जाति,धर्म और लैंगिक मसले
Short Questions
1.प्रश्न: श्रम का लैंगिक विभाजन किसे कहते हैं?
उत्तर: जब घर के सारे काम औरतें करती हैं और बाहर का काम पुरुष करते हैं, इसे श्रम का लैंगिक विभाजन कहते हैं।
2.प्रश्न: नारीवादी किसे कहा जाता है?
उत्तर: वह व्यक्ति जो स्त्री और पुरुष के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करता है, नारीवादी कहलाता है।
3.प्रश्न: पितृ-प्रधान समाज का क्या अर्थ है?
उत्तर: ऐसा समाज जिसमें पुरुषों को स्त्रियों की तुलना में अधिक शक्ति और महत्व दिया जाता है।
4.प्रश्न: भारत की विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कितना है?
उत्तर: लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 14.36% और राज्य विधानसभाओं में 5% से भी कम है।
5.प्रश्न: भारत को धर्मनिरपेक्ष देश क्यों कहा जाता है?
उत्तर: क्योंकि भारत का संविधान किसी धर्म को राजकीय धर्म नहीं मानता और सभी को किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता देता है।
6.प्रश्न: सांप्रदायिकता क्या है?
उत्तर: जब धर्म को राजनीति या राष्ट्र का आधार बना दिया जाता है, तो उसे सांप्रदायिकता कहते हैं।
7.प्रश्न: जाति व्यवस्था पर आधारित भेदभाव को खत्म करने के लिए किन लोगों ने काम किया?
उत्तर: ज्योतिबा फुले, महात्मा गांधी, डॉ. आंबेडकर और पेरियार रामास्वामी नायकर ने।
8.प्रश्न: अनुसूचित जातियों की जनसंख्या का प्रतिशत कितना है?
उत्तर: लगभग 16.6 प्रतिशत।
9.प्रश्न: महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था कहाँ है?
उत्तर: पंचायतों और नगरपालिकाओं में एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
10.प्रश्न: लैंगिक असमानता का आधार क्या है?
उत्तर: समाज द्वारा तय की गई स्त्री और पुरुष की भूमिकाएँ, न कि उनकी जैविक बनावट।
Long Questions
1.प्रश्न: लैंगिक असमानता क्या है और इसके क्या परिणाम हैं?
उत्तर: लैंगिक असमानता का अर्थ है पुरुषों और स्त्रियों के बीच असमान व्यवहार। इसका परिणाम यह है कि महिलाएँ घर की चारदीवारी में सीमित रह जाती हैं और राजनीति व सार्वजनिक जीवन में उनकी भागीदारी बहुत कम होती है।
2.प्रश्न: भारत में महिलाओं की स्थिति में आज़ादी के बाद क्या बदलाव आए हैं?
उत्तर: महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है, रोज़गार के अवसर बढ़े हैं और पंचायतों में आरक्षण से उन्हें राजनीतिक भागीदारी मिली है। फिर भी वे पुरुषों की तुलना में पीछे हैं और भेदभाव का सामना करती हैं।
3.प्रश्न: भारत में धर्म और राजनीति का क्या संबंध है?
उत्तर: धर्म और राजनीति एक-दूसरे से पूरी तरह अलग नहीं हैं। गांधीजी के अनुसार राजनीति को धर्म से जुड़ी नैतिक मूल्यों द्वारा निर्देशित होना चाहिए, परंतु जब धर्म को सत्ता का आधार बनाया जाता है, तो सांप्रदायिकता पैदा होती है।
4.प्रश्न: सांप्रदायिकता के विभिन्न रूप क्या हैं?
उत्तर: सांप्रदायिकता दैनंदिन पूर्वाग्रहों, धार्मिक प्रभुत्व, चुनावी गोलबंदी और हिंसा के रूप में दिखाई देती है। यह तब खतरनाक होती है जब एक धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ माना जाता है।
5.प्रश्न: भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता को कैसे सुनिश्चित किया है?
उत्तर: संविधान ने किसी भी धर्म को राजकीय दर्जा नहीं दिया, सभी नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता दी और धर्म के आधार पर भेदभाव को अवैधानिक घोषित किया है।
6.प्रश्न: जातिगत असमानता क्या है?
उत्तर: जातिगत असमानता का अर्थ है जाति के आधार पर ऊँच-नीच और भेदभाव। ऊँची जातियों को शिक्षा और संसाधन मिले जबकि नीची जातियाँ शोषित रहीं। आधुनिक भारत में सुधार हुए हैं, पर जाति प्रथा पूरी तरह समाप्त नहीं हुई।
7.प्रश्न: राजनीति में जाति की क्या भूमिका है?
उत्तर: पार्टियाँ उम्मीदवार चुनते समय जातियों का ध्यान रखती हैं। जातिगत भावनाओं का उपयोग वोट पाने के लिए किया जाता है, लेकिन राजनीति ने पिछड़ी जातियों को अपनी आवाज़ उठाने का अवसर भी दिया है।
8.प्रश्न: महिला आंदोलनों ने समाज पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर: महिला आंदोलनों ने शिक्षा, रोज़गार और राजनीतिक अधिकारों में समानता की माँग की। इनके कारण समाज में महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई और राजनीति में उनकी भूमिका बढ़ी।
9.प्रश्न: भारत में धर्मनिरपेक्ष शासन क्यों आवश्यक है?
उत्तर: क्योंकि भारत जैसे विविध धर्मों वाले देश में सभी धर्मों के समान अधिकार और समान व्यवहार से ही लोकतंत्र सुरक्षित रह सकता है। सांप्रदायिकता इस एकता के लिए खतरा है।
10.प्रश्न: जातिवाद लोकतंत्र के लिए कैसे हानिकारक है?
उत्तर: जातिवाद लोगों को सामाजिक रूप से बाँटता है, जिससे गरीबी, विकास और भ्रष्टाचार जैसे बड़े मुद्दों से ध्यान भटकता है। यह तनाव और हिंसा को भी बढ़ावा देता है।
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