Solutions For All Chapters – संस्कृत Class 9
अभ्यासः (मौखिकः)
1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं वदत-
(नीचे लिखे गए प्रश्नों का उत्तर दो)
(क) – प्रकृते: नियमः कः ? (प्रकृति का नियम क्या है?)
उत्तर- परिवर्तनम् (परिवर्तन)
(ख) – जीवने सदा किं न तिष्ठति ? (जीवन में हमेशा क्या स्थिर नहीं रहता?)
उत्तर- एकरूपता (एकरूपता)
(ग) – अन्तराले इति पदस्य कः अर्थ ? (“अंतराले” शब्द का अर्थ क्या है?)
उत्तर- मध्ये (बीच में)
(घ) – मानसे स्वच्छन्दता कदा पदं धारयति ? (मन में स्वच्छंदता कब स्थान ग्रहण करती है?)
उत्तर- युवास्थायाम् (युवावस्था में)
(ङ)- कः कालः श्रेष्ठः भवति ? (कौन सा समय श्रेष्ठ होता है?)
उत्तर- वर्तमानकालः । (वर्तमान काल)
2. अधोलिखितानां मौखिकम् उत्तरम् दत्त-
(नीचे लिखे गए प्रश्नों के मौखिक उत्तर दीजिए।)
(क) किशोरावस्था कदा कथ्यते? (किशोरावस्था कब कही जाती है?)
उत्तर- किशोरावस्था बालावस्थायुवावस्थयोरन्तराले भवति। (किशोरावस्था बचपन और युवावस्था के बीच में होती है।)
(ख) अनुशासनं कदा अप्रियं भवति? (अनुशासन कब अप्रिय लगता है?)
उत्तर- किशोरावस्थायां अनुशासनं अप्रियं भवति। (किशोरावस्था में अनुशासन अप्रिय लगता है।)
(ग) साधनाभावे किं न उचितम्? (साधनों के अभाव में क्या उचित नहीं है?)
उत्तर- साधनाभावे कुण्ठापालनं न उचितम्। (साधनों के अभाव में निराश होना उचित नहीं है।)
(घ) नीतिपद्यांशस्य कः अर्थः अनुसरणीयः? (नीति पद्यांश का कौन सा अर्थ अनुसरण करने योग्य है?)
उत्तर- नीतिपद्यांशस्य अर्थः यत्नं कर्तव्यमिति अनुसरणीयः। (नीति पद्यांश का अर्थ है कि प्रयास करना चाहिए, यह अनुसरण करने योग्य है।)
(ङ) प्रारब्धं के न परित्यजन्ति? (प्रारंभ किए कार्य को कौन नहीं छोड़ते?)
उत्तर- उत्तमजनाः प्रारब्धं न परित्यजन्ति। (लोग प्रारंभ किए कार्य को नहीं छोड़ते।)
(च) शिक्षाकाले किं चिन्तयेत्? (शिक्षा के समय क्या सोचना चाहिए?)
उत्तर- शिक्षाकाले वर्तमानकार्यमेव चिन्तयेत्। (शिक्षा के समय केवल वर्तमान कार्य के बारे में ही सोचना चाहिए।)
3. उदाहरणमनुसृत्य उत्तरं वदत-
(उदाहरण देखकर उत्तर दो।)
उदाहरणम् – परि + वृत् + ल्युट् = परिवर्तनम्
(क) परि + मार्ज् + ल्युट् = परिमार्जनम् (शुद्ध करना / साफ़ करना / सुधार करना)
(ख) परि + शुध् + ल्युट् = परिशोधनम् (शुद्धिकरण / छानना / परिष्करण)
(ग) अनु + शील् + ल्युट् = अनुशीलनम् (अभ्यास / साधना / अनुसंधान करना)
(घ) अनु + सृ + ल्युट् = अनुसरणम् (पालन करना / पीछे-पीछे चलना / अनुकरण)
(ङ) पा + ल्युट् = पालनम् (रक्षा करना / पालन-पोषण करना)
4. उदाहरणमनुसृत्य पञ्च पदानि वदत-
(उदाहरण का अनुसरण करके पाँच पद बताइए )
उदाहरणम् – कृ + अनीयर् करणीयम् (करने योग्य)
(क) पठ् + अनीयर् = पठनीयम् (पढ़ने योग्य)
(ख) श्रु + अनीयर् = श्रवणीयम् (सुनने योग्य)
(ग) स्मृ + अनीयर् = स्मरणीयम् (स्मरण करने योग्य / याद रखने योग्य)
(घ) पच् + अनीयर् = पचनीयम् (पकाने योग्य)
(ङ) दृश् + अनीयर् = दर्शनीयम् (देखने योग्य)
अभ्यासः (लिखितः)
1. अधोलिखिताम् एकपदेन उत्तर लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के एक शब्द में उत्तर लिखिए)
(क) जीवने प्रकृते: नियमः कः ? (जीवन में प्रकृति का नियम क्या है?)
(ख) स्वच्छन्दता कुत्र पदं धारयति ? (स्वच्छंदता कहाँ शब्द धारण करती है?)
(ग) किशोरेषु कस्य परिशोधनम् आवश्यकम् भवति ? (किशोरों में किसका परिशोधन आवश्यक होता है?)
(घ) दूरतः अपि दृश्यमानं लक्ष्यं कैः लभ्यते ? (दूर से भी दिखाई देने वाला लक्ष्य किनके द्वारा प्राप्त किया जाता है?)
(ङ) श्रेष्ठः कालः कः अस्ति? (श्रेष्ठ काल कौन सा है?)
उत्तर- (क) परिवर्त्तनम् (परिवर्तन)
(ख) मानसे (मन में)
(ग ) दिवास्वप्नस्य (दिवास्वप्न)
(घ) शालिनि: (शालीन)
(ङ) वर्तमानः (वर्तमान)
2. निम्नलिखितानां पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) कृष्णः गीतायां केन रूपेण अवस्थात्रयं निर्दिशति ? (कृष्ण गीता में किन तीन अवस्थाओं का निर्देश करते हैं?)
(ख) उच्चविद्यालये अधीयानाः के भवन्ति ? (उच्च विद्यालय में पढ़ने वाले कौन होते हैं?)
(ग) शिक्षका: अभिभावकाश्च कस्मिन् विषये दत्तावधानाः न भवन्ति ? (शिक्षक और अभिभावक किन विषयों पर ध्यान नहीं देते?)
(घ) के स्वमित्राणि विकृतानि कुर्वन्ति ? (कौन अपने मित्रों को विकृत करते हैं?)
(ङ) कथं स्वाभिलाषस्य पूरणं श्रेयः ? (अपनी अभिलाषा की पूर्ति करना कैसे श्रेयस्कर है?)
(च) लक्ष्यं प्राप्तुं किं कर्तव्यम् ? (लक्ष्य प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए?)
(छ) किशोरजीवनस्य मन्त्रद्वयं किम् ? (किशोर जीवन के दो मंत्र क्या हैं?)
उत्तर-
(क) कृष्णः गीतायां कौमारं, यौवनं, जरां च अवस्थात्रयं निर्दिशति। (कृष्ण गीता में कौमार (बचपन), यौवन और जरा (वृद्धावस्था) इन तीन अवस्थाओं का निर्देश करते हैं।)
(ख) उच्चविद्यालये अधीयानाः किशोरा: किशोर्यश्च भवन्ति। (उच्च विद्यालय में पढ़ने वाले किशोर और किशोरियाँ होते हैं।)
(ग) शिक्षका: अभिभावकाश्च किशोराणां शारीरिको मनोवैज्ञानिकश्च पक्षावुपेक्षितौ विषये दत्तावधानाः न भवन्ति। (शिक्षक और अभिभावक किशोरों के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पक्षों पर ध्यान नहीं देते।)
(घ) सम्पन्नपरिवारे पालिताः किशोराः यदा कदा स्वमित्राणि विकृतानि कुर्वन्ति। (सम्पन्न परिवारों में पलने वाले किशोर कभी-कभी अपने मित्रों को विकृत करते हैं।)
(ङ) समाजे सुलभानां साधनानामुपयोगेन स्वाभिलाषस्य पूरणं श्रेयः। (समाज में उपलब्ध साधनों का उपयोग करके अपनी अभिलाषा की पूर्ति करना श्रेयस्कर है।)
(च) लक्ष्यं प्राप्तुं सदानुबन्धशालिभिः महतां जनानां जीवनचरितस्य अनुशीलनम् अनुसरणं च कर्तव्यम्। (लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सदा अच्छे लोगों के साथ रहकर महान व्यक्तियों के जीवन चरित्र का अध्ययन और अनुसरण करना चाहिए।)
(छ) संकल्पस्य दृढता, दृष्टेः व्यापकता चेति किशोरजीवनस्य मन्त्रद्वयं स्यात्। (संकल्प की दृढ़ता और दृष्टि की व्यापकता किशोर जीवन के दो मंत्र हैं।)
3. ‘क’ स्तम्भे दत्तानां पदानां समानार्थकं पदं ‘ख’ स्तम्भे दत्तम्/ तौ यथोचितम् योजयत –
(‘क’ स्तंभ में दिए गए पदों के समानार्थक शब्द ‘ख’ स्तंभ में दिए गए हैं। उन्हें यथोचित रूप से जोड़िए)
उत्तर-
‘क’ | ‘ख’ |
कौमारम् (नवयुवक) | किशोरावस्था |
यौवनम | युवावस्था |
तदानीम् | तदा |
स्वच्छन्दता | स्वैरवृत्तिः |
अधुना | सम्प्रति |
अन्तराले | मध्ये |
4. रेखांकित – सर्वनाम – पदानि केभ्यः प्रयुक्तानि सन्ति लिखत-
(रेखांकित सर्वनाम किन-किन शब्दों से बने हैं, यह बताना है।)
(क) बालावस्था – युवावस्थयोरन्तराले च सा भवति । (बाल्यावस्था और युवावस्था के बीच वह होती है।)
(ख) विद्यालये सामान्या शिक्षाक्रमेण ते परम्परागतं पाठमेवानुसरन्ति । (विद्यालय में सामान्य शिक्षा-क्रम से वे केवल परम्परागत पाठ का ही पालन करते हैं।)
(ग) तेषां महत्त्वाकाङ्क्षां वर्धयन्ति । (उनकी महत्त्वाकांक्षा बढ़ाते हैं।)
(घ) एते च स्वपरिवारं प्रति आक्रोशभावं प्रकटयन्ति । (ये भी अपने परिवार के प्रति आक्रोश-भाव प्रकट करते हैं।)
(ङ) तेषां शरीरिको मनोवैज्ञानिकश्च पक्षावुपेक्षितौ स्तः । (उनके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष उपेक्षित हैं।)
उत्तर-
यहाँ रेखांकित सर्वनाम पदों के अर्थ हैं:
(क) सा – यह (किशोरावस्था)
(ख) ते – वे (विद्यार्थी)
(ग) तेषां – उनकी (किशोरों की)
(घ) एते – ये (किशोर)
(ङ) तेषां – उनकी (किशोरों की)
5. अधोलिखितं रेखांकित – पदमनुसृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(रेखांकित पद के अनुसार प्रश्न बनाइए)
(क) कृष्णः गीतायां निर्दिशति । (कृष्ण गीता में उपदेश देते हैं।)
उत्तर- कः गीतायां निर्दिशति ? (कौन गीता में उपदेश देता है?)
(ख) तत्र कौमारम् एव किशोरावस्था कथ्यते । (वहाँ कौमार अवस्था को ही किशोरावस्था कहा गया है।)
उत्तर- कः अवस्थाः किशोरावस्था कथ्यते ? (वहाँ कौन-सी अवस्था किशोरावस्था कही गई है?)
(ग) सम्प्रति एकमपि कार्यं ताभिः अलभ्यं न दृश्यते । (वर्तमान में कोई भी कार्य उनके लिए अप्राप्य नहीं दिखाई देता।)
उत्तर- कस्मिन् काले कार्यं ताभिः अलभ्यं न दृश्यते ? (किस समय किशोरियों के लिए कोई कार्य अप्राप्य नहीं दिखाई देता?)
(घ) शिक्षाकाले वर्तमानकार्यमेव चिन्तयेत् । (शिक्षा काल में केवल वर्तमान कार्य का ही चिंतन करना चाहिए।)
उत्तर- कदा वर्तमानकार्यमेव चिन्तयेत् ? (कब केवल वर्तमान कार्य का ही चिंतन करना चाहिए?)
(ङ) किशोरैः स्वकीयं मूलं साधनजातं न विस्मरणीयम् । (किशोरों द्वारा अपने मूल साधन को नहीं भुलाना चाहिए।)
उत्तर- केन स्वकीयं मूलं साधनजातं न विस्मरणीयम् ? (किशोरों द्वारा किसे नहीं भुलाया जाना चाहिए?)
6. अधोलिखितानाम् अव्ययपदानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत-
(नीचे दिए गए अव्यय शब्दों की सहायता से रिक्त स्थान भरिए)
सदा, च, एव, शनैः शनैः, यदा कदा, अधुना, कुत्र
(क) बाललक्षणं शनैः शनैः परुषतां प्राप्नोति।
(बालक का स्वभाव धीरे-धीरे कठोरता को प्राप्त करता है।)
(ख) किशोर्योऽपि स्वाभिलाषं पूरयितुं क्षमाः एव सन्ति।
(किशोरियाँ भी अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम होती हैं।)
(ग) शिक्षकाभिभावकयोर्मध्ये सदा संवादः अनिवार्यः।
(शिक्षक और अभिभावक के बीच हमेशा संवाद आवश्यक है।)
(घ) एकरूपता जीवने कुत्र न तिष्ठति।
(जीवन में कहाँ समानता स्थिर रहती है?)
(ङ) किशोराणा सा यदा कदा कथा वर्तते।
(कभी-कभी किशोरों की वही कथा चलती है।)
७. संधिः संधिविच्छेदं वा कुरुत-
(संधि या संधि विच्छेद कीजिए)
(क) प्रकृतेः + नियमः = प्रकृतेर्नियमः (प्रकृति का नियम)
(ख) सैव = सा + एव (वही)
(ग) तावत् + मार्दवम् = तावन्मार्दवम् (उतनी कोमलता)
(घ) किशोरैर्भवित्व्यम् = किशोरैः + भवित्व्यम् (किशोरों द्वारा किया जाना चाहिए)
(ङ) पक्षौ + उपेक्षितौ = पक्षावुपेक्षितौ (दोनों पक्ष उपेक्षित किए गए)
(च) सोद्देश्यताम् = सः + उद्देश्यताम् (उसका उद्देश्य हो)
(छ) कृष्णो गीतायाम् = कृष्णः + गीतायाम् (कृष्ण गीता में)
(ज) जीवने + अवस्थात्रयम् = जीवनेऽवस्थात्रयम् (जीवन में तीन अवस्थाएँ)
(झ) किशोर्यः + अपि = किशोर्य अपि (किशोरियाँ भी)
(ञ) किशोर्यश्च = किशोर्यः + च (किशोरियाँ भी)
Ø. उदाहरणमनृसृत्य समस्तपदानि लिखत-
(उदाहरण के अनुसार समस्तपद लिखिए)
उदाहरणम् – पदानि समस्तपदानि समासनाम
एका चासौरूपता एकरूपता कर्मधारयः
क) किशोराणाम् अवस्था ————————- षष्ठी तत्पुरुषः
(ख) परम्परया आगतम् ————————- तृतीया तत्पुरुष:
(ग) दत्तम् अवधानम् यैः ———————– बहुव्रीहि:
(घ) शासनस्य पश्चात् ————————– ‘अव्ययीभावः
(ङ) प्रगतम् आरब्धम् ————————- प्रादिः
(च) न प्रियम् —————————– नञ्
पदानि | समस्तपदानि | समासनाम |
---|---|---|
(क) किशोराणाम् अवस्था | किशोरावस्था | षष्ठी तत्पुरुषः |
(ख) परम्परया आगतम् | परम्परागतम् | तृतीया तत्पुरुषः |
(ग) दत्तम् अवधानम् यैः | दत्तावधानाः | बहुव्रीहिः |
(घ) शासनस्य पश्चात् | अनुशासनम् | अव्ययीभावः |
(ङ) प्रगतम् आरब्धम् | प्रारब्धम् | प्रादिः |
(च) न प्रियम् | अप्रियम् | नञ् |
Hindi Translation :
(क) किशोरों की अवस्था → किशोरावस्था (षष्ठी तत्पुरुष समास)
(ख) परंपरा द्वारा आगत → परम्परागतम् (तृतीया तत्पुरुष समास)
(ग) दिया गया ध्यान जिनके पास → दत्तावधानाः (बहुव्रीहि समास)
(घ) शासन के पश्चात् → अनुशासनम् (अव्ययीभाव समास)
(ङ) प्रगत आरब्ध → प्रारब्धम् (प्रादि समास)
(च) प्रिय नहीं → अप्रियम् (नञ् समास)
9. उदाहरणमनुसृत्य कृदन्तपदेषु धातुं प्रत्ययं च पृथक् कृत्वा लिखत-
(कृदन्त पदों में धातु और प्रत्यय अलग-अलग लिखिए)
उदाहरणम् – पदानि धातवः प्रत्ययः
आगतम् आ + X गम् क्त
(क) उपेक्षितः —————– ————–
(ख) अनिवार्य: —————– ————–
(ग) कर्तव्यम् —————— ————–
(घ) पूरयितुम् —————— ————–
(ङ) दृश्यमानम् —————— ————–
(च) जातम् —————— ————–
(छ) अवधेयः —————— ————–
(ञ) काम्यम् —————— ————–
Answer:
पदानि | धातवः | प्रत्ययः |
---|---|---|
(क) उपेक्षितः | उप + क्षि | क्त |
(ख) अनिवार्य: | नि + वृ | अ + ण्यत् |
(ग) कर्तव्यम् | कृ | तव्यत् |
(घ) पूरयितुम् | पूर् + यत् | तुमुन् |
(ङ) दृश्यमानम् | दृश् | यत् |
(च) जातम् | जन् | क्त |
(छ) अवधेयः | वध् | अनीयर् |
(ञ) काम्यम् | कम् | अ + ण्यत् |
10. अधोलिखितश्लोकांशस्य भावार्थं लिखत-
(दिए गए श्लोकांश का भावार्थ लिखें)
दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या
यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः ।
Hindi Translation :
भाग्य को मारकर अपनी शक्ति से पुरुषार्थ करो। यदि प्रयास करने पर भी सफल न हो तो इसमें दोष किसका? अर्थात् प्रयत्न का फल यदि शीघ्र न मिले तो विचार करना चाहिए कि मेरे प्रयास में कहाँ कमी थी, सफलता क्यों न मिली? फिर से प्रयास करना चाहिए।
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