लौटकर आऊंगा फिर’ कविता में जीवनानंद दास अपनी मातृभूमि बंगाल में ही बार-बार जन्म लेने की इच्छा रखते हैं, चाहे वह मनुष्य के रूप में न हो; वे कौआ, सारस, या नदी के किनारे उगने वाली घास बनकर भी बंगाल के हरे-भरे मैदानों और नदियों से जुड़ना चाहते हैं, जो उनकी मातृभूमि से असीम प्रेम को दर्शाता है,.
लौटकर आऊंगा फिर’ कविता में जीवनानंद दास अपनी मातृभूमि बंगाल में ही बार-बार जन्म लेने की इच्छा रखते हैं, चाहे वह मनुष्य के रूप में न हो; वे कौआ, सारस, या नदी के किनारे उगने वाली घास बनकर भी बंगाल के हरे-भरे मैदानों और नदियों से जुड़ना चाहते हैं, जो उनकी मातृभूमि से असीम प्रेम को दर्शाता है,.