1. परिचय
- सत्ता का उर्ध्वाधर बँटवारा = संघवाद।
- संघवाद से अलग-अलग इलाकों का साथ रहना संभव होता है।
- भारत का संविधान संघीय ढाँचे पर आधारित है।
2. संघवाद क्या है?
1. संघीय शासन में सर्वोच्च सत्ता केंद्र और राज्यों के बीच बँट जाती है।
2. दो स्तर की सरकारें होती हैं :
- केंद्र सरकार – राष्ट्रीय महत्व के विषय।
- राज्य सरकारें – दैनिक शासन के विषय।
3. संघीय प्रणाली = एकात्मक प्रणाली के विपरीत।
4. दोनों सरकारें अपने-अपने स्तर पर स्वतंत्र होती हैं और जनता को जवाबदेह।
3. संघीय व्यवस्था की विशेषताएँ
- सरकार दो या अधिक स्तरों वाली।
- सभी स्तर एक ही नागरिक समूह पर शासन करते हैं पर उनका अपना अधिकार-क्षेत्र होता है।
- संविधान सभी स्तरों के अधिकार सुरक्षित करता है।
- मौलिक प्रावधान सिर्फ दोनों स्तरों की सहमति से बदल सकते हैं।
- अदालतें विवाद सुलझाती हैं।
- वित्तीय स्वायत्तता के लिए अलग राजस्व स्रोत।
- उद्देश्य – देश की एकता और क्षेत्रीय विविधता का सम्मान।
4. संघीय व्यवस्था के गठन के दो तरीके
1. स्वतंत्र देशों का मिलकर संघ बनाना – जैसे अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया।
- प्रांत मज़बूत होते हैं।
2. एक बड़े देश के भीतर राज्यों का गठन – जैसे भारत, बेल्जियम, स्पेन।
- केंद्र मज़बूत होता है।
- कुछ राज्यों को विशेष अधिकार।
5. भारत में संघीय व्यवस्था
- आज़ादी के बाद संविधान ने भारत को “राज्यों का संघ” घोषित किया।
- मूल रूप से दो स्तर : केंद्र सरकार और राज्य सरकारें।
- बाद में तीसरा स्तर – स्थानीय शासन (पंचायत, नगरपालिका)।
(क) विधायी शक्तियों का बँटवारा
- संघ सूची – राष्ट्रीय विषय (रक्षा, विदेशी मामले, मुद्रा आदि)।
- राज्य सूची – स्थानीय विषय (पुलिस, कृषि, सिंचाई आदि)।
- समवर्ती सूची – साझे विषय (शिक्षा, विवाह, वन आदि)।
- टकराव होने पर केंद्र का कानून मान्य।
- बाकी विषय (जैसे कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर) = केंद्र के अधिकार में।
(ख) विशेष दर्जा
- कुछ राज्यों को अनुच्छेद 371 के तहत विशेष अधिकार (असम, नागालैंड, मिज़ोरम आदि)।
- छोटे क्षेत्र = केंद्र शासित प्रदेश (दिल्ली, चंडीगढ़, लक्षद्वीप आदि)।
(ग) संशोधन प्रक्रिया
- अधिकारों के बँटवारे में बदलाव आसान नहीं।
- संसद में 2/3 बहुमत + आधे राज्यों की सहमति।
(घ) न्यायपालिका और वित्त
- विवाद हल करने का काम – उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय।
- केंद्र और राज्यों के पास अपने कर लगाने और राजस्व जुटाने के अधिकार।
6. संघवाद को मज़बूत करने वाले कारक
(क) भाषायी राज्य
- 1950 के दशक में भाषावार राज्यों का गठन।
- उद्देश्य – प्रशासनिक सुविधा और सांस्कृतिक पहचान का सम्मान।
- परिणाम – देश मज़बूत और एकीकृत।
(ख) भाषा-नीति
- हिंदी = राजभाषा, पर राष्ट्रभाषा नहीं।
- अन्य 21 भाषाओं को भी अनुसूचित भाषा का दर्जा।
- अंग्रेज़ी का प्रयोग भी जारी (विशेषकर गैर-हिंदी राज्यों के दबाव से)।
- लचीली नीति से श्रीलंका जैसी स्थिति से बचाव।
(ग) केंद्र-राज्य संबंध
- शुरुआत में केंद्र मज़बूत, राज्य कमजोर।
- बाद में क्षेत्रीय दलों का उदय और गठबंधन सरकारें।
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राज्यों की स्वायत्तता मज़बूत।
7. भारत में विकेंद्रीकरण
- भारत जैसे विशाल देश में सिर्फ़ दो स्तर पर्याप्त नहीं।
- तीसरा स्तर – स्थानीय शासन (1992 के संशोधन के बाद मज़बूत)।
(क) पंचायत व्यवस्था (गाँवों में)
- ग्राम पंचायत – वार्डों से चुने गए पंच और प्रधान/सरपंच।
- ग्राम सभा – सभी वयस्क सदस्य।
- पंचायत समिति – कई ग्राम पंचायतों का समूह।
- जिला परिषद – जिले की सबसे बड़ी इकाई।
(ख) शहरी क्षेत्र
- नगरपालिकाएँ और नगर निगम।
- राजनीतिक प्रधान – मेयर।
(ग) 1992 का संवैधानिक संशोधन
- पंचायत/नगरपालिका चुनाव नियमित।
- अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण।
- 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित।
- राज्य चुनाव आयोग का गठन।
- राज्य सरकारें अपने राजस्व का हिस्सा स्थानीय निकायों को देती हैं।
(घ) महत्व
- लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत किया।
- महिलाओं और वंचित वर्गों की भागीदारी बढ़ी।
- अभी भी समस्याएँ – अधिकार और संसाधनों की कमी, ग्राम सभाएँ नियमित नहीं।
8. निष्कर्ष
- संघवाद भारत की एकता को बनाए रखते हुए विविधता का सम्मान करता है।
- भाषावार राज्यों, भाषा-नीति और गठबंधन राजनीति ने इसे मज़बूत बनाया।
- स्थानीय सरकारों ने लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर पहुँचाया।
Leave a Reply