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गोधूलि – भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा Hindi Chapter 2 Important Questions Class 9 Godhuli Bihar Board

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Important Questions For All Chapters – हिंदी Class 9

1. राजेंद्र प्रसाद का जन्म कब और कहां हुआ था?

उत्तर: डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सारण जिले के जीरादेई गाँव में हुआ था। उनके पिता महादेव सहाय फारसी और संस्कृत के ज्ञाता थे, और उनकी माता कमला देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। उन्होंने बचपन से ही शिक्षा और नैतिक मूल्यों पर बल दिया, जो राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व को आकार देने में महत्वपूर्ण था।

2. राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा कहाँ हुई और उसमें उनकी क्या विशेष उपलब्धि रही?

उत्तर: राजेंद्र प्रसाद का नामांकन छपरा के जिला स्कूल में हुआ। उन्होंने आठवीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और उनकी इस उपलब्धि से प्रभावित होकर प्राचार्य ने उन्हें दुहरी प्रोन्नति दी। इसके बाद 1902 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय की मैट्रिक की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया, जो उस समय एक बड़ी उपलब्धि थी।

3. राजेंद्र प्रसाद का उच्च शिक्षा और पेशेवर जीवन कैसे आरंभ हुआ?

उत्तर: उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. और बी.एल. की डिग्री प्राप्त की। 1911 में वे वकील बने और 1916 में पटना में वकालत करने लगे। इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और बाद में सक्रिय राजनीति में आ गए।

4. राजेंद्र प्रसाद के राजनीतिक जीवन की प्रमुख घटनाएँ क्या थीं?

उत्तर: राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे। वे संविधान सभा के प्रथम स्थायी अध्यक्ष बने और भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए। इसके अलावा, बंग-भंग आंदोलन के दौरान उन्होंने ‘बिहार स्टूडेंट्स कॉन्फ्रेंस’ की स्थापना की, जो उनकी राजनीतिक सक्रियता की शुरुआत मानी जाती है।

5.  नालंदा का नाम भारतीय इतिहास में क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर: नालंदा प्राचीन भारत के सबसे प्रतिष्ठित विद्यापीठों में से एक था। यह न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया में ज्ञान का केंद्र था। नालंदा में भारतीय विद्या और शिक्षा के पुष्प खिले थे, और यह लगभग छह सौ वर्षों तक एशिया का चैतन्य केंद्र बना रहा। यहाँ की वाणी पर्वतों और समुद्रों के पार तक फैली थी, जो इसकी महत्ता को दर्शाती है।

6. नालंदा का प्राचीन इतिहास किन महापुरुषों से जुड़ा हुआ है?

उत्तर: नालंदा का प्राचीन इतिहास भगवान बुद्ध और भगवान महावीर से जुड़ा है। जैन ग्रंथों के अनुसार, महावीर ने नालंदा में चौदह वर्षावास व्यतीत किए थे। इसके अतिरिक्त, यह सारिपुत्त की जन्मभूमि भी मानी जाती है। सम्राट अशोक के समय में यहाँ सारिपुत्त के चैत्य का निर्माण हुआ था, जिससे इसका ऐतिहासिक महत्व और बढ़ गया।

7. नालंदा विश्वविद्यालय का विकास किस काल में हुआ?

उत्तर: नालंदा विश्वविद्यालय का विकास मुख्य रूप से गुप्तकाल में हुआ। उस समय यह एक प्राणवंत विद्यापीठ के रूप में उभरा। इसके बाद सम्राट हर्षवर्धन के समय में यह अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँचा। नालंदा का विशेष अभ्युदय सातवीं सदी में हुआ जब चीनी यात्री ह्वेनसांग (युवानचांग) यहाँ अध्ययन करने आए।

8. नालंदा का नाम कैसे पड़ा?

उत्तर: चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार, नालंदा का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ भगवान बुद्ध को अपने पूर्वजन्म में तृप्ति नहीं मिलती थी। ‘न-अल-दा’ का अर्थ होता है ‘तृप्ति न होना’। इसके अतिरिक्त, नालंदा का जन्म जनता के उदार दान से हुआ था। कहा जाता है कि पाँच सौ व्यापारियों के दान से इसका आरंभ हुआ था।

9. ह्वेनसांग के समय में नालंदा की स्थिति कैसी थी?

उत्तर: ह्वेनसांग के समय में नालंदा अपनी उन्नति के शिखर पर था। यहाँ विशाल विहार थे जिनकी शिखर-चोटियाँ आकाश में मेघों को छूती थीं। इसके चारों ओर सुंदर सरोवर थे, जिनमें सुनहरे और लाल कमल खिले रहते थे। नालंदा का स्थापत्य और शिल्प कला अत्यंत प्रभावशाली थी, और इसके विहारों में तीन सौ बड़े कक्ष थे।

10. नालंदा विश्वविद्यालय में किन विषयों की शिक्षा दी जाती थी?

उत्तर: नालंदा विश्वविद्यालय में पाँच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी:

  • शब्द विद्या (व्याकरण)
  • हेतुविद्या (तर्क शास्त्र)
  • चिकित्सा विद्या
  • शिल्प विद्या
  • धर्म और दर्शन इन विषयों के अध्ययन से विद्यार्थी व्यावहारिक और आत्मनिर्भर बनते थे।

11. नालंदा के शिलालेखों में किस प्रकार के विवरण मिलते हैं?

उत्तर: नालंदा के शिलालेखों में यहाँ के भवनों, विहारों, और सरोवरों का विस्तृत वर्णन मिलता है। उदाहरण के लिए, यशोवर्मन के शिलालेख में लिखा गया है कि नालंदा के विहारों की ऊँचाई इतनी अधिक थी कि वे आकाश में मेघों को छूते थे। इनके चारों ओर नीले जल से भरे सरोवर थे, और सरोवरों में सुनहरे और लाल कमल तैरते थे।

12. नालंदा विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था कैसी थी?

उत्तर: नालंदा विश्वविद्यालय की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी। इसके आचार्य और विद्यार्थी आर्थिक रूप से निश्चिंत थे। नित्य प्रति के व्यय के लिए सौ गाँवों की आय को अक्षय निधि के रूप में समर्पित किया गया था। बाद में यह संख्या बढ़कर दो सौ गाँवों तक पहुँच गई थी। इस दान के कारण यहाँ शिक्षा की व्यवस्था भली-भाँति चलती रही।

13. नालंदा का विदेशों से क्या संबंध था?

उत्तर: नालंदा का संबंध विदेशों से बहुत गहरा था। यहाँ के भिक्षु और आचार्य विदेशों में जाकर ज्ञान का प्रसार करते थे। ताम्रपत्रों से यह ज्ञात होता है कि सुमात्रा के शासक शैलेंद्र सम्राट बालपुत्रदेव ने पाँच गाँवों का दान नालंदा विश्वविद्यालय को दिया था। इसके अलावा, तिब्बत के सम्राट स्त्रोंग छन गम्पो ने भी अपने देश में नालंदा के विद्वानों को बुलाया था।

14. नालंदा विश्वविद्यालय में कौन-कौन से प्रमुख विद्वान रहे हैं?

उत्तर: नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख विद्वानों में आचार्य शीलभद्र, धर्मपाल, स्थिरमति, गुणमति, और प्रभामित्र जैसे महान आचार्य शामिल थे। शीलभद्र उस समय के सबसे बड़े योगशास्त्र के विद्वान माने जाते थे। ह्वेनसांग के समय में भी शीलभद्र यहाँ के कुलपति थे।

15. ह्वेनसांग और शीलभद्र के बीच क्या संवाद हुआ था?

उत्तर: जब ह्वेनसांग नालंदा से अपने देश चीन वापस जा रहे थे, तो आचार्य शीलभद्र और अन्य भिक्षुओं ने उन्हें रुकने का अनुरोध किया। ह्वेनसांग ने उत्तर दिया कि उनका उद्देश्य भगवान के धर्म की खोज कर अपने देश के भाइयों के हित के लिए ज्ञान का प्रसार करना है। इस पर शीलभद्र ने उनके विचारों की सराहना की और उन्हें बुद्धिसत्व जैसी उच्च भावनाओं वाला बताया।

16. तिब्बत में नालंदा के विद्वानों द्वारा क्या योगदान दिया गया?

उत्तर: नालंदा के विद्वान तिब्बत जाकर वहाँ के सम्राट स्त्रोंग छन गम्पो के निमंत्रण पर बौद्ध धर्म और ब्राह्मण साहित्य का प्रचार-प्रसार करते थे। आचार्य शांतिरक्षित और आचार्य कमलशील ने तिब्बती भाषा में बौद्ध धर्मग्रंथों का अनुवाद किया और तिब्बत में बौद्ध विहार की स्थापना की।

17. नालंदा विश्वविद्यालय में कला और शिल्प का क्या महत्व था?

उत्तर: नालंदा विश्वविद्यालय केवल शिक्षा का केंद्र नहीं था, बल्कि यह कला और शिल्प का भी एक प्रमुख केंद्र था। यहाँ की कांस्य मूर्तियाँ अत्यंत सुंदर और प्रभावोत्पादक थीं। नालंदा की कला का प्रभाव नेपाल, तिब्बत, इंडोनेशिया, और मध्य एशिया के शिल्प पर पड़ा।

18. नालंदा के शिक्षाक्रम में किस प्रकार की शिक्षा दी जाती थी?

उत्तर: नालंदा के शिक्षाक्रम में छात्रों को व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, और शिल्पविद्या के साथ-साथ धर्म और दर्शन की शिक्षा दी जाती थी। इस व्यावहारिक और शैक्षिक प्रणाली का उद्देश्य छात्रों को न केवल आत्मनिर्भर बनाना था, बल्कि उन्हें समाज के प्रति भी जागरूक करना था।

19. नालंदा का शिक्षा दान किस प्रकार अनंत माना जाता है?

उत्तर: नालंदा में शिक्षा का दान अनंत माना जाता था क्योंकि ज्ञान का कोई अंत नहीं होता। जो भी यहाँ शिक्षा प्राप्त करता था, वह इसे आगे बढ़ाता था और इसे और अधिक विस्तार देता था। इस प्रकार, ज्ञान का यह चक्र निरंतर चलता रहता था।

20. नालंदा विश्वविद्यालय के विहारों की स्थापत्य कला का वर्णन करें।

उत्तर: नालंदा विश्वविद्यालय के विहार अत्यंत भव्य और शिल्पकला के उत्तम उदाहरण थे। इनके ऊँचे शिखर आकाश में बादलों को छूते थे। विहारों के चारों ओर जल से भरे सुंदर सरोवर थे, जिनमें सुनहरे और लाल कमल तैरते थे। भवनों की स्थापत्य कला और मूर्तियाँ अत्यधिक आकर्षक थीं।

21. तिब्बत के सम्राट स्त्रोंग छन गम्पो ने नालंदा से क्या संबंध स्थापित किया?

उत्तर: तिब्बत के सम्राट स्त्रोंग छन गम्पो ने अपने देश में भारती लिपि और भारतीय ज्ञान का प्रचार करने के लिए नालंदा से विद्वान भेजने का अनुरोध किया। इसके बाद नालंदा से आचार्य थोन्मिसम्भोट को तिब्बत भेजा गया, जिन्होंने तिब्बती भाषा में बौद्ध और ब्राह्मण साहित्य का अनुवाद किया और बौद्ध धर्म का प्रसार किया।

22. नालंदा के किस आचार्य ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रसार किया?

उत्तर: नालंदा के आचार्य शांतिरक्षित ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। उन्हें तिब्बती सम्राट ने अपने देश में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए आमंत्रित किया था। आचार्य शांतिरक्षित के साथ आचार्य कमलशील भी तिब्बत गए थे, जिन्होंने तिब्बती भाषा सीखकर बौद्ध धर्मग्रंथों का अनुवाद किया और धर्म का प्रचार किया।

23. नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षकों की आर्थिक स्थिति कैसी थी?

उत्तर: नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षकों की आर्थिक स्थिति बहुत ही सुदृढ़ थी। शिक्षकों और विद्यार्थियों की आर्थिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए सौ से अधिक गाँवों की आय समर्पित की गई थी। इससे विश्वविद्यालय के कर्मचारियों और विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार की आर्थिक चिंता नहीं थी।

24. नालंदा में बौद्ध धर्म के अलावा किन अन्य विषयों की शिक्षा दी जाती थी?

उत्तर: नालंदा में बौद्ध धर्म के साथ-साथ व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, शिल्प विद्या, और धर्म तथा दर्शन की भी शिक्षा दी जाती थी। यह व्यवस्था विद्यार्थियों को व्यावहारिक और सामाजिक जीवन में सफल बनाने के लिए की गई थी।

25. नालंदा का स्थापत्य और शिल्पकला किस प्रकार विशेष थी?

उत्तर: नालंदा का स्थापत्य और शिल्पकला अत्यंत प्रभावी और आकर्षक थी। विहारों की शिखर-चोटियाँ आकाश में बादलों को छूती थीं। यहाँ के विहारों के चारों ओर सुंदर सरोवर और आम्रकुंज थे, जो इसके सौंदर्य को और अधिक बढ़ाते थे। इसके भवनों की शिल्पकला और अलंकरण अद्वितीय थे।

26. ह्वेनसांग ने नालंदा में अपने अध्ययन के दौरान क्या अनुभव किया?

उत्तर: ह्वेनसांग ने नालंदा में अध्ययन के दौरान यहाँ की शिक्षा प्रणाली, आचार्यों की विद्वत्ता, और विशाल पुस्तकालयों को देखा और बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने यहाँ योग, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, और बौद्ध धर्म का अध्ययन किया। नालंदा के आचार्य शीलभद्र से उनकी घनिष्ठ मित्रता थी, और उन्होंने चीन वापस लौटने के बाद नालंदा के ज्ञान का प्रसार किया।

27. नालंदा में साहित्य और धर्म के अलावा किस प्रकार की कला का विकास हुआ?

उत्तर: नालंदा में साहित्य और धर्म के अलावा शिल्पकला और मूर्तिकला का भी विकास हुआ। यहाँ की कांस्य मूर्तियाँ अत्यंत सुंदर और प्रभावोत्पादक थीं। नालंदा की कला का प्रभाव नेपाल, तिब्बत, इंडोनेशिया, और मध्य एशिया की कला पर पड़ा। कुर्किहार से प्राप्त बौद्ध मूर्तियाँ नालंदा की कला का प्रतिनिधित्व करती हैं।

28. नालंदा में अध्ययन के लिए कौन-कौन से विषय अनिवार्य थे?

उत्तर: नालंदा में पाँच विषयों का अध्ययन अनिवार्य था:

  • शब्द विद्या (व्याकरण)
  • हेतुविद्या (तर्कशास्त्र)
  • चिकित्सा विद्या
  • शिल्प विद्या
  • धर्म और दर्शन इन विषयों के अध्ययन से विद्यार्थी व्यावहारिक जीवन के लिए तैयार होते थे।

29. नालंदा के विहारों की संरचना का वर्णन करें।

उत्तर: नालंदा के विहारों की संरचना अत्यंत भव्य और सुंदर थी। यहाँ के विहारों की ऊँचाई इतनी अधिक थी कि वे आकाश में बादलों को छूते थे। इन विहारों के चारों ओर नीले जल से भरे सरोवर थे, जिनमें सुनहरे और लाल कमल तैरते थे। आम्रकुंजों की छाया और भवनों की शिल्पकला विहारों की सुंदरता में चार चाँद लगाती थी।

30. नालंदा का ऐतिहासिक महत्त्व आज के परिप्रेक्ष्य में क्या है?

उत्तर: नालंदा का ऐतिहासिक महत्त्व केवल प्राचीन शिक्षा और कला तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आज भी प्रेरणा का स्रोत है। नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण और इसे अंतरराष्ट्रीय केंद्र के रूप में विकसित करने का प्रयास हो रहा है, ताकि यह फिर से ज्ञान, शिक्षा, और संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र बन सके।

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