1. परिचय
- सामाजिक विविधता लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है।
- राजनीति में सामाजिक असमानताओं की अभिव्यक्ति कई बार लोकतंत्र के लिए लाभकारी होती है।
- मुख्य असमानताएँ – लिंग, धर्म और जाति।
2. लैंगिक असमानता और राजनीति
- लैंगिक विभाजन : समाज में औरतों और पुरुषों को अलग-अलग भूमिकाएँ देना।
- औरतों को घर के कामकाज तक सीमित माना गया, पुरुषों का वर्चस्व सार्वजनिक जीवन पर।
- महिलाओं का काम (घरेलू कार्य) मूल्यहीन समझा गया, जबकि पुरुषों का काम अधिक मान्यता प्राप्त।
सुधार और आंदोलन
- महिलाओं ने शिक्षा और रोज़गार में समान अवसरों की माँग की।
- नारीवादी आंदोलनों ने राजनीतिक और पारिवारिक जीवन दोनों में बराबरी की माँग की।
- आज महिलाएँ विज्ञान, इंजीनियरिंग, शिक्षा आदि पेशों में आगे बढ़ रही हैं।
भारत में स्थिति
- महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों से कम।
- उच्च शिक्षा व उच्च पदों पर महिलाओं की संख्या बहुत कम।
- समान मज़दूरी कानून के बावजूद महिलाओं को कम वेतन।
- कन्या भ्रूण हत्या और लिंग अनुपात की समस्या।
- महिलाओं पर हिंसा और शोषण।
राजनीतिक प्रतिनिधित्व
- लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम (2019 में 14.36%)।
- विधानसभाओं में 5% से भी कम।
- पंचायत और नगरपालिकाओं में 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित – इससे 10 लाख से अधिक महिलाएँ निर्वाचित।
- माँग – संसद और विधानसभा में भी महिलाओं के लिए 1/3 सीटें आरक्षित हों।
3. धर्म और राजनीति
- धर्म को राजनीति से पूरी तरह अलग नहीं किया जा सकता।
- गांधीजी – राजनीति धर्म के नैतिक मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए।
- अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा आवश्यक।
- महिला आंदोलन – पारिवारिक कानूनों में समानता की माँग।
सांप्रदायिकता
- जब धर्म को राष्ट्र का आधार बना दिया जाए तो समस्या शुरू होती है।
- सांप्रदायिक सोच – धर्म ही समुदाय का आधार है।
- प्रकार :
- धार्मिक पूर्वाग्रह व श्रेष्ठता की भावना।
- बहुसंख्यकवाद या अलग राज्य की माँग।
- सांप्रदायिक गोलबंदी – चुनाव में धार्मिक अपील।
- सांप्रदायिक हिंसा, दंगे, नरसंहार।
धर्मनिरपेक्ष शासन
- भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्ष है।
- किसी धर्म को राजकीय धर्म का दर्जा नहीं।
- सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने और प्रचार करने की आज़ादी।
- धर्म के आधार पर भेदभाव निषिद्ध।
- राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है (जैसे छुआछूत पर रोक)।
4. जाति और राजनीति
जातिगत असमानताएँ
- जाति व्यवस्था भारत की विशेषता।
- पेशे का वंशानुगत विभाजन, सामाजिक अलगाव और भेदभाव।
- महात्मा गांधी, डॉ. आंबेडकर, ज्योतिबा फुले, पेरियार ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ़ आंदोलन किए।
- संविधान – छुआछूत पर प्रतिबंध, समानता का अधिकार।
- आधुनिक भारत में बदलाव – शहरीकरण, शिक्षा, आर्थिक विकास से जाति की जकड़ कम हुई।
- परंतु अभी भी – जाति आधारित विवाह, छुआछूत और असमानताएँ बनी हुई हैं।
राजनीति में जाति
- उम्मीदवार चयन और सरकार गठन में जातियों का ध्यान।
- पार्टियाँ जातिगत समर्थन पाने की कोशिश करती हैं।
- सार्वभौम वयस्क मताधिकार से पिछड़ी जातियों में नई चेतना।
- जाति और राजनीति का दोतरफा संबंध – राजनीति भी जातिगत पहचान को बदलती है।
- दलित, पिछड़ी जातियों के लिए सत्ता तक पहुँचने और अधिकार पाने का अवसर।
- लेकिन केवल जाति पर आधारित राजनीति लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह, बड़े मुद्दों से ध्यान भटकाती है और तनाव को बढ़ावा देती है।
5. निष्कर्ष
- सामाजिक विभाजन लोकतंत्र में स्वाभाविक हैं।
- यदि इन्हें सही दिशा मिले तो यह समानता और भागीदारी बढ़ाते हैं।
- लैंगिक, धार्मिक और जातिगत मुद्दों पर जागरूकता व राजनीतिक प्रतिनिधित्व ज़रूरी।
- परंतु केवल जातिवाद और सांप्रदायिकता पर आधारित राजनीति लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
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