eVidyarthi Exam Preparation
Main Menu
  • School
    • CBSE English Medium
    • CBSE Hindi Medium
    • UP Board
    • Bihar Board
    • Maharashtra Board
    • MP Board
    • Close
  • Sarkari Exam Preparation
    • State Wise Competitive Exam Preparation
    • All Govt Exams Preparation
    • MCQs for Competitive Exams
    • Notes For Competitive Exams
    • NCERT Syllabus for Competitive Exam
    • Close
  • Study Abroad
    • Study in Australia
    • Study in Canada
    • Study in UK
    • Study in Germany
    • Study in USA
    • Close
Pol Science || Menu
  • MCQ Political Science
  • Notes Political Science
SELECT YOUR LANGUAGE

ग्राम न्यायालय – Village court

ग्रामीण लोगों को त्वरित और आसान न्यायिक व्यवस्था तक पहुँच प्रदान करने के उद्देश्य से 2008 में ग्राम न्यायालय अधिनियम (Gram Nyayalayas Act) को अधिनियमित किया गया।

इसका उद्देश्य ग्रामीण नागरिकों को उनके द्वार पर न्याय सुलभ कराना और यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी प्रकार की सामाजिक-आर्थिक अशक्ताओं के कारण कोई ग्रामीण नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाये।

ग्राम न्यायालय स्थापित करने का कारण:-

    • पंचायती राज व्यवस्था जो कि राज्य के नीति निदेशक तत्व का हिस्सा है और जो कि गांधी दर्शन पर आधारित है; को 1993 में वैधानिक दर्जा देने के बाद ये हमारे व्यवहार का एक हिस्सा बन गया। उस समय ग्रामीण इलाकों में त्वरित और समझौतापूर्ण न्याय के लिए पंचायतें बैठती थी पर उसे वैधानीक दर्जा हासिल नहीं था।
    • संविधान के उसी नीति निदेशक तत्व वाले भाग के अनुच्छेद 39A कहता है कि समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिए ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके। एक तो ये बात हो गई,
    • दूसरी बात ये है कि 1986 में भारत के विधि आयोग ने अपनी 114वीं रिपोर्ट (जो कि ग्राम न्यायालय के फोकस करके ही बनाया गया था) में ग्राम न्यायालयों की स्थापना का सुझाव दिया है जिससे कि सस्ता एव समुचित न्याय आम नागरिक को सुलभ कराया जा सकें। 2008 में जो ग्राम न्यायालय अधिनियम बना है वो मोटे तौर पर विधि आयोग की अनुशंसाओं पर ही आधारित है।
    • तीसरी बात ये कि उचित न्याय लोकतंत्र का एक केन्द्रीय दर्शन है। इसीलिए लोकतंत्र को साकार करने के लिए ये जरूरी हो जाता है कि गरीबों, वंचितों, शोषितों को उनके दरवाजे पर ही न्याय उपलब्ध करवाया जाये ताकि ग्रामीण लोगों को त्वरित, सस्ता व समुचित न्याय मिल सके।

ग्राम न्यायालय के प्रावधान:-

1. राज्य सरकार, ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के तहत उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात जिले में मध्यवर्ती स्तर पर प्रत्येक पंचायत के लिए अथवा मध्यवर्ती स्तर पर निकटवर्ती पंचायतों के एक समूह के लिए या जिस राज्य मे मध्यवर्ती स्तर पर कोई पंचायत नहीं हो, वहाँ पंचायतों के समूह के लिए ग्राम न्यायालय की स्थापना कर सकती है।

2. राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात ग्राम न्यायालय की स्थानीय सीमा तय कर सकती है या ऐसी सीमाओं को बढ़ा सकती है, घटा सकती है।

3. प्रत्येक ग्राम न्यायालय का मुख्यालय उस मध्यवर्ती पंचायत के मुख्यालय पर जिसमें ग्राम न्यायालय स्थापित है या ऐसे अन्य स्थान पर अवस्थित होगा, जो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाएगा।

4. राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के परामर्श से, प्रत्येक ग्राम न्यायालय के लिए एक न्यायाधिकारी (Judge) की नियुक्ति करेगी। लेकिन कोई व्यक्ति, न्यायाधिकारी के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए तभी अर्हित होगा, जब वह प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए पात्र हो।

5. न्यायाधिकारी जो इन ग्राम न्यायालयों की अध्यक्षता करेंगे, अनिवार्य रूप से न्यायिक अधिकारी होंगे और उन्हे उतना ही वेतन और उतनी ही शक्तियां प्राप्त होंगी जितनी कि एक प्रथम श्रेणी के दंडाधिकारी (Magistrate) को मिलता है, जो उच्च न्यायालयों के अधीन कार्य करते हैं।

6. राज्य सरकार, ग्राम न्यायालय को सभी सुविधाएं प्रदान करेगी जिनके अंतर्गत उसके मुख्यालय से बाहर विचारण (Trial) या कार्यवाहियाँ करते समय न्यायाधिकारी द्वारा चल न्यायालय (Movable court) लगाने के लिए वाहनों की व्यवस्था भी है।

ग्राम न्यायालय की शक्तियाँ एवं प्राधिकार:-

1. दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) 1973 या सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) 1908 या फिर उस समय प्रवृत (In force) किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, ग्राम न्यायालय सिविल और दांडिक दोनों अधिकारिता का प्रयोग “ग्राम न्यायालय अधिनियम” के तहत बताए गए सीमा तक करेगा।

2. जिला न्यायालय या सत्र न्यायालय ऐसी तारीख से (जो उच्च न्यायालय द्वारा अधिसूचित किया जाये) अपने अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष लंबित सिविल या दांडिक मामलों को, ऐसे मामलों का ट्रायल या निपटारा करने के लिए सक्षम न्यायालय को अंतरित कर सकेगा।

ग्राम न्यायालय अपने विवेकानुसार उन मामलों का या तो पुनः ट्रायल कर सकेगा या उन पर उस प्रक्रम से आगे कार्यवाही कर सकेगा, जिस पर अंतरित (Transfer) किए गए थे।

3. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 6 के तहत गठित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, अधिवक्ताओं का एक पैनल तैयार करेगा और उनमें से कम से कम दो को प्रत्येक ग्राम न्यायालय के साथ लगाए जाने के लिए समनुदेशित (Assigned) करेगा, जिससे कि ग्राम न्यायालय द्वारा उनकी सेवाएँ अधिवक्ता की नियुक्ति करने में असमर्थ रहने वाले अभियुक्त को उपलब्ध कराई जा सके। हालांकि कोई व्यक्ति अगर चाहे तो वे निजी वकील रख सकता है।

4. ग्राम न्यायालय एक चलंत न्यायालय होगा और यह फ़ौजदारी और दीवानी दोनों न्यायालयों की शक्ति का उपभोग करेगा और दोनों तरह के मामलों को निपटा सकेगा। हालांकि आपराधिक मामलों में ग्राम न्यायालय उन्हीं को देखता है जिनमें अधिकतम 2 वर्ष की सज़ा होती है।

5. इसके अलावे भी ग्राम न्यायालय को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त होंगी

      1. व्यतिक्रम (Irregularity) के लिए किसी मामले को खारिज करना या एक पक्षीय कार्यवाही करना
      2. किसी ऐसे आनुषंगिक विषय (Incidental subject) के संबंध में, जो कार्यवाहियों के दौरान उत्पन्न हो, ग्राम न्यायालय ऐसी प्रक्रिया अपनाएगा, जो वह न्याय के हित में न्यायसंगत और युक्तियुक्त समझे।
      3. कार्यवाहियाँ, जहां तक व्यवहार्य हो, न्याय के हितों से संगत होंगी और सुनवाई दिन-प्रतिदिन के आधार पर उसके निष्कर्ष तक जारी रहेगी, जब तक कि ग्राम न्यायालय ऐसी कारणों से, जिन्हे लेखबद्ध किया जाएगा, सुनवाई को अगले दिन से परे स्थगित करना आवश्यक नहीं समझता।
      4. प्रत्येक निर्णय, ग्राम न्यायालय द्वारा सुनवाई के समाप्त होने के ठीक पश्चात या पंद्रह दिन के बाद किसी निर्धारित समय पर, जिसकी सूचना पक्षकारों को दी जाएंगी, खुले न्यायालय में सुनाया जाएगा।

6. ग्राम न्यायालय सिविल न्यायालय की शक्तियों का कुछ संशोधनों के साथ उपयोग करेगा और अधिनियम में उल्लिखित विशेष प्रक्रिया का अनुसरण करेगा।

7. ग्राम न्यायालय पक्षों के बीच समझौता करने का हर संभव प्रयास करेगा ताकि विवाद का समाधान सौहार्दपूर्ण तरीके से हो जाये और इस उद्देश्य के लिए मध्यस्थों की भी नियुक्ति करेगा।

8. ग्राम न्यायालय द्वारा पारित आदेश की हैसियत हुक्मरानो के बराबर होगी और इसके कार्यान्वयन के विलंब को रोकने के लिए ग्राम न्यायालय संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुसरण करेगा।

9. ग्राम न्यायालय, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत जो साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया और उसके आधार पर जो न्याय करने की प्रक्रिया है; उससे बंधा नहीं होगा, बल्कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से निर्देशित होगा। वो भी तब तक जब तक उच्च न्यायालय द्वारा ऐसा कोई नियम नहीं बनाया जाता।

10. अगर फ़ौजदारी मामलों में किसी को फैसला स्वीकार्य नहीं है तो वे जिला सत्राधीन न्यायालय में अपील कर सकेगा। जिसकी सुनवाई और निस्तारण अपील दाखिल होने के छह माह की अवधि के अंदर किया जाएगा।

11. इसी प्रकार दीवानी मामलों अगर किसी को फैसला स्वीकार्य नहीं है तो वे जिला न्यायालय में अपील कर सकेगा। जिसकी सुनवाई और निस्तारण अपील दाखिल होने के छह माह की अवधि के अंदर किया जाएगा।

12. ग्राम न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर कार्यरत प्रत्येक पुलिस अधिकारी ग्राम न्यायालय की उसके विधिपूर्ण प्राधिकार के प्रयोग में सहायता करने के लिए आबद्ध होगा।

यानी कि जब कभी ग्राम न्यायालय, अपने कृत्यों के निर्वहन में, किसी राजस्व अधिकारी या पुलिस अधिकारी या सरकारी सेवक को ग्राम न्यायालय की सहायता करने का निदेश देगा तब वह ऐसी सहायता करने के लिए आबद्ध होगा।

ग्राम न्यायालय स्थापना से संबन्धित तथ्य:-

    • जैसा कि ऊपर भी समझा है, ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अंतर्गत राज्य सरकारों को ही उच्च न्यायालयों के परामर्श से ग्राम न्यायालयों की स्थापना करनी है
    • अधिनियम के अंतर्गत पाँच हज़ार ग्राम न्यायालयों की स्थापना की आशा की गई है। जिसके लिए केंद्र सरकार 1400 करोड़ रुपए संबन्धित राज्यों को सहायता के रूप मे उपलब्ध कराएगी।
    • हालांकि इस सब के बावजूद भी ग्राम न्यायालय की स्थिति अपेक्षानुकूल तो बिलकुल भी नहीं रहा है। 2019 के आंकड़ों के हिसाब से अभी बस नीचे दिये गए कुछ राज्यों ने ही इसे शुरुआत की है। बाद बाकी राज्य इस मामले में अभी भी पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Sarkari Exam Preparation Youtube
Subscribe

Ads

UPSC, BPSC, MPPSC, UPPSC, RPSC :- Syllabus, Mock Test and Notes

Rajasthan Public Service Commission (RPSC) Syllabus, Mock Test and Notes.

Uttar Pradesh Public Service Commission (UPPSC) Syllabus, Mock Test and Notes.

Madhya Pradesh Public Service Commission (MPPSC) Syllabus, Mock Test and Notes.

Bihar Public Service Commission (BPSC) Syllabus, Mock Test and Notes.

SSC CHSL, SSC CPO, SSC Steno, SSC GD CGL Syllabus

SSC Combined Graduate Level Exam

UPSC, SSC & Railway Exams Syllabus, Mock Test, Videos, MCQ and Notes

At eVidyarthi, you can prepare for various SSC Combined Graduate Level Exams (SSC CGL, SSC CHSL, SSC CPO, SSC Stenographer). eVidyarthi offers SSC Mock Tests and SSC Pre Syllabus for Combined Graduate Level Exams (including SSC CGL Pre and SSC GD).

सरकारी Exam Preparation

Sarkari Exam Preparation Youtube

Study Abroad

Study in Australia: Australia is known for its vibrant student life and world-class education in fields like engineering, business, health sciences, and arts. Major student hubs include Sydney, Melbourne, and Brisbane. Top universities: University of Sydney, University of Melbourne, ANU, UNSW.

Study in Canada: Canada offers affordable education, a multicultural environment, and work opportunities for international students. Top universities: University of Toronto, UBC, McGill, University of Alberta.

Study in the UK: The UK boasts prestigious universities and a wide range of courses. Students benefit from rich cultural experiences and a strong alumni network. Top universities: Oxford, Cambridge, Imperial College, LSE.

Study in Germany: Germany offers high-quality education, especially in engineering and technology, with many low-cost or tuition-free programs. Top universities: LMU Munich, TUM, University of Heidelberg.

Study in the USA: The USA has a diverse educational system with many research opportunities and career advancement options. Top universities: Harvard, MIT, Stanford, UC Berkeley

Privacy Policies, Terms and Conditions, Contact Us
eVidyarthi and its licensors. All Rights Reserved.