मुद्रा और साख
1. मुद्रा (Money)
(क) विनिमय का माध्यम
- मुद्रा वस्तुओं एवं सेवाओं के लेन-देन में प्रयुक्त होती है।
 - यह आवश्यकताओं के दोहरे संयोग (Double Coincidence of Wants) की समस्या को समाप्त करती है।
 - उदाहरण – जूता निर्माता जूते बेचकर पहले मुद्रा प्राप्त करता है और फिर उससे गेहूँ खरीदता है।
 
(ख) मुद्रा के ऐतिहासिक रूप
- प्रारंभिक काल में अनाज और पशु मुद्रा के रूप में।
 - बाद में सोना, चाँदी, ताँबे के सिक्के।
 - आधुनिक काल – कागजी नोट और सिक्के।
 
(ग) आधुनिक मुद्रा
- भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा जारी करता है।
 - किसी व्यक्ति/संस्था को स्वयं मुद्रा जारी करने की अनुमति नहीं।
 - रुपया भारत में वैध भुगतान का माध्यम है, कोई अस्वीकार नहीं कर सकता।
 
2. बैंकों की भूमिका
(क) जमा (Deposits)
- लोग अतिरिक्त नकद को बैंकों में जमा करते हैं।
 - इस पर ब्याज मिलता है और आवश्यकता पड़ने पर निकाल सकते हैं।
 - इसे माँग जमा (Demand Deposit) कहते हैं।
 - चेक द्वारा भुगतान नकदी रहित लेन-देन की सुविधा देता है।
 
(ख) ऋण गतिविधियाँ
- बैंक जमा राशि का एक भाग नकद रखते हैं (लगभग 15%)।
 - शेष राशि ऋण के रूप में देते हैं।
 - ऋण पर ब्याज = बैंकों की आय।
 - बैंक जमाकर्ता और कर्जदार के बीच मध्यस्थता करते हैं।
 
3. साख (Credit)
(क) ऋण की दो स्थितियाँ
- सकारात्मक स्थिति (जैसे सलीम का उदाहरण)
- ऋण से उत्पादन बढ़ा, समय पर अदायगी हुई, लाभ हुआ।
 
 - नकारात्मक स्थिति (जैसे स्वप्ना का उदाहरण)
- फसल बर्बाद → कर्ज बढ़ता गया → ज़मीन बेचनी पड़ी → कर्ज-जाल में फँस गई।
 
 
(ख) ऋण की शर्तें
- ब्याज दर (Interest Rate)
 - ऋणाधार (Collateral) – जैसे ज़मीन, मकान, पशु।
 - कागजात – नौकरी/आय से जुड़े दस्तावेज़।
 - अदायगी का तरीका – किस्तें या एकमुश्त।
 
4. ऋण के स्रोत
(क) औपचारिक क्षेत्र (Formal Sector)
- बैंक, सहकारी समितियाँ।
 - भारतीय रिज़र्व बैंक निगरानी करता है।
 - ब्याज दरें अपेक्षाकृत कम।
 - उद्देश्य – छोटे किसानों, छोटे उद्योगों तक ऋण पहुँचाना।
 
(ख) अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector)
- साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार, दोस्त।
 - ब्याज दरें बहुत ऊँची, लिखित अनुबंध नहीं।
 - कर्जदार अक्सर कर्ज-जाल में फँस जाते हैं।
 
5. औपचारिक बनाम अनौपचारिक साख
- अमीर लोग प्रायः औपचारिक स्रोतों से सस्ता ऋण पाते हैं।
 - गरीब लोग अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर रहते हैं।
 - इससे गरीबों की आय का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में चला जाता है।
 
6. स्वयं सहायता समूह (SHGs)
- ग्रामीण गरीबों (विशेषकर महिलाओं) को संगठित करने का तरीका।
 - 15-20 सदस्य → नियमित बचत → आपस में छोटे ऋण।
 - बाद में समूह बैंक से ऋण लेने योग्य बन जाता है।
 - लाभ –
- बिना ऋणाधार भी ऋण संभव।
 - ब्याज दर साहूकार से कम।
 - महिलाएँ स्वावलंबी और संगठित होती हैं।
 
 - बांग्लादेश ग्रामीण बैंक (मोहम्मद यूनुस) – सफल उदाहरण।
 
7. विमुद्रीकरण (Demonetisation, 2016)
- 500 और 1000 रुपये के नोट अमान्य।
 - नई करेंसी (500 और 2000) जारी।
 - नकद रहित लेन-देन को बढ़ावा।
 - उद्देश्य – भ्रष्टाचार और नकद निर्भरता कम करना।
 
8. सारांश बिंदु
- मुद्रा = विनिमय का माध्यम।
 - आधुनिक मुद्रा = नोट और सिक्के (RBI द्वारा जारी)।
 - बैंक = जमा स्वीकार करते हैं और ऋण देते हैं।
 - ऋण → सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
 - औपचारिक साख जरूरी है, ताकि गरीब भी विकास में शामिल हों।
 - स्वयं सहायता समूह निर्धनों के लिए सस्ता और सुलभ ऋण का साधन हैं।
 

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