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इतिहास कक्षा 6 बिहार बोर्ड || Menu
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History Class 6 Important Questions Chapter 14 Itihas Bihar Board बिहार बोर्ड

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Important Questions For All Chapters – इतिहास Class 6

हमारे इतिहासकार

प्रश्न 1: के० पी० जयसवाल का भारतीय इतिहास और संस्कृति में क्या योगदान था, और उनकी प्रमुख कृतियाँ कौन-कौन सी थीं?

उत्तर: के० पी० जयसवाल भारतीय इतिहास और संस्कृति के महान विद्वान थे, जिन्होंने भारतीय इतिहास के अध्ययन और लेखन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी प्रमुख कृतियाँ ‘हिन्दू पॉलिटी’ और ‘हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ हैं।

i) ‘हिन्दू पॉलिटी’: 1924 में प्रकाशित इस पुस्तक ने भारतीय इतिहास को देखने के दृष्टिकोण में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। जयसवाल ने इस पुस्तक में प्राचीन भारत के राजतंत्र को संवैधानिक और उत्तरदायी बताया, न कि निरंकुश। यह पुस्तक दो भागों में विभाजित है; पहला भाग प्रजातंत्र और दूसरा भाग राजतंत्र का विवरण प्रस्तुत करता है।

ii)  ‘हिस्ट्री ऑफ इंडिया’: 1930 में प्रकाशित इस पुस्तक में जयसवाल ने कुषाण साम्राज्य के अंत और गुप्त साम्राज्य के बीच की अवधि पर प्रकाश डाला। उन्होंने गुप्त साम्राज्य के पूर्व नाग और वकाटकों के इतिहास पर भी विस्तृत अध्ययन किया।

जयसवाल की कृतियाँ भारतीय इतिहास में मौलिकता और राष्ट्रीय स्वाभिमान को उजागर करती हैं, जिससे भारतीयों को अपने अतीत पर गर्व होता है। उनके शोध और लेखन ने भारतीय इतिहास के अध्ययन को एक नई दिशा दी।

प्रश्न 2: डॉ. के० पी० जयसवाल ने इतिहास लेखन में कौन-कौन से नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए, और उनका क्या महत्व था?

उत्तर: डॉ. के० पी० जयसवाल ने इतिहास लेखन में कई नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए, जिनमें प्रमुख थे:

i) वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जयसवाल ने इतिहास लेखन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें साक्ष्यों के संतुलित उपयोग और तुलनात्मक अध्ययन के बाद ही निष्कर्ष निकाले गए। उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं के सभी पक्षों और कारणों की समीक्षा की, जिससे उनके लेखन में अधिवक्ता की पद्धति हावी रही।

ii) प्रजातांत्रिक व्यवस्था: उन्होंने यह सिद्ध किया कि प्राचीन भारत में निरंकुश राजतंत्र नहीं था, बल्कि संवैधानिक और उत्तरदायी राजतंत्र था। उन्होंने यह भी कहा कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था उत्तर वैदिक काल से ही प्रचलित थी।

iii) हिन्दू विचार और दर्शन: जयसवाल ने अपने लेखन में हिन्दू विचार, दर्शन, धर्म, शासन, गणराज्य, और सामाजिक व्यवस्था को महत्वपूर्ण स्थान दिया। उनका इतिहास लेखन राष्ट्रीय स्वाभिमान से प्रेरित था, जो भारतीयों के लिए गौरव का स्रोत बना।

इन दृष्टिकोणों ने भारतीय इतिहास के अध्ययन को एक नई दिशा दी और पारंपरिक इतिहासकारों के विचारों को चुनौती दी। जयसवाल का योगदान भारतीय इतिहास के पुनर्मूल्यांकन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 3: डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में प्रमुख योगदान क्या थे, और उनकी कौन-कौन सी कृतियाँ प्रसिद्ध हैं?

उत्तर: डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर भारतीय इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में एक प्रमुख विद्वान थे। उनके प्रमुख योगदान और कृतियाँ निम्नलिखित हैं:

i) वैशाली का ऐतिहासिक महत्व: डॉ. अल्तेकर ने वैशाली के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करने के लिए गहन शोध किया। उन्होंने ‘वैशाली का अंधकार युग’ पर अपना शोध प्रस्तुत किया, जिसमें वैशाली में भगवान बुद्ध के शरीरावशेष स्तूप की खोज शामिल थी।

ii) बिहार का इतिहास: डॉ. अल्तेकर बिहार के इतिहास को समर्पित कई महत्वपूर्ण कार्यों में शामिल थे। बिहार के राज्या आर० आर० दिवाकर द्वारा संपादित ‘बिहार थ्रू द एजेज’ के प्रकाशन में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

iii) न्यूमिस्मेटिक्स: मुद्रा शास्त्र में उनकी विशेष रुचि थी, और उन्होंने गुप्तकालीन स्वर्णमुद्राओं के अध्ययन में उल्लेखनीय कार्य किया। उन्होंने लगभग 21 पुस्तकें और 200 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए, जिनमें न्यूमिस्मेटिक्स पर विशेष ध्यान दिया गया।

iv) प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति: डॉ. अल्तेकर ने पटना विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विभाग के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में योगदान दिया। उन्होंने पटना को गुप्तकालीन स्वर्णमुद्राओं और अन्य पुरातात्विक अवशेषों से समृद्ध किया।

डॉ. अल्तेकर का योगदान भारतीय इतिहास और पुरातत्व के अध्ययन में अमूल्य है। उनकी कृतियों ने भारतीय संस्कृति और इतिहास के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया और उन्हें नई पीढ़ी के इतिहासकारों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत किया।

प्रश्न 4: डॉ. के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के इतिहास लेखन में क्या समानताएँ और भिन्नताएँ थीं?

उत्तर: डॉ. के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर दोनों ही भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण विद्वान थे, लेकिन उनके लेखन में कुछ समानताएँ और भिन्नताएँ थीं।

समानताएँ:

i) वैज्ञानिक दृष्टिकोण: दोनों विद्वानों ने इतिहास लेखन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया। वे ऐतिहासिक साक्ष्यों का गहन अध्ययन और विश्लेषण करते थे और निष्कर्षों को संतुलित दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते थे।
ii) पुरातात्विक योगदान: दोनों ने भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जयसवाल ने पुरालिपि और प्राचीन मुद्राओं के अध्ययन में योगदान दिया, जबकि अल्तेकर ने वैशाली और गुप्तकालीन स्वर्णमुद्राओं पर व्यापक शोध किया।

भिन्नताएँ:

i) इतिहास लेखन का दृष्टिकोण: जयसवाल का इतिहास लेखन हिन्दू विचार, दर्शन, और धर्म पर आधारित था, जबकि अल्तेकर का लेखन अधिकतर पुरातात्विक और न्यूमिस्मेटिक (मुद्राशास्त्र) स्रोतों पर आधारित था।
ii) सामाजिक दृष्टिकोण: अल्तेकर का दृष्टिकोण नारियों के प्रति उदार था, और उन्होंने सामाजिक सुधार के पक्ष में लेखन किया, जबकि जयसवाल ने अपने लेखन में हिन्दू धर्म और प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था को महत्त्व दिया।

इन समानताओं और भिन्नताओं ने भारतीय इतिहास लेखन में विविधता और गहराई प्रदान की, जिससे भारतीय इतिहास के विभिन्न पहलुओं का समृद्ध अध्ययन संभव हुआ।

प्रश्न 5: डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के महिला अधिकारों और सामाजिक सुधारों के प्रति दृष्टिकोण का वर्णन करें।

उत्तर: डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर का दृष्टिकोण महिला अधिकारों और सामाजिक सुधारों के प्रति अत्यंत उदार और प्रगतिशील था।

i) नारियों के प्रति उदार दृष्टिकोण: अल्तेकर का नारियों के प्रति दृष्टिकोण उनके लेखन और कार्यों में स्पष्ट रूप से दिखता है। उन्होंने नारियों की स्थिति पर शोध किया और सामाजिक सुधारों के पक्ष में आवाज उठाई। उनके गाँव में घटित सती की घटना ने उन्हें काफी प्रभावित किया, और उन्होंने इस प्रथा के विरोध में अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक जागरूकता बढ़ाई।

ii) स्त्रियों के वेद पढ़ने का अधिकार: अल्तेकर ने एक लेख में साबित किया कि वेद पढ़ने का अधिकार स्त्रियों और शूद्रों को भी है। इस लेख को ‘लीडर’ पत्र में प्रकाशित किया गया था, और यह लेख उस समय काफी चर्चित हुआ जब एक शूद्र लड़की बी.एच.यू. के प्राच्य विभाग में अध्ययन करना चाहती थी।

iii) हिन्दी और राष्ट्रभाषा का समर्थन: अल्तेकर ने हिन्दी और राष्ट्रभाषा के प्रति अपना गहरा प्रेम दिखाया। उन्होंने हिन्दी की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित किया और ‘राष्ट्रभाषा शासन पद्धति’ के लिए पुरस्कार भी प्राप्त किया।

डॉ. अल्तेकर का दृष्टिकोण सामाजिक सुधार और महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण रहा। उनके लेखन और कार्यों ने भारतीय समाज में महिला अधिकारों और समानता के महत्व को रेखांकित किया।

प्रश्न 6: के० पी० जयसवाल और डॉ. अल्तेकर के इतिहास लेखन में उनके जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों का क्या प्रभाव था?

उत्तर: के० पी० जयसवाल और डॉ. अल्तेकर के इतिहास लेखन में उनके जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों का महत्वपूर्ण प्रभाव देखा जा सकता है।

i) के० पी० जयसवाल:

स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव: जयसवाल के व्यक्तित्व पर भारतीय स्वाधीनता संग्राम का गहरा प्रभाव पड़ा। लंदन में अपने अध्ययन के दौरान वे श्याम जी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल, और सावरकर जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए, जिससे उनके विचारों में राष्ट्रीयता और भारतीय स्वाभिमान की भावना प्रबल हो गई। यही कारण है कि उनके इतिहास लेखन में हिन्दू विचार, दर्शन, और प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था को प्रमुखता दी गई। जयसवाल का इतिहास लेखन भारतीय गौरव और राष्ट्रीय पहचान को उभारने के उद्देश्य से प्रेरित था।

ii) डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर:

a) सामाजिक सुधारों का प्रभाव: अल्तेकर के जीवन में उनकी गाँव में घटित सती की घटना का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने उन्हें नारियों के अधिकारों और सामाजिक सुधारों के प्रति जागरूक बनाया। इस घटना ने उन्हें महिला अधिकारों की रक्षा और सामाजिक सुधारों के लिए प्रेरित किया। उनका लेखन इस बात को दर्शाता है कि वेद पढ़ने का अधिकार स्त्रियों और शूद्रों को भी है, जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी विचार था। इसके अलावा, उनके राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति प्रेम और हिन्दी के समर्थन में कार्य ने उनके लेखन में भारतीयता और राष्ट्रीयता को मजबूती से स्थान दिया।

iii) राष्ट्रप्रेम और आत्मनिर्भरता: दोनों विद्वानों ने अपने जीवन में राष्ट्रप्रेम और आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों को अपनाया। जयसवाल ने भारतीय इतिहास को एक गौरवशाली दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया, जबकि अल्तेकर ने अपनी पुस्तकों को भारत में ही प्रकाशित करने का संकल्प लिया, जिससे भारतीय प्रकाशन उद्योग को भी बढ़ावा मिला।

प्रश्न 7: डॉ. के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के कार्यों का भारतीय पुरातत्व और इतिहास के अध्ययन में क्या महत्व है?

उत्तर: डॉ. के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के कार्यों का भारतीय पुरातत्व और इतिहास के अध्ययन में अत्यधिक महत्व है।

i) डॉ. के० पी० जयसवाल:

a) पुरालिपि और मुद्रा शास्त्र का अध्ययन: जयसवाल ने प्राचीन मुद्राओं और पुरालिपियों के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके शोध ने भारतीय इतिहास के विभिन्न कालखंडों को समझने में नई दृष्टि प्रदान की। खारवेल के अभिलेखों का अध्ययन और अशोक के अभिलेखों की व्याख्या में उनके कार्य ने भारतीय पुरातत्व में एक नई दिशा दी।
b) प्रजातंत्र और राजतंत्र का अध्ययन: उनकी पुस्तक ‘हिन्दू पॉलिटी’ ने भारतीय इतिहास में प्रजातांत्रिक और संवैधानिक राजतंत्र की धारणा को स्थापित किया, जो भारतीय इतिहास के पुनर्मूल्यांकन में महत्वपूर्ण रहा।

ii) डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर:

a) वैशाली का ऐतिहासिक महत्व: अल्तेकर के शोध ने वैशाली के ऐतिहासिक महत्व को उजागर किया। उनके द्वारा किए गए उत्खननों और शोध कार्यों ने भारतीय पुरातत्व को समृद्ध किया और वैशाली जैसे महत्वपूर्ण स्थल को विश्व पटल पर लाने में मदद की।
b) न्यूमिस्मेटिक्स और पुरातत्व: अल्तेकर का योगदान मुद्रा शास्त्र में भी महत्वपूर्ण था। उन्होंने गुप्तकालीन स्वर्णमुद्राओं का विस्तृत अध्ययन किया, जो भारतीय इतिहास के आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं को समझने में सहायक साबित हुआ। इसके अलावा, उन्होंने बिहार में पुरातत्व के क्षेत्र में सर्वाधिक कार्य किया, जिससे बिहार का प्राचीन इतिहास उजागर हुआ।

iii) महत्व: दोनों विद्वानों के कार्यों ने भारतीय पुरातत्व और इतिहास के अध्ययन को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनके शोध और लेखन ने भारतीय इतिहास को एक समृद्ध और विविधतापूर्ण दृष्टिकोण से देखने का अवसर प्रदान किया और भारतीय संस्कृति की गहन समझ विकसित की।

प्रश्न 8: के० पी० जयसवाल और डॉ. अल्तेकर के कार्यों का भारतीय समाज और राष्ट्रीयता के विकास में क्या योगदान था?

उत्तर: के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के कार्यों का भारतीय समाज और राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

के० पी० जयसवाल:

i) राष्ट्रीय स्वाभिमान का जागरण: जयसवाल के इतिहास लेखन ने भारतीय समाज में राष्ट्रीय स्वाभिमान को जागृत किया। उनकी कृतियों ने भारतीय इतिहास को एक गौरवशाली दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया, जिससे भारतीयों में अपने अतीत के प्रति गर्व की भावना विकसित हुई। उन्होंने यह सिद्ध किया कि प्राचीन भारत में प्रजातांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था थी, जिसने भारतीय समाज के प्रति विश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ावा दिया।
ii) भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार: जयसवाल के कार्यों ने भारतीय संस्कृति, धर्म, और दर्शन को प्रमुखता दी, जिससे भारतीय समाज में अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूकता बढ़ी।

डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर:

i) महिला अधिकारों का समर्थन: अल्तेकर ने अपने लेखन और कार्यों के माध्यम से महिला अधिकारों और सामाजिक सुधारों का समर्थन किया। उनके प्रगतिशील दृष्टिकोण ने भारतीय समाज में महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
ii) राष्ट्रभाषा हिन्दी का समर्थन: अल्तेकर ने हिन्दी और राष्ट्रभाषा के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित की। उन्होंने हिन्दी की सेवा के लिए जीवनभर कार्य किया, जिससे भारतीय समाज में हिन्दी भाषा के प्रति सम्मान और स्वीकृति बढ़ी।
iii) योगदान: जयसवाल और अल्तेकर के कार्यों ने भारतीय समाज में राष्ट्रीयता, स्वाभिमान, और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत किया। उनके प्रयासों ने भारतीय समाज को अपनी सांस्कृतिक धरोहर और राष्ट्रीयता के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाया।

प्रश्न 9: के० पी० जयसवाल द्वारा ‘हिन्दू पॉलिटी’ में प्रस्तुत विचारों का भारतीय इतिहास लेखन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: के० पी० जयसवाल की पुस्तक ‘हिन्दू पॉलिटी’ ने भारतीय इतिहास लेखन पर गहरा प्रभाव डाला। इस पुस्तक में जयसवाल ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि प्राचीन भारत में निरंकुश राजतंत्र नहीं था, बल्कि एक संवैधानिक और उत्तरदायी राजतंत्र था। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था उत्तर वैदिक काल से ही भारत में प्रचलित थी।

i) प्रजातंत्र और राजतंत्र का नया दृष्टिकोण: इस पुस्तक ने भारतीय इतिहास में प्रजातंत्र और राजतंत्र की धारणा को नए सिरे से प्रस्तुत किया, जो पारंपरिक इतिहासकारों के विचारों से भिन्न थी। जयसवाल के इस दृष्टिकोण ने इतिहासकारों और शोधकर्ताओं को प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था के प्रति नए दृष्टिकोण से सोचने के लिए प्रेरित किया।

ii) भारतीय गौरव और राष्ट्रीयता: ‘हिन्दू पॉलिटी’ ने भारतीय इतिहास को एक गौरवशाली अतीत के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे भारतीयों में राष्ट्रीयता और स्वाभिमान की भावना को बल मिला। इस पुस्तक ने भारतीय इतिहास को पश्चिमी दृष्टिकोण से देखने के बजाय, भारतीय दृष्टिकोण से पुनः मूल्यांकित किया।

इस प्रकार, ‘हिन्दू पॉलिटी’ ने भारतीय इतिहास लेखन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाया और भारतीय विद्वानों के बीच अपने सांस्कृतिक और राजनीतिक धरोहर के प्रति गर्व और जागरूकता को बढ़ाया।

प्रश्न 10: डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के पुरातात्विक उत्खनन और अनुसंधान के क्षेत्र में कौन-कौन से महत्वपूर्ण योगदान थे?

उत्तर: डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के पुरातात्विक उत्खनन और अनुसंधान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान रहे, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

i) वैशाली का उत्खनन: अल्तेकर ने वैशाली के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करने के लिए गहन शोध और उत्खनन कार्य किया। उनके प्रयासों से वैशाली में भगवान बुद्ध के शरीरावशेष स्तूप की खोज हुई, जिससे वैशाली का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व विश्वभर में प्रतिष्ठित हुआ।

ii) गुप्तकालीन स्वर्णमुद्राएँ: अल्तेकर ने गुप्तकालीन स्वर्णमुद्राओं के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके शोध ने गुप्तकाल की अर्थव्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था, और सांस्कृतिक स्थिति को समझने में सहायता की। उन्होंने पटना को गुप्तकालीन मुद्राओं से समृद्ध किया, जिससे इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व बढ़ा।

iii) पटना विश्वविद्यालय में योगदान: डॉ. अल्तेकर ने पटना विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विभाग के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में विभाग ने कई पुरातात्विक परियोजनाओं का संचालन किया, जिससे भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में नई खोजें और अनुसंधान संभव हो सके।

अल्तेकर के ये योगदान भारतीय पुरातत्व और इतिहास के अध्ययन में मील का पत्थर साबित हुए और उन्होंने बिहार के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को विश्व पटल पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 11: डॉ. के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के लेखन में भारतीय समाज के प्रति उनकी दृष्टि और समझ का किस प्रकार प्रतिबिंबित होती है?

उत्तर: डॉ. के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के लेखन में भारतीय समाज के प्रति उनकी गहरी समझ और दृष्टि स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होती है।

i) के० पी० जयसवाल:

a) भारतीय समाज का गौरव: जयसवाल ने अपने लेखन में भारतीय समाज के गौरवशाली अतीत को उजागर किया। उन्होंने प्राचीन भारतीय शासन प्रणाली, संस्कृति, और समाज के महत्त्व को स्थापित किया, जिससे भारतीयों में अपने अतीत के प्रति गर्व की भावना बढ़ी।
b) संवैधानिक राजतंत्र का सिद्धांत: जयसवाल ने प्राचीन भारतीय राजतंत्र को संवैधानिक और उत्तरदायी बताया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे भारतीय समाज को एक संगठित और जिम्मेदार इकाई के रूप में देखते थे। उनके लेखन में समाज के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय स्वाभिमान का उन्नयन देखा जा सकता है।

ii) डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर:

a) सामाजिक सुधारों का समर्थन: अल्तेकर का लेखन सामाजिक सुधारों और विशेष रूप से महिला अधिकारों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। उन्होंने नारियों के अधिकारों का समर्थन किया और उनके लेखन में यह स्पष्ट दिखता है कि वे समाज में समानता और न्याय की स्थापना के पक्षधर थे।
b) न्यूमिस्मेटिक्स और सामाजिक संरचना: अल्तेकर ने गुप्तकालीन स्वर्णमुद्राओं और अन्य पुरातात्विक स्रोतों के माध्यम से प्राचीन भारतीय समाज की संरचना, आर्थिक स्थिति, और सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया। उनके लेखन में भारतीय समाज की जटिलता और उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को गहराई से समझने का प्रयास किया गया।

इन दोनों विद्वानों के लेखन में भारतीय समाज की गहरी समझ, उसकी सांस्कृतिक धरोहर, और सामाजिक सुधारों की आवश्यकता का स्पष्ट प्रतिबिंब देखा जा सकता है। उनके कार्यों ने भारतीय समाज की आत्मछवि को उभारने और उसे बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 12: डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर का योगदान राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में किस प्रकार हुआ, और इसके क्या परिणाम थे?

उत्तर: डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर का राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने हिन्दी को एक राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए।

i) हिन्दी के प्रति प्रेम और सेवा: अल्तेकर ने हिन्दी भाषा के प्रति गहरी निष्ठा और प्रेम दिखाया। उन्होंने हिन्दी की सेवा को अपना धर्म माना और इसे न केवल एक भाषा के रूप में, बल्कि राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में देखा।

ii) राष्ट्रभाषा शासन पद्धति: अल्तेकर को ‘राष्ट्रभाषा शासन पद्धति’ के लिए एक हजार मुद्राओं का पुरस्कार प्रदान किया गया, जो यह दर्शाता है कि उन्होंने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका कहना था कि उन्होंने हिन्दी की सेवा आर्थिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि इसे राष्ट्रभाषा समझकर की।

iii) हिन्दी के प्रति जागरूकता: अल्तेकर के प्रयासों से हिन्दी भाषा के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ी। उन्होंने हिन्दी को भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में स्वीकार्यता दिलाने के लिए कार्य किया, जिससे हिन्दी भाषा को एक महत्वपूर्ण स्थान मिला और यह राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई।

परिणाम: अल्तेकर के योगदान से हिन्दी भाषा को न केवल एक साहित्यिक और सांस्कृतिक भाषा के रूप में, बल्कि एक राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली। उनके प्रयासों ने हिन्दी को एकजुट करने और भारतीय समाज में राष्ट्रीयता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 13: डॉ. के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के इतिहास लेखन में उनके व्यक्तिगत विचारों और मान्यताओं का क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: डॉ. के० पी० जयसवाल और डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर के इतिहास लेखन में उनके व्यक्तिगत विचारों और मान्यताओं का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है।

i) डॉ. के० पी० जयसवाल:

a) राष्ट्रीय स्वाभिमान: जयसवाल के लेखन में भारतीय राष्ट्रवाद और स्वाभिमान का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। उन्होंने प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था और संस्कृति को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया, जिससे भारतीय समाज में आत्मसम्मान और राष्ट्रीयता की भावना को बल मिला। उनका इतिहास लेखन भारतीय समाज के गौरवशाली अतीत को उजागर करने के उद्देश्य से प्रेरित था।

b) हिन्दू विचार और दर्शन: जयसवाल के लेखन में हिन्दू विचार, दर्शन, और धर्म का विशेष स्थान था। उनके व्यक्तिगत धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों का प्रभाव उनके लेखन में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जिससे उनका इतिहास लेखन हिन्दू संस्कृति और परंपराओं के महत्त्व को रेखांकित करता है।

ii) डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर:

a) सामाजिक सुधारों के प्रति निष्ठा: अल्तेकर का लेखन उनके सामाजिक सुधारों और महिला अधिकारों के प्रति उनके व्यक्तिगत विचारों का प्रतिबिंब है। उन्होंने नारियों के अधिकारों का समर्थन किया और सामाजिक सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया। उनका लेखन सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित था।

b) राष्ट्रभाषा और भारतीयता: अल्तेकर के लेखन में राष्ट्रभाषा हिन्दी और भारतीयता के प्रति उनके प्रेम का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। उन्होंने हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना। उनके राष्ट्रप्रेम का प्रभाव उनके लेखन में भी झलकता है, जिससे भारतीय संस्कृति और भाषा के प्रति उनकी निष्ठा स्पष्ट होती है।

प्रभाव: दोनों विद्वानों के इतिहास लेखन में उनके व्यक्तिगत विचारों, मान्यताओं, और विश्वासों का गहरा प्रभाव पड़ा। उनके लेखन ने न केवल भारतीय इतिहास को नई दृष्टि से प्रस्तुत किया, बल्कि भारतीय समाज में राष्ट्रीयता, सामाजिक सुधारों, और सांस्कृतिक जागरूकता को भी बढ़ावा दिया।

 

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