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अधीनस्थ न्यायालय के सरंचना एवं अधिकार क्षेत्र – Structure and Jurisdiction of Subordinate Court

लोगों को न्याय प्रदान करने तथा अपराध के आधार पर अपराधियों को दण्ड देने के लिए राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन अधीनस्थ आपराधिक न्यायालयों की स्थापना की जाती है। अधीनस्थ न्यायालयों के प्रकार:-

अधीनस्थ न्यायालयों का यह नाम इसलिए रखा गया है क्योंकि वे राज्य के उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। भारत के हर जिले में कई तरह के अधीनस्थ न्यायालय हैं। इनमें शामिल हैं:-

  1. सिविल न्यायालय जो दीवानी मामलों की सुनवाई करते हैं
  2. आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाली आपराधिक अदालतें
  3. राजस्व न्यायालय जो राजस्व से संबंधित मामलों पर विचार करते हैं
    • सिविल न्यायालयों का शासन जिला न्यायाधीश या जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा किया जाता है। उनके अधीन एक उप-न्यायाधीश होता है जो पारिवारिक न्यायालयों के मामलों को देखता है। कुछ स्थानों पर, इसके नीचे मुंसिफ होता है, और छोटे-मोटे न्यायालय भी हो सकते हैं जो सिविल अधीनस्थ न्यायालयों के पदानुक्रम के सबसे निचले पायदान पर होते हैं।
    • आपराधिक न्यायालयों का संचालन सत्र न्यायाधीश या सत्र एवं जिला न्यायाधीश द्वारा किया जाता है। सत्र न्यायाधीश के अधीन एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट भी हो सकता है।
    • जहां तक ​​राजस्व न्यायालयों की बात है तो सबसे अधिक शक्ति राजस्व बोर्ड के पास होती है, उसके बाद कलेक्टर या कमिश्नर, फिर तहसीलदार और सबसे निचले स्तर पर नायब तहसीलदार हो सकता है।
    • अतः उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालयों के इस पदानुक्रम के साथ, जिन्हें निचली अदालतें भी कहा जाता है, मिलकर राज्य की न्यायिक प्रणाली का निर्माण करते हैं।
    • अधीनस्थ न्यायालयों में जिला न्यायाधीश, किसी भी शहर के सिविल और आपराधिक न्यायालय के न्यायाधीश, महानगर मजिस्ट्रेट और उस राज्य की न्यायिक सेवा के सभी सदस्य शामिल होते हैं।

1.अधीनस्थ सिविल न्यायालय:-

    • सिविल मामले जो लोगों के बीच संपत्ति, तलाक, मकान मालिक-किराएदार विवाद, बेदखली, उपभोक्ता समस्याओं, दिवालियापन या कर्ज, समझौते या अनुबंध के उल्लंघन और अन्य से संबंधित विवादों से संबंधित हैं, उन्हें सिविल अदालतों द्वारा निपटाया जाता है। आपराधिक मामलों के अलावा, सिविल अदालतें अन्य सभी मामलों की सुनवाई करती हैं।
    • सिविल अदालतें ऐसे विवादों को निपटाने में मदद करती हैं, लेकिन वे कानून का उल्लंघन करने पर किसी प्रकार की सजा नहीं देतीं
    • सिविल न्यायालयों के न्यायाधीशों के पास आपराधिक न्यायालयों के न्यायाधीशों से भिन्न शक्तियां होती हैं
    • सिविल कोर्ट में न्यायाधीश केवल दोषी पक्ष को जुर्माना भरने के लिए बाध्य कर सकता है, लेकिन वह किसी व्यक्ति को दोषी ठहराकर जेल नहीं भेज सकता
    • सिविल न्यायालय के न्यायाधीश राज्य की सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार मामलों का निपटारा करते हैं

2. अधीनस्थ आपराधिक न्यायालय:-

    • लोगों को न्याय प्रदान करने तथा अपराध के आधार पर अपराधियों को दण्ड देने के लिए राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन अधीनस्थ आपराधिक न्यायालयों की स्थापना की जाती है।
    • अधीनस्थ आपराधिक न्यायालय उन आपराधिक मामलों को संभालते हैं जहां कानून का उल्लंघन होता है
    • इन मामलों में चोरी, बलात्कार, हत्या, शारीरिक हमला, डकैती, जेबकतरी आदि शामिल हो सकते हैं
    • आपराधिक अदालतों से संबंधित मामले पुलिस द्वारा अभियुक्तों के खिलाफ और राज्य की ओर से निचली अदालत में दायर किए जाते हैं
    • अगर आरोपी दोषी पाया जाता है, तो अदालत जुर्माना, कारावास, आजीवन कारावास या यहां तक ​​कि मौत की सजा सहित कई तरह की सज़ा दे सकती है। हालांकि, अगर मौत की सज़ा सुनाई जाती है, तो उसे उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की जानी चाहिए।
    • अधीनस्थ आपराधिक न्यायालयों में लाए गए मामलों का निपटारा भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार किया जाता है
    • किसी भी जिले में सबसे बड़ी आपराधिक अदालत सत्र न्यायालय होती है, जिसका मुखिया सत्र न्यायाधीश होता है। कभी-कभी जिला न्यायाधीश सत्र न्यायाधीश के रूप में भी कार्य करता है, जिस स्थिति में उसे सत्र और जिला न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है।
    • सत्र न्यायालय भारतीय दंड संहिता द्वारा अधिकृत कोई भी सजा सुना सकता है
    • सहायक सत्र न्यायाधीश दस वर्ष तक के कारावास की सज़ा सुना सकता है
    • भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत का सर्वोच्च आपराधिक न्यायालय है

3. अधीनस्थ राजस्व न्यायालय:-

  • राजस्व न्यायालय केवल राज्य के अंदर भूमि राजस्व से संबंधित मामलों से निपटते हैं
  • राजस्व बोर्ड किसी भी जिले का सर्वोच्च राजस्व न्यायालय है
  • राजस्व बोर्ड केवल अंतिम अपीलों पर सुनवाई करता है

राजस्व बोर्ड के अंतर्गत निम्नलिखित हैं:

    • आयुक्तों की अदालतें
    • कलेक्टरों
    • तहसीलदार
    • नायब या सहायक तहसीलदार।

अधीनस्थ न्यायालय की संरचना एवं अधिकार क्षेत्र:-

अधीनस्थ न्यायालय की संरचना एवं अधिकार क्षेत्र निर्धारित करने का जिम्मा राज्य पर होता है इसीलिए संघटनात्मक संरचना (Organizational structure) के कई तत्व एक से दूसरे राज्य में भिन्न होते हैं।

हालांकि सामान्य रूप से उच्च न्यायालय से नीचे के दीवानी (Civil) एवं फ़ौजदारी न्यायालयों के तीन स्तर होते हैं।

  • सिविल मामलों की सुनवाई जहां पर होती है उसे जिला न्यायालय (District Courts) कहते हैं और आपराधिक मामलों की सुनवाई जहां होती है उसे सत्र न्यायालय (Session court) कहा जाता है।
  • जिला स्तर पर सबसे बड़ा न्यायिक अधिकारी होता है जिला न्यायाधीश (District Judge)। इसके पास जिला एवं सत्र दोनों ही न्यायालयों में सुनवाई करने का अधिकार होता है।
  • जब वह दीवानी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे जिला न्यायाधीश कहा जाता है तथा जब वह फ़ौजदारी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे सत्र न्यायाधीश (Session judge) कहा जाता है।

अधीनस्थ न्यायालय के अधिकार क्षेत्र:-

  1. जिला न्यायाधीश जिले का सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी होता है। उसके पास सिविल और आपराधिक दोनों मामलों में मूल और अपीलीय क्षेत्राधिकार होता है।
  2. जिला न्यायालय के नीचे दीवानी मामलों के लिए “अधीनस्थ न्यायाधीश का न्यायालय” होता है। इस न्यायालय के पास दीवानी याचिका (सिविल सूट) के संबंध में अत्यंत व्यापक शक्तियाँ प्राप्त होती है।
  3. उससे भी नीचे दीवानी मामलों की सुनवाई के लिए मुंसिफ़ अदालत होता है। मुंसिफ़ न्यायाधीश का सीमित कार्यक्षेत्र होता तथा वह छोटे दीवानी मामलों पर निर्णय देता है।
  4. इसी तरह सत्र न्यायालय के नीचे आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए “मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी का न्यायालय” होता है। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सात वर्ष तक के कारावास की सजा दे सकता है।
  5. और उससे भी नीचे आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए “न्यायिक दंडाधिकारी का न्यायालय” होता है। ये ऐसे फ़ौजदारी मामलों की सुनवाई करता है, जिसमें तीन वर्ष के कारावास की सजा दी जा सकती है।
  6. जिला न्यायाधीश को किसी अपराधी को उम्रक़ैद से लेकर मृत्युदंड देने तक का अधिकार होता है। लेकिन उसके द्वारा दिये गए मृत्युदंड पर तभी अमल किया जा सकता है जब उस राज्य के उच्च न्यायालय उसे अप्रूव कर दे।
  7. कुछ महानगरों में, दीवानी मामलों के लिए नगर सिविल न्यायालय (मुख्य न्यायाधीश) एवं फ़ौजदारी मामलों के लिए महानगर न्यायाधीश का न्यायालय होता है।
  8. कुछ राज्यों एवं प्रेसीडेंसी नगरों में छोटे मामलों के लिए पृथक न्यायालयों की स्थापना की गई है। ये न्यायालय छोटे दीवानी मामलों की सुनवाई करते हैं। उनका निर्णय अंतिम होता है। लेकिन उच्च न्यायालय उनके निर्णयों की समीक्षा कर सकता है।
  9. हत्या, चोरी-डकैती, बलात्कार, या फिर कोई ऐसा कृत्य जो किसी कानून द्वारा अपराध घोषित किया गया हो, आपराधिक मामला (criminal case) कहलाता है। उसी प्रकार विवाह, तलाक, गोद लेना, जमीन से जुड़ा विवाद आदि इसी तरह के विवाद जिसका निपटारा आपसी सुलह या समझौते से किया जा सकता है दीवानी मामला (Civil case) कहा जाता है।
  10. अधीनस्थ न्यायपालिका की संगठनात्मक संरचना, अधिकार क्षेत्र और नामकरण राज्यों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
  11. इसलिए, ये राज्य दर राज्य थोड़ा भिन्न होते हैं।
  12. सत्र न्यायाधीश को आजीवन कारावास और मृत्युदंड सहित कोई भी सजा देने का अधिकार है।
  13. हालाँकि, उनके द्वारा दी गई मृत्युदंड की सजा उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की जानी आवश्यक है, चाहे अपील हो या न हो।
  14. कुछ राज्यों में पंचायत न्यायालय छोटे-मोटे सिविल और आपराधिक मामलों की सुनवाई करते हैं। इन्हें न्याय पंचायत, ग्राम कचहरी, अदालती पंचायत, पंचायत अदालत आदि नामों से जाना जाता है।

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