ड का विघटन, एवं निलंबन तथा अंतरिम प्रबंधन: किसी भी बोर्ड को 6 माह से अधिक समय तक तक विघटित या निलंबित नहीं रखा जाएगा।

बोर्ड को निम्न स्थितियों में विघटित या निलंबित रखा जा सकता है।:

    1. लगातार काम पूरा नहीं करने पर, या
    2. काम करने में लापरवाही बरते जाने पर, या
    3. बोर्ड द्वारा सहकारी समिति या इसके सदस्यों के हित के खिलाफ कोई काम करने पर, या
    4. बोर्ड के गठन या कामकाज में गतिरोध की स्थिति बनने पर, या
    5. राज्य के कानून के अनुसार चुनाव कराने में निर्वाचन निकाय के विफल होने पर।
    • हालांकि किसी ऐसी सहकारी समिति के बोर्ड को विघटित या निलंबित नहीं किया जा सकता जहां सरकारी शेयर या कर्ज या वित्तीय सहायता या किसी तरह की सरकारी गारंटी नहीं है।
    • बोर्ड को विघटित किए जाने की स्थिति में ऐसी सहकारी समिति के कामकाज को देखने के लिए नियुक्त किए गए प्रशासक छह माह के अंदर चुनाव कराने की व्यवस्था करेंगे तथा निवार्चित बोर्ड को प्रबंधन सौंप देंगे।

सहकारी समितियों के खातों का अंकेक्षण:-

    • राज्य विधानमंडल सहकारी समितियों के खातों के अनुरक्षण तथा हर वित्तीय वर्ष में कम-से-कम एक बार खाते के अंकेक्षण का नियम बनाएगा। इसमें सहकारी समितियों के खातों के अंकेक्षण के लिए Auditors एवं audit की न्यूनतम योग्यता निधार्रित की जाएगी ।
    • प्रत्येक सहकारी समिति को सहकारी समिति की आम सभा द्वारा नियुक्त अंकक्षक या अंकेक्षण फर्म से अपने खातों का अंकेक्षण कराना होगा।
    • लेकिन ऐसे अंकक्षकों या अंकेक्षण फर्मो को नियुक्ति राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी स्वीकृत पैनल से करनी होगी।
    • प्रत्येक सहकारी समिति के खातों का अंकेक्षण वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के अंदर कराना होगा।
    • शीर्ष सहकारी समिति का अंकेक्षण रिपोर्ट राज्य विधानमंडल के पटल पर रखना होगा।

आमसभा की बैठक बुलानाः

    • राज्य विधानमंडल प्रत्येक सहकारी समिति की आमसभा की बैठक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के अंदर बुलाने का प्रावधान बना सकता है।

सूचना पाने का सदस्यों का अधिकारः

    • राज्य विधानमंडल सहकारी समिति के हर सदस्यों को सहकारी समिति के कागजातों, सूचनाओं एवं खाता उपलब्ध कराने का प्रावधान कर सकता है। यह सहकारी समिति क प्रबंधन में सदस्यों की भागीदारी का प्रावधान भी कर सकता है।
    • इसके अलावा यह सहकारी समिति के सदस्यों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण का प्रावधान कर सकता है।

रिर्टनः प्रत्येक सहकारी समिति को वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के अंदर सरकार द्वारा नामित अधिकारी के पास रिर्टन दाखिल करना होगा।

इसके साथ ही निम्नलिखित जानकारी देनी होगी:

    1. कार्यकलापों की वार्षिक रिपोर्ट,
    2. खाते का अंकेक्षण रिपोर्ट,
    3. बचा हुआ पैसा किस तरह खर्च करना हे इस संबंध में आम सभा का निर्णय
    4. सहकारी समिति की नियमावली में किए गए संशोधनों की सूची,
    5. आम सभा की बैठक की तिथि एवं चुनाव कराने की तिथि के बारे में घोषणा, तथा;
  1. राज्य के कानून” के प्रावधानों के तहत निबंधक द्वारा मांगी गई कोई और जानकारी।

अपराध एवं दंडः राज्य विधानमंडल सहकारी समितियों के अपराधों के लिए कानून बना सकता है और ऐसे अपराधों के लिए सजा तय कर सकता है।

ऐसे कानूनों में निम्नलिखित तरह की कारगुजारियों को अपराध माना जाएगा :

    1. सहकारी समिति द्वारा गलत रिर्टन दाखिल करना या गलत सूचना उपलब्ध कराना।
    2. किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर राज्य के कानून के तहत जारी किए गए किसी सम्मन, मांगी गई जानकारी या जारी किए गए आदेश की अवज्ञा करना।
    3. कोई भी नियोजक जो बगैर किसी पर्याप्त कारण के अपने कर्मचारियों से ली गई रकम को चौदह दिनों के अंदर सहकारी समिति में जमा नहीं करेगा।
    4. कोई भी अधिकारी जो सहकारी समिति के दस्तावेजों, कागजातों, लेखा, कागजातों, अभिलेखों, नकदी, गिरवी रखे गए सामानों को जानबूझकर अधिकृत अधिकारी को नहीं सौंपेगा।
    5. कोई भी व्यक्ति जो बोर्ड के सदस्यों या पदाधिकारियों के चुनाव के दौरान या चुनाव के बाद गलत तरीकों का इस्तेमाल करेगा।

बहुराज्यीय सहकारी समितियों में इन कानूनों का कार्यान्वयनः

    • इस खंड के प्रावधान बहुराज्यीय सहकारी समितियों में लागू होंगे।
    • यह कार्यान्वयन राज्य विधानमंडल, राज्य के कानून, या राज्य सरकार द्वारा क्रमशः संसद, केन्द्रीय कानून या केन्द्र सरकार के हवाले से किए गए बदलावों के अनुसार होगा।
    • केन्द्र शासित क्षेत्रों में कानूनों का कार्यान्वयनः इस खंड के कानून केन्द्र शासित क्षेत्रों में लागू होंगे, लेकिन राष्ट्रपति निर्देश दे सकते हैं कि उनके द्वारा निदेर्शित कानून का कोई खास प्रावधान या अंश वहां लागू नहीं होगा।
    • मौजूदा काननां का बना रहनाः 2011 के 97वें संविधान संशोधन के ठीक पहले राज्यों में लागू सहकारी समितियों से जुड़े कानून, जो इस खंड से मेल नहीं खाते हैं , संशोधन किए जाने या निरस्त किए जाने या लागू होने के बाद एक साल की अवधि बीत जाने में से जो सबसे कम होगा, तक लागू रहेंगे

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