1. परिचय
- पृथ्वी पर करोड़ों जीवधारी – सूक्ष्म जीवाणु, कीट, पौधे, वृक्ष, पशु, पक्षी और बड़े जीव जैसे हाथी व ब्लू व्हेल पाए जाते हैं।
- सभी मिलकर एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) बनाते हैं।
- मानव का जीवन वायु, जल, मृदा, पौधे और पशुओं पर निर्भर है।
- वन – पारिस्थितिकी तंत्र में प्राथमिक उत्पादक हैं, जिन पर सभी जीवधारी निर्भर रहते हैं।
- वन्य जीवन और कृषि उपजातियाँ भी आपसी अंतर्निर्भरता का जाल बनाती हैं।
2. भारत में जैव विविधता
- भारत जैव विविधता में समृद्ध देशों में से एक है।
- विश्व की कुल उपजातियों का लगभग 8% (लगभग 16 लाख) भारत में पाई जाती हैं।
- विविध वनस्पति और प्राणी हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं।
- लेकिन असंवेदनशील मानव क्रियाओं से इन पर भारी दबाव पड़ा है।
3. संरक्षण की आवश्यकता
- पारिस्थितिकी विविधता को बनाए रखने के लिए।
- जल, वायु और मृदा जैसे जीवनदायी संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिए।
- पौधों और पशुओं में अनुवांशिक विविधता (Genetic diversity) को संरक्षित करने के लिए।
- कृषि में पारंपरिक फसलों और मत्स्य पालन को बनाए रखने के लिए।
4. भारत में संरक्षण उपाय
(क) वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972
- संकटग्रस्त जातियों को बचाने के लिए लागू।
- शिकार पर प्रतिबंध।
- वन्य जीवों के व्यापार पर रोक।
- राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभयारण्य स्थापित।
- विशेष प्रजातियों को संरक्षण:
- बाघ, एक सींग वाला गैंडा, कश्मीरी हिरण (हंगुल), मगरमच्छ (तीन प्रकार), एशियाई शेर, हाथी, काला हिरण, चिंकारा, हिम तेंदुआ आदि।
(ख) बाघ परियोजना (Project Tiger) – 1973
1. 20वीं सदी की शुरुआत में बाघों की संख्या लगभग 55,000 थी।
2. 1973 में घटकर 1,827 रह गई।
3. कारण – शिकार, अवैध व्यापार, आवास का नष्ट होना, भोजन की कमी, जनसंख्या दबाव।
4. उद्देश्य – बाघ और उनके आवास का संरक्षण।
5. प्रमुख बाघ रिजर्व:
- कॉर्बेट (उत्तराखंड)
- सुंदरबन (प. बंगाल)
- बांधवगढ़ (म. प्र.)
- सरिस्का (राजस्थान)
- मानस (असम)
- पेरियार (केरल)
(ग) अन्य संरक्षण पहल
- 1980 और 1986 – कई कीटों और पक्षियों को संरक्षण सूची में शामिल किया गया।
- 1991 – पहली बार 6 पौधों को भी संरक्षण सूची में रखा गया।
5. वन संसाधनों के प्रकार
1.आरक्षित वन (Reserved Forests)
- देश के आधे से अधिक वन क्षेत्र।
- संरक्षण की दृष्टि से सबसे मूल्यवान।
2.रक्षित वन (Protected Forests)
- कुल वन क्षेत्र का लगभग 1/3 भाग।
- क्षरण से बचाने हेतु संरक्षित।
3.अवर्गीकृत वन (Unclassified Forests)
- सरकार, समुदाय या निजी स्वामित्व वाले वन और बंजर भूमि।
- विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों और गुजरात में अधिक पाए जाते हैं।
6. समुदाय और वन संरक्षण
- भारत में वन संरक्षण की परंपरा पुरानी है।
- कई समुदाय स्वयं वनों को संरक्षित करते आए हैं।
प्रमुख उदाहरण
- राजस्थान (सरिस्का बाघ रिजर्व) – ग्रामीणों ने खनन बंद करवाया।
- अलवर (राजस्थान) – 5 गाँवों ने 1200 हेक्टेयर क्षेत्र को “भैरोंदेव डाकव सैंक्चुरी” घोषित किया।
- पवित्र पेड़ों के झुरमट (Sacred Groves) – धार्मिक मान्यता के कारण वनों को सुरक्षित रखा गया।
- छोटानागपुर क्षेत्र – मुंडा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदंब की पूजा करती हैं।
- ओडिशा व बिहार – विवाह के समय इमली और आम के पेड़ों की पूजा होती है।
- बिश्नोई समाज (राजस्थान) – काला हिरण, चिंकारा, नीलगाय और मोर की रक्षा करते हैं।
- चिपको आंदोलन (उत्तराखंड) – वनों की कटाई रोकने में सफल।
- बीज बचाओ आंदोलन (टिहरी) – रसायनों के बिना बहु-फसल उत्पादन को बढ़ावा।
संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management – JFM)
- शुरुआत – 1988 (ओडिशा राज्य)।
- स्थानीय समुदाय + वन विभाग मिलकर क्षरित वनों का प्रबंधन।
- समुदाय को गैर-इमारती वन उत्पाद और लकड़ी से होने वाले लाभ में भागीदारी।
7. निष्कर्ष
- वन एवं वन्य जीव संसाधनों का संरक्षण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
- संरक्षण तभी प्रभावी होगा जब यह जन-केंद्रित, पर्यावरण हितैषी और आर्थिक रूप से लाभकारी हो।
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