भारत में राष्ट्रवाद
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1: व्याख्या करें –
(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी।
उत्तर: उपनिवेशों में राष्ट्रवाद का उदय उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ा था क्योंकि औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ संघर्ष ने लोगों में एकता की भावना पैदा की और उत्पीड़न के साझा अनुभव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से जोड़ा।
(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया।
उत्तर: पहले विश्व युद्ध ने रक्षा व्यय में वृद्धि, करों में बढ़ोतरी, कीमतों में दोगुना इजाफा, जबरन सिपाही भर्ती, फसल खराब होने और महामारी के कारण लोगों में असंतोष बढ़ाया, जिसने राष्ट्रीय आंदोलन को गति दी।
(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे।
उत्तर: भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में थे क्योंकि यह कानून सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और बिना मुकदमा चलाए दो साल तक कैद करने का अधिकार देता था, जो अन्यायपूर्ण था।
(घ) गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया।
उत्तर: गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लिया क्योंकि चौरी-चौरा में हिंसक घटना के बाद आंदोलन हिंसक हो रहा था और सत्याग्रहियों को व्यापक प्रशिक्षण की जरूरत थी।
प्रश्न 2: सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
उत्तर: सत्याग्रह का विचार सत्य और अहिंसा पर आधारित है, जिसमें सच्चे उद्देश्य के लिए बिना हिंसा के उत्पीड़क के खिलाफ संघर्ष किया जाता है, उसकी चेतना को झकझोरकर सत्य को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
प्रश्न 3: निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें –
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
उत्तर: 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में वैसाखी मेले और रॉलट एक्ट के विरोध में जमा भीड़ पर जनरल डायर ने बिना चेतावनी अंधाधुंध गोलियां चलवाईं। चारों तरफ से बंद मैदान में सैकड़ों लोग मारे गए। डायर का कहना था कि वह सत्याग्रहियों में दहशत पैदा करना चाहता था। इस हत्याकांड ने पूरे देश में आक्रोश फैलाया और राष्ट्रीय आंदोलन को और तेज कर दिया।
(ख) साइमन कमीशन
उत्तर: 1928 में साइमन कमीशन भारत पहुंचा, जिसका उद्देश्य संवैधानिक व्यवस्था का अध्ययन करना था। इसमें एक भी भारतीय सदस्य नहीं था, इसलिए इसका विरोध ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारों के साथ हुआ। कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य दलों ने प्रदर्शन किए। लाला लाजपत राय पर पुलिस हमले में घायल हुए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। यह विरोध राष्ट्रीय आंदोलन को और मजबूत करने वाला साबित हुआ।
प्रश्न 4: इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।
उत्तर:
- भारत माता (चित्र 12): अबनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा चित्रित भारत माता एक संन्यासिनी के रूप में दिखाई गई है, जो शांत, गंभीर और आध्यात्मिक है। वह शिक्षा, भोजन और कपड़े देती है, जो भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान को दर्शाती है।
- जर्मेनिया: जर्मेनिया को एक योद्धा के रूप में दर्शाया गया है, जो तलवार और ढाल लिए हुए है, जो जर्मनी की शक्ति और वीरता का प्रतीक है।
- तुलना: भारत माता की छवि आध्यात्मिक और मातृरूपी है, जबकि जर्मेनिया युद्ध और शक्ति की प्रतीक है। भारत माता की छवि में सांस्कृतिक एकता पर जोर है, वहीं जर्मेनिया में राष्ट्रीय शक्ति और एकता पर।
चर्चा करें
प्रश्न 1: 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।
उत्तर:
सामाजिक समूहों की सूची: मध्यवर्ग (विद्यार्थी, शिक्षक, वकील), किसान, आदिवासी, बागानी मजदूर।
तीन समूहों की आशाएँ और संघर्ष:
1. मध्यवर्ग (विद्यार्थी, शिक्षक, वकील):
- आशाएँ: मध्यवर्ग स्वराज की प्राप्ति और ब्रिटिश शासन से मुक्ति चाहता था। वे मानते थे कि सरकारी संस्थानों का बहिष्कार स्वतंत्रता की दिशा में कदम है।
- संघर्ष: हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़े, शिक्षकों ने इस्तीफे दिए, और वकीलों ने सरकारी अदालतों में काम बंद किया।
- शामिल होने का कारण: वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता के लिए योगदान देना चाहते थे।
2. किसान (अवध के किसान):
- आशाएँ: अवध के किसान भारी लगान, बेगार और जमींदारों के दमन से मुक्ति चाहते थे। उनके लिए स्वराज का अर्थ लगान में कमी और सामाजिक सम्मान था।
- संघर्ष: बाबा रामचंद्र के नेतृत्व में किसानों ने जमींदारों के खिलाफ आंदोलन किया, पंचायतों ने नाई-धोबी बंद का फैसला लिया, और अवध किसान सभा का गठन किया।
- शामिल होने का कारण: वे जमींदारों और तालुकदारों के शोषण से छुटकारा पाना चाहते थे और गांधीजी के स्वराज के आह्वान को अपनी मांगों से जोड़कर देखते थे।
3. आदिवासी (गूडेम पहाड़ियों के):
- आशाएँ: आदिवासियों के लिए स्वराज का मतलब जंगलों में प्रवेश, मवेशी चराने और लकड़ी बीनने के परंपरागत अधिकारों की बहाली था।
- संघर्ष: अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में गूडेम पहाड़ियों के आदिवासियों ने जंगल कानूनों और बेगार के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ा, पुलिस थानों पर हमले किए।
- शामिल होने का कारण: वे ब्रिटिश जंगल कानूनों और शोषण से मुक्ति चाहते थे और गांधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर स्वराज को अपने अधिकारों की बहाली से जोड़कर देखते थे।
प्रश्न 2: नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।
उत्तर: नमक यात्रा 12 मार्च 1930 को गांधीजी द्वारा साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 किलोमीटर की यात्रा थी, जो 6 अप्रैल को समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाकर पूरी हुई। यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का असरदार प्रतीक थी क्योंकि:
- नमक सभी वर्गों (अमीर-गरीब) द्वारा उपयोग किया जाता था, और नमक कर को गांधीजी ने ब्रिटिश शासन का दमनकारी पहलू बताया।
- यात्रा ने समाज के सभी वर्गों को एकजुट किया, क्योंकि नमक की मांग सभी के लिए सामान्य थी।
- गांधीजी ने इस यात्रा के दौरान सभाओं में स्वराज का अर्थ समझाया और शांतिपूर्ण अवज्ञा का आह्वान किया, जिसने लोगों में ब्रिटिश कानूनों के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध की भावना जागृत की।
- नमक कानून तोड़ने से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, शराब की दुकानों की पिकेटिंग और लगान न चुकाने जैसे कदम उठाए गए, जिसने आंदोलन को देशव्यापी बनाया।
इस तरह, नमक यात्रा ने ब्रिटिश शासन के दमनकारी कानूनों के खिलाफ व्यापक जनजागृति और प्रतिरोध को प्रेरित किया।
प्रश्न 3: कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफ़रमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता।
उत्तर: सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला के रूप में, यह अनुभव मेरे जीवन में गहरा बदलाव लाता। पहली बार घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर जुलूसों में शामिल होना, नमक बनाना, विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों की पिकेटिंग करना मुझे सशक्तिकरण और स्वतंत्रता का अहसास कराता। गांधीजी के आह्वान ने मुझे राष्ट्र सेवा को पवित्र कर्तव्य मानने की प्रेरणा दी। यह अनुभव मुझे सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता प्रदान करता, और मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाता। हालांकि, कांग्रेस की प्रतीकात्मक भूमिका तक सीमित नीति के कारण मुझे संगठन में महत्वपूर्ण पद न मिलने की निराशा भी होती, लेकिन देश के लिए योगदान देने का गर्व मेरे जीवन को अर्थपूर्ण बनाता।
प्रश्न 4: राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे।
उत्तर: राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर बंटे हुए थे क्योंकि:
- दलित नेताओं का दृष्टिकोण: डॉ. अंबेडकर जैसे दलित नेता दलितों के लिए पृथक निर्वाचिका चाहते थे, ताकि विधायी परिषदों में केवल दलित प्रतिनिधि चुने जाएं। उनका मानना था कि सामाजिक अपंगता को केवल राजनीतिक सशक्तीकरण से दूर किया जा सकता है।
- गांधीजी का दृष्टिकोण: गांधीजी पृथक निर्वाचिका के खिलाफ थे, क्योंकि उनका मानना था कि यह समाज में दलितों के एकीकरण को धीमा कर देगा और राष्ट्रीय एकता को कमजोर करेगा।
- मुस्लिम नेताओं का दृष्टिकोण: मोहम्मद अली जिन्ना और सर मोहम्मद इकबाल जैसे मुस्लिम नेता मुस्लिम बहुल प्रांतों में आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व और पृथक निर्वाचिका चाहते थे, ताकि अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान सुरक्षित रहे।
- हिंदू महासभा का विरोध: हिंदू महासभा के नेता, जैसे एम.आर. जयकर, पृथक निर्वाचिका को राष्ट्रीय एकता के खिलाफ मानते थे, जिससे 1928 के सर्वदलीय सम्मेलन में समझौता विफल हो गया।
इस तरह, विभिन्न समुदायों की अलग-अलग आकांक्षाएँ और राष्ट्रीय एकता बनाम सामुदायिक पहचान के बीच टकराव के कारण नेता बंटे हुए थे।
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