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राज्य विधानमंडल की सदस्यता – Membership of State Legislature

अर्हताएं (Qualifications) विधानमंडल का सदस्य चुने जाने के लिए संविधान में उल्लिखित किसी व्यक्ति की अर्हताएं निम्नलिखित हैं:

विधान सभा

    • व्यक्ति को भारत का नागरिक होना आवश्यक है ,
    • वह 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
    • वह मानसिक रूप से ठीक व दीवालिया न हो।
    • उसको अपने ऊपर कोई भी आपराधिक मुकदमा न होने का प्रमाण पत्र भी देना होता है।
    • विधानसभा सदस्य बनने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य के निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता भी होना चाहिए।
    • लोकसभा अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में उप अध्यक्ष सदन में कार्य के लिए उत्तरदायी होता है।
    • उसे चुनाव आयोग द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी पड़ती है, जिसमें वह संकल्प करता है कि,
      • वह भारत के संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा रखेगा, तथा भारत की संप्रभुता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखेगा।

राज्य विधान परिषद

    • राज्य विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्यों को भारत का नागरिक होना चाहिए,
    • कम से कम 30 वर्ष का होना चाहिए,
    • मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए, दिवालिया नहीं होना चाहिए और राज्य का पंजीकृत मतदाता होना चाहिए।
    • कोई सदस्य एक ही समय में संसद सदस्य और राज्य विधान सभा का सदस्य नहीं हो सकता है।
    • राज्य के निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता भी होना चाहिए।
    • विधानपरिषद में निर्वाचित होने वाला व्यक्ति विधानसभा का निर्वाचक होने की अर्हता रखता हो और उसमें राज्यपाल द्वारा नामित होने के लिए संबंधित राज्य का निवासी होना चाहिए।
    • विधानपरिषद में राज्यपाल द्वारा 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है|

निर्हताएं (Disqualifications) संविधान के अनुसार, कोई व्यक्ति राज्य विधानपरिषद या विधानसभा के लिए चुने जाने और इसकी सदस्यता से निरह होगा:

    • यदि वह केंद्र या राज्य सरकार के (मंत्री या राज्य विधानमंडल से छूट प्राप्त कोई अन्य कार्यालय?) तहत किसी लाभ के पद पर है।
    • यदि वह विकृतिचित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विघमान है।
    • यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया हो।
    • यदि वह भारत का नागरिक न हो या उसने विदेश में कहीं नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली हो या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किए हुए है।
    • यदि संसद द्वारा निर्मित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन निरहित कर दिया जाता है।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) के तहत संसद ने कुछ अतिरिक्त निरर्हताएं निधारित की हैं, ये संसद के समान ही हैं । वे निम्नवत्‌ हैं:

    1. वह चुनाव में किसी प्रकार के भ्रष्ट आचरण अथवा चुनावी अपराध का दोषी नहीं पाया गया हो।
    2. उसे किसी ऐसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया हो जिसके लिए उसे दो या अधिक वर्षों की कैद की सजा मिली हो। लेकिन किसी व्यक्ति का किसी निरोधात्मक कानून के अंतर्गत निरुद्ध करना अयोग्यता नहीं मानी जाएगी।
    3. वह निर्धारित समय सीमा के अन्दर चुनावी खर्च संबंधित विवरण प्रस्तुत करने में विफल नहीं रहा हो।
    4. उसका किसी सरकारी ठेके, कार्य अथवा सेवाओं में कोई रुचि नहीं हो।
    5. वह किसी ऐसे निगम में लाभ के पद पर कार्यरत नहीं हो अथवा उसका निदेशक या प्रबंधकीय एजेन्ट नहीं हो, जिसमें सरकार की कम से कम 25% हिस्सेदारी हो।
    6. वह भ्रष्टाचार अथवा सरकार के प्रति विश्वासघात के कारण सरकारी सेवा से हटाया गया हो।
    7. उसे विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाने अथवा घूसखोरी के अपराध में दोषी नहीं ठहराया गया हो।
    8. उसे अस्पृश्यता, दहेज तथा सती प्रथा आदि जैसे सामाजिक अपराधों में संलिप्तता अथवा इन्हें बढ़ावा देने के लिए दण्डित नहीं किया गया हो

उपरोक्त निरर्हताओं के संबंध में किसी सदस्य के प्रति यदि प्रश्‍न उठे तो राज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा । हालांकि इस मामले में चुनाव आयोग की सलाह लेकर काम करता है।

दल-बदल के आधार पर निरहता:

    • यदि कोई व्यक्ति दसवीं अनुसूची के उपबंधों के अंतर्गत दल-परिवर्तन के आधार पर निररह होता है तो वह राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन को सदस्यता के लिए निर्ह रहेगा।
    • 10वीं अनुसूची के तहत यदि निर्रहता का मामला उठे तो विधान परिषद के मामले में सभापति एवं विधानसभा के मामले में अध्यक्ष (राज्यपाल नहीं) फैसला करेगा। 1992 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है की सभापति/अध्यक्ष का फैसला न्यायिक समीक्षा की परिधि में आता है ।

शपथ या प्रतिज्ञान:- विधानमंडल के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य सदन में सीट ग्रहण करने से पहले राज्यपाल या उसके द्वारा इस कार्य के लिए नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान लेगा।

    • इस शपथ में विधानमंडल का सदस्य प्रतिज्ञा करता है कि वह,
    • भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखेगा ।
    • भारत को प्रभुता व अखंडता को अक्षुण्ण रखेगा।
    • प्रदत्त कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करेगा।

बिना शपथ लिए कोई भी सदस्य सदन में न तो मत दे सकता है और न ही कार्यवाही में भाग ले सकता है |

एक व्यक्ति यदि सदन में सदस्य की तरह बैठता है और मतदान करता है तो उस पर प्रतिदिन पांच सौ रुपये जुर्माना लगेगा:

    • शपथ या प्रतिज्ञा लेने से पहले या
    • जब वह ये जानता हो कि वह अर्हक नहीं है या इसकी सदस्यता के लिए निर्ह है।
    • जब वह संसद या विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि के तहत सदन में बैठने या मत देने से प्रतिबंधित हो।

विधानमंडल के सदस्यों को समय-समय संसद द्वारा पर निर्धारित वेतन एवं भत्ते मिलते रहते हैं।

स्थानों का रिक्त होना:-

निम्नलिखित मामलों में विधानमंडल का सदस्य पद छोड़ा है:

  • दोहरी सदस्यता :- एक व्यक्ति एक समय में विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता। यदि कोई व्यक्ति दोनों सदनों के लिए निर्वाचित होता है तो राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि के उपबंधों के तहत एक सदन से उसकी सीट रिक्त हो जाएगी।
  • निररहता :- राज्य विधानमंडल का कोई सदस्य यदि निर्ह पाया जाता है, तो उसका पद रिक्त हो जाएगा।
  • त्यागपत्र :- कोई सदस्य अपना लिखित इस्तीफा विधान परिषद के मामले में सभापति और विधानसभा के मामले में अध्यक्ष को दे सकता है । त्यागपत्र स्वीकार होने पर उसका पद रिक्त हो जाएगा।”
  • अनुपस्थिति :- यदि कोई सदस्य बिना पूर्व अनुमति के 60 दिन तक बैठकों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके पद को रिक्त घोषित कर सकता है।
  • अन्य मामले :- किसी सदस्य का पद रिक्त हो सकता है:
    • यदि न्यायालय द्वारा उसके निर्वाचन को अमान्य ठहरा दिया जाए,
    • यदि उसे सदन से निष्काषित कर दिया जाए
    • यदि वह राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो जाए और
    • यदि वह किसी राज्य का राज्यपाल निर्वाचित हो जाए।

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