भूमंडलीकृत विश्व का बनना
1. आधुनिक युग से पहले
- वैश्वीकरण का अर्थ है – वस्तुओं, लोगों, पूँजी, विचारों और संस्कृतियों का एक देश से दूसरे देश तक मुक्त रूप से प्रवाह होना।
- यह प्रक्रिया केवल आज की नहीं है; इसका इतिहास बहुत पुराना है।
- प्राचीन काल से ही यात्री, व्यापारी, पुजारी और तीर्थयात्री एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहे हैं।
- इन यात्राओं से वस्तुएँ, विचार, ज्ञान, तकनीक, और बीमारियाँ भी फैलती रहीं।
- सिंधु घाटी सभ्यता का व्यापार पश्चिम एशिया से होता था।
- मालदीव की कौड़ियाँ चीन और पूर्वी अफ्रीका तक पहुँचती थीं।
1.1 रेशम मार्ग (Silk Route)
- चीन से यूरोप तक जाने वाला प्रमुख व्यापार मार्ग था।
- इससे चीनी रेशम, पॉटरी, भारत के कपड़े और मसाले पश्चिम तक पहुँचे।
- वापसी में यूरोप से सोना-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ आती थीं।
- यह केवल व्यापार का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी माध्यम था।
- बौद्ध धर्म, ईसाई मिशनरी, और मुस्लिम धर्मप्रचारक इसी मार्ग से एशिया और यूरोप में फैले।
1.2 भोजन की यात्रा
- व्यापार और यात्राओं से नई-नई फसलें और खाद्य पदार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचे।
- नूडल्स चीन से यूरोप पहुँचे और वहाँ स्पैघेत्ती बन गई।
- अमेरिका से आलू, मक्का, टमाटर, मूँगफली, मिर्च, शकरकंद आदि फसलें एशिया और यूरोप पहुँचीं।
- इन फसलों ने लोगों के जीवन को बदल दिया –
- आलू के कारण यूरोप में गरीबों का भोजन सुधरा।
- लेकिन 1840 में आलू की बीमारी से आयरलैंड में लाखों लोग भूख से मर गए।
1.3 विजय, बीमारी और व्यापार
- 16वीं सदी में यूरोपीय जहाजी समुद्र के रास्ते एशिया और अमेरिका पहुँचे।
- अमेरिका में यूरोपीय सेनाएँ विजय प्राप्त करने लगीं।
- चेचक (Smallpox) जैसी बीमारियाँ यूरोप से वहाँ पहुँचीं और लाखों स्थानीय निवासी मारे गए।
- अमेरिका की चाँदी और सोना यूरोप में पहुँचा जिससे यूरोपीय देशों की संपत्ति बढ़ी।
- यूरोप में गरीबी, धार्मिक असहिष्णुता और बेरोजगारी के कारण लोग अमेरिका जाने लगे।
- अफ्रीका से गुलामों को पकड़कर अमेरिका ले जाया गया – वहाँ वे कपास और चीनी के बागानों में काम करते थे।
- धीरे-धीरे विश्व व्यापार का केंद्र एशिया से यूरोप की ओर स्थानांतरित हो गया।
2. उन्नीसवीं सदी (1815-1914) – परिवर्तन का युग
2.1 विश्व अर्थव्यवस्था का उदय
- औद्योगिक क्रांति के बाद ब्रिटेन में जनसंख्या तेजी से बढ़ी और भोजन की माँग बढ़ गई।
- सरकार ने कॉर्न लॉ (Corn Laws) द्वारा मक्का के आयात पर पाबंदी लगाई थी, लेकिन विरोध के कारण इन्हें हटा दिया गया।
- सस्ते विदेशी अनाज आने लगे, जिससे ब्रिटिश किसान बेरोजगार हुए।
- लाखों लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों या विदेशों (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया) की ओर पलायन करने लगे।
- वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था (Global Agricultural Economy) का उदय हुआ।
- नई खेती, रेलवे, बंदरगाह और बस्तियाँ बसाई गईं।
- भारत में भी पंजाब की केनाल कॉलोनी (नहर बस्तियाँ) इसी नीति के तहत बनीं।
2.2 तकनीक की भूमिका
- तकनीकी प्रगति (रेलवे, स्टीमशिप, टेलीग्राफ) ने व्यापार को तेज़ और सस्ता बनाया।
- रेफ्रिजरेशन (शीत भंडारण) की तकनीक से मांस, मक्खन, अंडे आदि का निर्यात संभव हुआ।
- मांस सस्ता हुआ, यूरोप के गरीबों का भोजन सुधरा, और जीवन-स्तर ऊँचा हुआ।
2.3 उपनिवेशवाद का विस्तार
- 1885 में बर्लिन सम्मेलन में यूरोपीय देशों ने अफ्रीका को आपस में बाँट लिया।
- अफ्रीका की सीमाएँ फुटपट्टी से खींची गई रेखाओं जैसी बन गईं।
- ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, और अमेरिका उपनिवेशवादी ताकतें बनीं।
- स्थानीय लोगों की स्वतंत्रता और संसाधन छीने गए।
2.4 रिंडरपेस्ट (मवेशी प्लेग)
- 1890 के दशक में अफ्रीका में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी फैली।
- 90% मवेशी मर गए, जिससे अफ्रीकी किसानों की आजीविका खत्म हो गई।
- यूरोपियों ने बचे-खुचे पशु और भूमि पर कब्ज़ा कर लिया।
- अफ्रीकियों को मजदूरी करने पर मजबूर किया गया।
2.5 भारत से अनुबंधित श्रमिक (गिरमिटिया मजदूर)
- उन्नीसवीं सदी में भारत और चीन के लाखों मजदूरों को विदेश भेजा गया।
- इन्हें अनुबंध (Agreement) पर पाँच साल के लिए भेजा जाता था।
- अधिकतर मजदूर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, तमिलनाडु से गए।
- स्थान – त्रिनिदाद, गुयाना, मॉरिशस, फ़िजी, सीलोन, मलाया, असम आदि।
- जीवन कठिन था, मजदूरों को मारपीट और सजा दी जाती थी।
- उन्होंने वहाँ भारतीय परंपराओं के साथ नई संस्कृति बनाई –
- ‘होसे‘ उत्सव, ‘चटनी संगीत‘, और सांस्कृतिक मेल-मिलाप।
- 1921 में गिरमिटिया प्रथा समाप्त हुई।
2.6 भारतीय व्यापार, उपनिवेशवाद और वैश्विक व्यवस्था
- औद्योगीकरण के बाद ब्रिटेन में कपास उद्योग बढ़ा और भारत का कपड़ा उद्योग गिर गया।
- ब्रिटेन ने भारतीय कपड़ों पर शुल्क लगाए, जिससे भारत का निर्यात घट गया।
- भारत से कच्चा माल (कपास, नील, अफीम) यूरोप भेजा जाने लगा।
- ब्रिटेन भारत से होने वाले व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) से अपने घाटे की भरपाई करता था।
- भारत की संपत्ति ब्रिटेन के “होम चार्जेज़” (ब्रिटिश खर्च, पेंशन आदि) में जाती थी।
- भारत विश्व अर्थव्यवस्था का “उपनिवेशिक आधार” बन गया।
3. महायुद्धों के बीच की अर्थव्यवस्था (1914-1945)
3.1 प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918)
- युद्ध के दो गुट:
- मित्र राष्ट्र (Allied Powers): ब्रिटेन, फ्रांस, रूस
- केंद्रीय शक्तियाँ (Central Powers): जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, तुर्की
- यह पहला औद्योगिक युद्ध था – टैंक, हवाई जहाज, मशीनगन, रासायनिक हथियारों का प्रयोग।
- लगभग 90 लाख लोग मारे गए, 2 करोड़ घायल हुए।
- महिलाओं ने फैक्टरियों में काम संभाला।
- युद्ध से अमेरिका आर्थिक रूप से मज़बूत हुआ – अब वह कर्जदाता देश बना।
3.2 युद्धोत्तर स्थिति
- ब्रिटेन युद्ध से कमजोर हो गया, कर्जों में डूबा।
- भारत और जापान जैसे देशों में उद्योग बढ़े।
- ब्रिटेन में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी।
- किसानों की आय घट गई क्योंकि गेहूँ की कीमतें गिर गईं।
3.3 अमेरिका में बड़े पैमाने पर उत्पादन (Mass Production)
- अमेरिकी उद्योगपति हेनरी फ़ोर्ड ने “असेंबली लाइन” प्रणाली अपनाई।
- इससे टी-मॉडल कार का उत्पादन तेजी से होने लगा।
- मजदूरों को ऊँचा वेतन मिला पर काम की गति बहुत तेज थी।
- 1920 के दशक में अमेरिका में कार, रेडियो, फ्रिज, मकान आदि की खपत बढ़ी।
- अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा कर्जदाता देश बन गया।
3.4 महामंदी (Great Depression, 1929-1934)
- 1929 में अमेरिका से शुरू हुई और विश्वभर में फैल गई।
- उत्पादन, व्यापार, रोजगार, और आय सब घट गए।
- कृषि उत्पादों की कीमतें गिर गईं – किसान तबाह हो गए।
- कई बैंक और कंपनियाँ बंद हो गईं।
- अमेरिका ने आयात पर अधिक शुल्क लगाए, जिससे विश्व व्यापार रुक गया।
- 1933 तक 4000 बैंक बंद हो गए, 1.1 लाख कंपनियाँ खत्म हो गईं।
3.5 भारत पर महामंदी का प्रभाव
- भारत के निर्यात-आयात लगभग आधे रह गए।
- गेहूँ और जूट जैसी फसलों की कीमतें 50-60% तक गिरीं।
- सरकार ने लगान वसूली जारी रखी, किसानों पर कर्ज बढ़ा।
- बंगाल के जूट किसानों को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ।
- भारतीय सोने के निर्यात से ब्रिटेन को राहत मिली लेकिन भारत को लाभ नहीं हुआ।
- ग्रामीण असंतोष बढ़ा और 1930 में गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया।
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