1. संसाधन की परिभाषा
1.हमारे पर्यावरण में पाई जाने वाली हर वस्तु, जो
- हमारी आवश्यकताओं को पूरा करे,
- प्रौद्योगिकी से उपयोगी बनाई जा सके,
- आर्थिक रूप से लाभकारी हो,
- और सांस्कृतिक रूप से मान्य हो,वही संसाधन कहलाती है।
2.संसाधन केवल प्रकृति की देन नहीं हैं, बल्कि मानवीय प्रयासों से संसाधन बनते हैं।
3.मानव स्वयं भी संसाधन है क्योंकि वह प्राकृतिक वस्तुओं को संसाधनों में बदलता है।
2. संसाधनों का वर्गीकरण
(क) उत्पत्ति के आधार पर
- जैव संसाधन – जीवित स्रोत (वनस्पति, पशु-पक्षी, मानव)।
- अजैव संसाधन – निर्जीव स्रोत (खनिज, धातु, जल, पवन)।
(ख) समाप्यता के आधार पर
- नवीकरणीय संसाधन – जो पुनः प्राप्त किए जा सकते हैं (जैसे वायु, जल, वन)।
- अनवीकरणीय संसाधन – जिनका पुनः निर्माण संभव नहीं (कोयला, पेट्रोलियम, खनिज)।
(ग) स्वामित्व के आधार पर
- व्यक्तिगत – व्यक्ति विशेष के स्वामित्व में।
- सामुदायिक – समाज या समुदाय द्वारा उपयोग किए जाने वाले (चारागाह, तालाब)।
- राष्ट्रीय – किसी राष्ट्र की सीमा के भीतर के सभी संसाधन।
- अंतर्राष्ट्रीय – वे संसाधन जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा में आते हैं (समुद्र से 200 किमी. के बाहर क्षेत्र)।
(घ) विकास स्तर के आधार पर
- संभावी संसाधन – उपयोग की संभावना वाले, पर अभी उपयोग नहीं हुए।
- विकसित भंडार – ज्ञात और उपयोग में लाए जा रहे संसाधन।
- संचित कोष – ज्ञात संसाधन, पर तकनीक/धन की कमी से उपयोग नहीं हो पा रहे।
3. संसाधनों से जुड़ी समस्याएँ
1.संसाधनों का अंधाधुंध दोहन।
2.कुछ लोगों के हाथों में संसाधनों का केन्द्रित होना → अमीर-गरीब का अंतर।
3.संसाधनों के शोषण से वैश्विक संकट:
- भूमंडलीय तापन (Global warming)
- ओजोन परत का क्षय
- पर्यावरण प्रदूषण
- भूमि निम्नीकरण
4. सतत् पोषणीय विकास (Sustainable Development)
- ऐसा विकास जो वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करे पर भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को प्रभावित न करे।
- विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना।
प्रमुख पहल
1.रियो डी जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन (1992)
- 100 से अधिक राष्ट्राध्यक्ष शामिल।
- जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता पर सहमति।
- एजेंडा 21 स्वीकार।
2.एजेंडा 21
- पर्यावरणीय क्षति, गरीबी व बीमारियों से निपटने हेतु विश्वस्तरीय सहयोग की योजना।
- हर स्थानीय निकाय को अपना स्थानीय एजेंडा 21 तैयार करने का निर्देश।
5. संसाधन नियोजन
- विवेकपूर्ण उपयोग हेतु नियोजन जरूरी।
- विशेषकर भारत जैसे विविध संसाधन वाले देश में।
चरण
- संसाधनों की पहचान और सूची बनाना।
- उपयुक्त प्रौद्योगिकी और संस्थागत ढाँचा तैयार करना।
- संसाधन विकास योजनाओं को राष्ट्रीय योजनाओं से जोड़ना।
भारत में उदाहरण
- झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश – खनिज और कोयले के भंडार।
- अरुणाचल प्रदेश – जल संसाधन प्रचुर, पर बुनियादी विकास नहीं।
- राजस्थान – पवन व सौर ऊर्जा अधिक, पर जल की कमी।
- लद्दाख – सांस्कृतिक संपन्नता, पर जल व खनिजों की कमी।
6. संसाधनों का संरक्षण
1.संसाधनों के अति-उपयोग से बचाव हेतु संरक्षण आवश्यक।
2.गांधीजी का विचार:
- “प्रकृति के पास हर व्यक्ति की आवश्यकता पूरी करने लायक संसाधन हैं, लेकिन किसी के लालच को पूरा करने लायक नहीं।”
अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
- 1968 – क्लब ऑफ रोम
- 1974 – स्माल इज़ ब्यूटीफुल (शुमेसर)
- 1987 – ब्रुन्द्रट्टलैंड आयोग रिपोर्ट – Our Common Future
7. भूमि संसाधन
1.भूमि पर ही कृषि, उद्योग, परिवहन, संचार आधारित हैं।
2.भारत का भौगोलिक परिदृश्य:
- 43% मैदान – कृषि व उद्योग के लिए उपयुक्त।
- 30% पर्वत – जल स्रोत, पर्यटन, पारिस्थितिकी संतुलन।
- 27% पठार – खनिज, जीवाश्म ईंधन व वन।
भूमि उपयोग (मुख्य श्रेणियाँ)
- वन
- कृषि योग्य अयोग्य भूमि
- परती भूमि (वर्तमान व पुरानी)
- शुद्ध बोया गया क्षेत्र
- सकल कृषित क्षेत्र
8. भूमि निम्नीकरण (Land Degradation)
1.भारत की लगभग 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि प्रभावित।
2.कारण:
- वनोन्मूलन
- अति पशुचारण
- खनन
- अति सिंचाई → जलभराव व लवणीयता
- औद्योगिक अपशिष्ट
संरक्षण उपाय
- वनीकरण, सामाजिक वानिकी।
- समोच्च जुताई, सीढ़ीदार खेती।
- पट्टी खेती।
- Shelter belts (पेड़ों की मेखला)।
- चरागाह प्रबंधन।
- खनन नियंत्रण।
9. मृदा संसाधन
- मृदा – सबसे महत्त्वपूर्ण नवीकरणीय संसाधन।
- बनने में लाखों वर्ष लगते हैं।
- कारक – जनक शैल, जलवायु, वनस्पति, समय।
भारत की मुख्य मृदाएँ
- जलोढ़ मृदा – उपजाऊ, गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी, डेल्टा क्षेत्र।
- काली मृदा – कपास के लिए प्रसिद्ध, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़।
- लाल व पीली मृदा – लौह प्रसार से लाल, पठारी व कम वर्षा वाले क्षेत्र।
- लेटराइट मृदा – अधिक वर्षा व निक्षालन से बनी, चाय व कॉफी के लिए उपयुक्त।
- मरुस्थली मृदा – रेतीली, लवणीय, राजस्थान।
- वन मृदा – पहाड़ी व पर्वतीय क्षेत्रों में।
10. मृदा अपरदन व संरक्षण
1.अपरदन के कारण: वनोन्मूलन, अति पशुचारण, खनन, गलत खेती।
2. अपरदन के प्रकार:
- गली कटाव (Gully erosion)
- चादर अपरदन (Sheet erosion)
- पवन अपरदन (Wind erosion)
रोकथाम के उपाय
- समोच्च जुताई
- सीढ़ीदार खेती (Terrace farming)
- पट्टी खेती (Strip farming)
- Shelter belts
- वनीकरण
Sahi hai bhai