मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
परिचय
- मुद्रण (Printing) आधुनिक युग की सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक है।
 - बिना छपी सामग्री के आधुनिक दुनिया की कल्पना कठिन है।
 - किताबें, अखबार, विज्ञापन, पत्रिकाएँ, पोस्टर आदि हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।
 - छपाई ने ज्ञान, शिक्षा, धर्म, समाज और राजनीति – सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया।
 - मुद्रण संस्कृति का इतिहास पूर्वी एशिया से आरंभ होकर यूरोप और भारत तक पहुँचा।
 
1. शुरुआती छपी किताबें
चीन में मुद्रण की शुरुआत
- सन् 594 ई. में चीन में सबसे पहले छपाई की तकनीक विकसित हुई।
 - यह तकनीक काठ की तख्ती (Woodblock) पर स्याही लगाकर छपाई करने की थी।
 - किताबें ‘एकॉर्डियन शैली’ में बनाई जाती थीं – पन्नों को मोड़कर सिला जाता था।
 - उस समय खुशनवीसी (Calligraphy) यानी सुंदर हस्तलेखन की कला का बहुत महत्व था।
 - चीन के राजतंत्र ने सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए हजारों किताबें छपवायीं।
 - 17वीं सदी तक व्यापारिक और मनोरंजक पुस्तकों की छपाई बढ़ी।
 - महिलाएँ भी पढ़ने और लेखन में भाग लेने लगीं।
 
मुद्रण का विकास
- 19वीं सदी के अंत तक पश्चिमी मशीनी प्रेस चीन में आया।
 - शंघाई मुद्रण संस्कृति का नया केंद्र बना।
 
1.1 जापान में मुद्रण
- 768-770 ई. में चीन के बौद्ध प्रचारक जापान में छपाई की तकनीक लेकर पहुँचे।
 - जापान की सबसे पुरानी छपी पुस्तक – “डायमंड सूत्र” (868 ई.)।
 - किताबों में पाठ के साथ लकड़ी पर खुदे चित्र भी होते थे।
 - अठारहवीं सदी के अंत तक जापान में शहरी संस्कृति फली-फूली।
 - महिलाएँ, कलाकार, और व्यापारी वर्ग पढ़ने के शौकीन बने।
 - कितागावा उतामारो ने “उकियो” नामक चित्रकला शैली को लोकप्रिय किया।
 - उनके छपे चित्र यूरोप और अमेरिका में पहुँचे और पश्चिमी चित्रकारों को प्रभावित किया।
 
2. यूरोप में मुद्रण का आगमन
प्रारंभिक छपाई
- रेशम मार्ग से चीन का कागज़ यूरोप पहुँचा (11वीं सदी)।
 - मार्को पोलो (1295 ई.) चीन से लौटकर छपाई तकनीक का ज्ञान लाया।
 - यूरोप में वुडब्लॉक प्रिंटिंग शुरू हुई।
 - अमीर लोग चर्मपत्र (Vellum) पर किताबें छपवाते थे, जबकि व्यापारी सस्ती किताबें खरीदते थे।
 - किताबों की माँग बढ़ने पर हस्तलिखित पांडुलिपियों की सीमाएँ सामने आईं।
 
2.1 योहान गुटेन्बर्ग और प्रिंटिंग प्रेस
- योहान गुटेन्बर्ग (जर्मनी) ने 1430 के दशक में प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया।
 - उन्होंने तेल व जैतून पेरने की मशीन को आदर्श मानकर प्रेस बनाया।
 - पहली छपी पुस्तक बाइबिल थी (1448 ई.) – 180 प्रतियाँ तीन वर्षों में बनीं।
 - गुटेन्बर्ग ने मूवेबल मेटल टाइप (Movable Metal Type) विकसित की।
 - इस तकनीक से छपाई की गति बहुत तेज़ हो गई – एक घंटे में लगभग 250 पृष्ठ छपते थे।
 - 1450-1550 के बीच यूरोप में हजारों छापेखाने स्थापित हुए।
 - 16वीं सदी तक लगभग 20 करोड़ किताबें छप चुकी थीं।
 - यही काल मुद्रण क्रांति (Printing Revolution) कहलाया।
 
3. मुद्रण क्रांति और उसका प्रभाव
3.1 नया पाठक वर्ग
- छपाई से किताबें सस्ती और सुलभ हुईं।
 - पढ़ने का चलन बढ़ा, लोग मौखिक संस्कृति से लिखित संस्कृति की ओर बढ़े।
 - साक्षरता बढ़ी, लोककथाएँ, लोकगीत और धार्मिक पुस्तकें लोकप्रिय हुईं।
 - लोग समूह में बैठकर छपी चीजें सुनते थे – मौखिक और मुद्रित संस्कृति एक-दूसरे में घुल गईं।
 
3.2 धार्मिक विवाद और प्रिंट का डर
- छपाई से विचारों का व्यापक प्रसार हुआ।
 - मार्टिन लूथर ने कैथलिक चर्च की आलोचना करते हुए अपनी 95 थिसीज़ प्रकाशित कीं।
 - इससे प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार आंदोलन शुरू हुआ।
 - लूथर ने कहा – “मुद्रण ईश्वर की सबसे महान देन है।”
 - चर्च को डर था कि छपी किताबें बगावती विचार फैलाएँगी।
 
3.3 मुद्रण और प्रतिरोध
- आम लोग खुद धर्मग्रंथ पढ़ने लगे और नए अर्थ निकालने लगे।
 - इटली के किसान मेनोकियो ने बाइबिल की नई व्याख्या की, जिसके कारण चर्च ने उसे मौत की सजा दी।
 - चर्च ने 1558 से प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची (Index of Prohibited Books) बनाई।
 
4. पढ़ने का जुनून
- 17वीं-18वीं सदी में यूरोप में साक्षरता दर 60-80% तक पहुँची।
 - गाँवों में स्कूल खुले, किताबों की माँग बढ़ी।
 - पेनी चैपबुक्स (सस्ती किताबें), बिब्लियोथीक ब्ल्यू (नीली जिल्द वाली पुस्तकें) लोकप्रिय हुईं।
 - पत्रिकाएँ और अखबार प्रकाशित होने लगे।
 - वैज्ञानिक और दार्शनिक विचार आम जनता तक पहुँचे (न्यूटन, रूसो, वॉल्तेयर, पेन)।
 
4.1 ज्ञानोदय और फ्रांसीसी क्रांति
- छपाई ने विवेक, तर्क और स्वतंत्रता के विचार फैलाए।
 - मर्सिए जैसे लेखकों ने कहा कि छपाई निरंकुशता को समाप्त कर देगी।
 - व्यंग्य चित्रों और पुस्तिकाओं से राजशाही की आलोचना हुई।
 - छपाई ने फ्रांसीसी क्रांति के विचारों को फैलाने में मदद की।
 
5. उन्नीसवीं सदी का मुद्रण युग
5.1 बच्चे, महिलाएँ और मजदूर
- प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होने से बच्चे नए पाठक बने।
 - बाल पुस्तकों और लोककथाओं का प्रकाशन हुआ (ग्रिम बंधु)।
 - महिलाओं के लिए “पेनी मैगजीन” जैसी पत्रिकाएँ आईं।
 - महिलाएँ लेखिका बनीं – जेन ऑस्टिन, ब्रॉण्ट बहनें, जॉर्ज इलियट।
 - मजदूरों ने आत्मकथाएँ और राजनीतिक पर्चे लिखे।
 
5.2 नई तकनीकी परिष्कार
- 19वीं सदी में प्रेस धातु से बने।
 - रिचर्ड एम. हो ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस का आविष्कार किया (8000 शीट/घंटा)।
 - ऑफसेट प्रेस से रंगीन छपाई संभव हुई।
 - 20वीं सदी में बिजली से चलने वाले प्रेस, सस्ते पेपरबैक संस्करण और डस्ट कवर आए।
 
6. भारत का मुद्रण संसार
मुद्रण से पहले
- भारत में संस्कृत, अरबी, फ़ारसी और क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की परंपरा थी।
 - ये महंगी और नाजुक होती थीं, इसलिए सीमित लोगों तक ही पहुँच पाती थीं।
 
छपाई की शुरुआत
- सोलहवीं सदी में गोवा में पुर्तगाली मिशनरियों ने पहली प्रेस लगाई।
 - कोंकणी, तमिल, मलयालम, कन्नड़ भाषाओं में किताबें छपीं।
 - 1780 – जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने बंगाल गजट निकाला (भारत का पहला अखबार)।
 - बाद में भारतीय भाषाओं में भी अखबार छपने लगे – जैसे गंगाधर भट्टाचार्य का बंगाल गजटा।
 
7. धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें
- 19वीं सदी में धार्मिक व सामाजिक सुधार आंदोलनों ने छपाई का खूब उपयोग किया।
 - राजा राममोहन राय ने संवाद कौमुदी प्रकाशित की।
 - रूढ़िवादी विचारों का जवाब समाचार चंद्रिका से दिया गया।
 - मुस्लिम विद्वानों ने देवबंद सेमिनरी से धार्मिक ग्रंथों के उर्दू अनुवाद छापे।
 - रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण 1810 में आया।
 - छपी धार्मिक पुस्तकों ने विभिन्न समुदायों को जोड़ा और बहसें बढ़ाईं।
 
8. प्रकाशन के नए रूप
उपन्यास, चित्रकला और कार्टून
- छपाई से साहित्यिक विधाओं में विविधता आई – उपन्यास, कहानी, निबंध आदि।
 - राजा रवि वर्मा ने चित्रकला को आम जनता तक पहुँचाया।
 - पत्रिकाओं में कार्टून और व्यंग्य चित्र छपने लगे, जो समाज और राजनीति पर टिप्पणी करते थे।
 
महिलाएँ और मुद्रण
- महिलाओं ने पढ़ना-लिखना शुरू किया।
 - रशसुन्दरी देवी ने आमार जीवन (1876) लिखी – पहली बंगाली आत्मकथा।
 - ताराबाई शिंदे, पंडिता रमाबाई ने नारी शिक्षा और समानता पर लिखा।
 - महिलाओं के लिए पत्रिकाएँ और पुस्तिकाएँ प्रकाशित होने लगीं।
 
प्रिंट और गरीब जनता
- सस्ती किताबें और सार्वजनिक पुस्तकालय खुले।
 - ज्योतिबा फुले (गुलामगिरी), डॉ. भीमराव अंबेडकर, पेरियार ने जातिवाद और अन्याय के खिलाफ लिखा।
 - मजदूरों ने अपने संघर्षों पर कविताएँ और लेख लिखे।
 

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