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राष्ट्रीय आपातकाल – National Emergency

  • भारत में, आपातकाल की स्थिति सरकार की वह अवधि है जिसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा विशेष आपातकालीन स्थितियों में घोषित किया जा सकता है। संविधान के कई अनुच्छेद, जो भारतीय लोगों को मौलिक अधिकार प्रदान करते हैं, राष्ट्रपति द्वारा अपने मंत्रिपरिषद की सलाह पर रद्द किए जा सकते हैं।
  • राष्ट्रीय आपातकाल पूरे देश या उसके केवल एक हिस्से के लिए घोषित किया जा सकता है।
  • भारतीय संविधान निर्माताओं ने ऐतिहासिक अनुभवों और वैश्विक घटनाओं से सीख लेते हुए, राष्ट्र की सुरक्षा, अखंडता एवं स्थायित्त्व को जोखिम में डालने वाली असाधारण स्थितियों के निपटान के लिये आपातकालीन प्रावधानों को शामिल किया।
  • प्रशासनिक तंत्र के विफल होने पर एकात्मक प्रणाली में परिवर्तित होने की क्षमता को देखते हुए डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने भारतीय संघीय ढाँचे को अद्वितीय बताया।
  • भारतीय संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधान शामिल हैं जो आपातकाल के दौरान सरकार को विशेष शक्तियाँ प्रदान करते हैं।
  • भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान जर्मनी के वाइमर संविधान से प्रेरित हैं।

आपातकाल के प्रकार:

  1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
  2. राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356)
  3. वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)

1.राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352):-

    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 352 राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा से संबंधित है।
    • यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है की गंभीर आपात विद्यमान है, जिससे युद्ध या बाह्य आक्रमण के कारण भारत अथवा उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा आपातकाल घोषित कर सकता है।
    • यह घोषणा कार्यपालिका को मौलिक अधिकारों को निलंबित करने की शक्तियाँ प्रदान करती है, जिससे सरकार को संकट का प्रभावी निपटान करने हेतु आवश्यक उपाय करने में सहायता मिलती है।
    • राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अनिवार्य है और इसे संसदीय अनुमोदन के माध्यम से रद्द किया अथवा बढ़ाया जा सकता है।
    • अनुच्छेद 352 का प्रयोग एक असाधारण उपाय है और इसका उपयोग सत्ता के संभावित दुरुपयोग तथा लोकतांत्रिक सिद्धांतों के क्षरण संबंधी चिंता को जन्म देता है।

राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा हेतु आधार:

  • युद्ध:
      • इसका आशय ऐसी स्थिति से है जहाँ भारत और किसी अन्य देश के साथ आधिकारिक तौर पर युद्धरत हो। इसमें राष्ट्रों के बीच सशस्त्र संघर्ष तथा शत्रुता शामिल है।
  • बाह्य आक्रमण:
      • बाह्य आक्रमण से तात्पर्य किसी विदेशी शक्ति द्वारा भारत पर आक्रमण से है। इसमें देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने वाला सैन्य आक्रमण अथवा किसी भी प्रकार का बाह्य खतरा शामिल हो सकता है।
  • सशस्त्र विद्रोह:
      • सशस्त्र विद्रोह के अंतर्गत देश के भीतर स्थापित सरकार के विरुद्ध विद्रोह अथवा प्रतिरोध शामिल होता है। इसका तात्पर्य सरकार के अधिकार को चुनौती देने के लिये जनसमूह द्वारा बल अथवा सशस्त्र का उपयोग है।
      • जब भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरे में पड़ जाती है, तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
      • राष्ट्रपति युद्ध, बाहरी हमले या सशस्त्र विद्रोह से पहले भी राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं, अगर उन्हें लगता है कि कोई आसन्न खतरा है। 1975 के 38वें संशोधन अधिनियम ने यह मानदंड जोड़ा गया ।
    • ‘बाह्य आपातकाल’ शब्द का तात्पर्य उस स्थिति से है जब ‘युद्ध’ या ‘बाह्य हमले’ के कारण राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जाता है।
    • इसे ‘आंतरिक आपातकाल’ तब कहा जाता है जब इसे ‘सशस्त्र विद्रोह’ के आधार पर घोषित किया जाता है।
    • राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा पूरे देश या उसके किसी हिस्से को शामिल कर सकती है। राष्ट्रपति 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम का उपयोग करके राष्ट्रीय आपातकाल के दायरे को देश के किसी निश्चित क्षेत्र तक सीमित कर सकते हैं।
    • संविधान ने मूल रूप से राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने के तीसरे कारण के रूप में “आंतरिक अशांति” को सूचीबद्ध किया था, लेकिन यह वाक्यांश बहुत अस्पष्ट था और इसका अर्थ व्यापक था। परिणामस्वरूप, 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम ने “आंतरिक अशांति” के स्थान पर “सशस्त्र विद्रोह” शब्द को पेश किया।
    • कैबिनेट से लिखित अनुशंसा प्राप्त करने के बाद ही राष्ट्रपति, राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं (जिसे 1978 के 44वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया है)। इसका मतलब यह है कि आपातकाल की घोषणा केवल कैबिनेट की मंजूरी से ही की जाएगी, न कि केवल प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर।

राष्ट्रीय आपातकाल की अवधि एवं अनुमोदन:

    • मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश के पश्चात केवल राष्ट्रपति ही राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है।
    • राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की आवश्यकता को लेकर आश्वस्त होने के पश्चात् मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को एक लिखित अनुरोध प्रेषित करता है।
      • मंत्रिमंडल के लिखित अनुरोध से सहमत होने के बाद राष्ट्रपति आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है। हालाँकि इस उद्घोषणा को एक माह के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
    • यदि निचले सदन(लोकसभा) के सत्र में नहीं होने पर आपातकाल की उद्घोषणा की जाती है अथवा आपातकाल को मंज़ूरी दिये बिना उस महीने के भीतर भंग कर दिया जाता है, तो यह लोकसभा की दोबारा बैठक के 30 दिन बाद तक लागू रहता है, जब तक कि उच्च सदन (राज्यसभा) द्वारा इसे मंज़ूरी मिली होती है।
      • दोनों सदनों की मंज़ूरी के पश्चात् आपातकाल छह माह तक रहता है और इसे अनिश्चित काल तक बढ़ाया जा सकता है, किंतु जारी रखने के लिये प्रत्येक छह माह में इसे संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना अनिवार्य होता है।

न्यायिक समीक्षा:

  • प्रारंभ में राष्ट्रीय आपातकाल न्यायिक समीक्षा से प्रतिरक्षित था। बाद में 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा इस प्रावधान में बदलाव किया गया। मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राष्ट्रीय आपातकाल को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 352(1) के तहत राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा की वैधता का आकलन करने की न्यायिक समीक्षा में कोई बाधा नहीं होनी चाहिये।
    • न्यायपालिका राष्ट्रपति की संतुष्टि की वैधता की जाँच कर सकती है।

राष्ट्रीय आपातकाल की समाप्ति:

    • आपातकाल हटाने का निर्णय राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।
      • आपातकाल को बनाए रखने की आवश्यकता और आधार के आलोक में राष्ट्रपति उद्घोषणा के माध्यम से आपातकाल को समाप्त कर सकता है।
    • यदि लोकसभा में साधारण बहुमत द्वारा कोई प्रस्ताव पारित किया जाता है जो आपातकाल को जारी रखने हेतु अस्वीकृति दर्शाता है, तो आपातकाल को अवश्य ही रद्द कर दिया जाना चाहिये।

आपातकाल की उद्घोषणा के प्रभाव:

(i)केंद्र राज्य संबंधों पर प्रभाव:-

(अ) कार्यपालक

    • केंद्र को किसी राज्य को किसी भी विषय पर कार्यकारी निर्देश देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
    • यद्यपि, राज्य सरकारों को निलंबित नहीं किया जाता।

(ब) विधायी

    • संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
    • यद्यपि, किसी राज्य विधायिका की विधायी शक्तियों को निलंबित नहीं किया जाता।
    • उपरोक्त कानून, आपातकाल की समाप्ति के बाद छह माह तक प्रभावी रहते हैं।
    • यदि संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति, राज्य सूची के विषयों पर भी अध्यादेश जारी कर सकता है।

(स) वित्तीय

    • राष्ट्रपति, केंद्र तथा राज्यों के मध्य करों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है।
    • ऐसे संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहते हैं, जिसमें आपातकाल समाप्त होता है।

(ii)लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के कार्यकाल पर प्रभाव:-

    • लोकसभा के कार्यकाल को इसके सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे बढ़ाने के लिये संसद द्वारा विधि बनाकर इसे एक समय में एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ाया जा सकता है।
    • इसी प्रकार, संसद किसी राज्य विधानसभा का कार्यकाल भी प्रत्येक बार एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ा सकती है।
    • उपरोक्त दोनों विस्तार आपातकाल की समाप्ति के बाद अधिकतम छह माह तक के लिये ही लागू रहते हैं।

(iii)मूल अधिकारों पर प्रभाव:-

    • राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकार निलंबित कर दिये जायेंगे। किंतु, किसी भी स्थिति में इसका अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों पर कोई प्रभाव नही होगा।
    • अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट (ADM) जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (1976) मामले में यह माना गया था कि राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान नज़रबंदी के विरुद्ध बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का लाभ नहीं उठाया जा सकता है क्योंकि अनुच्छेद 21भी उस उद्घोषणा अवधि के दौरान निलंबित हो जाता है। हालाँकि बाद में इस फैसले को खारिज़ कर दिया गया।

(iv)अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा चुकी है-

    1. अक्तूबर 1962 से जनवरी 1968 तक-चीन द्वारा 1962 में अरुणाचल प्रदेश के नेफा (North-East Fronfier Agency) क्षेत्र पर हमला करने के कारण।
    2. दिसंबर 1971 से मार्च 1977 तक पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध छेड़ने के कारण।
    3. जून 1975 से मार्च 1977 तक आंतरिक अशांति के आधार पर।

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