1. परिचय
- लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- ये दल सत्ता बाँटने, संविधान बनाने, चुनाव कराने और सरकार चलाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
- राजनीतिक दल लोकतंत्र में सामाजिक समूहों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं।
2. राजनीतिक दलों की आवश्यकता
- लोकतंत्र में राजनीतिक दल अनिवार्य हैं।
- अधिकतर नागरिक लोकतंत्र को राजनीतिक दलों से ही जोड़कर देखते हैं।
- बिना राजनीतिक दलों के लोकतंत्र चलाना असंभव है।
- दल समाज के विभिन्न वर्गों की राय को संगठित कर सरकार बनाने में मदद करते हैं।
3. राजनीतिक दल का अर्थ
- राजनीतिक दल लोगों का एक संगठित समूह होता है जो चुनाव लड़कर सरकार में भाग लेना चाहता है।
- यह समूह समाज के सामूहिक हित को ध्यान में रखकर नीतियाँ और कार्यक्रम बनाता है।
- किसी दल की पहचान उसकी नीतियों और सामाजिक आधार से होती है।
राजनीतिक दल के तीन अंग:
- नेता
- सक्रिय सदस्य
- अनुयायी या समर्थक
4. राजनीतिक दलों के कार्य
- चुनाव लड़ना -दल अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं। भारत में नेता उम्मीदवार तय करते हैं।
- नीतियाँ व कार्यक्रम बनाना -दल मतदाताओं के सामने नीतियाँ रखते हैं।
- कानून निर्माण -विधायिका में अधिकांश सदस्य किसी न किसी दल से जुड़े होते हैं।
- सरकार बनाना व चलाना -दल नेता चुनते हैं, उन्हें मंत्री बनाते हैं और सरकार चलाते हैं।
- विपक्ष की भूमिका -हारने वाले दल सरकार की आलोचना करते हैं।
- जनमत निर्माण -दल समाज में मुद्दों पर बहस करवाते हैं और लोगों की राय बनाते हैं।
- जनता और सरकार के बीच सेतु -दल लोगों की जरूरतें सरकार तक पहुँचाते हैं।
5. राजनीतिक दलों की आवश्यकता क्यों?
- राजनीतिक दलों के बिना लोकतंत्र अधूरा है।
- दल न हों तो हर उम्मीदवार निर्दलीय होगा और कोई ठोस नीति नहीं बनेगी।
- दल प्रतिनिधियों को जोड़ते हैं, नीतियाँ बनाते हैं और सरकार को जवाबदेह बनाते हैं।
6. दलीय व्यवस्थाएँ
- एकदलीय व्यवस्था -जैसे चीन, जहाँ केवल एक ही दल शासन कर सकता है। लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं।
- द्विदलीय व्यवस्था -जैसे ब्रिटेन, अमेरिका – दो प्रमुख दल बारी-बारी से शासन करते हैं।
- बहुदलीय व्यवस्था -जैसे भारत – कई दल चुनाव लड़ते हैं, गठबंधन बनाते हैं और मिलकर सरकार बनाते हैं।
7. भारत की दलीय व्यवस्था
- भारत में बहुदलीय प्रणाली है।
- यहाँ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल दोनों सक्रिय हैं।
- गठबंधन राजनीति (जैसे – एनडीए, यूपीए, वाम मोर्चा) प्रमुख है।
- यह व्यवस्था विविध विचारों को प्रतिनिधित्व देती है।
8. राष्ट्रीय राजनीतिक दल
भारत में निर्वाचन आयोग के अनुसार राष्ट्रीय दल बनने के नियम:
- चार राज्यों में 6% वोट और लोकसभा की कम से कम 4 सीटें जीतना।
1.सात राष्ट्रीय दल:
2.इंडियन नेशनल काँग्रेस (INC)
- 1885 में गठित, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की पक्षधर।
- कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों की हितैषी।
- 2004-2014 तक यूपीए सरकार का नेतृत्व किया।
3.भारतीय जनता पार्टी (BJP)
- 1980 में बनी।
- समग्र मानवतावाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर आधारित।
- वर्तमान में एनडीए गठबंधन का नेतृत्व और केंद्र में सत्ता।
4.बहुजन समाज पार्टी (BSP)
- 1984 में कांशीराम द्वारा स्थापित।
- दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के हितों के लिए कार्यरत।
- उत्तर प्रदेश में प्रमुख आधार।
5.कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI)
- 1925 में गठित, मार्क्सवाद-लेनिनवाद में आस्था।
- मजदूर, किसान और गरीब वर्ग के हितों की पक्षधर।
6.कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) – CPI(M)
- 1964 में स्थापित।
- पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा में प्रभावी।
- समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की समर्थक।
7.ऑल इंडिया तृणमूल काँग्रेस (AITC)
- 1998 में ममता बनर्जी द्वारा स्थापित।
- पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़, धर्मनिरपेक्ष और संघवाद समर्थक दल।
8.नेशनलिस्ट काँग्रेस पार्टी (NCP)
- 1999 में बनी।
- गांधीवादी धर्मनिरपेक्षता और संघवाद में आस्था।
- महाराष्ट्र में प्रमुख शक्ति।
9. क्षेत्रीय दल
- जो किसी विशेष राज्य या क्षेत्र में प्रभावी होते हैं।
- उदाहरण: बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्र समिति, मिज़ो नेशनल फ्रंट आदि।
- क्षेत्रीय दलों की संख्या और ताकत बढ़ने से संघवाद और लोकतंत्र मजबूत हुआ है।
10. राजनीतिक दलों के सामने चुनौतियाँ
1.आंतरिक लोकतंत्र का अभाव –
- निर्णय कुछ नेताओं तक सीमित, कार्यकर्ताओं की राय की अनदेखी।
2.वंशवाद की प्रवृत्ति –
- परिवार-आधारित नेतृत्व बढ़ता जा रहा है।
3.धन और अपराध का प्रभाव –
- चुनाव जीतने के लिए अमीर व अपराधी तत्वों का प्रयोग।
4.विकल्पहीनता की समस्या –
- विभिन्न दलों की नीतियों में अंतर कम होता जा रहा है।
11. राजनीतिक दलों में सुधार के उपाय
1.संविधान संशोधन –
- दल-बदल रोकने का कानून।
2.न्यायालय का हस्तक्षेप –
- उम्मीदवारों को संपत्ति और आपराधिक मामलों की जानकारी देना अनिवार्य।
3.चुनाव आयोग के निर्देश –
- दलों को संगठनात्मक चुनाव और आयकर रिटर्न दाखिल करना आवश्यक।
4.अन्य सुझाव –
- दलों के आंतरिक कामकाज को कानूनी रूप से नियमित करना।
- महिलाओं को कम से कम एक-तिहाई टिकट देना।
- चुनावी खर्च सरकार द्वारा उठाया जाना।
5.जनता का दबाव –
- मीडिया, आंदोलन और जनदबाव से दल सुधार के लिए प्रेरित हो सकते हैं।
6.लोगों की भागीदारी बढ़ाना –
- नागरिकों को राजनीति में सक्रिय भाग लेना चाहिए।
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