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वर्णिका – बिहार में नाट्यकला Hindi Chapter 6 Important Questions Class 9 Varnika Bihar Board बिहार बोर्ड

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Important Questions For All Chapters – हिंदी Class 9

1. बिहार में नाट्य कला का प्रारंभ कैसे हुआ?

उत्तर:
बिहार में नाट्य कला का प्रारंभ 1876 में हुआ, जब केशवराम भट्ट ने ‘पटना नाटक मंडली’ की स्थापना की। इस मंडली ने साहित्यिक और सामाजिक दृष्टिकोण से गंभीर नाटकों का मंचन प्रारंभ किया। इसके पहले, पारसी थिएटर कंपनियों ने नाटकों में भावुकता और मनोरंजन का साधन बनाकर रंगमंच को व्यवसायीकरण कर दिया था।

2. केशवराम भट्ट का नाट्य कला में क्या योगदान है?

उत्तर:
केशवराम भट्ट ने ‘पटना नाटक मंडली’ की स्थापना करके बिहार में नाट्य कला का साहित्यिक विकास किया। उन्होंने पारसी थिएटर की व्यावसायिकता और स्तरहीनता की आलोचना करते हुए, सामाजिक और साहित्यिक गंभीरता वाले नाटकों का मंचन प्रारंभ किया। उनके योगदान ने बिहार में रंगमंच को समाज और संस्कृति से जोड़ने का काम किया।

3. पं. ईश्वरी प्रसाद शर्मा का नाट्य कला में क्या योगदान था?

उत्तर:
पं. ईश्वरी प्रसाद शर्मा ने 1914 में ‘मनोरंजन नाटक मंडली’ की स्थापना की, और इस नाट्य संस्था ने भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक ‘सत्य हरिश्चंद्र’ का सफल मंचन किया। उनकी इस मंडली ने आरा क्षेत्र में नाट्य कला के प्रसार में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने नाट्य कला को समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया और गंभीर नाटकों का मंचन करके रंगमंच को उच्च स्तर पर पहुँचाया।

4. ‘किंकर नाट्य कला मंच’ की स्थापना किसने की और इसका महत्त्व क्या है?

उत्तर:
‘किंकर नाट्य कला मंच’ की स्थापना देव के महाराजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह ‘किंकर’ ने 1917 में की थी। यह मंच बिहार में अव्यावसायिक नाट्य कला के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। उन्होंने नाट्य प्रस्तुतियों के लिए विशेष मंच और पूर्वाभ्यास कक्ष बनवाया, और बिहार में रंगमंच को एक नया रूप दिया। इस मंच पर ‘पुनर्जन्म’ जैसे नाटकों का सफल मंचन हुआ, जो बाद में बिहार की पहली हिन्दी फिल्म भी बनी।

5. पटना इप्टा की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई?

उत्तर:
पटना इप्टा की स्थापना 1947 में डॉ. एस.एम. घोषाल, डॉ. ए.के. सेन, और व्रजकिशोर प्रसाद द्वारा की गई। यह संस्था सामाजिक विषमता और उत्पीड़न के खिलाफ नाटकों के माध्यम से आवाज उठाने के लिए जानी जाती है। इसने बिहार के रंगमंच को एक नई पहचान दी और विभिन्न महत्वपूर्ण नाटकों का मंचन किया।

6. चतुर्भुज जी का नाट्य कला में योगदान क्या था?

उत्तर:
चतुर्भुज जी बिहार के प्रसिद्ध नाटककार और रंगमंच निदेशक थे। उन्होंने बख्तियारपुर में अपनी रंगमंच यात्रा की शुरुआत की और ‘मगध कलाकार’ नामक नाट्य संस्था की स्थापना की। उन्होंने ‘सत्य हरिश्चंद्र’ और ‘चंद्रगुप्त’ जैसे नाटकों का सफल मंचन किया। चतुर्भुज जी ने बिहार के गाँवों में नाट्य कला को लोकप्रिय बनाया और उनके नाटकों का बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक मंचन हुआ।

7. ‘मगध कलाकार’ की स्थापना किसने की और इसका उद्देश्य क्या था?

उत्तर:
‘मगध कलाकार’ की स्थापना चतुर्भुज जी ने 1952 में की थी। इसका उद्देश्य बिहार के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नाट्य कला का प्रचार और प्रसार करना था। चतुर्भुज जी ने अपने लिखे नाटकों का मंचन इस संस्था के माध्यम से किया और रंगमंच की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया।

8. ‘पटना इप्टा’ के प्रमुख नाटक कौन से थे?

उत्तर:
‘पटना इप्टा’ के प्रमुख नाटकों में ‘हानूष’, ‘कबिरा खड़ा बाजार में’, ‘माधवी’, ‘महाभोज’, और ‘दूर देश की कथा’ शामिल हैं। इन नाटकों ने बिहार के रंगमंच को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और सामाजिक विषमता एवं उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई।

9. सतीश आनंद और परवेज अख्तर के योगदान क्या थे?

उत्तर:
सतीश आनंद और परवेज अख्तर दोनों ही बिहार के रंगमंच के प्रमुख निदेशक और अभिनेता थे। सतीश आनंद ने लोकशैलियों को हिन्दी नाटकों से जोड़ा और ‘विदेसिया’ नाटक के प्रस्तुतीकरण में विशेष योगदान दिया। परवेज अख्तर ने ‘महाभोज’, ‘माधवी’, और ‘अरण्य कथा’ जैसे नाटकों का निर्देशन किया और बिहार के रंगमंच को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई।

10. बिहार में पारंपरिक लोकनाट्य का क्या महत्त्व है?

उत्तर:
बिहार में पारंपरिक लोकनाट्य जैसे ‘डोमकच’ और ‘सामा-चकेवा’ की विशेष पहचान है। इन लोकनाट्यों के माध्यम से समाज की सांस्कृतिक धारा को संजोया जाता है। भिखारी ठाकुर ने ‘विदेसिया’ शैली का विकास किया, जिसने लोकनाट्य को सामाजिक जागरूकता और परिवर्तन का माध्यम बनाया।

11. भिखारी ठाकुर का नाट्य शैली में योगदान क्या था?

उत्तर:
भिखारी ठाकुर ने ‘विदेसिया’ नाट्य शैली का विकास किया, जो बिहार के भोजपुर क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हुई। इस शैली के माध्यम से उन्होंने समाज की विषमताओं और पीड़ाओं को अभिव्यक्त किया। वे नाटक लिखते, अभिनय करते और गाते भी थे। उनके योगदान ने लोकनाट्य कला को एक नई दिशा दी।

12. सतीश आनंद के निर्देशन में कौन से प्रमुख नाटकों का मंचन हुआ?

उत्तर:
सतीश आनंद के निर्देशन में ‘गोदान’, ‘मैला आँचल’, और ‘विदेसिया’ जैसे महत्वपूर्ण नाटकों का सफल मंचन हुआ। उन्होंने बिहार की लोकशैलियों को आधुनिक रंगमंच से जोड़ा और रंगमंच की दिशा में कई महत्वपूर्ण प्रयोग किए।

13. ‘पटना इप्टा’ के गठन का उद्देश्य क्या था?

उत्तर:
‘पटना इप्टा’ का गठन सामाजिक और राजनीतिक विषमताओं के खिलाफ जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से किया गया था। इसके नाटक समाज के उत्पीड़न, अन्याय, और विषमता के खिलाफ आवाज उठाते थे, और इसने रंगमंच को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया।

14. ‘कला संगम’ की स्थापना किसने की और इसका उद्देश्य क्या था?

उत्तर:
‘कला संगम’ की स्थापना प्यारे मोहन सहाय ने की थी। इसका उद्देश्य कला और संस्कृति के क्षेत्र में प्रयोगधर्मी नाटकों का मंचन करना था। इस संस्था ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की।

15. ‘विदेसिया’ नाटक शैली किसने विकसित की?

उत्तर:
‘विदेसिया’ नाटक शैली भिखारी ठाकुर ने विकसित की। इस शैली ने भोजपुर क्षेत्र में बड़ी लोकप्रियता पाई और लोकनाट्य के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उठाने का कार्य किया।

16. ‘कलिंग विजय’ और ‘कुँवर सिंह’ जैसे नाटकों का लेखन और मंचन किसने किया?

उत्तर:
‘कलिंग विजय’ और ‘कुँवर सिंह’ जैसे महत्वपूर्ण नाटकों का लेखन और मंचन चतुर्भुज जी ने किया। उनके नाटकों का मंचन बिहार के गाँवों में बेहद लोकप्रिय था और समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य करते थे।

17. नरेन्द्र नाथ पाण्डेय का नाट्य कला में क्या योगदान था?

उत्तर:
नरेन्द्र नाथ पाण्डेय ने ‘अनागत’ नाट्य संस्था की स्थापना की और ‘गिनिपिग’ जैसी महत्वपूर्ण नाटकों का मंचन किया। उन्होंने बाद में शोध और फिल्मों की ओर रुख किया, लेकिन रंगमंच में उनका योगदान अमूल्य था।

18. ‘महाभोज’ नाटक किसने लिखा और इसका महत्त्व क्या है?

उत्तर:
‘महाभोज’ नाटक का निर्देशन परवेज अख्तर ने किया था। यह नाटक समाज की विषमताओं और उत्पीड़न को उजागर करता है और बिहार के रंगमंच की अनुपम उपलब्धियों में से एक है।

19. बिहार के किन प्रमुख नाट्य संस्थानों ने रंगमंच को नई दिशा दी?

उत्तर:
बिहार के प्रमुख नाट्य संस्थानों में ‘पटना इप्टा’, ‘कला संगम’, ‘मगध कलाकार’, और ‘अनागत’ शामिल हैं। इन संस्थानों ने सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से रंगमंच को एक नई दिशा दी।

20. ‘अरण्य कथा’ नाटक का निर्देशन किसने किया?

उत्तर:
‘अरण्य कथा’ नाटक का निर्देशन परवेज अख्तर ने किया था। यह नाटक बिहार के रंगमंच की महत्वपूर्ण प्रस्तुतियों में से एक है और इसे राष्ट्रव्यापी प्रशंसा प्राप्त हुई।

21. चतुर्भुज जी के नाटकों का बिहार के रंगमंच पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:
चतुर्भुज जी के नाटकों का बिहार के रंगमंच पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने न केवल नाटकों का लेखन किया बल्कि स्वयं उनका सफल मंचन भी किया। उनके नाटक जैसे ‘कलिंग विजय’, ‘कर्ण’, ‘कुँवर सिंह’, ‘झाँसी की रानी’ और ‘सिराजुद्दौला’ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अत्यधिक लोकप्रिय थे।

22. सतीश आनंद का बिहार के रंगमंच में क्या योगदान है?

उत्तर:
सतीश आनंद ने बिहार के रंगमंच को आधुनिकता और प्रयोगों के नए आयाम दिए। उन्होंने लोकशैली और पारंपरिक नाट्य तत्वों को हिन्दी नाटकों में सम्मिलित किया। उनके निर्देशन में ‘विदेसिया’ नाटक का मंचन बेहद प्रसिद्ध हुआ। इसके साथ ही, उन्होंने ‘गोदान’ और ‘मैला आँचल’ जैसे प्रमुख नाटकों का भी सफल मंचन किया, जिससे बिहार के रंगमंच को राष्ट्रीय पहचान मिली।

23. परवेज अख्तर ने कौन-कौन से महत्वपूर्ण नाटकों का निर्देशन किया?

उत्तर:
परवेज अख्तर ने ‘महाभोज’, ‘हानूष’, ‘माधवी’, ‘कबिरा खड़ा बाजार में’, ‘दूर देश की कथा’, ‘मुक्ति पर्व’ और ‘अरण्य कथा’ जैसे महत्वपूर्ण नाटकों का निर्देशन किया। ये नाटक बिहार के रंगमंच की उत्कृष्ट प्रस्तुतियों में गिने जाते हैं और इनमें सामाजिक विषमता, उत्पीड़न और राजनीतिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया।

24. नुक्कड़ नाटकों का बिहार के रंगमंच में क्या स्थान है?

उत्तर:
बिहार के रंगमंच में नुक्कड़ नाटकों का विशेष स्थान है। इन नाटकों के माध्यम से समाज के ज्वलंत मुद्दों को गाँव और कस्बों में प्रस्तुत किया जाता है। नुक्कड़ नाटकों की सरलता और प्रभावी संवादों के कारण इनकी पहुँच आम जनता तक आसानी से होती है। पटना के साथ-साथ आरा, मुजफ्फरपुर, और भागलपुर जैसे शहरों में भी नुक्कड़ नाटक बेहद लोकप्रिय रहे हैं।

25. पटना में ‘कालिदास रंगालय’ का क्या महत्त्व है?

उत्तर:
पटना में स्थित ‘कालिदास रंगालय’ बिहार के रंगमंच के लिए एक प्रमुख प्रेक्षागृह है। इसे अनिल मुखर्जी ने बनवाया था और इसका उपयोग रंगमंचीय प्रस्तुतियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए किया जाता है। इस प्रेक्षागृह ने बिहार के नाट्य कला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे सभी वर्गों के लिए सुलभ बनाया।

26. बिहार में लोकनाट्य कला का विकास कैसे हुआ?

उत्तर:
बिहार में लोकनाट्य कला का विकास भिखारी ठाकुर के योगदान से हुआ। उन्होंने ‘विदेसिया’ शैली का विकास किया, जिसने समाज की विषमताओं और पीड़ाओं को अभिव्यक्त किया। इसके अलावा, ‘डोमकच’ और ‘सामा-चकेवा’ जैसी पारंपरिक लोकनाट्य कलाओं ने भी बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया। भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उजागर किया और लोकनाट्य को एक नई पहचान दिलाई।

27. हृषीकेश सुलभ का नाट्य साहित्य में योगदान क्या है?

उत्तर:
हृषीकेश सुलभ ने ‘अमली’, ‘माटी गाड़ी’, ‘बटोही’, और ‘धरती आबा’ जैसे नाटकों का लेखन किया, जिनका मंचन बिहार के प्रमुख रंगमंचों पर हुआ। उनकी कहानियों ने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाया और रंगमंच के माध्यम से जनमानस तक पहुँचाया। सतीश आनंद ने उनकी कहानियों का सफल मंचन किया, जिससे उन्हें व्यापक प्रसिद्धि मिली। उनका योगदान बिहार के नाट्य साहित्य को समृद्ध बनाने में अद्वितीय रहा है।

28. पटना इप्टा की प्रस्तुतियों का बिहार के रंगमंच पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:
पटना इप्टा की प्रस्तुतियों ने बिहार के रंगमंच को सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित नाटकों के लिए प्रसिद्ध किया। ‘कबिरा खड़ा बाजार में’, ‘महाभोज’, और ‘मुक्ति पर्व’ जैसे नाटकों ने सामाजिक विषमता और उत्पीड़न को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। इन नाटकों की प्रस्तुति ने बिहार के रंगमंच को एक नई दिशा दी और इसे राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई।

29. बिहार में नाट्य लेखन के प्रमुख लेखक कौन हैं?

उत्तर:
बिहार में नाट्य लेखन के प्रमुख लेखकों में चतुर्भुज, जगदीश चंद्र माथुर, रामवृक्ष बेनीपुरी, रामेश्वर सिंह काश्यप, अविनाश चंद्र मिश्र, और श्रीकांत किशोर शामिल हैं। इन लेखकों ने अपने नाटकों के माध्यम से बिहार के समाज, राजनीति, और सांस्कृतिक मुद्दों को उजागर किया। इनके नाटक न केवल बिहार में बल्कि पूरे देश में सराहे गए।

30. बिहार में नाट्य कला के विकास के लिए किन संस्थानों का योगदान रहा है?

उत्तर:
बिहार में नाट्य कला के विकास के लिए ‘पटना इप्टा’, ‘कला संगम’, ‘मगध कलाकार’, और ‘अनागत’ जैसे प्रमुख नाट्य संस्थानों का योगदान रहा है। इन संस्थानों ने बिहार के रंगमंच को सामाजिक, साहित्यिक, और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया। इनके नाटकों ने बिहार के लोगों को सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के प्रति जागरूक किया और रंगमंच को एक सशक्त माध्यम के रूप में स्थापित किया।

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