1. प्रस्तावना
1.विनिर्माण का अर्थ है – कच्चे पदार्थ को मूल्यवान वस्तुओं में परिवर्तित करना।
 उदाहरण :
- लकड़ी → कागज़
 - गन्ना → चीनी
 - लौह अयस्क → इस्पात
 - बॉक्साइट → एल्यूमिनियम
 
विनिर्माण उद्योग किसी भी देश की आर्थिक उन्नति का मुख्य आधार है।
2. विनिर्माण का महत्त्व
1.कृषि के आधुनिकीकरण में सहायक।
 2.द्वितीयक व तृतीयक सेवाओं में रोजगार उपलब्ध कराते हैं।
 3.बेरोजगारी व गरीबी को कम करने में मददगार।
 4.क्षेत्रीय असमानताओं को घटाने के लिए पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना।
 5.निर्यात से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति।
 6.देश का विकास विविध व तेज़ औद्योगिक विकास पर निर्भर।
 7.कृषि व उद्योग दोनों पूरक हैं :
- उद्योग → कृषि उपकरण, पंप, उर्वरक, कीटनाशक प्रदान करते हैं।
 - कृषि → उद्योगों को कच्चा माल देती है।
 
8.वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनना आवश्यक।
3. उद्योगों का वर्गीकरण
(क) कच्चे माल के आधार पर
- कृषि आधारित उद्योग – सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम, चीनी, चाय, कॉफी, वनस्पति तेल।
 - खनिज आधारित उद्योग – लोहा-इस्पात, सीमेंट, एल्यूमिनियम, मशीन, पेट्रोरसायन।
 
(ख) प्रमुख भूमिका के आधार पर
- आधारभूत उद्योग – जिन पर अन्य उद्योग निर्भर हों (लोहा-इस्पात, ताँबा प्रगलन, एल्यूमिनियम)।
 - उपभोक्ता उद्योग – सीधे उपभोक्ता उपयोग हेतु (चीनी, कागज़, पंखे, सिलाई मशीन)।
 
(ग) पूँजी निवेश के आधार पर
- लघु उद्योग – परिसंपत्ति की एक इकाई पर निवेश सीमा अधिकतम ₹1 करोड़।
 
(घ) स्वामित्व के आधार पर
- सार्वजनिक क्षेत्र – सरकार द्वारा (BHEL, SAIL)।
 - निजी क्षेत्र – निजी व्यक्तियों द्वारा (टिस्को, बजाज, डाबर)।
 - संयुक्त क्षेत्र – सरकार + निजी क्षेत्र (OIL)।
 - सहकारी क्षेत्र – किसानों/श्रमिकों द्वारा (महाराष्ट्र की चीनी मिलें, केरल के नारियल उद्योग)।
 
(ङ) भार व आकार के आधार पर
- भारी उद्योग – लोहा-इस्पात।
 - हल्के उद्योग – इलेक्ट्रॉनिक उद्योग।
 
4. प्रमुख उद्योग
(क) कृषि आधारित उद्योग
1. सूती वस्त्र उद्योग
- प्राचीन भारत – हाथ से कताई व हथकरघा।
 - 1854 – पहला सफल कारखाना (मुंबई)।
 - औपनिवेशिक काल में अंग्रेजी वस्त्रों से प्रतिस्पर्धा।
 - महाराष्ट्र, गुजरात व तमिलनाडु में कताई केंद्रित।
 - बुनाई विकेंद्रीकृत (हथकरघा, पावरलूम, मिलें)।
 - खादी उद्योग → घर-घर रोजगार।
 
2. पटसन उद्योग
- भारत विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक व दूसरा निर्यातक।
 - केंद्र: हुगली नदी तट (पश्चिम बंगाल)।
 - पहला कारखाना – 1855, रिशरा (कोलकाता)।
 - कारण: कच्चे माल की निकटता, जल परिवहन, श्रमिक उपलब्धता, कोलकाता बंदरगाह।
 
3. चीनी उद्योग
- भारत – विश्व में दूसरा स्थान (गुड़ व खांडसारी में पहला)।
 - 60% मिलें – उत्तर प्रदेश व बिहार।
 - हाल में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु में बढ़ोतरी (अधिक सूक्रोस व सहकारी समितियाँ)।
 - मौसमी उद्योग।
 
(ख) खनिज आधारित उद्योग
1.लोहा-इस्पात उद्योग
- आधारभूत व भारी उद्योग।
 - अनुपात: लौह अयस्क : कोकिंग कोल : चूना पत्थर = 4:2:1
 - केंद्र: छोटानागपुर पठार क्षेत्र (सस्ता अयस्क, श्रमिक, बाजार)।
 
2.एल्यूमिनियम उद्योग
- कच्चा माल: बॉक्साइट।
 - स्थान: ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल।
 - उपयोग: हवाई जहाज, बर्तन, तार, मिश्र धातुएँ।
 
3.रसायन उद्योग
- भारत एशिया में तीसरा व विश्व में 12वें स्थान पर।
 - अकार्बनिक रसायन – सल्फ्यूरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल, सोडा ऐश।
 - कार्बनिक रसायन – पेट्रोरसायन, प्लास्टिक, दवाइयाँ।
 
4.उर्वरक उद्योग
- नाइट्रोजनी (यूरिया), फॉस्फेटिक (DAP), मिश्रित उर्वरक।
 - पोटाश – पूर्ण आयात।
 - प्रमुख राज्य: गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब, केरल।
 
5.सीमेंट उद्योग
- कच्चा माल: चूना पत्थर, सिलिका, जिप्सम।
 - उपयोग: भवन, पुल, सड़कें, बाँध।
 - केंद्र: गुजरात (खाड़ी देशों के नज़दीक)।
 
(ग) अन्य उद्योग
1.मोटरगाड़ी उद्योग – दिल्ली, मुंबई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, बेंगलुरु।
 2.सूचना प्रौद्योगिकी व इलेक्ट्रॉनिक उद्योग –
- उत्पाद: कंप्यूटर, टीवी, राडार, टेलीफोन।
 - केंद्र: बेंगलुरु (इलेक्ट्रॉनिक राजधानी), नोएडा, चेन्नई, हैदराबाद।
 
5. उद्योग और प्रदूषण
1. प्रकार
- वायु प्रदूषण – धुआँ, जहरीली गैसें, कण।
 - जल प्रदूषण – रसायन, अम्ल, भारी धातुएँ।
 - भूमि प्रदूषण – औद्योगिक कचरा, प्लास्टिक, स्लैग।
 - ध्वनि प्रदूषण – मशीनें, जेनरेटर, ड्रिल।
 
2. रोकथाम के उपाय
- जल का पुनर्चक्रण व शोधन।
 - वर्षा जल संचयन।
 - ऊँची चिमनियाँ, इलेक्ट्रोस्टैटिक उपकरण।
 - ऊर्जा सक्षम व कम शोर वाली मशीनें।
 - वृक्षारोपण व हरित क्षेत्र।
 - NTPC – अपशिष्ट कम करना, राख का पुनः प्रयोग, वृक्षारोपण।
 
6. निष्कर्ष
- विनिर्माण उद्योग आर्थिक विकास की नींव हैं।
 - कृषि व उद्योग एक-दूसरे के पूरक।
 - सतत विकास के लिए प्रदूषण नियंत्रण व पर्यावरणीय संतुलन आवश्यक।
 

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