1. जल का महत्व
- जल जीवन का आधार है – यह जीवन देने और लेने दोनों में सक्षम है।
 - कारखाने, मशीनें, खेती, ऊर्जा उत्पादन, घरेलू कार्य – सभी में जल आवश्यक है।
 - मानव सभ्यता सदैव नदियों और जल स्रोतों के आसपास बसी।
 
2. पृथ्वी पर जल की स्थिति
- पृथ्वी का लगभग ¾ भाग जल से ढका है।
 - परंतु उपयोग योग्य अलवणीय जल (मीठा जल) बहुत कम है।
 - अलवणीय जल का स्रोत : सतही अपवाह और भूजल।
 - जल का नवीकरण जलीय चक्र से लगातार होता रहता है।
 
3. जल दुर्लभता (Water Scarcity)
कारण
1.प्राकृतिक कारण
- कम वर्षा, सूखा, मौसमी व वार्षिक वर्षा में असमानता।
 - राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र।
 
2.मानवजनित कारण
- जनसंख्या वृद्धि और जल की बढ़ती माँग।
 - सिंचाई हेतु भूजल का अति-शोषण।
 - शहरीकरण और औद्योगीकरण से दबाव।
 - प्रदूषण – घरेलू अपशिष्ट, औद्योगिक रसायन, कीटनाशक, उर्वरक।
 - जल का असमान वितरण।
 
उदाहरण
- इज़राइल – 25 सेमी वर्षा के बावजूद जल की कमी नहीं (प्रबंधन अच्छा)।
 - भारत – 114 सेमी औसत वर्षा के बावजूद कई क्षेत्रों में सूखा।
 
4. जल प्रबंधन की आवश्यकता
- जल का असमान वितरण और कमी।
 - जनसंख्या वृद्धि → खेती और उद्योगों की बढ़ती माँग।
 - भूजल स्तर गिरना।
 - प्रदूषण से स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी पर खतरा।
 - जल जीवन मिशन (JJM) : प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 55 लीटर प्रतिदिन शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना।
 
5. बहुउद्देशीय नदी परियोजनाएँ
कार्य
- सिंचाई।
 - जलविद्युत उत्पादन।
 - घरेलू और औद्योगिक उपयोग।
 - बाढ़ नियंत्रण।
 - नौचालन और मछली पालन।
 - मनोरंजन।
 
उदाहरण
- भाखड़ा नांगल परियोजना – सिंचाई + जलविद्युत।
 - हीराकुंड परियोजना – जल संरक्षण + बाढ़ नियंत्रण।
 
लाभ
- खेती और उत्पादन में वृद्धि।
 - ग्रामीण और औद्योगिक अर्थव्यवस्था का विकास।
 - जल आपूर्ति और बिजली की उपलब्धता।
 
हानियाँ
- नदियों का प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध।
 - तलछट जमा होने से मिट्टी की उर्वरता कम।
 - जलीय जीवों का जीवन प्रभावित।
 - बड़े पैमाने पर विस्थापन।
 - सामाजिक असमानता (अमीरों को लाभ, गरीबों को हानि)।
 - बाढ़ नियंत्रण में कई बार असफल।
 - भूकंप और जलजनित बीमारियों की संभावना।
 
संबंधित आंदोलन
- नर्मदा बचाओ आंदोलन
 - टिहरी बाँध आंदोलन
 
अंतर्राज्यीय जल विवाद
- कृष्णा-गोदावरी विवाद
 - कोयना परियोजना विवाद
 
6. वर्षा जल संग्रहण
प्राचीन पद्धतियाँ
- पश्चिमी हिमालय – ‘गुल’ या ‘कुल’।
 - राजस्थान – छत वर्षा जल संग्रहण, ‘टांका’, ‘जोहड़’, ‘खादीन’।
 - पश्चिम बंगाल – बाढ़ जल वाहिकाएँ।
 - मेघालय – बाँस ड्रिप सिंचाई (200 वर्ष पुरानी विधि)।
 
आधुनिक उदाहरण
- तमिलनाडु – प्रत्येक घर में छत वर्षा जल संग्रहण अनिवार्य।
 - शिलांग (मेघालय) – हर घर में संग्रहण व्यवस्था।
 - गंडाथूर गाँव (कर्नाटक) – “वर्षा जल संपन्न गाँव”।
 
लाभ
- जल संरक्षण।
 - ग्रीष्म ऋतु में जल उपलब्धता।
 - प्रदूषण रहित शुद्धतम जल (पालर पानी)।
 - घरों को ठंडा रखने का अतिरिक्त लाभ।
 
7. निष्कर्ष
1. जल संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन अनिवार्य है।
 2. अति-शोषण, प्रदूषण और कुप्रबंधन से संकट गहरा सकता है।
समाधान :
- पारंपरिक तकनीकों और आधुनिक उपायों का संतुलन।
 - वर्षा जल संग्रहण को प्रोत्साहन।
 - प्रदूषण रोकना और जल का समान वितरण।
 

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