Notes For All Chapters Hindi Sparsh Class 10 CBSE
पद – पठन सामग्री और भावार्थ
कवयित्री परिचय – मीराबाई (1503-1546)
- जन्म: 1503 ई., जोधपुर जिले के कुड़की गाँव में।
- विवाह: 13 वर्ष की उम्र में मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र कुँवर भोजराज से।
- जीवन:
- बाल्यावस्था में ही माँ का देहांत।
- विवाह के कुछ ही समय बाद पति, पिता और श्वसुर का निधन।
- दुखों से व्यथित होकर उन्होंने घर-परिवार त्याग दिया और वृंदावन में रहकर स्वयं को पूरी तरह कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया।
- संत रैदास की शिष्या थीं।
- रचनाएँ: लगभग सात-आठ कृतियाँ उपलब्ध।
- भक्ति: दैन्य और माधुर्य भाव की।
- प्रभाव: योगियों, संतों और वैष्णव भक्तों का।
- भाषा: राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण; साथ ही पंजाबी, खड़ी बोली और पूर्वी भाषाओं के प्रयोग भी।
- स्थान: हिंदी व गुजराती दोनों की कवयित्री मानी जाती हैं।
पाठ परिचय
- मीरा के पद भक्ति-रस से ओतप्रोत हैं।
- वे श्रीकृष्ण को कभी निर्गुण निराकार ब्रह्म, कभी सगुण गोपीवल्लभ और कभी योगी के रूप में देखती हैं।
- उनकी भक्ति में गहरा प्रेम, उलाहना, मनुहार और समर्पण झलकता है।
- प्रस्तुत पाठ में दो पद संकलित हैं:
- पहला पद – हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती।
- दूसरा पद – श्याम की चाकरी करने की इच्छा।
पदों का भावार्थ
(1) हरि आप हरो जन री भीर
- मीरा कहती हैं:
- जैसे श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखकर चीर बढ़ाया।
- जैसे भक्त कारण नरहरि रूप धारण किया।
- जैसे गजराज को मगरमच्छ से बचाया।
- वैसे ही हे गिरधर गोपाल! मेरी भी पीड़ा हर लो।
- यहाँ मीरा ने अपने दुःख को हरने के लिए कृष्ण से प्रार्थना की है।
(2) स्याम म्हाने चाकर राखो जी
- मीरा कृष्ण की दासी बनकर उनकी सेवा करना चाहती हैं।
- वे कहती हैं –
- मैं बाग लगाऊँगी, प्रतिदिन उनका दर्शन करूँगी।
- वृंदावन की कुंज गलियों में उनकी लीलाएँ गाऊँगी।
- चाकरी में दर्शन, स्मरण और भक्ति को प्राप्त करूँगी।
- कृष्ण का रूप वर्णन करती हैं – सिर पर मोर मुकुट, पीताम्बर, गले में वैजयंती माला, मुरली बजाते और गाय चराते हुए।
- वे चाहती हैं कि कृष्ण आधी रात यमुना के तट पर दर्शन दें।
- इससे मीरा का कृष्ण के प्रति गहरा प्रेम और समर्पण झलकता है।
मीरा की भाषा शैली
- भाषा में राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण।
- साथ ही पंजाबी, खड़ी बोली और पूर्वी के शब्दों का प्रयोग।
- भाषा सरल, सहज और लोकधर्मी।
- भावनात्मक गहराई और भक्ति-रस से परिपूर्ण।
शिक्षा / संदेश
- दुःख और पीड़ा से मुक्ति का एकमात्र मार्ग भक्ति है।
- भक्ति में दैन्य (विनम्रता) और माधुर्य (प्रेमभाव) दोनों आवश्यक हैं।
- सच्ची भक्ति का अर्थ है – आराध्य को अपना सबकुछ मान लेना।
- ईश्वर भक्त की रक्षा हमेशा करते हैं।
- प्रेम और समर्पण से ईश्वर को पाया जा सकता है।
मुख्य बिंदु (बिंदुवार)
- मीरा का जीवन – दुखों से भरा और कृष्ण-भक्ति में समर्पित।
- पहला पद – श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा हरने की प्रार्थना।
- दूसरा पद – कृष्ण की दासी बनकर सेवा करने की इच्छा।
- श्रीकृष्ण का रूप वर्णन – मोर मुकुट, पीताम्बर, वैजयंती माला, मुरली वाला ग्वाला।
- भाषा – राजस्थानी, ब्रज, गुजराती का मिश्रण, सहज और भक्ति-रसपूर्ण।
- संदेश – सच्ची भक्ति ही जीवन का आधार है।
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