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अर्थशास्त्र कक्षा 9 बिहार बोर्ड || Menu
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Economics Class 9 Notes Chapter 1 Bihar Board बिहार बोर्ड

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Notes For All Chapters – अर्थशास्त्र Class 9

बिहार के एक गाँव की कहानी

उत्पादन

अर्थशास्त्र मे उत्पादन का अर्थ उपयोगिता का सृजन करता है। उत्पादन से हम वस्तुओं और सेवाओं के निर्माण या निर्माण की प्रक्रिया को समझते हैं। यह प्रक्रिया कच्चे माल, श्रम, और अन्य संसाधनों का उपयोग करके अंतिम उत्पाद तैयार करने की गतिविधियों को शामिल करती है। उत्पादन का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं और मांग को पूरा करना है।

उत्पादन के साधन

उत्पादन के निम्नलिखित पांच साधन है।

i) भूमि: उत्पादन का मूलभूत साधन, जिसमें खनिज, वनस्पति और जल संसाधन शामिल हैं।

ii) श्रम: मानव प्रयास और कौशल जो उत्पादन प्रक्रिया में योगदान करता है।

iii) पूंजी: उत्पादन में उपयोग होने वाले साधन और संसाधन, जैसे कि मशीनरी, उपकरण और निर्माण।

iv) उद्यमिता: उत्पादन की योजना बनाने और जोखिम उठाने की क्षमता जो उत्पादन को संगठित करती है।

v) व्यवस्था या संगठन: वह सामाजिक व्यवस्था या युक्ति है जिसका लक्ष्य एक होता है

उत्पादन के लिए भूमि आवश्यकता

i) कच्चे माल का स्रोत: भूमि खनिजों, वनस्पतियों, जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का स्रोत है, जो उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
ii) उत्पादन का आधार: भूमि उत्पादन का मूलभूत आधार है, जिस पर सभी उत्पादन गतिविधियाँ आधारित होती हैं।
iii) कृषि उत्पादन: भूमि कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक है, जो खाद्य पदार्थों, फसलों और अन्य कृषि उत्पादों का उत्पादन करती है।
iv) निर्माण और विकास: भूमि निर्माण और विकास के लिए आवश्यक है, जैसे कि भवन, सड़कें, पुल और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण।
v) संसाधनों का संग्रह: भूमि संसाधनों के संग्रह के लिए आवश्यक है, जैसे कि खनिज, वनस्पति और जल संसाधन।
vi) उत्पादन की गुणवत्ता: भूमि की गुणवत्ता उत्पादन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है, जैसे कि मिट्टी की गुणवत्ता कृषि उत्पादन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।

इन कारणों से, भूमि उत्पादन के लिए एक आवश्यक साधन है, और इसका उपयोग और प्रबंधन उत्पादन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होता है।

भूमि स्थिर है

i) अपरिवर्तनीयता: भूमि की मात्रा और गुणवत्ता अपरिवर्तनीय है, जिसे बदला नहीं जा सकता है।
ii) स्थिरता: भूमि एक स्थिर साधन है, जो उत्पादन प्रक्रिया में लगातार उपलब्ध रहती है।
iii) संसाधनों की सीमितता: भूमि की उपलब्धता स्थिर होती है, अर्थात, उपलब्ध भूमि की मात्रा सीमित है और इसे विस्तार नहीं किया जा सकता।
iv) स्थिरता में निवेश: भूमि पर निवेश और विकास स्थिर होते हैं, क्योंकि भूमि की स्थिति और आकार स्थिर होते हैं, और इसके आधार पर निर्माण और योजना की जाती है।

इस प्रकार, “भूमि स्थिर है” से अभिप्राय है कि भूमि का स्थान और आकार सामान्यत: अपरिवर्तनीय होते हैं, जो उत्पादन और विकास की योजनाओं में स्थिरता प्रदान करते हैं।

बहुविध फसल प्रणाली (Multispecies Cropping System)

बहुविध फसल प्रणाली में एक ही खेत में एक से अधिक प्रकार की फसलें एक साथ उगाई जाती हैं। इस प्रणाली में विभिन्न प्रकार की फसलों को एक साथ उगाने से खेत की उत्पादकता और लाभप्रदता में वृद्धि होती है, साथ ही साथ यह पर्यावरण के अनुकूल भी होती है।

बहुविध फसल प्रणाली के फायदे:

i) विविधता: एक ही खेत में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने से खेत की विविधता बढ़ती है।

ii) जोखिम कमी: एक ही फसल की तुलना में विभिन्न फसलों को उगाने से जोखिम कम होता है।

iii) मिट्टी की उर्वरता: विभिन्न फसलें मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं।

iv) कीट और रोग प्रबंधन: विभिन्न फसलें कीट और रोगों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।

v) आर्थिक लाभ: बहुविध फसल प्रणाली से खेत की आय में वृद्धि होती है।

श्रम (Labour)

श्रम उत्पादन का दूसरा महत्वपूर्ण साधन है।
श्रम दो प्रकार के होते है –
i) शारीरिक श्रम
ii) मानसिक श्रम

शारीरिक श्रम

शारीरिक श्रम वह प्रकार का श्रम है जिसमें शारीरिक ताकत और ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। इसमें मनोवैज्ञानिक या बौद्धिक प्रयास की अपेक्षा कम होती है और कार्य को पूरा करने के लिए शारीरिक गतिविधियों, मेहनत और श्रम की आवश्यकता होती है। यह श्रम आमतौर पर उन कार्यों में शामिल होता है जिनमें हाथों, शरीर और मांसपेशियों की सक्रियता की जरूरत होती है।

उदाहरण: निर्माण कार्य, कृषि कार्य, खनन, निर्माण स्थलों पर मजदूरी, और अन्य शारीरिक रूप से मांगलिक कार्य।

मानसिक श्रम

मानसिक श्रम वह प्रकार का श्रम है जिसमें बौद्धिक प्रयास, सोच-विचार, विश्लेषण, और मानसिक ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। इसमें शारीरिक मेहनत की अपेक्षा कम होती है और कार्य को पूरा करने के लिए मानसिक कौशल, निर्णय क्षमता, और समस्या सुलझाने की क्षमता की आवश्यकता होती है।

उदाहरण: लेखन, अनुसंधान, प्रबंधन, रणनीतिक योजना बनाना, और परामर्श कार्य।

पूंजी (Capital)

पूंजी से तात्पर्य उन संसाधनों से है जिनका उपयोग उत्पादन प्रक्रिया में किया जाता है और जो भविष्य में आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए निवेश किए जाते हैं। पूंजी में वित्तीय निवेश, भौतिक उपकरण, और अन्य संसाधन शामिल होते हैं जो उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करने में सहायक होते हैं।

प्रमुख प्रकार:

i) वित्तीय पूंजी: धनराशि जो व्यवसाय के संचालन और विस्तार के लिए उपयोग की जाती है।
ii) भौतिक पूंजी: मशीनरी, उपकरण, भवन, और अन्य भौतिक वस्तुएं जो उत्पादन में मदद करती हैं।
iii) मानव पूंजी: श्रमिकों की क्षमताएं, कौशल, और ज्ञान जो उत्पादन में योगदान करते हैं।

पूंजी का मुख्य उद्देश्य उत्पादन की दक्षता और मात्रा को बढ़ाना, नवाचार को प्रोत्साहित करना, और दीर्घकालिक आर्थिक लाभ सुनिश्चित करना है।

संगठन

उत्पादन के लिए संगठन क्यों ज़रूरी है:

संरचना और समन्वय:

i) उद्देश्य:उत्पादन प्रक्रियाओं की सुव्यवस्थित संरचना और समन्वय को सुनिश्चित करना।

ii) लाभ: कार्यों का व्यवस्थित विभाजन और प्रभावी प्रबंधन।

संसाधनों का प्रभावी उपयोग:

i) उद्देश्य: संसाधनों (श्रम, पूंजी, सामग्री) का कुशल प्रबंधन।

ii) लाभ: अपव्यय और अत्यधिक लागत को कम करना।

उत्पादकता में वृद्धि:

i) उद्देश्य: कार्यप्रणाली और प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।

ii) लाभ: उत्पादन की गति और गुणवत्ता में सुधार।

समय प्रबंधन:

i) उद्देश्य: समय पर उत्पादन पूरा करना।

ii) लाभ: डेडलाइन और बाजार की मांग को पूरा करना।

विविध कार्यों का समन्वय:

i) उद्देश्य: विभिन्न विभागों और कार्यों के बीच तालमेल।

ii) लाभ: बेहतर सामूहिक प्रयास और समस्या समाधान।

लाभ और प्रतिस्पर्धा:

i) उद्देश्य: बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखना।

ii) लाभ: लागत में कमी और लाभ में वृद्धि।

साहस या उद्यमिता

साहस से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो नए व्यापार, उत्पाद, या सेवाओं की शुरुआत करता है, और जो जोखिम उठाते हुए नए अवसरों को पहचानता है और उनका उपयोग करता है। साहसिक व्यक्ति न केवल व्यवसायिक विचारों को उत्पन्न करता है बल्कि उन्हें कार्यान्वित भी करता है, जिससे नए व्यवसायिक अवसरों और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

मुख्य गुण:

i) रिस्क लेना: जोखिम उठाने की क्षमता, जैसे वित्तीय, प्रबंधकीय, और व्यावसायिक जोखिम।

ii) नवीनता: नए विचारों और तरीकों को लागू करने की प्रवृत्ति।

iii) सृजनात्मकता: नवीन उत्पादों, सेवाओं, या प्रक्रियाओं का निर्माण।

iv) प्रबंधन कौशल: संसाधनों और टीमों का प्रभावी प्रबंधन।

क्या उत्पादित करें (What to Produce)

मांग और आपूर्ति:

i) समझें: बाजार में ग्राहक की मांग और आपूर्ति की स्थिति का विश्लेषण करें।

ii) उद्देश्य: उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करना।

उपलब्ध संसाधन:

i) समझें: उपलब्ध कच्चे माल, पूंजी, और श्रम का मूल्यांकन करें।

ii) उद्देश्य: संसाधनों का उचित उपयोग करना।

लाभ और लागत:

i) समझें: विभिन्न उत्पादों के निर्माण की लागत और संभावित लाभ का विश्लेषण करें।

ii) उद्देश्य: आर्थिक लाभ प्राप्त करना और लागत को नियंत्रित करना।

प्रतिस्पर्धा:

i) समझें: प्रतिस्पर्धियों की पेशकश और उनकी ताकत और कमजोरियों का मूल्यांकन करें।

ii) उद्देश्य: प्रतिस्पर्धा में बने रहना और बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करना।

उद्योग और बाजार की प्रवृत्तियाँ:

i) समझें: उद्योग की नई प्रवृत्तियों और तकनीकी उन्नतियों को पहचानें।

ii) उद्देश्य: नवीनतम रुझानों के अनुसार उत्पादित करना।

इस प्रकार, “क्या उत्पादित करें” का निर्णय ग्राहक की मांग, संसाधनों की उपलब्धता, लागत और लाभ, प्रतिस्पर्धा, और उद्योग की प्रवृत्तियों पर आधारित होता है।

उत्पादन के साधनों की महत्ता

उत्पादकता में वृद्धि:

i) उद्देश्य: उत्पादन प्रक्रियाओं को अधिक कुशल बनाना।

ii) लाभ: उत्पादकता और कार्य की गति में सुधार।

लागत में कमी:

i) उद्देश्य: संसाधनों और समय का अधिकतम उपयोग।

ii) लाभ: उत्पादन लागत को कम करना।

गुणवत्ता में सुधार:

i) उद्देश्य: उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार करना।

ii) लाभ: बाजार में प्रतिस्पर्धा में बढ़त।

संसाधनों का कुशल उपयोग:

i) उद्देश्य: कच्चे माल और श्रम का सही प्रबंधन।

ii) लाभ: संसाधनों का व्यर्थ उपयोग कम करना।

विकास और नवाचार:

i) उद्देश्य: नई तकनीकों और उत्पादों का विकास।

ii) लाभ: व्यापार की वृद्धि और बाजार में प्रतिस्पर्धा।

स्थिरता और निरंतरता:

i) उद्देश्य: उत्पादन की नियमितता और स्थिरता बनाए रखना।

ii) लाभ: लंबे समय तक निरंतर उत्पादन और आपूर्ति।

वस्तुओं एवं सेवाओं का वर्गीकरण

वस्तुएं

i) दृश्य वस्तुएं: जिन्हें देखा जा सकता है, जैसे कि किताबें, कपड़े, आदि

ii) अदृश्य वस्तुएं: जिन्हें देखा नहीं जा सकता है, जैसे कि विचार, भावनाएं, आदि

सेवाएं

i) व्यक्तिगत सेवाएं: जो व्यक्तियों को प्रदान की जाती हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आदि

ii) व्यावसायिक सेवाएं: जो व्यवसायों को प्रदान की जाती हैं, जैसे कि वित्त, विपणन, आदि

इन वर्गीकरणों के आधार पर, वस्तुओं और सेवाओं को अलग-अलग श्रेणियों में रखा जा सकता है।

विभिन प्रकार के वस्तुओं का उत्पादन

उपभोग की वस्तुएँ (Consumer Goods)

उपभोग की वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जो उपभोक्ताओं द्वारा सीधे व्यक्तिगत या पारिवारिक उपयोग के लिए खरीदी और उपभोग की जाती हैं। इन वस्तुओं का उपयोग तुरंत या थोड़े समय में किया जाता है।

उत्पादक वस्तुएँ (Capital Goods)

उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग की जाती हैं और जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है। ये वस्तुएँ खुद उपभोग के लिए नहीं होतीं, बल्कि उत्पादन में सहायता करने के लिए होती हैं।

Comments

  1. Shivani kumari says:
    September 27, 2024 at 9:38 am

    Super notes

    Reply

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