Notes For All Chapters Hindi Sparsh Class 10 CBSE
साखी – पठन सामग्री और भावार्थ
कवि परिचय – कबीर (1398 – 1518)
- जन्म: 1398 ई., काशी (वाराणसी) में।
- गुरु: रामानंद के शिष्य।
- मृत्यु: मगहर में, 1518 ई.
- कबीर एक क्रांतदर्शी कवि थे।
- वे सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक स्तर पर व्याप्त कुरीतियों पर चोट करते थे।
- उनकी कविता में गहरी सामाजिक चेतना और अध्यात्म की झलक मिलती है।
- वे शास्त्रीय ज्ञान की बजाय अनुभव ज्ञान को महत्व देते थे।
- उनकी वाणी सहज, लोकभाषा और जनमानस से जुड़ी हुई है।
- भाषा: ‘सधुक्कड़ी’ (पचमेल खिचड़ी – अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी, पंजाबी का मिश्रण)।
पाठ परिचय
- ‘साखी’ शब्द ‘साक्षी’ से बना है, जिसका अर्थ है – प्रत्यक्ष ज्ञान।
- संत परंपरा में अनुभव ज्ञान को ही असली महत्व दिया गया है।
- कबीर की साखियाँ दोहा छंद में हैं (13 + 11 = 24 मात्राएँ)।
- प्रस्तुत साखियों में जीवन के गहरे सत्य और व्यवहार की सीख दी गई है।
साखियों का भावार्थ
- ऐसी वाणी बोलनी चाहिए
- मीठी वाणी बोलने से अहंकार नष्ट होता है।
- स्वयं के मन को शीतलता और दूसरों को सुख मिलता है।
- ईश्वर हर जगह विद्यमान
- जैसे मृग कस्तूरी अपने नाभि में होते हुए भी उसे वन-वन ढूँढ़ता है।
- वैसे ही मनुष्य अपने भीतर स्थित परमात्मा को बाहर ढूँढ़ता है।
- अहंकार और ईश्वर
- जब तक ‘मैं’ है, तब तक ‘हरि’ नहीं।
- जब ‘मैं’ मिट जाता है, तब हरि मिल जाते हैं।
- जैसे दीपक जलते ही अंधेरा मिट जाता है।
- सुखी और दुखी कौन?
- संसार में जो खाते-पीते और सोते हैं, वे सुखी हैं।
- पर जो जागकर रोते रहते हैं (साधक/विरही), वे दुखी हैं।
- यहाँ ‘सोना’ = अज्ञान/भौतिक सुख, और ‘जागना’ = ज्ञान/विरह।
- विरह का दुख
- विरह रूपी साँप तन-मन में बस जाए तो कोई मंत्र असर नहीं करता।
- राम से वियोगी जीवित नहीं रह सकता, यदि रह जाए तो पागल हो जाता है।
- निंदक का महत्व
- निंदक को पास में रखना चाहिए।
- वह बिना साबुन-पानी के ही मन को निर्मल कर देता है।
- पढ़ाई और पांडित्य का मोह
- ग्रंथ पढ़-पढ़कर लोग मर गए, कोई पंडित न हुआ।
- असली पंडित वही है जो ‘एक अक्षर प्रेम’ का पढ़े और अपनाए।
- आत्मदाह (अंतर की साधना)
- कबीर कहते हैं – मैंने अपना घर (अहंकार) जला दिया और हाथ में जलती लकड़ी ले ली।
- अब जो मेरे साथ चलेगा, उसका घर भी जला दूँगा।
- इसका भाव – साधना मार्ग पर चलने के लिए त्याग और विरक्ति जरूरी है।
✨ भाषा की विशेषताएँ
- कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है।
- इसमें अवधी, भोजपुरी, राजस्थानी और पंजाबी शब्दों का प्रयोग है।
- भाषा सहज, सरल और लोकधर्मी है।
- भावनाओं की गहराई और सामाजिक चेतना प्रकट करने वाली है।
शिक्षा / संदेश
- मीठी और विनम्र वाणी का महत्व।
- ईश्वर हर जीव के भीतर है, बाहर ढूँढ़ने की ज़रूरत नहीं।
- अहंकार मिटे बिना ईश्वर का साक्षात्कार संभव नहीं।
- विरह और भक्ति साधक के लिए गहरी साधना है।
- निंदक से भी लाभ होता है, क्योंकि वह दोष दूर करने में सहायक है।
- ग्रंथ पढ़ने से नहीं, बल्कि प्रेम और अनुभव से सच्चा ज्ञान मिलता है।
- त्याग, विरक्ति और साधना से ही जीवन का सच्चा अर्थ समझा जा सकता है।
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