भारत में राष्ट्रवाद
प्रस्तावना
- यूरोप में राष्ट्रवाद के साथ राष्ट्र-राज्यों का उदय हुआ, जिससे लोगों की पहचान और “राष्ट्र” की भावना बदली।
- भारत में राष्ट्रवाद का उदय औपनिवेशिक शासन के विरोध से जुड़ा था।
- विभिन्न वर्गों ने अपने-अपने अनुभवों और आकांक्षाओं के अनुसार इसमें भाग लिया।
- गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इन सभी को एकजुट किया।
1. पहला विश्वयुद्ध, ख़िलाफ़त और असहयोग आंदोलन
विश्वयुद्ध का प्रभाव
- रक्षा खर्च बढ़ा, करों में वृद्धि हुई, सीमा शुल्क और आयकर लगाए गए।
- 1913-1918 के बीच कीमतें दोगुनी हो गईं।
- गाँवों में जबरन भर्ती और फसल खराबी के कारण गुस्सा फैला।
- 1918-21 में महामारी और अकाल से लगभग 120-130 लाख लोग मारे गए।
- जनता को आशा थी कि युद्ध के बाद स्थिति सुधरेगी, पर ऐसा नहीं हुआ।
सत्याग्रह का विचार (1915)
- गांधीजी जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे।
- उन्होंने “सत्याग्रह” की नई पद्धति प्रस्तुत की -👉 सत्य की शक्ति और अहिंसा के बल पर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष।👉 इसका उद्देश्य “शत्रु की चेतना को झकझोरना” था, न कि उसे नष्ट करना।
- प्रमुख सत्याग्रह:
- चंपारण (1917): नील की खेती करने वाले किसानों के अधिकारों के लिए।
- खेड़ा (1917): फसल खराबी पर लगान माफ़ी की माँग।
- अहमदाबाद (1918): मिल मजदूरों की मज़दूरी बढ़ाने हेतु आंदोलन।
रॉलट एक्ट (1919)
- यह कानून राजनीतिक गतिविधियों को दबाने हेतु लाया गया।
- बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल की सजा दी जा सकती थी।
- गांधीजी ने 6 अप्रैल 1919 को इसके विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल बुलाई।
- जगह-जगह प्रदर्शन, हड़तालें और दमन हुआ।
➡ जलियाँवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919):
- जनरल डायर ने शांतिपूर्ण सभा पर गोलियाँ चलवाईं।
- सैकड़ों लोग मारे गए।
- देशभर में आक्रोश फैला, लेकिन गांधीजी ने हिंसा बढ़ने पर आंदोलन वापस ले लिया।
खिलाफ़त आंदोलन (1919-20)
- तुर्की के खलीफा की शक्तियों की रक्षा हेतु आंदोलन।
- मोहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में।
- गांधीजी ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कांग्रेस को इससे जोड़ने का सुझाव दिया।
असहयोग आंदोलन (1920-22)
- विचार: ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से चल रहा है।👉 अगर लोग सहयोग बंद कर दें तो शासन गिर जाएगा।
- गांधीजी का कार्यक्रम:
- सरकारी पदवियाँ लौटाना।
- सरकारी नौकरी, अदालतें, विद्यालय, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
- खादी का प्रयोग और स्वदेशी संस्थान बनाना।
- कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन (1920) में इसे स्वीकृति मिली।
2. आंदोलन के भीतर अलग-अलग धाराएँ
(क) शहरों में आंदोलन
- छात्रों, शिक्षकों और वकीलों ने त्यागपत्र दिए।
- विदेशी वस्तुओं और कपड़ों का बहिष्कार।
- विदेशी कपड़ों का आयात आधा हो गया (102 करोड़ से 57 करोड़)।
- कुछ समय बाद आंदोलन धीमा पड़ा क्योंकि खादी महँगी थी और वैकल्पिक संस्थान कम थे।
(ख) ग्रामीण इलाकों में आंदोलन
- अवध में बाबा रामचंद्र ने किसानों का नेतृत्व किया।
- किसानों की माँगें: लगान में कमी, बेगार की समाप्ति, दमनकारी जमींदारों का बहिष्कार।
- अवध किसान सभा (1920) बनी।
- कई स्थानों पर हिंसा और लूट की घटनाएँ हुईं।
- गांधीजी के नाम पर किसानों ने कर न देने की बात फैलाई।
आदिवासी आंदोलन (आंध्र की गूडेम पहाड़ियाँ):
- अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में।
- सरकारी जंगल कानूनों के विरोध में सशस्त्र संघर्ष (1920-24)।
- राजू को 1924 में फाँसी दी गई।
(ग) बागानों में मजदूरों का आंदोलन
- असम के मजदूरों ने “गांधी राज” आने की आशा में बागान छोड़े।
- उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और मारा-पीटा गया।
- स्वराज उनके लिए आज़ादी और घर लौटने का प्रतीक था।
3. सविनय अवज्ञा आंदोलन की ओर
असहयोग आंदोलन का अंत (1922)
- चौरी-चौरा घटना (1922) में हिंसा होने के कारण गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया।
- स्वराज पार्टी (1923) की स्थापना – सी.आर. दास और मोतीलाल नेहरू द्वारा।
राजनीतिक घटनाएँ
- साइमन कमीशन (1928): इसमें कोई भारतीय सदस्य नहीं था → “साइमन गो बैक” के नारे लगे।
- लाहौर अधिवेशन (1929): कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की माँग की और 26 जनवरी 1930 को “स्वतंत्रता दिवस” घोषित किया।
नमक यात्रा (दांडी मार्च, 1930)
- गांधीजी ने 11 माँगों का पत्र वायसराय इरविन को भेजा।
- माँगें न मानने पर 12 मार्च 1930 को साबरमती से दांडी तक (240 किमी) यात्रा शुरू की।
- 6 अप्रैल 1930: गांधीजी ने समुद्र का नमक बनाकर कानून तोड़ा।
- यही सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत थी।
मुख्य गतिविधियाँ:
- नमक कानून का उल्लंघन, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, शराब की दुकानों की पिकेटिंग, लगान न देना।
- हिंसा होने पर गांधीजी ने फिर आंदोलन स्थगित किया।
गांधी-इरविन समझौता (1931):
- राजनीतिक कैदियों की रिहाई और गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने की सहमति।
भगत सिंह और क्रांतिकारी गतिविधियाँ
- HSRA (हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी) का गठन 1928 में हुआ।
- प्रमुख नेता: भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, जतिन दास।
- असेंबली में बम फेंका (1929), भगत सिंह को फाँसी दी गई (1931)।
- उनका नारा: “इंकलाब ज़िंदाबाद।”
4. आंदोलन में विभिन्न वर्गों की भागीदारी
🔹 किसान वर्ग
- अमीर किसान (पटीदार, जाट): लगान में कमी के लिए संघर्ष।
- गरीब किसान: किराया माफी की माँग, पर कांग्रेस ने पूर्ण समर्थन नहीं दिया।
🔹 व्यापारी वर्ग
- फिक्की और इंडस्ट्रियल कांग्रेस जैसी संस्थाओं का गठन (1920-27)।
- विदेशी वस्तुओं के विरोध में सहयोग दिया, पर बाद में अस्थिरता से डरकर पीछे हट गए।
🔹 मजदूर वर्ग
- कुछ जगहों (नागपुर, शोलापुर) पर भागीदारी।
- रेलवे, गोदी और खान मजदूरों की हड़तालें हुईं।
🔹 महिलाएँ
- बड़ी संख्या में महिलाएँ सविनय अवज्ञा में उतरीं।
- नमक बनाना, पिकेटिंग और जेल जाना – पहली बार सार्वजनिक जीवन में प्रवेश।
- परंतु कांग्रेस ने उन्हें उच्च पदों पर स्थान नहीं दिया।
5. सविनय अवज्ञा की सीमाएँ
🔸 दलित (अछूत) समुदाय
- गांधीजी ने अस्पृश्यता को पाप बताया, “हरिजन” नाम दिया।
- मंदिर प्रवेश और सामाजिक समानता के लिए सत्याग्रह किए।
- डॉ. अंबेडकर ने दमित वर्ग संघ (1930) बनाया।
- पूना समझौता (1932): दलितों को आरक्षित सीटें मिलीं।
🔸 मुस्लिम समुदाय
- खिलाफत आंदोलन के बाद दूरी बढ़ी।
- हिंदू महासभा और सांप्रदायिक दंगों से अविश्वास बढ़ा।
- सर मोहम्मद इक़बाल (1930) ने “मुस्लिम भारत” की अवधारणा रखी, जिससे पाकिस्तान की सोच उत्पन्न हुई।
6. सामूहिक अपनेपन का भाव
- राष्ट्रवाद केवल राजनीति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी था।
- भारत माता की छवि (अवनीन्द्रनाथ टैगोर, 1905) – राष्ट्र की देवी के रूप में चित्रण।
- वंदे मातरम् गीत – बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित।
- लोक कथाओं और लोकगीतों का संग्रह – टैगोर और नटेसा शास्त्री द्वारा।
- राष्ट्रीय झंडा: तिरंगा (लाल, हरा, सफेद), बीच में चरखा।
- इतिहास की पुनर्व्याख्या: भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन राष्ट्रीय गर्व जगाने के लिए किया गया।
7. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
- द्वितीय विश्वयुद्ध और क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद गांधीजी ने “भारत छोड़ो” का नारा दिया।
- 8 अगस्त 1942 को बंबई में “करो या मरो” का आह्वान।
- आंदोलन पूरे देश में फैल गया – छात्र, मजदूर, किसान सभी शामिल हुए।
- प्रमुख नेता: जयप्रकाश नारायण, अरूणा आसफ़ अली, राम मनोहर लोहिया, मातांगिनी हाजरा, कनकलता बरूआ, रमा देवी।
- अंग्रेजों ने कड़ा दमन किया, पर आंदोलन ने स्वतंत्रता की नींव मजबूत की।
महत्त्वपूर्ण तिथियाँ
वर्ष | घटना |
---|---|
1917 | चंपारण, खेड़ा, अहमदाबाद सत्याग्रह |
1919 | रॉलट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकांड |
1920 | असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन शुरू |
1922 | चौरी-चौरा घटना; आंदोलन स्थगित |
1928 | साइमन कमीशन |
1929 | लाहौर अधिवेशन – पूर्ण स्वराज की माँग |
1930 | दांडी मार्च, सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ |
1931 | गांधी-इरविन समझौता |
1932 | पूना पैक्ट |
1942 | भारत छोड़ो आंदोलन |
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