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अर्थशास्त्र कक्षा 9 बिहार बोर्ड || Menu
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Economics Class 9 Notes Chapter 4 Bihar Board बिहार बोर्ड

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बेकारी

बेकरी की परिभाषा

बेकरी या बेरोजगारी एक आर्थिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति काम करने के लिए तैयार होता है लेकिन उसे कोई रोजगार नहीं मिलता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता है, इस स्थिति में व्यक्ति काम की तलाश में होता है, लेकिन उसे उपयुक्त रोजगार नहीं मिल पाता।

बेरोजगारी के प्रकार

भारत के दो क्षेत्रों मे बेरोजगारी पाई जाती है –

(i) ग्रामीण क्षेत्र
– मौसमी बेरोजगारी, छिपी हुई बेरोजगारी, प्रछन्न बेरोजगारी

(ii) शहरी क्षेत्र – शिक्षित बेरोजगारी, औद्योगिक बेरोजगारी, तकनीक बेरोजगारी

ग्रामीण बेरोजगारी

ग्रामीण बेरोजगारी उस स्थिति को दर्शाती है जब ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग रोजगार की कमी के कारण काम नहीं कर पाते हैं या उनकी क्षमता के अनुरूप काम नहीं मिल पाता। यह बेरोजगारी अक्सर कई कारणों से होती है और इसका प्रभाव ग्रामीण जीवन और अर्थव्यवस्था पर गहरा पड़ता है।

मौसमी बेरोजगारी

मौसमी बेरोजगारी उस स्थिति को कहते हैं जब लोगों को केवल कुछ विशेष मौसम या समय के दौरान ही रोजगार मिलता है, और बाकी समय वे बेरोजगार रहते हैं। यह प्रकार की बेरोजगारी मुख्यतः उन क्षेत्रों में होती है जहां काम का स्वभाव मौसमी होता है, जैसे कि कृषि, पर्यटन, निर्माण कार्य, और त्यौहारों से जुड़े उद्योग।

मौसमी बेरोजगारी के कारण:

i) मौसम के बदलाव
ii) फसलों की मौसमी प्रकृति
iii) पर्यटन की मौसमी प्रवृत्ति
iv) निर्माण कार्यों में मौसमी बदलाव

छिपी हुई तथा प्रछन्न बेरोजगारी

(जिसे अंग्रेज़ी में Disguised Unemployment कहा जाता है) दोनों का एक ही अर्थ है। यह बेरोजगारी की एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति वास्तव में काम कर रहा होता है, लेकिन उसकी उत्पादकता बहुत कम होती है, या वह अतिरिक्त कार्यबल का हिस्सा होता है जिसकी वास्तव में आवश्यकता नहीं है।

छिपी हुई तथा प्रछन्न बेरोजगारी के कारण

i) अधिक जनसंख्या
ii) शिक्षा और कौशल की कमी
iii) असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व
iv) अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक समस्याएं
v) परिवार आधारित कार्यप्रणाली
vi) आर्थिक विकास की कमी

शहरी बेरोजगारी

शहरी बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें शहरों और कस्बों में रहने वाले लोग रोजगार की कमी के कारण काम नहीं कर पाते या उनकी योग्यता के अनुरूप काम नहीं मिल पाता। शहरी बेरोजगारी का प्रमुख कारण तेजी से बढ़ती आबादी, आर्थिक असमानता, और शिक्षा व कौशल के अभाव से जुड़ा होता है। इसके अलावा, औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में रोजगार की धीमी वृद्धि भी इस समस्या को बढ़ाती है।

शिक्षित बेरोजगारी

शिक्षित बेरोजगारी उस स्थिति को कहते हैं जब किसी व्यक्ति के पास उच्च शिक्षा और योग्यताएँ होती हैं, लेकिन फिर भी उसे अपनी शिक्षा और कौशल के अनुरूप काम नहीं मिलता। शिक्षित बेरोजगारी का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति बिलकुल बेरोजगार है, बल्कि वह या तो अपने स्तर से कम काम कर रहा होता है या पूरी तरह से बेरोजगार होता है।

शिक्षित बेरोजगारी के कारण:

i) शिक्षा प्रणाली की कमी
ii) कौशल की कमी
iii) रोजगार के अवसरों की कमी
iv) अनुभव की कमी
v) प्रतिस्पर्धा

औद्योगिक बेरोजगारी

औद्योगिक बेरोजगारी उस स्थिति को कहते हैं जब औद्योगिक क्षेत्रों, जैसे कि फैक्ट्रियाँ और उद्योग, में काम करने वाले लोग रोजगार की कमी का सामना करते हैं। यह बेरोजगारी विशेष रूप से उन लोगों के लिए होती है जो उद्योगों में काम करते हैं और किसी कारणवश उन उद्योगों में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं।

औद्योगिक बेरोजगारी के प्रमुख कारण

i) औद्योगिक उत्पादन में कमी
ii) औद्योगिक इकाइयों का बंद होना
iii) औद्योगिक मंदी
iv) वैश्विक प्रतिस्पर्धा
v) आर्थिक नीतियाँ और विनियम

तकनीकी बेरोजगारी

तकनीकी बेरोजगारी (Technological Unemployment) तब होती है जब प्रौद्योगिकी के कारण लोगों के लिए रोजगार के अवसर घट जाते हैं या समाप्त हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण नई तकनीकों, जैसे कि ऑटोमेशन (स्वचालन), रोबोटिक्स, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), के कारण पुरानी नौकरियों का स्वचालित हो जाना या समाप्त हो जाना होता है।

तकनीकी बेरोजगारी के प्रमुख कारण

i) स्वचालन (Automation)
ii) रोबोटिक्स
iii) कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
iv) सॉफ़्टवेयर और एप्लिकेशन
v) इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म

बेकरी का जन्म

1. अत्यधिक जनसँख्या

अत्यधिक जनसंख्या बेरोजगारी को कई तरीकों से प्रभावित कर सकती है, खासकर जब जनसंख्या वृद्धि रोजगार के अवसरों से तेज़ी से बढ़ रही हो। अत्यधिक जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

i) रोजगार के अवसरों की कमी
ii) आर्थिक संसाधनों पर दबाव
iii) शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी
iv) असंतुलित क्षेत्रीय विकास
v) संरचनात्मक परिवर्तन
vi) आवश्यक वस्त्र और सेवाओं की मांग
vii) महत्वपूर्ण नौकरी के अवसरों की कमी

2. अशिक्षा

अशिक्षा बेरोजगारी को कई तरीकों से प्रभावित कर सकती है, खासकर जब व्यक्तियों के पास आवश्यक शिक्षा और कौशल नहीं होते जो रोजगार के अवसरों के लिए आवश्यक होते हैं। अशिक्षा के कारण बेरोजगारी उत्पन्न होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

i) कौशल की कमी
ii) शैक्षिक प्रमाणपत्रों की कमी
iii) रोजगार के अवसरों का असंतुलन
iv) उद्योगों और बाजार की आवश्यकताओं से असंगति
v) स्वतंत्र उद्यमिता की कमी
vi) सामाजिक और आर्थिक असमानता
vii) नौकरी के चयन की सीमाएं

3. कृषि का पिछड़ापन

कृषि का पिछड़ापन बेरोजगारी को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है, विशेषकर ग्रामीण और कृषि आधारित क्षेत्रों में। कृषि का पिछड़ापन तब होता है जब कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक, संसाधन, और प्रबंधन की कमी होती है, जो इसके उत्पादन और रोजगार क्षमता को प्रभावित करती है।

कृषि के पिछड़ापन के कारण बेरोजगारी

i) पुरानी तकनीक और विधियाँ
ii) अवसंरचना की कमी
iii) भूमि की असामान्यता
iv) उचित संसाधनों की कमी
v) विपणन की समस्याएँ
vi) अविकसित कृषि नीतियाँ
vii) कृषि में विविधता की कमी

4. कृषि पर जनसँख्या का अत्यधिक बोझ

कृषि पर जनसंख्या का अत्यधिक बोझ तब उत्पन्न होता है जब ग्रामीण और कृषि आधारित क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि इतनी अधिक होती है कि यह कृषि संसाधनों और प्रबंधन को प्रभावित करती है। यह स्थिति अक्सर निम्नलिखित समस्याओं को जन्म देती है।

कृषि पर जनसंख्या का अत्यधिक बोझ के प्रभाव

i) भूमि की विखंडन
ii) अधिक श्रमिक, कम उत्पादकता
iii) संसाधनों का दबाव
iv) आवश्यक अवसंरचना की कमी
v) मौसमी बेरोजगारी
vi) जमीन की गुणवत्ता में गिरावट

5. औद्योगिकारन के आभाव

औद्योगिकीकरण के अभाव के कारण बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण समस्या बन सकती है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ उद्योगों का विकास धीमा होता है या नहीं हुआ है। औद्योगिकीकरण की कमी से बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

औद्योगिकीकरण के अभाव के कारण बेरोजगारी

i) रोजगार के अवसरों की कमी
ii) आर्थिक विकास की कमी
iii) कौशल विकास की कमी
iv) राजस्व का सीमित स्रोत
v) निवेश और विकास की कमी
vi) विभिन्न उद्योगों की कमी
vii) सामाजिक और आर्थिक असमानता

6. पूंजी का अभाव

पूंजी का अभाव बेरोजगारी को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है, खासकर जब पूंजी की कमी के कारण व्यवसाय और उद्योगों का विकास बाधित होता है। पूंजी का अभाव बेरोजगारी के निम्नलिखित प्रमुख कारणों को जन्म दे सकता है:

पूंजी के अभाव के कारण बेरोजगारी

i) नौकरियों का सृजन नहीं
ii) व्यापार की कमी
iii) उद्योगों की कमी
iv) निवेश की कमी
v) उच्च लागत और ऋण की समस्या
vi) तकनीकी और अवसंरचनात्मक सुधार की कमी
vii) श्रमिकों की स्थिति

7. प्रशिक्षित श्रम-शक्ति का अभाव

प्रशिक्षित श्रम-शक्ति का अभाव बेरोजगारी को विभिन्न तरीकों से प्रभावित कर सकता है, खासकर तब जब उद्योगों और व्यवसायों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित श्रमिक नहीं मिल पाते। प्रशिक्षित श्रम-शक्ति की कमी के प्रमुख कारण और प्रभाव निम्नलिखित हैं:

प्रशिक्षित श्रम-शक्ति का अभाव के कारण बेरोजगारी

i) उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुसार कौशल की कमी
ii) कम उत्पादकता
iii) नौकरी में असमर्थता
iv) औद्योगिक विकास में बाधा
v) श्रम बाजार में असंतुलन
vi) आर्थिक विकास में कमी

बेकारी समाप्त करने अथवा रोजगार बढ़ाने के उपाए

सरकारी प्रयास

बेरोजगारी समाप्त करने के लिए सरकार विभिन्न नीतियाँ और कार्यक्रम लागू करती है। ये प्रयास आर्थिक विकास, कौशल विकास, और रोजगार सृजन पर केंद्रित होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख सरकारी प्रयास दिए गए हैं:

i) न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम
ii) क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम
iii) काम के बदले अनाज
iv) निश्चित रोजगार योजना
v) समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम
vi) ग्रामीण भूमिहीन रोजगार कार्यक्रम
vii) जवाहर रोजगार योजना

वर्तमान मे भारत सर्कार की योजनाएँ-

i) ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षिण योजना [TRY SEM]
ii) ग्रामीण महिला एवं बाल विकास योजना [DWCRA – 1982]
iii) जवाहर ग्रामीण समृद्धि योजना [JGSY -1989]

गैर सरकारी उपाय

बेरोजगारी समाप्त करने के लिए गैर-सरकारी उपाय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ये उपाय आमतौर पर समाज के विभिन्न क्षेत्रों, गैर-लाभकारी संगठनों, और निजी क्षेत्र द्वारा किए जाते हैं।

कुटीर उद्योगो का विस्तार

कुटीर उद्योगों का विस्तार ग्रामीण और स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ये उद्योग छोटे पैमाने पर होते हैं और अक्सर स्थानीय संसाधनों और श्रम का उपयोग करते हैं। कुटीर उद्योगों का विस्तार बेरोजगारी कम करने, ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित करने, और आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ाने में सहायक हो सकता है।

स्वरोजगार

स्वरोजगार एक ऐसा स्वरूप है जिसमें व्यक्ति स्वयं का व्यवसाय या उद्यम स्थापित करता है, न कि किसी अन्य के लिए काम करता है। यह व्यक्तिगत उद्यमिता, स्वतंत्रता और आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। स्वरोजगार के कई लाभ होते हैं, जैसे कि अपने समय का नियंत्रण, आय की स्वतंत्रता, और व्यवसाय के निर्णयों में पूर्ण स्वाधीनता।

बेरोजगारी का प्रभाव

जनशक्ति संसाधन की बर्बादी

जनशक्ति संसाधन की बर्बादी तब होती है जब मानव संसाधन, जो कि किसी देश या क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण पूंजी है, सही ढंग से उपयोग में नहीं आता या उसकी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं होता। यह विभिन्न कारणों से हो सकता है और इसके गंभीर आर्थिक, सामाजिक और विकासात्मक परिणाम हो सकते हैं।

हीन भावना का जन्म

हीन भावना (Inferiority Complex) एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति स्वयं को दूसरों से नीचा या कमतर मानता है। यह भावना आत्म-संकोच, आत्म-संदेह, और आत्म-विश्वास की कमी के साथ जुड़ी होती है। हीन भावना का जन्म कई कारकों के संयोजन से होता है और यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

सामाजिक कुरीतियों का बढ़ना

सामाजिक कुरीतियाँ वे नकारात्मक प्रथाएँ, परंपराएँ, और मान्यताएँ होती हैं जो समाज के विकास और व्यक्ति के अधिकारों को बाधित करती हैं। ये कुरीतियाँ अक्सर अज्ञानता, पिछड़े सोच, और सांस्कृतिक आदतों के कारण बढ़ती हैं।

पलायन की प्रवृत्ति का जन्म

पलायन की प्रवृत्ति (Migration Trends) का जन्म विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय कारकों के संयोजन से होता है। पलायन तब होता है जब लोग अपने वर्तमान निवास स्थान से किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित होते हैं, जो कि बेहतर जीवन की खोज, अवसरों की तलाश, या अन्य कारणों से हो सकता है।

प्रतिव्यक्ति आय की कमी (Per Capita Income Deficit)

प्रतिव्यक्ति आय की कमी (Per Capita Income Deficit) का मतलब है कि एक देश या क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय अपेक्षित स्तर से कम है। यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है जो किसी देश के औसत नागरिक की वित्तीय स्थिति और जीवन स्तर को दर्शाता है। प्रतिव्यक्ति आय की कमी आमतौर पर आर्थिक विकास, सामाजिक समृद्धि, और जीवन गुणवत्ता के संदर्भ में चिंताजनक होती है।

निम्न जीवन स्तर

निम्न जीवन स्तर (Low Standard of Living) का मतलब है कि किसी व्यक्ति, परिवार, या समाज के पास जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन या सुविधाएँ नहीं हैं। यह स्थिति आमतौर पर गरीबी, आर्थिक असमानता, और विकास की कमी से जुड़ी होती है।

आर्थिक मंडी का खतरा

आर्थिक मंदी (Economic Recession) एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी देश की अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक धीमी वृद्धि, कम उत्पादन, और बढ़ती बेरोजगारी जैसी समस्याएँ होती हैं। मंदी के दौरान आर्थिक गतिविधियाँ, निवेश, और रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

संसाधनों का उचित उपयोग न होना

संसाधनों का उचित उपयोग न होना (Inefficient Use of Resources) का मतलब है कि उपलब्ध संसाधनों का उपयोग न के बराबर किया जा रहा है या उनका उपयोग अत्यंत असमर्थ तरीके से किया जा रहा है। यह समस्या अक्सर आर्थिक, सामाजिक, और पर्यावरणीय समस्याओं का कारण बनती है और विकास में बाधा डालती है। संसाधनों में प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन, वित्तीय संसाधन, और समय शामिल हो सकते हैं।

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